नकाब - 9 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नकाब - 9

भाग 9

पिछले भाग में आप ने पढ़ा की सुहास के घर शगुन ले कर जाने की तैयारियां ठाकुर गजराज सिंह के घर पर जोर शोर से चल रही है। जिम्मेदारी दोहरी है क्योंकि उन्हे अपने घर के साथ साथ सुहास के घर की भी तैयारी करवानी है। वो इस दोहरी जिम्मेदार से थक जाते है तो बेटा राघव उन्हे जाकर आराम करने को कहता है। वो आराम करते हुए सोचने लगते है। इस आनन फानन में शगुन की तैयारियों के लिए वो क्यों मजबूर हुए इसे सोचते हुए वो कुछ समय पीछे चले जाते है।

राघव और वैदेही इस बार गुड़िया से मिलने जाते है क्योंकि अचानक से ठाकुर साहब की तबियत खराब हो जाती है। वैदेही की इच्छा पर राघव उसे अस्सी घाट के दर्शन करवाने ले जाता है। वहां भगवान शिव के मंदिर का दर्शन कर वो वापस लौटते है और वैदेही पीछे रह जाती है। राघव उसे न देख परेशान होता है। फिर उसे देखने वापस लौटता है। अब आगे पढ़े:–

राघव वैदेही को देखने के लिए उस स्थान पर लौटता है जहां वो और वैदेही बैठे थे। पर वो वहां नही मिलती राघव को। अब राघव बेहद परेशान हो उठता है। तभी अचानक से राघव की निगाह नीचे घाट की ओर जाती है। बहुत दूर से उसे हल्की सी झलक दिखती है वैदेही की। वैदेही तो समझ आ रही थी पर उसके साथ दो और लोग दिख रहे थे। दूरी की वजह से सब कुछ धुंधला दिख रहा था। वैदेही को तो वो उसके पहने कपड़े से पहचान पा रहा था। पर वैदेही के साथ एक लड़की और लड़के की आकृति नजर आ रही थी। बहुत कोशिश के बाद भी वो पहचान नहीं पाया। राघव ने पूरे जोर से चिल्ला कर वैदेही को आवाज दी। "वैदेही….!" कई बार आवाज लगाते हुए राघव जिस ओर वैदेही दिख रही थी उसी और बढ़ता हुआ चलता जाता है। कई बार कोशिश के बाद वैदेही तक राघव की आवाज पहुंच गई। वो मुड़ देखती है तो उसे राघव दिखता है। वो वापस राघव की ओर लौट पड़ती है। और उसके साथ के दोनों लोग दूसरी दिशा में वापस चले जाते है।

पास पहुंचने पर राघव वैदेही से नाराजगी जाहिर करते हुए कहता है की,"ये क्या है...वैदेही..? तुम तो मेरे पीछे आ रही थी फिर कहां चली गई अचानक से..? और बताया भी नही। क्या बताऊं तुम्हे..? मैं कितना परेशान हो गया..!" राघव ने वैदेही से अपनी नाराजगी जाहिर की इस तरह बिना बताए चले जाने पर।

वैदेही अब बिल्कुल पास आ गई थी राघव के और दोनो वापस लौटने लगे। राघव का मूड बिगड़ चुका था। जो अभी तक शरारत से खिलखिला रह था। अब वो नाराज सा दिख रहा था। उसे उम्मीद थी की वैदेही उसे अपने इस जाने की वजह बताएगी और क्षमा मांगेगी। पर राघव के आशा के विपरीत वैदेही तो बिलकुल खामोश थी। ना ही उसने राघव से कोई सफाई दी। ना ही कोई वजह बताई। बस खामोशी से राघव के साथ साथ चलती रही। हार कर राघव ने ही फिर से पहल की। वो बोला," क्या कोई जान पहचान वाला मिल गया था…? जो उनके साथ चली गई थी..? कौन थे..?" राघव ने वैदेही से पूछा।

वैदेही कुछ बोली नहीं बस "ना" में सिर हिलाया।

राघव से वैदेही की ये खामोशी सही नही जा रही थी।

पर वो कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता था। ना ही मजबूर कर सकता था ये बताने के लिए की आखिर वो कौन थे..?

इसके पश्चात दोनो आकर बाहर खड़ी गाड़ी में बैठ गए।

और राघव ने गाड़ी बहन गुड़िया के कमरे की ओर मोड़ दिया। जहां वो अपनी सहेली के साथ रहती थी। वहां जाने पर पता चलता है की गुड़िया तो है ही नही । कमरे के दरवाजे पर तो ताला बंद है। वो तो कॉलेज गई है। अब राघव कॉलेज की ओर चल देता है। कॉलेज गेट पर राघव पहुंचता है। अपनी गाड़ी पार्किंग में खड़ी कर थोड़ा आगे बढ़ता है तो उसे जोर से आवाज सुनाई देती है, "भईया…!"

