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विविधा - 22

22-श्रद्धया दीयते तत् श्राद्धम्

 हमारे समाज की मान्यता है कि पितृ पक्ष में ही पूर्वजों की आत्माएं धरती पर पुनः अवतरित होती हैं। घर-परिवार के सदस्य इस समय ही उन मृतात्माओं की शांति के लिए पिंडदान तथा तर्पण करते हैं। पिंडदान और तर्पण हमारी संस्कृति का अत्यंत महत्वपूर्ण बिन्दू है। विश्वास है कि पिंडदान और तर्पण से ही आत्मा को मुक्ति मिलती है।

   ‘श्रद्धया दीयते तत् श्राद्धम्’

 सितम्बर के प्रारंभ में ही आश्विन मास का कृप्ण पक्ष आता है जिसे पितरों का पखवाड़ा कहते हैं। इस मास की अमावस्या का सर्वाधिक महत्व है। पूर्वमास की पूर्णिमा से आश्विन की अमावस्या तक श्राद्ध मनाये जाते हैं। मृतात्मा की मृत्यु तिथि के दिन श्राद्ध किया जाता है। सामान्य जनइ स दिन खीर या मृतक को प्रिय भोजन बनाकर कोआ, गाय तथा कुत्ते को खिलाकर ब्राहमण को भोजन कराता है। 

 प्रतिवर्प हजारों व्यक्ति अपने पितरों के अवशेप लेकर गया जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि अश्विन के पितृपक्ष में इस पुण्य क्षेत्र ‘गया’ में श्राद्ध करने से पुत्र अपने पितृ ऋण से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त हो जाता है। उसे फिर अपने पूर्वजों का प्रतिवर्प श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं रहती। पितरों की अक्षय तृप्ति हो जाती है। 

 ऐसी मान्यता है िकइस लोक में मनुप्य जिस वस्तु का दान करता है, वही उसे परलोक में उपभोग करने को मिलती है, वेदविधियों से पिेडदान और तर्पणादि श्रद्धा से करना ही श्राद्ध है। 

 श्राद्ध के 13 प्रकार बताये गये हैं। उनमें से गजच्छाया योग इस आश्विन मास के कृप्णपक्ष में आता है। वेदों में श्राद्ध केवल पिता या पूर्वजों के लिए ही नहीं, पूरे विश्व की कल्याण भावना से किया गया हैं

  प्राचीन काल में पूरे वर्प भर गया श्राद्ध होता था। 

 गया श्राद्ध का विशेप महत्व है। एक किंवदंती के अनुसार भगवान श्री राम ने भी वशिप्ठ मुनि की प्रेरणा से गया में पिंडदान किया था। 

 गया में ही पुनपुन नदी है, जिसका बड़ा महत्व माना गया है। कथा है कि पुनपुनिया नामक व्यक्ति ने भगवान विप्णु की आराधना करके यह वरदान पाया िकवह नदी बन जाये और जो भी इस नदी में स्नान-ध्यान, तर्पण करेगा वह सीधा स्वर्ग जायेगा। विप्णुपाद मंदिर में पिंडदान करने के बाद अक्षयवट की परिक्रमा कर ब्राहमणों को भोजन कराया जाता है। 

 प्रथम घर पर मंुडन कराकर पिंडदान करें। ब्रहमचर्य व पवित्रता का संकल्प लें। नदी में स्नान कर देव-पितृ तर्पण और श्राद्ध करें पिंडदान के समय श्रद्धापूर्वक मृतपूर्वजों का नाम लें। अपने कुल के अलावा लोगों की भी मुक्ति की कामना करें। 

 पितृपक्ष के अवसर पर गया श्राद्ध करने वालों को कुछ विशेप नियमों का ध्यान रखना पड़ता है। सिर मुंडन के बाद वह पंद्रह दिनों तक क्षौर कर्म नहीं करता। 

 श्राद्ध कर्ता तेल-उबटन और श्रृंगार के अन्य साधनों का भी उपयोग नहीं कर सकता है। वह क्रोध, अशुद्ध विचार आदि का भी परित्याग कर सभी के लिए मंगल कामना करता है। तर्पण के बाद पिंडदान किया जाता है। पिंडदान के अंतर्गत संकल्प, देवताओं और पितरों की स्थापना, सपिंडीकरण और पिंड पूजा, पिंडचावल, जो कि आटे के बनाये जाते हैं, दान करता है। संकल्प एक वैदिक क्रिया है, जिसमें श्राद्ध करने वाला अपने किये पुण्य का स्मरण करता है। इसके बाद पितरों की स्थापना होती है। श्राद्ध मंत्रों के साथ संपन्न होता है। अंत में श्राद्धकर्ता सभी का आव्हान कर श्राद्ध पूरा करता है। श्राद्ध पदार्थो के आधे भाग व कौओं को खिला दिया जाता है और आधे भाग को नदी में प्रवाहित कर देते हैं।

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