नकाब - 4 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नकाब - 4

भाग 4

पिछले भाग में आपने पढ़ा की प्रभास अपनी पढ़ाई के लिए बनारस चला जाता है। वहां उसकी दोस्ती एक लड़की रश्मि से होती है। सुहास भी यहां कजरी की यादों और चेतावनी को अपने दिल से भूलने की कोशिश करता है। आज घर में कोई मेहमान आ रहा है। उसी की स्वागत की तैयारी में सब लोग लगे है। मिठाई सुहास को बताना चाहता है की घर में कौन मेहमान आ रहा है। अब आगे पढ़े…

सुहास मिठाई की बेचैनी शांत करने और अपनी जान छुड़ाने की गर्ज से मिठाई से आखिर पूछ ही लेता है,

"हां ..! तो मिठाई अब बता ही दे कौन मेहमान आ रहा है जिसकी इतनी तैयारी चल रही है ..?"

मिठाई को जैसी ही सुहास ने बताने की इजाजत दी। वो उसके पास आकर नीचे जमीन पर बैठ गया। वो दोनों हाथ अपने घुटनों के बीच रख कर बैठ गया और बताने लगा, "सुहास भईया आज तो बहुत ही खास मेहमान घर आ रहे है आपकी शादी की बात करने। सुने है ..! की होने वाली भाभी बहुते सुंदर है।" फिर हंसते हुए सर हिलाते हुए बोला, "अब तो हमारे भईया जी की शादी हो जायेगी। हम बता दे रहे है भईया हम शादी में जींस पैंट अउर बढ़िया वाला शर्ट लेंगे।"

सुहास ने मिठाई की बात सुन उसके सर पे हौले से मारा और बोला, "जा…! पहले काम कर। शादी के लिए अभी देखने आ रहे है। तय नहीं हो गई है। और तुमको जींस चाहिए न..! हम शहर जायेंगे तो ले आयेंगे तुम्हारे लिए। उसके लिए तुमको शादी तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है।"

मिठाई जो सफाई करते हुए सुहास भईया की बात सुन रहा था, मुंह बनाते हुए बोला, "आप और मेरे लिए जींस ले आएंगे..! पईसा है का आपके पास..? भले ही आप कमाते है पर रखते तो है सब बाऊ जी ही न अपने पास। आपको अपने खर्चा के लिए तो गिन गिन के देते है। मेरे जींस के लिए दे देंगे ….?" हाथ से गिनने का इशारा करते हुए मिठाई हुंह बना कर बोला।

ये बात तो सच थी की सुहास को बाऊ जी से खर्च के पैसे मांगने पड़ते थे। वो रोज के रोज जो भी कमाई होती उसे अपनी तिजोरी में रखते जाते। जो दवा या बाकी चीजों की जरूरत होती सुहास लिख कर, लिस्ट बना कर दे देता उन्हे। वो उन चीजों को मंगा देते। वो निहायत कंजूस थे। मिठाई का कहना सच ही था, उसे उसकी तनख्वाह तो देते नहीं थे समय से नए कपड़े क्या ही दिलाएंगे।

सुहास को भी बुरा लगता था पूरे दिन मिठाई उन लोगों की सेवा में ही लगा रहता, पर जब मिठाई को तनख्वाह देने की बारी आती तो समय पर बाऊ जी कभी नहीं देते थे। पर वो भी मजबूर था। बाऊ जी के आगे कुछ भी बोलने की हिम्मत ना ही उसकी थी ना ही प्रभास की।

सुहास जब नाश्ता कर घर से निकलने लगा तो मां आई और बोली, "बेटा सुहास..! आज तेरी शादी के लिए कुछ लोग तुझे देखने आ रहे है। ऐसा कर तू बेटा थोड़ी देर के लिए दोपहर में आ जाना।"

सुहास अनमना सा बोला, "मां मैं अपनी नुमाइश करने लड़की वालों के सामने नहीं आऊंगा। आप उन लोगों को वही मेरी क्लिनिक पर ही भेज देना।" इतना कह कर सुहास चला गया।

मां बुलाती ही रह गई, "बेटा ..! सुन तो..!" पर मां की बात को अनसुना कर के सुहास चला गया।

तैयारी पूरी हो गई। सारा घर चमक रहा था। तरह तरह के पकवान बन के तैयार थे। लीला मारे खुशी के जो ना बना डाले वही कम लग रहा था उसे। ऐसा लग रहा था जैसे शादी देखने लड़की वाले आ नही रहे बल्कि शादी ही हो रही हो। वैसे तो कई लड़के वाले आ जा रहे थे, सुहास की शादी के लिए। पर उनके आने पर इतनी तैयारी लीला ने नही की थी। ना ही जगदेव जी इतने उत्साहित थे। जितना वो दोनो इस बार थे।

बात ही कुछ ऐसी थी इस बार। आज जो सुहास की शादी के लिए आ रहे थे, वो कोई मामूली इंसान नही थे।