राघव देखता है तो गुड़िया थोड़ी दूरी पर कॉलेज गेट के सामने खड़ी हाथ हिला कर उसे पुकार रही है। और खुद के होने का संकेत दे रही है।

राघव बहन को देख उत्साह से आगे बढ़ जाता है। सुस्त कदमों से वैदेही भी राघव के पीछे पीछे आती है। गुड़िया के नजदीक पहुंच राघव प्यार से उसे गले लगा लेता और पूछता है,"कैसी है मेरी छोटी सी गुड़िया..?"

इतना कह कर वो गुड़िया को खुद से अलग करता है और उसकी नाक पकड़ कर खींचता है।

गुड़िया ठुनकती है और कहती है, "भईया… आपने ही खींच खींच कर मेरी छोटी सी नाक को इतनी लंबी कर दी है। ये तो अच्छा है की मैं आपके पास नही हूं, वरना मेरी नाक तो मुझसे भी बड़ी हो गई होती।" गुड़िया प्यार से बोलती है राघव से।

राघव कहता है, "कहां..? मेरी गुड़िया इतनी सुंदर तो है तेरी नाक..!"

फिर अपने हाथो से अपने कॉलर को ऊपर करते हुए बोलता है राघव, "और फिर हम ठाकुरों की नाक तो लंबी होती ही है। हम इसी नाक के लिए तो जीते और मरते है। इस पर मक्खी तक नही बैठने देते। और देख गुड़िया तुझे भी इसका ख्याल रखना होगा। समझी। यही याद कराने के लिए मैं तेरी नाक खींचता हूं।"

राघव के ये सब कहने से गुड़िया असहज हो गई। वो बोली, "क्या बाकी बातें यहीं खड़े खड़े कर लोगे.. भईया..? आओ कैंटिन चलते है। कुछ खा पी लो आप और भाभी फिर कमरे पर चलते है।" गुड़िया ने कहा और भाई के साथ कैंटीन की ओर चल पड़ी।

राघव ने वैदेही से बोला, "आओ वैदेही कैंटीन चलते है।" अब तक वैदेही उपेक्षित सी पीछे ही खड़ी थी। राघव ने गौर किया गुड़िया को भाभी को देख कर कोई एक्साइटमेंट नही हुआ। जबकि वो अपनी भाभी के बहुत करीब थी। अभी तक गुड़िया ने एक भी शब्द अपनी भाभी वैदेही से नही बोला था। राघव पलट कर वैदेही को साथ लेता है। तत्पश्चात तीनों कैंटिन की ओर रुख करते है। वहां पहुंच कर गुड़िया कैंटिन का फेमस ब्रेड पकौड़ा, और समोसा ऑर्डर करती है, साथ में गरमा गरम चाय।

तीनों साथ साथ खाते है। राघव से गुड़िया घर परिवार, घर के नौकरों के बारे में पूछती है। अपने प्यारे कुत्ते, मोंटी और कार्लो के बारे में पूछती है। घर की छोटी बड़ी सब चीजों के बारे में पूछती है। राघव हंस हंस कर प्रसन्नता से गुड़िया के सारे प्रश्नों के जवाब देता है। इन सब के साथ बैठी वैदेही चुपचाप ब्रेड पकौड़ा का एक पीस ले कर उसे टूंगती रहती है। नाश्ता समाप्त कर तीनों उठ खड़े होते है। वैदेही अपनी प्लेट में सब वैसे का वैसा ही छोड़ देती है।

गुड़िया काउंटर पर जाकर पेमेंट करती है। राघव उसे रोकता है बिल पेय करने से पर वो मुस्कुराते हुए कहती है, "क्या फर्क पड़ता है भईया..? आप करो या मैं करूं..? "

फिर राघव की ओर देख कर राज पूर्वक कहती है, "अभी तो आप मुझे दोगे ही जो कुछ ले आए हो। बात बराबर हो जायेगी।"

राघव बहन की इस बात पर हंस पड़ता है। कहता है,"चल छोटी जल्दी कर अभी हमें वापस भी लौटना है। मैं गाड़ी के पास चलता हूं। तुम दोनों जल्दी आओ।" कह कर राघव लंबे लंबे डग रखता हुआ गाड़ी की ओर बढ़ जाता है।

बिल पेय कर गुड़िया वापस लौटती है वैदेही को साथ ले गाड़ी की ओर बढ़ती है। गुड़िया एकांत पाकर भाभी वैदेही से कहती है, "भाभी आप इस तरह क्यों व्यवहार कर रही हो..? अगर कहीं भईया को कुछ अंदेशा हो गया तो..? प्लीज भाभी आप नॉर्मल व्यवहार करो, मैं आपके हाथ जोड़ती हूं।" इतना कह कर गुड़िया अपने दोनों हाथ माफी की मुद्रा में वैदेही के सामने जोड़ देती है। वैदेही गुड़िया की बातो की ओर ध्यान नहीं देती है। उसे अनसुना कर के आगे बढ़ जाती है।

