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सुखी संसार...

शाम का समय,समुद्र के भीतर डूबता हुआ लाल सूरज,चिड़ियों की चहचहाहट और साथ ही समुद्र में उठती लहरों का शोर मन को विह्वल से किए जाता है,नारियल के लम्बे लम्बे वृक्ष एकदूसरे को छूने का प्रयास कर रहे हैं,जैसे कि आपस में कह रहे हों..प्रिऐ!निकट तो आओ जरा,उस पर ऐसा सुन्दर सुहावना वातावरण लेकिन शंकर उदास सा समुद्र के किनारें बनी अपनी झोपड़ी में बैठा किसी की राह देख रहा है,तभी उसे दूर से महुआ आती हुई दिखी,महुआ झोपड़ी के भीतर घुसी ही थी कि शंकर ने उसके ऊपर सवालों की बौछार कर दी और उससे बोला....
महुआ! कहाँ गई थी तू?मैं कब से आकर तेरी राह देख रहा हूंँ?
अरे!तुम!आज ही आ गए,तुम तो दो दिन बाद आने वाले थे ना!महुआ बोली।।
तेरे बिना जी ही नहीं लगा,इसलिए सभी मछुआरों को समुद्र में छोड़कर,मैं अकेला ही चला आया और तू है कि घर में ही ना थी,शंकर शिकायत करते हुए बोला....
पास वाले हाट से सौदा लाने चली गई थी,सोचा था जब तुम आओगे तो तुम्हें कुछ अच्छा बनाकर खिलाऊँगी और देखो तुम आज ही आ गए...महुआ बोली।।
मतलब तुम्हारे दिल को पता चल गया था कि मैं आने वाला हूँ,शंकर बोला।।
प्रेम से भरा हृदय अपने प्रिऐ की आहट सुन ही लेता है,इसलिए मेरे दिल ने भी ये जान लिया कि तुम आने वाले हो,महुआ बोली।।
क्या करूँ सबर ही नहीं हुआ?मैं वहाँ समुद्र में मछलियाँ पकड़ता तो पानी में तुम्हारी सुन्दर सी मूरत दिखने लगती,जैसे ही मैं उसे पकड़ने की कोशिश करता तो वो पानी के तल पर से गायब हो जाती,तुम्हारी इन मतवाली आँखों ने मुझे अपना दिवाना बना लिया है,तुम्हारे ये रस भरें होंठ मुझे रसपान करने के लिए बुला रहे थें,तुम्हारे इन काले घने बालों के जंगल में मैं उलझ जाना चाहता हूँ महुआ!मुझसे खुद से दूर जाने को ना कहों,शंकर बोला।।
अगर मछलियांँ नहीं पकड़ोगे तो हम खाऐगें क्या?महुआ बोली।।
मैं यहाँ तुमसे प्यारभरी बातें कर रहा हूँ और तुम्हें घर-गृहस्थी की पड़ी है,जाओ!मैं तुमसे बात नहीं करता,शंकर रूठते हुए बोला।।
ओहो....तो तुम रूठ गए,इसमें रूठने वाली क्या बात है शंकर?मैं तुम्हारी पत्नी हूँ,मैं तो सदा तुम्हारे साथ रहूंँगी,लेकिन काम धन्धा नहीं करोगें तो जीवन कैसें कटेगा?महुआ बोली।।
अभी हमारी नयी नयी शादी हुई है,दो महीने ही तो हुए हैं शादी को,इसलिए इसमें अभी प्यार मौहब्बत रहने दो,गृहस्थी को बीच में मत घुसाओं,वैसे भी तुम्हारा खड़ूस बाप बड़ी मुश्किल से इस ब्याह के लिए माना है,तुम्हें पाने के लिए मैनें ना जाने कितने पापड़ बेले हैं,तब जाकर तुम मिली हो,पता है जब मैनें तुम्हें पहली बार देखा था तभी तुम्हें दिल दे बैठा था,उस रात मैं चैन से सो ना सका था,शंकर बोला।।
सच!इतना प्यार करते हो मुझसे,महुआ ने पूछा।।
हाँ!अब दूर क्यों खड़ी हो?जरा नजदीक आ जाओ,शंकर बोला।।
वो क्यों भला?महुआ बोली।।
इतनी नादान मत बनो,तुम्हें सब पता है,शंकर बोला।।
और फिर महुआ झोपड़ी के बाहर निकलकर बोली....
