एक था ठुनठुनिया - 11 Prakash Manu द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक था ठुनठुनिया - 11

11

क्लास में पहला दिन

स्कूल में दाखिला लेने के बाद ठुनठुनिया अगले दिन पहली कक्षा में पढ़ने गया। वहाँ मास्टर अयोध्या बाबू हिंदी पढ़ा रहे थे।

ठुनठुनिया कक्षा में जाकर सबसे पीछे बैठ गया और अपनी किताब खोल ली, पर उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि मास्टर जी क्या पढ़ा रहे हैं? पढ़ाते-पढ़ाते मास्टर जी का ध्यान ठुनठुनिया की ओर गया, तो उन्होंने उसकी ओर उँगली उठाकर पूछा, “क्या नाम है तुम्हारा?”

“जी, ठुनठुनिया...!” ठुनठुनिया ने खड़े होकर बड़े अदब से बताया।

“ठुनठुनिया! यह तो अजीब नाम है!” मास्टर अयोध्या प्रसाद कुछ सोच में पड़ गए। फिर उन्होंने पूछा, “अच्छा, ठुनठुनिया का कुछ मतलब भी होता है क्या?”

ठुनठुनिया मुसकराकर बोला, “मास्टर जी, पहले मैंने भी एक दिन यह बात सोची थी, जो आज आप कह रहे हैं। मैंने माँ से कहा, ‘माँ-माँ, मेरा नाम बदलवा दो!’ पर जब माँ के कहने पर मैं कोई अच्छा-सा नाम ढूँढ़ने के लिए शहर गया, तो बड़ा अजब नजारा देखा। वहाँ अशर्फीलाएल भीख माँग रहा था, हरिश्चंद्र जेब काटने के चक्कर में जेल जा रहा था, और छदामीमल शहर का बड़ा जाना-माना सेठ था। बस, तब से मास्टर जी, मुझे तो अपना ठुनठुनिया नाम ही पसंद है। इसका कोई मतलब हो या न हो...!”

सुनते ही मास्टर जी खुश हो गए।

“अरे! तुम तो बड़े समझदार हो। इतनी-सी देर में इतनी बड़ी बात कह दी!” मास्टर अयोध्या बाबू ने ठुनठुनिया की पीठ थपथपाते हुए कहा।

“और मास्टर जी, मैंने एक कविता भी बनाई है—अपने नाम की कविता। उसे सुनकर आप और भी खुश हो जाएँगे।” ठुनठुनिया ने जोश में आकर कहा।

“कविता? तुमने...?” मास्टर जी चौंके। फिर बोले, “अच्छा, जरा सुना तो ठुनठुनिया!”

और ठुनठुनिया ने उसी समय मगन होकर सुनाना शुरू किया और फिर साथ ही साथ मस्ती में ठुमकने भी लगा—

मैं हूँ नन्हा ठुनठुनिया!

ठुन-ठुन, ठुन-ठुन ठुनठुनिया,

ठिन-ठिन, ठिन-ठिन ठुनठुनिया,

आज नहीं तो कल मानेगी

मुझको सारी दुनिया...

कि मैं हूँ ठुनठुनिया

अजी, हाँ, ठुनठुनिया!

ठुन-ठुन, ठुन-ठुन ठुनठुनिया,

ठुनठुनिया, भई ठुनठुनिया...!

जैसे ही कविता पूरी हुई, पूरी क्लास में बड़े जोर की तालियाँ बजीं। बच्चे हँस रहे थे और ठुनठुनिया की कविता के साथ-साथ कविता सुनाने के अंदाज की खूब तारीफ कर रहे थे।

पहले दिन ही ठुनठुनिया क्लास का ‘हीरो’ बन गया। सबने समझ लिया था, ठुनठुनिया में सचमुच कुछ अलग है। हर बच्चा बड़े प्यार से उसकी ओर देख रहा था।

मास्टर अयोध्या बाबू ने ठुनठुनिया को गले से लगा लिया। बोले, “आज पहले ही दिन ठुनठुनिया, तूने तो मेरा दिल जीत लिया!”