नकाब - 5 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नकाब - 5

भाग 5

पिछले भाग में आपने पढ़ा, सुहास के रिश्ते की बात करने के लिए क्षेत्र के बड़े रईस ठाकुर गजराज सिंह अपने बेटे राघव के साथ सुहास के घर आते है। उनके स्वागत की तैयारी बड़े ही जोर शोर से होती है। मिठाई के जरिए सुहास को इस बात का पता चलता है। फिर मां भी उसे बताती है। और दोपहर में घर आने को बोलती है। पर सुहास साफ मना कर देता है की वो अपनी नुमाइश कराने नही आयेगा। अब आगे पढ़े|

गजराज सिंह अपनी बेटी की फोटो लीला देवी को देखने को देते है। लीला लिफाफे से निकाल कर फोटो देखती है। और फोटो देख कर उसकी आंखे हैरत से खुली की खुली रह जाती है। इतना सुंदर इतना निर्दोष चेहरा उसने आज तक नही देखा था। वो अपने पिता और भाई से इक्कीस ही थी उन्नीस नही। झक्क दूधिया रंग, उसपे बड़ी बड़ी कजरारी आंखे और लीला को सम्मोहित कर रही थी। उस फोटो में वो मुस्कुरा रही थी। मुकुराने पर पड़ने वाले गालों में पड़ने वाले गड्ढे सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे। जैसी बहू की कल्पना लीला देवी ने की थी

गजराज जी की बेटी तो उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत थी। लीला उस फोटो को देखते हुए सोचने लगी कि अगर ऐसी बहू उसके घर में आ जाए तो पूरे मुहल्ले में मेरी धाक जम जायेगी। ऐसी सुंदर तो ना किसी की बहू आई है, ना ही आएगी। वो बस भगवान से यही प्रार्थना कर रही थी की, "हे भगवान! अब जब इतना अच्छा रिश्ता भेज दिया है तो कुछ भी करके इसे पक्का करवा दे।"

फोटो को लीला ने अपनी अलमारी में रक्खा और दैठक में आ कर अपने पति जगदेव जी के पीछे खड़ी हो गई।

लीला देवी को देख कर गजराज सिंह ने लीला देवी से पूछा, "हां तो बहन जी आपने फोटो देख ही ली होगी। कैसी लगी मेरी बेटी आपको..?"

लीला देवी बड़ी ही शालीनता से गजराज जी से मंद स्वर में बोली, "ठाकुर साहब..! मुझे आपकी बेटी बहुत ही पसंद है। मेरे घर के भाग खुल जाए जो आपकी बेटी मेरी बहू बन कर आ जाए.! मेरी तरफ से तो आप हां ही समझिए।"

जगदेव जी ने भी काफी दुनिया देखी थी। जिस तरह का रिश्ता वो चाहते थे वैसा ही रिश्ता था ये। इतने बड़े रईस है, क्या अपनी इकलौती बेटी को खाली हाथ विदा कर देंगे..? जो लालसा उनकी थी की सुहास की शादी में खूब भर भर के दहेज मिले तो अब तो उन्हें अपना सपना पूरा होता दिख रहा था। गजराज जी की हैसियत इतनी थी की जगदेव जी उनके सामने कहीं नहीं ठहरते थे। उनका दिल खुशी से फूला न समा रहा था।

बस अब थोड़ी परेशानी थी की सुहास ने मेहमानों के आगे घर आने से मना कर दिया था। अब उसे वो कैसे बुलाए ..? यही विचार वो कर रहे थे।

अब देर हो रही थी ठाकुर गजराज सिंह ने जगदेव सिंह से कहा, "जगदेव जी आप बेटे को बुला देते तो उससे भी मिल लेता..! देखा तो है उसे पर बहुत समय पहले।"

जगदेव जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा, "बुला तो मैं जरूर देता पर वो अपने काम के प्रति बहुत ईमानदार है। उसमें वो कोई कोताही नहीं करता। अब घर आएगा तो जो भी मरीज होंगें उन्हे बैठना पड़ेगा। वैसे आप कह रहे है तो मैं बुलवा लेता हूं।" इतना कह कर मिठाई को आवाज दिया, "मिठाई ..! ओ मिठाई..! जा जरा दुकान पर चला जा .. भईया को बुला ले आ तो।"