पूरे क्षेत्र में ठाकुर गजराज सिंह का नाम बच्चा बच्चा जनता था। उनकी रईसी के चर्चे होते थे। वो अपनी बेटी के रिश्ते के लिए आने वाले थे। सुहास के बारे में उन्होंने सुना था। लोग कहते थे लड़के के हाथों में जादू है। वो जिसे भी दवा देता है वो बिलकुल ठीक हो जाता है। ठाकुर गजराज सिंह के पास रुपए पैसे की कोई कमी तो थी नही। उन्होंने सोचा अगर अपनी बराबरी में या अपने से ऊंचे कुल में बेटी की शादी करेंगे तो बेटी के साथ साथ उन्हे भी लड़के वालों के अनुसार ही चलना होगा। पर अगर वो अपने से कम संपन्न घराना चुनते है तो लड़के के साथ साथ उसका परिवार भी उनके अनुसार ही चलेगा। उनकी बेटी को इस घर में ज्यादा मान सम्मान मिलेगा। यही सोच कर उन्होंने सुहास को अपनी बेटी के लिए चुनने का फैसला किया था। वो आज इसी सिलसिले में सुहास के पिताजी से मिलने उसके घर आ रहे थे।

इधर लीला और जगदेव जी भी इस रिश्ते से बहुत उत्साहित थे। जगदेव जी को अपनी आशा के अनुरूप दहेज मिलने का अनुमान था। लीला खुश थी की इतने बड़े घराने की बेटी उसकी बहू बन कर आयेगी। वो उसके पांव दबाएगी, उसकी सेवा करेगी। और वो पूरे आस पड़ोस की औरतों से अपनी बहू का बखान करेगी। सब देख कर जल भुन जायेंगी और कहेंगी, "अरे..! लीला ने कितने बड़े घर की बेटी को अपनी बहू बनाया है।" लीला कोई कोर कसर नहीं रहने देना चाहती थी। सब कुछ लड़की वालों को पसंद आए और वो सुहास से अपनी बेटी का ब्याह कर दें।

तय समय पर ठाकुर गजराज सिंह अपने पूरे लाव लश्कर के साथ पहुंच गए । उनके साथ आए उनके आदमी फल और मिठाई की टोकरी लाकर बैठक में रखने लगे। लीला परदे की ओट से सब देख रही थी।

देखने में जितने सुदर्शन ठाकुर थे, उतना ही उनका बेटा राघव भी था। लीला ने अनुमान लगाया की जब पिता और भाई इतने सुदर्शन है तो इनकी बेटी भी अवश्य ही सुंदर होगी।

जगदेव जी ने मेहमानों का बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्हे ससम्मान बैठाया। इसके बाद मिठाई ने लीला के बनाए पकवान और जगदेव जी की लाई मिठाई से टेबल सजा दिया।

जगदेव जी आग्रह कर के उन्हे खाने को बोल रहे थे। पर गजराज सिंह ने यह कह कर कुछ भी खाने से मना कर दिया की "हमारे यहां बेटी की शादी के लिए जहां जाते है वहां का पानी भी नहीं पीते है। हां ! आप राघव को जरूर खिलाइए।"

गजराज सिंह की बातें सुनकर लीला जो सब कुछ सुन रही थी, सर पे पल्लू लेकर आई और उनके पीछे खड़ी हो गई। धीमे स्वर में बोली, "भाई जी अभी ब्याह थोड़े ना हुआ है। जब हो जायेगा ब्याह तक की तब देखेंगे पर अभी तो आपको कुछ न कुछ तो खाना ही होगा। मैने बड़े ही चाव से सब कुछ अपने हाथों से बनाया है।" इतना कह कर पल्लू थोड़ा सा और खींच कर मिठाई की प्लेट उठाई और गजराज सिंह के सामने कर दी।

अब ना तो गजराज सिंह से खाया जा रहा था ना ही छोड़ा जा रहा था। संकोच में उन्होंने एक टुकड़ा मिठाई का उठा लिया।

जगदेव जी भी लीला की तरफदारी करते हुए बोले, "हां .! हां..! ठाकुर साहब लीजिए अब ये सब पुरानी बातें है। अब तो बेटा बेटी में कोई फर्क नहीं है। आप खाइए।"

गगराज जी हाथ में मिठाई का टुकड़ा लिए सोच रहे थे। वो लीला देवी के व्यवहार से प्रभावित हो गया थे। मेरी बेटी को इस घर में मां जैसी सास मिलेगी। जो उसका पूरा ध्यान रखेगी। लीला देवी उन्हें एक बड़ी ही सहृदय महिला लगी।

लीला अपनी बात पूरी होते देख झट से ये कहते हुए रसोई में चली गई की, "भाई जी मैं अभी स्पेशल चाय बना कर लाती हूं।"

लीला ने मिठाई से चाय भिजवा दी। चाय पी कर ठाकुर गजराज सिंह ने मिठाई से लीला को बुला भेजा, कहा "जाओ अपनी मां जी से कह दो अपनी होने वाली बहू की फोटो तो देख ले।"

मिठाई झट से गया और लीला को बुला कर ले आया।

लीला भी हाथ का काम छोड़ कर तुरंत ही बैठक में चली आई।

गजराज जी ने एक लिफाफे से अपनी बेटी की फोटो निकाल कर लीला देवी के हाथों में थमा दिया।

लीला बड़े ही उत्साह से फोटो ले कर अंदर चली आई। जब इत्मीनान से बैठ कर फोटो हाथ में लिया तो उसकी आंख खुली की खुली रह गई।

ऐसा आखिर क्या था उस फोटो में जो लीला देवी की आंख खुली की खुली रह गई..? क्या सुहास की शादी तय हो पाई..! क्या सुहास अपनी दुकान से गजराज जी से मिलने आया..? ये सब जानने के लिए पढ़े कहानी का अगला भाग।

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