Nakaab - 22 books and stories free download online pdf in Hindi

नकाब - 22

भाग 22

पिछले भाग में आपने पढ़ा की बदलती परिस्थितियों में गुड़िया की शादी सुहास के संग हो जाती है। अब उसकी बिदाई है। नए घर और नए जीवन की नई शुरुआत है।अब आगे पढ़े।

ठाकुर गजराज सिंह का गुड़िया के प्रति दिल का मैल कुछ तो इस शादी के लिए हां करते ही कम हो गया था, बाकी बचा खुचा इस शादी के साथ ही उसे विदा करते वक्त आंसुओ से साफ हो जाता है। अब वो उनकी वही पहले वाली लाडली गुड़िया थी। जिसे कोई भी तकलीफ नहीं होनी चाहिए।

गुड़िया की विदाई ठाकुर साहब ने नई सजी धजी कार में की। इस कार के बारे में किसी को भी नही पता था की ठाकुर साहब गुड़िया को दे रहे है। जब इस बारे में जगदेव सिंह जी को पता चला तो वो खुशी के मारे बौरा गए। सारे रिश्तेदारों में किसी के बेटे को दहेज में कार मांगने के बाद भी नही मिली थी। यहां तो उन्हे बिना मांगे ही मिल गई थी। ठाकुर साहब ने गुड़िया की देख भाल के लिए संजू की बहन मंजू को भी गुड़िया के साथ भेज दिया।

सुहास अपनी पत्नी के रूप में रश्मि को बिदा करा कर अपने घर पर ले कर आता है। लीला उसे परीछ (स्वागत करने की रस्म) कर गाड़ी से उतारती है और घर के अंदर ले कर जाती है। शाम की पूजा के बाद धीरे धीरे मेहमान अपने अपने घर वापस लौटने लगते है। लीला खुशी से दोहरी हुई जाती है। आखिर उसके दरवाजे पर नई चमचमाती कार खड़ी थी। और अंदर दमकते रूप वाली बहू बैठी थी। जिसके रूप की चमक के आगे सब कुछ बेरंग लग रहा था। बहू के मायके से मिले समान को सब को दिखा दिखा कर तारीफ बटोर रही थी। मंजू तो थी ही बहू के पास। उसकी जरूरत को पूरा करने के लिए। बीच बीच में लीला भी नई नवेली बहू के कमरे में हो आती।

भले ही सुहास कजरी से ब्याह नही कर पाया था, सामाजिक मजबूरियों की वजह से। पर उसके दिल में उसकी यादें अभी भी अपनी पैठ बनाए थी। इस तरह अचानक रश्मि को स्वीकारना उसके लिए कठिन था। उधर यही हालत रश्मि की भी थी। जिसे जीवन साथी के रूप में देखा था। उसे अचानक छोड़ कर आना पड़ा। जिसे कभी देखा नहीं था उसे जीवन साथी बनाना पड़ा। कैसी विडंबना है ये..? समाज का कैसा नियम है ये..? ये ऊंच नीच, अमीर गरीब की खाई और खानदान की मर्यादा ने आज तक ना जाने कितनो को अलग किया था। जीने पर मजबूर किया था। आज उस लिस्ट में एक नाम और जुड़ गया था। और वो था सुहास और रश्मि का नाम।

सुहास कमरे में जाना नही चाहता था, अभी वो कुछ वक्त चाहता था। पर मां का आदेश कैसे ठुकराता..? और ठुकराने पर हजार सवाल खड़े हो जाते..! कि कौन सा नवविवाहित पुरुष होगा जो अपने कमरे में नही जाना चाहेगा..? मां आई और उसे कमरे में छोड़ कर चली गई।

सुर्ख लाल जोड़े में सिमटी सी, शरमाई सी रश्मि बिस्तर पर लंबा घूंघट किए बैठी थी। अप्रैल का महीना था। बाहर तो ज्यादा गरमी नही थी। पर अंदर कमरे में गरमी थी। एक नज़र रश्मि पर डाल सुहास बोला,"देखिए आप भी बाहर रही हैं और मैं भी इन पुरानी बातों को नही मानता। गरमी हो रही है। आप ये सब भारी भरकम कपड़े बदल कर कुछ हल्का सा पहन ले जिसमे आराम महसूस कर सकें।"