गुड़िया खुद को अंदर से मजबूत किए हुए ऊपर से भाई से बिलकुल नॉर्मल पहले की तरह व्यवहार करने का प्रयास कर रही थी। पर वैदेही की खामोशी उसे डरा रही थी। गुड़िया से आगे चलते हुए वैदेही आती है और गाड़ी के पीछे का दरवाजा खोल कर बैठ जाती है। उसे पता था की गुड़िया हमेशा ही आगे की सीट पर बैठती है। तो इस बार वो बिन कुछ किसी के कहे ही पीछे की सीट पर जाकर बैठ गई।

गुड़िया भी वैदेही के पीछे आई और भाई के साथ की सीट पर आगे बैठ गई। राघव ने उनके बैठते ही गाड़ी आगे बढ़ा दी। उसे वापस जाने की भी जल्दी थी। वो गाड़ी तेज चला रहा था। गाड़ी की तेज रफ्तार के साथ उसका दिमाग भी तेजी से सोच रहा था।

गाड़ी चलाते हुए राघव के दिमाग में अचानक से ये विचार आया की आखिर गुड़िया ने घर के छोटे से छोटे, बड़े से बड़े के बारे में पूछा पर पापा के बारे में क्यों नहीं पूछा..? और वैदेही कभी नही आती गुड़िया से मिलने..? आज आई तो उसे देख कर गुड़िया को कोई हैरत नही हुई क्यों..? गुड़िया को कैसे पता चला की वो आया है उससे मिलने, जो गेट पर उसका इंतजार कर रही। ये ऐसे सवाल थे जो राघव को परेशान कर रहे थे। राघव ने गुड़िया से पूछने की सोचा। पूछते पूछते फिर रुक गया की कहीं वो उस बेचारी पर बे वजह ही तो शक नहीं कर रहा। वो बिचारी घर परिवार से इतनी दूर रहती है। अपनी पढ़ाई और घर का नाम रौशन करने के लिए इतनी तपस्या कर रही है। और वो उस पर शक कर रहा है..? पर कुछ देर बाद राघव का जी नही माना। उसने फैसला किया की वो जरूर पूछेगा। अगर नहीं पूछेगा तो यही सब सोच सोच कर परेशान रहेगा। एक तरफ उसे वैदेही के इस तरह गायब हो जाने और किसी से बात करने की चिंता अलग ही लगी हुई थी। आखिर वैदेही उसकी पत्नी थी । इस अनजान जगह में उसे आखिर कौन मिल गया..? जिससे परिचय करवाना तो दूर… वो नाम तक नही बता रही है। अब वो इतना सब्र नही कर सकता। वैदेही से तो फिर किसी दिन या आज ही घर पहुंच कर भी पूछ सकता है..? पता कर सकता सकता है..? पर गुड़िया से उसका तो बस अब थोड़ी ही देर का साथ है। कमरे पे पहुंच कर लगभग एक घंटे रुकेगा और फिर वापस घर चला जायेगा। बस अब जो भी पूछना है इस थोड़ी देर में ही पूछना है। राघव ने गुड़िया की ओर देखते हुए कहा, "अच्छा गुड़िया तू ये बता.. तुमने घर के सब छोटे बड़े सदस्य के के बारे में पूछा पर पापा के बारे में नहीं पूछा क्यों..?"

गुड़िया भाई के सवाल से थोड़ी विचलित हो गई। वो भाई की ओर देखने लगी।

फिर राघव ने थोड़ा सा रुक कर पूछा, "और हमेशा पापा आते है। आज तुझे अपनी भाभी को देख कर ना ही हैरत हुई..? ना ही खुशी..? बल्कि तू तो उनसे मिली भी नही हमेशा की तरह। और तुझे कैसे पता चला की मैं आया हूं जो तू कॉलेज गेट पर खड़ी थी?" राघव गुड़िया से सवाल पर सवाल दागे जा रहा था।

गुड़िया जो अभी भाई की ओर देख रही थी। वो नजरें घुमा कर बाहर की ओर देखने लगी। फिर राघव के नॉन स्टॉप सवालों से छुट्टी पाने का उसे एक ही तरीका नजर आया। वो थे उसके आंसू।

खुद को गुड़िया ने संभाला और बड़ी बड़ी आंखो में आंसू भर कर उसने भाई की ओर देख और पूछा,"भईया आप मेरे भईया हो..? मुझसे मिलने आए हो.. या मेरी हर छोटी छोटी बात पर शक करने आए हो..? मैने पापा के लिए नही पूछा…? मुझे कैसे पता चला की आप आए हो..? मैं भाभी को देख कर खुश क्यों नही हुई..? इत्ते सारे सवाल मैं किस किस का जवाब दूं..?"

क्या गुड़िया ने भाई राघव के सभी प्रश्नों का सच सच जवाब दिया ..? क्या राघव की आशंका निर्मूल थी..? क्या राघव जान पाया की आखिर वैदेही कहां चली गई थी..? उसे कौन मिल गया था इस अनजान जगह पर..?

इन सब प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए पढ़े सच..? उस रात का अगला भाग।

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