एक था ठुनठुनिया - 12 Prakash Manu द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक था ठुनठुनिया - 12

12

मास्टर जी...चूहा!

मास्टर अयोध्या बाबू की शाबाशी ने सचमुच काम किया। अब ठुनठुनिया ने थोड़ा-थोड़ा पढ़ाई में मन लगाना शुरू किया। हालाँकि अब भी उसका ध्यान पढ़ाई से ज्यादा दूसरी चीजों पर रहता था। मास्टर अयोध्या बाबू ठुनठुनिया को बड़े प्यार से समझाकर पढ़ाते। अ-आ, इ-ई...के बाद क-ख-ग...सब उन्होंने समझाया, याद कराया। किताब में एक-एक शब्द बोल-बोलकर पढ़ना सिखाया, फिर भी ठुनठुनिया हिंदी की किताब पढ़ने बैठता तो उसका ज्यादा ध्यान चित्रों पर ही रहता था।

चित्र थे भी गजब के। और एक से एक सुंदर। चूहा, बिल्ली, गधा, हाथी, भालू, हिरन, हंस, बगुला, पतंग, पेड़, गिलहरी, गुलाब...जैसे ये सच्ची-मुच्ची की दुनिया की चीजें और जानवर हों। मास्टर जी पढ़ाते तो चित्रों पर उनका जोर होता। कहते, “देखो, ग से गमला...! घ से घड़ी, ह से हंस...!”

एक दिन ऐसे ही समझा-समझाकर पढ़ाने के बाद मास्टर जी ने पूछा, “अच्छा, अब जरा पढ़कर तो सुनाओ ठुनठुनिया!”

पर ठुनठुनिया का ध्यान अभी तक किताब में बने हुए बिल्ली और चूहे पर था। चूहा अच्छी तरह मूँछें तानकर खड़ा था। खूब घमंड में—ऐन फिल्मी हीरो की तरह! यहाँ तक कि उसकी पूँछ भी बड़े अजब ढंग से उठी हुई थी। देखने में एकदम चुस्त और तेज-तर्रार। और बिल्ली दूर से उसे इस तरह घूर रही थी, जैसे अभी एक ही छलाँग मारकर दबोच लेगी।

बड़े गजब का दृश्य था। एकदम रोमांचक! बिल्ली ने अगर अभी छलाँग लगाई तो इस अकड़बाज अफलातून चूहे का क्या होगा, क्या...?

ठुनठुनिया देखता रहा, देखता रहा, देखता रहा। वह इंतजार कर रहा था, आखिर कब बिल्ली छलाँग मारकर चूहे को दबोची है और उसकी हेकड़ी का मजा चखाती है! पर ताज्जुब था, न चूहा अपनी जगह से हिलता था और न बिल्ली।...एकदम काँटे की टक्कर! वाह भई, वाह!!

तो कहीं बिल्ली इस हेकड़बाज चूहे से डर तो नहीं गई...?

उधर मास्टर अयोध्या बाबू को रह-रहकर इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि ठुनठुनिया ने उसकी बात ध्यान से सुनी तक नहीं। एकाएक वे जोर से चिल्लाकर बोले, “ठुनठुनिया रे ठुनठुनिया, तूने सुनी नहीं न मेरी बात! जल्दी से पढ़कर सुना, जो मैंने अभी-अभी समझाया है।”

अब ठुनठुनिया घबराकर किताब पर बने चित्रों की दुनिया से बाहर निकला, पर मन उसका वहीं अटका था।

मास्टर जी के पूछते ही उसने जोर से उछलकर कहा, “मास्टर जी, चूहा...! मास्टर जी...बिल्ली...!”

सुनते ही मास्टर अयोध्या प्रसाद समेत क्लास के सब बच्चों की हँसी छूट गई। एक-दो बच्चे तो झटपट उछलकर बेंच पर खड़े हो गए। उन्हें लगा, जरूर कहीं से क्लास में चूहा-बिल्ली आ गए हैं।

अजीब अफरातफरी सी मच गई।

मास्टर अयोध्या बाबू ने जोर से खिलखिलाकर कहा, “मास्टर जी न चूहा हैं, न बिल्ली! अब तू बैठ जा ठुनठुनिया। कल से अच्छी तरह पाठ याद करके आना। और हाँ, जब मैं पढ़ाता हूँ तो जरा ध्यान से मेरी बातें सुना कर, वरना इम्तिहान में भी बस चूहा-बिल्ली याद रहेंगे। और नंबर की जगह मिलेगा गोल-गोल अंडा!...समझ गया?”

इस पर पूरी क्लास फिर जोरों से हँसी। ठुनठुनिया ने हँसते-हँसते सिर नीचे झुका लिया और मन ही मन याद करने लगा, “क से कमल, ख से खरगोश, ग से गधा...!”