रश्मि को अच्छा लगा की कम से कम सुहास उसकी परेशानी के बारे में सोच तो रहा है। वाकई उसे उलझन हो रही थी इन कपड़ों में। वो तो बदलना चाहती थी पर मंजू और लीला देवी ने मना कर दिया था की जब तक सुहास ना आ जाए ऐसे ही इन कपड़ो में ही रहो।

गुड़िया आहिस्ता से उठी और अपने सूट केस से एक हल्की सी साड़ी निकाल कर वही ओट में बदलने लगी। सुहास अनजान सा दूसरी ओर मुंह कर के एक किताब के पन्ने पलटता रहा। सुहास के हाथ में भले ही किताब थी। वो उसके पन्ने पलट रहा था। पर चाह कर भी कजरी को आज के दिन सुहास भुला नहीं पा रहा था। कजरी ने उसे प्रेम का अनुभव करवाया था। एक नए एहसास का भाव जगाया था। उनका ये लगाव जाति -पांति, अमीर-गरीब के अंतर से ऊपर था। कजरी ने अपना सब कुछ उस पर न्योछावर किया था, और सुहास ने भी बिना कुछ सोचे समझे कजरी से मासूम मोहब्बत की थी। आज अगर समाज के ठेकेदारों और खानदान की इज्जत की परवाह न की होती तो यहां रश्मि की जगह कजरी होती। कजरी की याद आते ही वो सोचने लगा, आखिर कजरी कहां गई होगी..? पता नहीं कब आयेगी..? और अपनी धमकी को ना जाने कैसे पूरा करेगी..?"

कजरी की धमकी के विषय में सोच कर सुहास का मन कसैला हो गया। क्या प्यार सिर्फ पाना है…? क्या प्यार त्याग नही है…? क्या सभी सच्चे प्यार शादी के अंजाम तक पहुंचते ही है…? क्या किसी कारण वश प्यार त्याग मांगे, उससे अलग होना पड़े तो इंतकाम ले..? राधा रानी ने भी श्री कृष्ण भगवान से प्रेम किया था। उनकी भी शादी नही हो पाई थी, तो क्या राधा रानी ने प्रभु जी से बदला लिया था…? भले ही श्री कृष्ण जी की कई पत्नियां थीं। पर राधा रानी का स्थान कोई प्राप्त नहीं कर सका था। फिर कजरी का प्यार इतना स्वार्थी क्यों हो गया..?"

तभी रश्मि के आने की आहट हुई और सुहास इन ख्यालों से बाहर निकल आया। अब रश्मि ही उसकी पत्नी थी और उसके संग ही जीवन बिताना था। इस बात को बखूबी समझ रहा था। पर रश्मि से तुरंत कोई रिश्ता कायम करने की बजाय वो एक दूसरे को समझना ज्यादा जरूरी समझता था।

गुड़िया कपड़े बदल कर आने लगी तो साइड से उसे तो उसकी निगाह सुहास के चेहरे पर पड़ी। अभी तक उसने उसे देखा नही था। वो चौक गई। उसका रोम रोम सिहर उठा। अरे..! ये क्या हो गया….? मैं तो समझ रही थी की पता नही किससे मेरी शादी हो रही है..? नाम तक नही पूछा..!

ये प्रभास यहां कैसे आ गया…? रश्मि प्रभास की झलक पाते ही खुद पर काबू नही रख सकी। वो बिना ये कन्फर्म किए की वाकई प्रभास है या उसे भ्रम हुआ है। वो बेसाख्ता बोल पड़ी, "प्रभास…! तुम…?"

रश्मि (गुड़िया)ने आखिर सुहास को प्रभास कैसे समझ लिया…? रश्मि के मुंह से अपने भाई प्रभास का नाम सुन कर सुहास को कैसा महसूस हुआ…? क्या वो जान पाया रश्मि और प्रभास के रिश्ते का सच…? क्या रश्मि बता पाई की वो प्रभास को कैसे जानती है…? उसका प्रभास के संग क्या संबंध है..? इन सब सवालों के जवाब के लिए पढ़े, "सच…. उस रात का" अगला भाग।

*****

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED