अतीत के पन्ने - भाग 21 RACHNA ROY द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अतीत के पन्ने - भाग 21

छाया ने रात को खाना परोस दिया और फिर बोली भाई आप एक कोई दुकान पर बैठाने वाला देख लो।
आलेख ने कहा हां ठीक है मैं सोच रहा था कि उसे एक बार बोलू शायद उसे पैसों की जरूरत होगी। और फिर आलेख ने शाम को फोन किया और फिर बोला हेलो शाम मैं आलेख।।
उधर से आवाज आई हां कान्हा बोलो।
आलेख ने हंसते हुए कहा देखो तुम्हारे लिए मेरे पास एक काम है क्या तुम करना चाहोगे?
शाम ने कहा हां, हां क्यों नहीं मैं जरूर करुंगा।
आलेख ने कहा हां ठीक है कल आओ मेरे घर।
शाम ने कहा हां कान्हा जरूर।
आलेख ने फोन रखते हुए कहा चलो एक काम हो गया अब जरा पढ़ लेता हूं कल का पेपर।
फिर काफी देर तक पढ़ाई करने के बाद आलेख एक दम थक गया था और फिर जाकर सो गया।
दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर तैयार हो गया और फिर नाश्ता करने के बाद बैग लेकर बाहर निकल आया और फिर वहां से बस स्टैंड पर इन्तजार करने लगा कुछ देर बाद ही पिया की गाड़ी आकर रूकी और फिर पिया उतर गई।
और फिर दोनों बातें करते हुए बस पर बैठ गए और फिर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पहुंच गए।
हमारा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल एक साथ ही है हमारे लिए बहुत अच्छा है।
फिर दोनों परिक्षा हाॅल में पहुंच कर अपने अपने जगह पर बैठ गए।
फिर परिक्षा शुरू हो गई।
आलेख अपना पेपर एकाग्रता से करता गया और फिर पुरा होने के बाद जमा भी कर दिया।

फिर दोनों मिलकर कैंटिन में जाकर बैठ गए और फिर पिया ने अपना लंच बॉक्स खोला तो आलेख ने कहा वाह क्या खुशबू है सूजी का हलवा देसी घी की खुशबू।।
पिया ने हंसते हुए कहा अरे बाबा तुम्हारे लिए ही लाईं हुं पापा ने बनाया है वो भी तुम्हारी छोटी मां ने सिखाया था।
आलेख ने कहा सच कहा तुमने,तो देर किस बात की दो ना मुझे और फिर आलेख स्टील वाला डिब्बा लेकर खानें लगा।
क्या स्वाद है।।
कुछ देर बाद शाम वहां आ गए और फिर बोला कान्हा!
आलेख ने देखते ही कहा अरे शाम आ गए, चलो फिर हमारे साथ।
शाम ने कहा हां कान्हा जरूर।
पिया ने कहा अरे ये कौन है?
आलेख ने कहा अरे उस दिन बताया था शाम के बारे में।
पिया ने कहा हां, हां।
आलेख ने कहा आज से शाम दुकान पर बैठेगा।
पिया ने कहा हां, पर कन्हैयालाल जी?.
आलेख ने कहा हां उनको कुछ जरूरी काम से गांव जाना पड़ गया।
पिया ने कहा हां ठीक है, चलो।
फिर तीनों बस में बैठ कर निकल गए।
और फिर अपने बस स्टैंड पर उतर गए जहां से पिया अपने घर चली गई।
आलेख ने शाम को अपने दुकान पर ले जाकर दुकान खोल कर सारे काम समझा दिया।
शाम ने कहा कान्हा तुमने मुझे ये काम देकर बड़ी मदद कर दिया। अब मेरी दादी मां और बहन भुखे नहीं रहेंगे।
आलेख ने शाम की पीठ थपथपाई और फिर वहां से अपने हवेली आ गया।
हवेली आकर सबसे पहले नहाकर साफ वस्त्र पहनकर उसने छोटी मां और नानी मां के फोटो पर माला पहना दिया और दीप प्रज्जवलित कर दिया।
और फिर छोटी मां को वो सारी बात बताई जो पहले भी बताया करता था।
छाया ने चाय और नाश्ता दे कर चली गई।
आलेख ने अपनी पढ़ाई शुरू कर दिया वो जी जान से पढ़ाई कर रहा था ताकि अव्वल आ सकें और छोटी मां का सपना पूरा कर सकें।
बस इसी तरह एक रात और बीत गया।
शाम भी अपनी पढ़ाई के साथ, साथ दुकान भी बहुत अच्छी तरह से सम्हाल लिया था।
इस तरह एक हफ्ते बीत गया।
आज शनिवार है और शाम आकर आलेख को रेजिस्टर और पैसों का हिसाब देने पहुंच गया।
आलेख ने अपनी पुरी हवेली शाम को दिखाया।
शाम ने कहा कान्हा ये एक हफ्ते का हिसाब है मिला लो।
आलेख ने पुरा हिसाब मिलाया और फिर बोला हां बिल्कुल ठीक है और ये रहे तुम्हारे एक हफ्ते का पगार।
शाम ने आलेख के हाथों से पैसे ले लिया और फिर रोने लगा।
आलेख ने कहा अरे बाबा अब रो क्यों रहे हो?
शाम ने कहा कान्हा तुमने जो किया है वो कोई भी नहीं कर सकता।
आलेख ने कहा अरे तुम्हारे मेहनत का फल है दोस्त।
शाम ने दो हजार रुपए लेकर जेब में रख दिया और फिर बोला कि मैं अब चलता हूं सोमवार को आऊंगा।
आलेख ने कहा हां दोस्त सोमवार को भी पेपर है और फिर छुट्टी हो जाएगी।
शाम ने कहा हां कान्हा।।
फिर आलेख भी बहुत खुश था क्योंकि आज उसके पापा आने वाले थे और फिर कुछ देर बाद ही आलोक की गाड़ी आकर रूकी तो आलेख भी समझ गया कि पापा आ गए हैं।

