फेसबुक आशिक़ी Rama Sharma Manavi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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फेसबुक आशिक़ी

मेरी इकलौती 19 वर्षीया बेटी शिवी बीकॉम द्वितीय वर्ष की छात्रा है,बेहद चुलबुली,हमेशा खिलखिलाने वाली लेकिन पढ़ाई के प्रति पूर्ण गम्भीर,वह सीए बनना चाहती है।उसकी तीन अच्छी फ्रेंड्स हैं,जिन्हें मैं मज़ाक में चौकड़ी कहती हूँ।उसकी सभी सहेलियों से मेरी अच्छी जमती है।इसीलिए वे सभी अपनी समस्याओं को मुझसे आसानी से डिस्कस कर लेती हैं।असल में मेरा मानना है कि जब बच्चे किशोरावस्था में प्रवेश कर जायँ तो उनके साथ मित्रता का सम्बंध भी स्थापित कर लेना चाहिए, जिससे वे अपनी अधिकतर बात अपने माता-पिता से शेयर किया करें, अतः हम उनका समुचित मार्गदर्शन कर पाएंगे।वैसे भी अजकल के एकल परिवारों में अक्सर एक ही बच्चा होने से यह औऱ भी आवश्यक हो जाता है।

आजकल इंटरनेट, सोशल मीडिया हमारे जीवन में इतना गहरे पैठ चुका है कि बच्चे-बड़े सभी अपना अधिकांश समय मोबाईल-लेपटॉप पर बिताते हैं।हर जगह की तस्वीर चाहे रेस्टोरेंट में हैं, फंक्शन में हैं, कहीं जा रहे हैं… इत्यादि सोशल मीडिया पर पोस्ट करना फैशन बन गया है।

शिवी की एक दोस्त रुपाली है, अपने नाम के अनुरूप बेहद खूबसूरत।आज उसी की कहानी मैं सुनाने जा रही हूँ।फेसबुक के ढेरों आभासी मित्रों में से एक शुभम नामक युवक से वह प्रभावित थी।सुदर्शन से दिखने वाले शुभम ने स्वयं को इंजीनियरिंग फ़ाइनल ईयर का छात्र बताया था, उसके काव्यात्मक पोस्ट बेहद शानदार एवं शालीन हुआ करते थे,जो अक्सर रुपाली को इंगित करते हुए लिखे जाते थे।कुछ माह के बाद उनकी मैसेंजर पर बातें होने लगीं,जो धीरे-धीरे आकर्षण में परिवर्तित हो गया।शुभम की बातें बेहद मनभावन होती थीं, उसकी साहित्यिक चर्चाओं से लेकर देश-दुनिया की जानकारी से रुपाली क्या उसकी उसकी सभी सखियाँ भी अत्यधिक प्रभावित थीं।

रुपाली अब वीडियो कॉलिंग करना चाहती थी लेकिन शुभम यह कहकर उसकी इस बात को टाल देता था कि जब हम साक्षात मिलेंगे, तब वह लम्हा यादगार होगा,इसलिए अभी हम केवल एक-दूसरे की आवाज से ही संतोष करेंगे।उन्हें बातें करते हुए लगभग डेढ़ साल व्यतीत हो गए, अब रुपाली मिलना चाहती थी लेकिन शुभम ने कहा कि जब वह अच्छा जॉब करके व्यवस्थित हो जाएगा,तबतक तुम्हारी भी शिक्षा पूर्ण हो जाएगी,तब मिलेंगे वरना दोनों अपने लक्ष्य से भटक जाएंगे।

