गोलू भागा घर से - 23 Prakash Manu द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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गोलू भागा घर से - 23

23

मिसेज नैन्सी क्रिस्टल

और फिर अगले हफ्ते गोलू के जिम्मे सचमुच एक काम आ पड़ा। पहले मिस्टर डिकी ने उसे सारी बातें समझाईं, फिर मिस्टर विन पॉल के पास भेज दिया।

मिस्टर विन पॉल उससे एक-एक चीज खोद-खोदकर पूछते रहे...कि पहले रिसेप्शन पर जाकर क्या करोगे, फिर...? फिर मिस्टर सी. अल्फ्रेड पीटर के मिलने पर क्या मैसेज देना है? नीला लिफाफा पकड़ाते हुए क्या बात कहनी है? और जो पैकेट वो पकड़ाए, उसे किस तरह अटैची में सँभालकर लाना है...अपना टोटल इंप्रेशन कैसा बनाना है!

गोलू ने सारी रटी-रटाई बातें एक बार फिर बढ़िया तरीके से मिस्टर विन पॉल के आगे उगल दीं। मिस्टर विन पॉल बहुत प्रभावित दिखे। बोले, “एक्सीलेंट...वाह गोलू, वाह!”

इस बार भी कार डिकी ही चला रहा था। वही काली पैंट और सफेद कमीज, जिसमें गोलू ने उसे पहली बार देखा था।

गोलू को वह दिन भी याद था, खूब अच्छी तरह। और वह यह भी देख रहा था कि उस दिन और आज के दिन में कितना अंतर आ चुका था। उस दिन गोलू एक असहाय लड़का था और डिकी ने उस पर बड़ी कृपा की थी। पर आज उसकी पोजीशन डिकी से किसी कदर बेहतर थी।

गोलू कार में बैठा-बैठा अपने प्रोग्राम के बारे में सिलसिलेवार सोचता जा रहा था। फ्रांस के दूतावास में जाकर उसे रिसेप्शन पर एक भद्र महिला नैन्सी के बारे में पूछना था और फिर उसके आने पर उसे एक नीले रंग का लिफाफा देना था। बदले में वे जो खाकी रंग का भारी-सा लिफाफा पकड़ाएँ, उसे सँभालकर ब्रीफकेस में डालकर ले आना था और मिस्टर विन पॉल को सौंपना था। लिफाफा लेकर वापस आते हुए मिसेज नैन्सी क्रिस्टल को बढ़िया अंग्रेजी में धन्यवाद देना था। और यह संदेश भी कि ‘यह महत्त्वपूर्ण सामग्री आपके बहुत काम आएगी, मादाम। उम्मीद है, आगे हम इससे भी ज्यादा उपयोगी सामग्री आपको दे पाएँगे। आप हमारी सेवाओं को पूरा-पूरा विश्वास कर सकती हैं मादाम!’

गोलू में फ्रांस के दूतावास के रिसेप्शन पर जाकर जब मिसेज नैन्सी क्रिस्टल के बारे में पूछा तो रिसेप्शनिस्ट ने उसे हैरानी से देखा। यह नन्हा-सा बालक भला मिसेज नैन्सी क्रिस्टल से क्या बात करेगा?

लेकिन जब गोलू ने कहा कि उसके पास मिसेज नैन्सी क्रिस्टल के लिए एक जरूरी मैसेज है, तो उन्होंने झट उसे बुला दिया। नैन्सी क्रिस्टल उसे साथ लेकर एक अलग केबिन में चली गईं, जहाँ गोलू ने उन्हें नीले रंग का लिफाफा पकड़ाकर कहा, “यह आपके लिए है मादाम। हमारे बॉस मिस्टर विन पॉल ने दिया है।...”

सुनकर मिसेज नैन्सी क्रिस्टल का चेहरा खिल गया। अब के गोलू ने गौर से देखा, गोरे ललछौंहे रंग की एक भारी काया। यही थीं मिसेज नैन्सी क्रिस्टल। उन्होंने एक बड़ा-सा खाकी लिफाफा गोलू को देते हुए कहा, “इसे अपने बॉस को देना, मेरी ओर से उपहार!”

चलते समय गोलू ने बढ़िया लहजे वाली अंग्रेजी में मिसेज नैन्सी क्रिस्टल को अपने बॉस का ‘मैसेज’ और ‘धन्यवाद’ दिया तो वे पुलकित हो उठीं। खुश होकर बोलीं, “यू स्माल चैप!...तुम तो बहुत इंटेलिजेंट लड़का है। क्या नाम है तुम्हारा?”

“गोलू...!” उसने एक मीठी मुसकान के साथ कहा।

“ओह, गोलू! वेरी नाइस, वेरी नाइस...वेरी स्वीट नेम!” कहते-कहते मिसेज नैन्सी क्रिस्टल ने प्यार से उसके गाल चूम लिए।

गोलू अपने ब्रीफकेस में खाकी लिफाफा डालकर ले आया और बाहर खड़ी चमचमाती ब्राउन इंडिका कार में आकर बैठ गया।

मिस्टर डिकी ने फौरन कार स्टॉर्ट की! फिर उसे मोड़ते हुए पूछा, “कोई दिक्कत तो नहीं आई गोलू?”

“बिल्कुल नहीं। शी इज़ ए नाइस लेडी, मिस्टर डिकी।” कहकर गोलू ने पूरी बात बता दी।

सुनकर मिस्टर डिकी जोरों से हँसे। बोले, “हमारे साथ रहोगे गोलू, तो ऐसे अच्छे-अच्छे लोग हमेशा मिलेंगे। रोज। तुम्हारा एक्सपीरिएंस भी बढ़ेगा।” कहते-कहते मिस्टर डिकी एक बार ठहाका मारकर हँस पड़े।

गोलू को इस बार मिस्टर डिकी की हँसी बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। वह सोचने लगा, ‘क्या कहना चाहते हैं मिस्टर डिकी? क्या वह महिला सचमुच अच्छी नहीं थी?...क्या गड़बड़ थी उसमें?”

