एक था ठुनठुनिया - 9 Prakash Manu द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक था ठुनठुनिया - 9

9

नाम का चक्कर

अब तो सब ओर ठुनठुनिया का नाम फैल गया। सिर्फ गुलजारपुर में ही नहीं, आसपास के गाँवों में भी उसके नाम के चर्चे होने लगे। सब कहते, “भाई, ठुनठुनिया तो सबसे अलग है।...ठुनठुनिया जैसा तो कोई नहीं!”

पर कुछ लोग ठुनठुनिया को खामखा छेड़ते भी रहते थे। वे कहते, “ठुनठुनिया, ओ ठुनठुनिया! जरा बता तो, तेरे नाम का मतलब क्या है?”

“मतलब क्या है...? अजी, ठुनठुनिया माने ठुनठुनिया!” ठुनठुनिया अपने सहज अंदाज में ठुमककर कहता।

“यह तो कोई बात नहीं हुई। ठुनठुनिया का तो कोई मतलब हमने सुना नहीं। इतना अजीब नाम तो किसी का नहीं है। ठुनठुनिया, तू ये नाम बदल ले।” छेड़ने वाले लोग ऊपर से चेहरा गंभीर बनाए रखते, पर अंदर-अंदर हँसते रहते।

ठुनठुनिया ने एक-दो को तो किसी तरह जवाब दिया। पर जब कई लोगों ने अदल-बदलकर यही बात कही तो वह चकरा गया। माँ के पास जाकर बोला, “माँ...माँ, मेरा ठुनठुनिया नाम सुनकर लोग हँसी उड़ाते हैं। तू यह नाम बदल दे।”

माँ हैरान होकर बोली, “अरे, तेरा कितना अच्छा तो नाम है बेटा! इतना प्यारा नाम तो किसी का नहीं। तू क्यों इसे बदलना चाहता है?”

इस पर ठुनठुनिया बोला, “माँ, ठुनठुनिया का कोई मतलब भी तो नहीं होता...!”

“देख ठुनठुनिया, मैं तुझे ठुनठुनिया कहकर बुलाती हूँ और तू दौड़ता हुआ मेरे पास चला आता है। मेरे लिए तो इतना की काफी है बेटा! और भला नाम का क्या मतलब होता है?” माँ ने कहा, “फिर भी अगर तुझे यह नाम अच्छा नहीं लगता, तो जा, शहर चला जा। वहाँ लोग जरा नए और अच्छे-अच्छे नाम रखते हैं। लोगों से उनका नाम पूछना। जो तुझे अच्छा लगे, वही नाम तेरा रख दूँगी।”

ठुनठुनिया को बात जँच गई। वह फौरन शहर की ओर चल दिया। एक जगह वह चौराहे पर खड़ा था। इतने में फटे कपड़ों में एक दीन-हीन भिखारी भीख माँगता हुआ आया। बोला, “एक पैसा दे दो बाबू!”

ठुनठुनिया के पास पैसे तो भला कहाँ थे। माँ ने अचार के साथ दो रोटियाँ बाँधकर दी थीं। ठुनठुनिया ने एक रोटी और थोड़ा-सा अचार भिखारी को दे दिया। भिखारी भूखा था। वहीं खड़े-खड़े खाने लगा। जब वह चलने लगा, ठुनठुनिया ने पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है भाई?”

“नाम तो अशर्फीलाल है बाबू, पर...!” कहते-कहते भिखारी की आँखें डबडबा गईं।

ठुनठुनिया को बड़ा अजीब लगा। अभी वह सोच ही रहा था कि अब किससे उसका नाम पूछूँ, तभी एक ओर कुछ शोर-सा हुआ, “चोर, चोर, जेबकतरा...!”

ठुनठुनिया ने चौंककर देखा, एक बदमाश आदमी ने एक सेठ का बटुआ चुराने की कोशिश की थी। उसने सेठ जी की जेब से बटुआ निकाल लिया था, पर भाग पाता, इससे पहले ही लोगों ने उसे पकड़ लिया और खूब पिटाई की। बाद में सिपाही आया और उसके हाथों में हथकड़ी लगाने लगा।

ठुनठुनिया ने उस जेबकतरे के पास जाकर कहा, “भाई, बुरा न मानो तो क्या मैं तुम्हारा नाम जान सकता हूँ?”