और बस पापा के आते ही उनका लाडला खुश हो गया और फिर आलोक ने अपने हाथों से सारा पैकेट आलेख के हाथों में थमा दिया।
आलेख ने कहा अरे वाह पापा इस बार बहुत कुछ लाएं।।
आलोक ने हंसते हुए कहा अरे बाबा हां मेरी बहु ने जो कहा था कैसे ना लाता।।
आलेख ने कहा ओह तो ये बात है।।
आलोक ने कहा छाया जल्दी से चाय पिलाओ। अन्दर गर्म गर्म कचौड़ी लाया हुं नंथू हलवाई की दुकान से।।
आलेख ने कहा अरे वाह क्या बात है पापा छोटी मां हमेशा छाया को भेज कर मंगवाती थी।
आलोक ने कहा हां मुझे पता है।।
चलो मैं नहाकर आता हूं।
आलेख बैठ कर अपने पेपर की तैयारी करने लगा।
कुछ देर बाद ही आलोक भी आ गए और फिर
दोनों बैठ कर चाय और कचौड़ी खाने लगे और फिर आलोक ने कहा अरे छाया तुम भी ले लो।
छाया एक दम से रोने लगी और फिर बोली हां ,आलोक बाबू जब भी काव्या दी मंगवाती थी तो सबसे पहले मुझे ही देती थी और फिर कितना समय बाद ये कचौड़ी की खुशबू आ रही है।
आलेख ने कहा हां, हां ठीक है।।
फिर नाश्ता करने के बाद आलोक ने आलेख से मेडिकल की पढ़ाई के बारे में पुछने लगा।।

और बताओ दुकान कैसा चल रहा है?
आलेख ने कहा अरे पापा क्या बताऊं उनको गांव जाना पड़ा।।
अब वहां मेरा दोस्त शाम बैठता है।।
आलोक ने कहा हां ठीक है।।
सब ठीक है तो अच्छा है उसका भी खर्चा निकल रहा है।
क्रमशः