ठाकुर गजराज सिंह ने जगदेव सिंह को रोकते हुए कहा, "नहीं सिंह साहब रहने दीजिए, बेकार में ही बच्चे को परेशान मत करिए। ये तो बड़ी अच्छी बात है की वो अपने काम के प्रति इतना समर्पित हैं। आखिर गीता में भी तो यही कहा गया है, कर्म ही पूजा है। मैं तो जा रहा हूं आप भी साथ चलिए। बेटे से वहीं दुकान पर ही मिलता हुआ चला जाऊंगा।"

जगदेव जी ने गजराज सिंह की बात का समर्थन किया। और बोले, "हां आप बिल्कुल सही कह रहे है। चलिए मैं साथ चलता हूं आपको सुहास से मिलवा दूंगा । फिर आप वैसे ही चले जाइएगा।"

दोनो लोग साथ निकलने लगे। पर चलने से पहले गजराज सिंह ने लीला देवी को बुलाया और उनके पांव छू कर पांच सौ रुपए उनकी हाथ में थमा दिए। साथ ही मिठाई को भी पांच सौ रुपए दिए। पिता पुत्र ने लीला देवी के पांव छुए और जगदेव जी के साथ सुहास से मिलने चल दिए।

सुहास तल्लीनता से अपना काम निपटा रहा था। जो भी छोटी मोटी बीमारी के मरीज थे उनको समझदारी के साथ दवा दे रहा था। ठाकुर गजराज सिंह के साथ सुहास के पास पहुंच कर जगदेव जी ने उनका परिचय करवाते हुए कहा, "बेटा सुहास ये गजराज सिंह जी है।"

सुहास ने अभिवादन स्वरूप हाथ जोड़ दिए।

पर ये जगदेव जी को भाया नही। वो सुहास से बोले, "बेटा इनके पांव छुओ..!"

सुहास उनके पांव छूने को उठा। पर बीच मे ही गजराज सिंह ने रोकते हुए कहा,"अरे..! बेटा रहने दो। हो गया।" पर सुहास माना नही गजराज सिंह के चरण स्पर्श किए। वो अभिभूत हो गए सुहास से मिल कर। "बेहद सीधा साधा ये लड़का मेरी बेटी को संभाल लेगा।" ऐसा उन्होंने खुद से ही कहा।

सुहास को उपहार स्वरूप उन्होंने बिना गिने हुए ही एक पूरी गड्डी ही जबरदस्ती मुट्ठी में थमा कर दबाव के साथ बंद कर दिया। क्योंकि सुहास रुपए नहीं ले रहा था। इस कारण वो मुठ्ठी भी नहीं बंद कर रहा था। इसके बाद सुहास के कंधे को थपथपाते हुए बोले, "खुश रहो बेटा सदा खुश रहो।" इसके बाद वो जाने लगे।

सुहास को भी ठाकुर गजराज सिंह की शख्शियत प्रभावित कर रही थी। वो चलने की हुए तो पुनः उनके पैरों को छूने के लिए झुका । पर उन्होंने बीच में ही रोक कर सुहास को गले लगा लिया। तत्पश्चात वो बेटे राघव के साथ चले गए।

ठाकुर गजराज सिंह के जाने के बाद जगदेव भी अपने घर चल पड़े। पर अब वह बिल्कुल भी खुश नही थे। उनको ठाकुर साहब पर बड़ा ही गुस्सा आ रहा था। पैसे के लोभी जगदेव जी को उन्होंने एक रुपया भी नही दिया था। जबकि सुहास को पूरी गड्डी ही थमा दी। क्या उनको उन्हे कुछ भी नहीं देना चाहिए था..? खुन्नस खाए वो भुनभुनाते हुए घर चल दिए।

जगदेव जी के उनके घर पहुंचते ही लीला उनके पास भाग कर आई। उससे खुशी संभाले नहीं संभल रही थी।

हाथ में गजराज सिंह की बेटी की फोटो थी। पति को दिखाते हुए बोली, "देखो जी ..! कितनी सुंदर है ठाकुर साहब की बिटिया..!"