जेबकतरा रुआँसा हो गया। बोला, “नाम का क्या करोगे बाबू जी? नाम तो हरिश्चंद्र है, पर किस्मत की बात है, चोरी-चकारी करके पेट भरना पड़ता है।...अब तो यही हमारी जिंदगी है!”

सुनते ही सब लोग आपस में कानाफूसी करने लगे, “अरे, देखो तो जरा, नाम तो है इसका हरिश्चंद्र और काम जेबकतरे का...ही-ही-ही!”

ठुनठुनिया का जी धक से रह गया। सोचने लगा—अरे, यह क्या चक्कर...?

इतने में ठुनठुनिया सेठ जी के पास गया। बोला, “माफ करें सेठ जी, आपका नाम जान सकता हूँ?”

“क्यों भई, तुझे मेरे नाम से क्या मतलब?” सेठ जी तुनक गए। गुस्से के मारे उनकी आँखें चश्मे से बाहर निकलने को हुईं। चश्मा गिरते-गिरते बचा।

ठुनठुनिया एकदम विनम्र स्वर में बोला, “बुरा न मानें सेठ जी, असल में मेरा नाम ठुनठुनिया है। मैं इस नाम को बदलना चाहता हूँ। किसी अच्छे से नाम की तलाश में शहर आया हूँ। इसलिए सभी से नाम पूछता जा रहा हूँ। शायद कोई ऐसा अच्छा नाम मिले जो...!”

सुनते ही सेठ जी कुछ शरमा-से गए। बोले, “भई, तब तो तुम्हें मेरा नाम बिल्कुल अच्छा न लगेगा। मेरा नाम है—छदामीमल।”

ठुनठुनिया का मुँह खुला का खुला रह गया। बोला, “अरे...!”

उसी क्षण ठुनठुनिया वापस घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में सोचता जा रहा था, ‘वाह...वाह! नामों का भी अजब चक्कर है। छदामीमल इतना बड़ा सेठ निकला और अशर्फीलाल गली-गली भीख माँग रहा था। हरिश्चंद्र चोरी और जेब काटने के चक्कर में जेल की हवा खा रहा है।...भई, कमाल है...कमाल है! यहाँ तो दाल की जगह कंकड़, कंकड़ की जगह दाल है। अजब नाम का बवाल है!’

अपनी तुकबंदी पर उसे खूब मजा आया। अलबत्ता यही सब सोचते-सोचते ठुनठुनिया घर आ पहुँचा।

गोमती बेटे का इंतजार कर रही थी, बोली, “बेटा, मिला कोई अच्छा-सा नाम?”

“नहीं माँ, नहीं...! बहुत नाम सुने, पर मुझे तो कोई पसंद नहीं आया। उनसे तो मेरा ठुनठुनिया नाम ही भला है।” ठुनठुनिया ने ठुनककर कहा।

“हाँ रे हाँ ठुनठुनिया, यही तो मैं तुझसे कहती थी।” माँ ने प्यार से उसके गाल थपथपाते हुए कहा, “पर तेरी समझ में आता ही नहीं था। चल, अब मुँह-हाथ धोकर कुछ सुस्ता ले, थक गया होगा। मैं अभी तेरे लिए गरमागरम खाना बनाती हूँ।”

कहकर गोमती खाना बनाने में जुट गई और ठुनठुनिया कमरे में बड़े मजे में कलामुंडियाँ खाता हुआ जोर-जोर से गाने लगा—

ठुनठुनिया जी, ठुनठुनिया,

हाँ जी, हाँ जी...ठुनठुनिया,

ठुन-ठुन, ठुन-ठुन ठुनठुनिया

ठिन-ठिन, ठिन-ठिन ठुनठुनिया,

देखो, मैं हूँ ठुनठुनिया!

हाँ जी, हाँ जी...ठुनठुनिया!

गोमती ने झाँककर कमरे में देखा तो ठुनठुनिया का गाना और नाटक देखकर बड़े जोर की हँसी छूट गई।

वह हँसती जाती थी और खाना बनाती जाती थी। बीच में न जाने कब वह भी गुनगुनाने लगी, “हाँ जी, हाँ जी ठुनठुनिया...ठुन-ठुन, ठिन-ठिन ठुनठुनिया...!”