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किस्सा रहमान चाचा के साथ घर लौटने का
रहमान चाचा जब गोलू को लेकर घर पहुँचे, तो पूरे मक्खनपुर में उत्सव जैसा माहौल बन गया। मक्खनपुर की रहट गली में तो घर-घर दीए जलाए गए। बाकी लोगों ने भी अपनी खुशी प्रकट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आखिर मक्खनपुर के एक बहादुर लड़के ने पूरे देश, बल्कि पूरी दुनिया में इस कसबे का नाम ऊँचा किया था। लोग समझ गए थे कि मक्खनपुर में खाली बढ़िया मक्खन ही नहीं पाया जाता, गोलू जैसे बहादुर बच्चे भी होते हैं, जारे अपनी जान पर खेलकर भी देश का नाम ऊँचा कर सकते हैं। और लाखों लोगों को देशभक्ति का पाठ पढ़ा सकते हैं।
जैसे ही रहमान चाचा की गाड़ी गोलू के घर के आगे आकर रुकी, गोलू के मम्मी-पापा, दोनों दीदियाँ और आशीष भैया दौड़कर उसके पास आए। सबने गोलू को छाती से लगा लिया। गोलू की मम्मी तो इतनी खुशी थीं कि मारे खुशी के उनकी आँखों से आँसू छलछला आए। बार-बार वे गोलू को छाती से चिपका रही थीं और कहतीं, “बेटा, तू ऐसा कैसे हो गया? तुझे हमारी बिल्कुल याद नहीं आई!”
गोलू के पापा और आशीष भैया उसे बार-बार शाबाशी दे रहे थे, “वाह गोलू, तूने तो कमाल कर दिया! तूने सचमुच ऐसी बहादुरी का काम किया कि घर की इज्जत में चार चाँद लगा दिए। सारा शहर मम्मी-पापा को बधाइयाँ दे रहा है और न जाने कहाँ-कहाँ से बधाई के तार और पत्र आ रहे हैं।”
गोलू की दोनों दीदियाँ बार-बार गोलू के सिर पर हाथ फेरती हुई अपनी खुशी प्रकट कर रही थीं और कुसुम दीदी ने तो उसे बाँहों में भरकर चूम भी लिया था। एक फोटोग्राफर ने झट से गोलू का यह फोटो खींचकर अखबार में छपने के लिए भेज दिया था। इतने में मन्नू अंकल भी आ गए। उन्होंने गोलू को छाती से चिपका लिया। हँसकर बोले, “बुद्धूराम, इतना बड़ा निर्णय लेने से पहले मुझसे तो मिल लिया होता!” रहमान चाचा मुसकराते हुए यह सब देख रहे थे।
गोलू के मम्मी-पापा ने बार-बार रहमान चाचा को धन्यवाद दिया, क्योंकि उन्हीं के कारण गोलू सकुशल घर वापस आ गया था।
लेकिन रहमान चाचा ने कहा, “गोलू ने कोई मामूली काम नहीं किया। इसकी बहादुरी से तो खुद पुलिस वाले दंग हैं। इसका नाम राष्ट्रपति के विशेष पुरस्कार के लिए भेज दिया गया है। बड़ा होकर यह बहुत अच्छा पुलिस अधिकारी बन सकता है।”
उस रात रहमान चाचा गोलू के घर पर ही रुके और ढेरों बातें करते रहे। अगले दिन वे विदा हुए तो उन्होंने गोलू से कहा, “गोलू, तुमने दिल्ली में जो मुश्किल दिन बिताए, उनके बारे में जरूर लिखना। इससे बहुत से बच्चों को सीख मिलेगी। वैसे भी दिल्ली में बिताए दिनों की तुम्हारी कहानी इतनी रोमांचक है कि हर आदमी उसे साँस रोककर पढ़ेगा।”
इस पर गोलू ने मुसकराते हुए सिर हिलाया और जब रहमान चाचा गाड़ी में बैठने को हुए, तो उन्होंने चुपके से उनके पैरों की धूल ले ली। रहमान चाचा प्यार से उसके कंधे थपथपाकर चले गए। जाते-जाते उन्होंने कहा, “गोलू, मुझे चिट्ठी लिखना मत भूलना।”