पर जगदेव जी तो झल्लाए हुए थे। सभी को ठाकुर साहब ने विदाई स्वरूप रुपए दिए थे पर सिर्फ उन्ही को बगल कर दिया था। ज्यादा कष्ट उन्हे इस बात का हो रहा था की ठाकुर साहब ने सुहास को पूरी नोटों की गड्डी ही थमा दी थी। इसका मतलब वो खूब समझ रहे थे।

फोटो पर सरसरी निगाह डालते हुए वो बोले,"हां सुंदर है।"

लीला देवी भी पति की इस नीरसता से उखड़ सी गई।

वो जब भी पति से नाराज होती तो उन्हें भोले बाबा का संबोधन देती। लीला ने रूष्ट स्वर में कहा, "अब इतने बड़े घर से मेरे बेटे के लिए रिश्ता आया है। तब भी भोले बाबा का मुंह ही सूजा हुआ है। आपको अंदाजा भी है इस बात का की वो कितना ढेर सारा दहेज देंगे।

और क्या चाहिए आपको..? इतनी सुंदर बहू मिल रही है, साथ में ढेर सारा दहेज भी लायेगी।"

जगदेव जी ने मुंह फुलाए फुलाए ही कहा, "अरे..! लीला ज्यादा खुश ना हो ..! ये बड़े लोग सिर्फ अपना रिश्ता ही पहचानते है। अब आज ही देखो ..! सुहास से मिलने गए थे वो। उसे उसकी मुट्ठी में पूरी नोटों को गड्डी ही पकड़ा दी। वही मैं भी खड़ा था। पर ये नहीं हुआ की उसी में से कुछ मुझे भी दे देते। मुझसे मेरा ये अपमान सहन नही हो रहा है।" तिक्त स्वर में जगदेव जी ने अपनी भड़ास निकाली।

लीला की समझ में अब आ गया गया की उसके भोले बाबा का दिमाग क्यों बिगड़ा हुआ है..? वो पति को समझाते हुए बोली, "आप भी छोटी छोटी बातों पर नाराज हो जाते है। अब सुहास का सारा रुपया आप ही तो लेते है। वो बिचारा तो सब कुछ आपको ही दे देता है। अभी भी वो लौटेगा तो देखना सब आपको ही देगा।" लीला पति को समझाती हुई बोली।

जगदेव जी भी अपना दिमाग लगाते हुए बोले, " लीला बात पैसे की नही है। बात ये है की अभी शादी की बात ही हुई है। और ये अपना दामाद पहचान रहे है। आगे क्या गारंटी की ये हमे बेटे से अलग नहीं कर देंगे..? तुम देखना ये सिर्फ अपना दामाद और बेटी ही पहचानेंगे।"

लीला पति की खीज का मजा लेकर मुस्कुराते हुए बोली, "अब चाहे वो बेटी पहचाने या दामाद पर मेरी बहू तो गजराज जी की बेटी ही बनेगी। वो भूल गए होंगे। आप भी कहां की बात कहां के जाते हो। छोड़ो ये सब। हाथ मुंह धो कर कुछ खा पी लो। इतनी सारी चीजे मैने बनाई है।"

पत्नी की बातो से थोड़ी राहत मिली जगदेव जी को। वो हाथ मुंह धोने चले गए। तभी मिठाई आ गया बोला, "मां जी आप बाऊ जी से कुछ रुपए दिलवा देती घर पे बहुत जरूरी काम है।"

लीला ने जैसी ही मिठाई को रुपए देने को कहा। जगदेव जी नाराज हो गए।

क्या मिठाई को जगदेव ने पैसे दिए..? आखिर उसे अचानक क्या जरूरत पड़ गई..? क्या सुहास इस शादी के लिए राजी होगा? पढ़े अगले भाग मे।