और सोचते-सोचते अचानक गोलू को लगा, वह शायद गलत लोगों में आकर फँस गया है। जिस चमचमाती कंपनी का वह हिस्सा है, वह कंपनी सिरे से ही गड़बड़ है। उसमें कुछ न कुछ फ्रॉड जरूर है, वरना तो कितनी मुश्किल से वह हाड़-तोड़ मेहनत करके महीने में कुल सात सौ रुपए कमा पाता था और यहाँ उसे बैठे-बैठे बगैर किसी काम-धाम के सात हजार रुपए मिल जाते हें! उस पर बढ़िया खाना, पहनना...हर तरह के ठाठ-बाट। कारों में घूमना। हर आदमी के पास अलग मोबाइल फोन और लाखों रुपए का वारा न्यारा।

यह सारा धंधा शायद लिफाफे इधर से उधर लाने ले जाने पर ही टिका है। इधर से नीला लिफाफा...उधर से भारी-भरकम खाकी लिफाफा!

गोलू सोचने लगा, जो नीला लिफाफा वह ले गया था, वह तो हलका-सा था। लेकिन जो भारी-सा खाकी लिफाफा वह लाया, उसका वजन तो खासा होगा। भला ऐसा क्या होगा उसमें? विदेशी करेंसी, सोने की सिल्ली, ब्राउन शुगर...? कुछ न कुछ ऐसी गड़बड़ चीज ही होनी चाहिए। पर जाने क्यों मुझे लगता है कि उसमें करेंसी ही थी? हो सकता है डॉलर...अनगिनत! लिफाफे के साइज से तो यही लग रहा था। यानी कोई दस-बीस करोड़ की रकम। या हो सकता है और भी ज्यादा!

और इस अनाप-शनाप धन के बदले नीले लिफाफे में जो कुछ वहाँ पहुँचाया गया, वह क्या था? जरूर वह कोई बेशकीमती चीज होगी, मगर क्या?

लौटने पर मिस्टर विन पॉल ने गोलू से अटैची ली और कंधा थपथपाते हुए कहा, “कोई मुश्किल तो नहीं आई डियर गोलू?”

“नहीं, बिल्कुल नहीं।” गोलू ने गरदन सीधी तानकर कहा।

फिर वह मिस्टर विन पॉल पर प्रभाव जमाने के लिए छोटी-छोटी कुछ और बातें बताता रहा। और मिस्टर पॉल लगातार गरदन हिलाते हुए ‘वैल डन...वैल डन’ कहते हुए उसकी तारीफ करते रहे।

जब गोलू मिस्टर पॉल के पास से उठकर आया तो उन पर उसका काफी सिक्का जम चुका था। लेकिन गोलू के मन को शांति नहीं थी, उसके भीतर बड़ी तेज उथल-पुथल हो रही थी। उसे बार-बार लग रहा था कि इन अकूत रुपयों के पीछे कोई महत्त्वपूर्ण चीज बेची गई है, बहुत ही महत्त्वपूर्ण। बेशकीमती। अनमोल। वह क्या थी?...क्या थी? क्या थी?

उसका मन बार-बार कह रहा था—इन रुपयों के बदले अपने देश की कुछ जरूरी गोपनीय सूचनाएँ दी गई हैं। फ्रांस के दूतावास की उस महिला को...जिसका क्या नाम था? हाँ, याद आया, नैन्सी क्रिस्टल!

अब तो हर हफ्ते एक या दो जगह इसी तरह के जरूरी अभियान पर उसे निकलना पड़ता। फ्रांस की ही तरह जर्मनी, जापान, इटली, पाकिस्तान और अमरीका के दूतावासों पर भी गोलू की आवाजाही शुरू हो गई। वहाँ जिन लोगों से उसे मिलना होता, उनके नाम और शक्लों से भी वह बखूबी परिचित हो गया।

उसका काम एकदम सीधा था। एक लिफाफा देना, दूसरा लिफाफा लेना और आकर मिस्टर विन पॉल को सौंप देना। पर बीच में जगह-जगह उसकी काबलियत की परीक्षा भी हो जाती। तब अपनी अच्छी अंग्रेजी से सामने वाले को प्रभावित करके रास्ता निकाल लेना जरूरी होता।

जब उससे पूछा जाता कि वह कौन है और किस काम से मिलने आया है तो उसे किस तरह की कल्पित कहानी गढ़कर सुनानी है! असलियत किस तरह छिपानी है, यह बात भी वह खूब अच्छी तरह जान गया। जर्मनी, फ्रांस, अमरीका, इटली या कनाडा के लोगों से मिलते समय...अलग-अलग ढंग की अंग्रेजी और अलग-अलग ढंग की हाव-भाव भरी मुद्राएँ दिखाकर कैसे, किसे प्रभावित करना है, ये सारे गुर भी गोलू बहुत अच्छी तरह जान गया था।

पर उसकी अंतरात्मा में एक कील चुभी हुई थी और वहाँ से लगातार एक कराह निकल रही थी। वह बिना किसी के बताए अच्छी तरह समझ गया था कि वह किसी जासूसी के गिरोह के हत्थे चढ़ चुका है। और उसे अपने देश के खिलाफ ही जासूसी करनी पड़ रही है।

गोलू की आत्मा उसे बुरी तरह धिक्कारने लगी, ‘अरे वाह गोलू, क्या इसी तरह तुम बड़े आदमी होने चले थे! इसी तरह...?’