हमारी कॉलोनी में मेरे घर से 7-8 घर छोड़कर एक बंगले में ढाई साल पहले एक रिटायर्ड उच्चाधिकारी एस के सिंह अपनी पत्नी श्यामली जी के साथ रहने आए थे, इकलौता बेटा सपरिवार विदेश में कार्यरत था।सुसंस्कृत,सुशिक्षित उच्च मध्यमवर्गीय परिवार से हमारा परिचय उम्र का फासला होने के बावजूद शीघ्र ही मित्रता में परिवर्तित हो गया।सप्ताह में एकाध बार कभी मेरे यहाँ कभी हम उनके यहाँ जाकर चाय पीने के बहाने गप-शप कर लिया करते थे।

एक दिन श्यामली जी थोड़ी अन्मयस्क थीं,तो मुझे बुला लिया था। सिंह भाई साहब 2-3 दिन के लिए कहीं बाहर गए थे।जब मैं पहुँची तो भाभीजी अपनी यादों का खजाना खोलकर बैठी हुई थी,उन्होंने मुझे भी यादों के सफर में शामिल कर लिया।मैं बड़े चाव एवं उत्सुकता से एलबम के पन्ने पलट रही थी और वे उनके विवरण प्रस्तुत कर रही थीं।बच्चों के एलबम दिखाने के पश्चात उन्होंने अपने युवावस्था के फोटोग्राफ का एलबम निकाला।कुछ फ़ोटो देखने के बाद भाई साहब की युवा तस्वीर कुछ देखी हुई सी प्रतीत हुई।उसी दिन उनका पूरा नाम शुभम कुमार सिंह ज्ञात हुआ, तभी दिमाग पर जोर देने से रुपाली के मित्र शुभम की याद आई।मैं थोड़ी कन्फ्यूज थी इसलिए मैंने श्यामली जी से वह एलबम अपनी बेटी को दिखाने का कहकर घर ले आई।

शिवी से कहकर रुपाली को भी बुला लिया, फिर हमनें रुपाली के मोबाईल में स्थित फ़ोटो से उनका मिलान किया तो एक -दो तो हू-बहू वही फ़ोटो थे।अब सारी वस्तुस्थिति स्पष्ट थी कि क्यों शुभम रुपाली से वीडियो कॉलिंग से बच रहा था।वस्तुस्थिति जानकर रुपाली एवं शिवी अत्यधिक क्रोधित थीं, उनका युवा रक्त सिंह साहब को सबक सिखाने को तत्पर था। मैंने उन्हें समझा-बुझाकर शांत किया कि हालांकि उनका कृत्य सर्वथा अनुचित है,लेकिन इससे तुम्हें भी अनावश्यक तनाव का सामना करना पड़ेगा।मैं परोक्ष रूप से उन्हें उनकी गलती का अहसास अवश्य कराऊँगी,जिससे फिर किसी के साथ ऐसी ओछी हरकत न करें।

कुछ दिनों उपरांत मैं उनके घर गई,सिंह साहब भी मौजूद थे।मैंने उन लोगों के समक्ष दूसरे नाम से सारी कहानी सुनाते हुए कहा कि ऐसी घटिया हरकत करने वालों को सजा मिलनी चाहिये।अगर साइबर सेल में कम्प्लेंट कर दिया जाय,तो उस व्यक्ति की सारी पहचान निकल जाएगी।उनके चेहरे का उड़ा हुआ रँग उनकी गलती की चुग़ली कर रहा था।खैर, रुपाली ने उन्हें अनफ्रेंड कर दिया।

मैं ऐसे लोगों की मनःस्थिति का विश्लेषण करने का प्रयास कर रही थी कि आखिर ये उम्रदराज लोग क्या सोचकर अपनी बेटी की उम्र की युवतियों के साथ ऐसी ओछी हरकत करते हैं। यह भी एक तरह से मानसिक उत्पीड़न ही है।यह शायद इन लोगों का एक मानसिक विकार है जो उन्हें ऐसे कृत्य करने को उकसाता है।ऐसे लोग सोशल मीडिया पर छद्म पहचान का प्रयोग कर अपनी कुत्सित भावनाओं की पूर्ति करते हैं।काश!ये लोग अपने विवेक का इस्तेमाल करते।

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