पकड़कर दिखाओ तो जानू और हंसकर वो समुद्र के किनारे पड़ी रेत पर भागने लगी और उसके पीछे पीछे शंकर भी हँसते हुए उसे पकड़ने के लिए भागने लगा और फिर शंकर ने उसे पकड़ लिया और अपनी गोद में उठाकर झोपड़ी के भीतर ले गया और महुआ कहती रह गई कि हटो भी क्या रहे हों?लेकिन शंकर कहाँ मानने वाला था फिर दोनों एक दूसरे में समा गए,
तो ऐसा सुखी संसार था महुआ और शंकर का,ऐसे ही अब दोनों की शादी को दो साल बीत चुके थे,लेकिन दोनों के बीच अब भी वैसा ही पहले वाला प्यार कायम था,दोनों का जीवन ऐसे ही एकदूसरे की बाँहों में बीत रहा था तभी एक रोज महुआ,शंकर के पास आकर बोली......
आजकल भूख नहीं लगती ,किसी काम में जी नहीं लगता,शरीर भारी भारी सा लगता रहता है और कुछ खट्टा खाने का दिल करता रहता है....
चलो!तुम्हें किसी वैद्य के पास ले चलता हूँ,शंकर बोला।।
इसलिए तो कल मैं दाईमाँ के पास गई थी,महुआ बोली।।
तुम पागल हो क्या ?जब तबियत खराब है तो वैद्य के पास जाना चाहिए था,दाईमाँ के पास तो वो स्त्रियाँ जातीं हैं जिन्हे बच्चा होने वाला होता है,शंकर ये सब बोल तो गया लेकिन तभी उसे होश आया और खुश होकर महुआ से बोला.....
सच! तो क्या मैं.....और....तुम....
और फिर उसने प्यार से महुआ को अपनी गोद में उठा लिया ,महुआ भी शंकर के खुश होने से बहुत खुश थी,दिन ऐसे ही बीत रहे थे,शंकर महुआ का बहुत ख्याल रखता फिर एक दिन शंकर अपने साथियों के साथ मछलियाँ पकड़ने गया,उस समय समुद्र में बहुत बड़ा तूफान आया और कई मछुआरों की नाव डूब गई,उनमें से शंकर भी एक था,उनमें से जो बच गए थे वो घर लौटें और उन्होंने बताया कि तूफान शान्त होने पर हमने मछुआरों को ढ़ूढ़ा कुछ की तो लाशें मिलीं लेकिन कुछ की लाशें नहीं मिलीं और लाशें ना मिलने वालों में से एक शंकर भी था,हो सकता है कि उसे किसी बड़ी मछली ने निगल लिया हो,तूफान इतना भयानक था कि शंकर का बचना नामुमकिन है,उसकी जान नहीं बची होगी,
ये सुनकर महुआ गश़ खाकर गिर पड़ी,उसके पिता ने उसे सम्भाला,उसे अब भी भरोसा नहीं था कि उसका शंकर उसे छोड़कर जा चुका है,कुछ महीनों बाद उसने एक बेटे को जन्म दिया,अब उसका ध्यान बच्चे को पालने में लग गया लेकिन वो अब भी शंकर को याद करके रातों को रोती,काली लम्बी नागिन सी रातें उसे शंकर के बिना डँसने को आतीं,फिर उसके पिता भी लम्बी बिमारी से चल बसें,इसलिए अब वो पिता की सम्पत्ति बेचकर पुनः अपनी झोपड़ी में लौट आई,उसके शंकर की यादें तो उस झोपड़ी में ही थी इसलिए उसने उन यादों के सहारे जीवन जीने का सोचा,कुछ ना कुछ काम करके वो अपने बच्चे का पालन पोषण करने लगी और उसने बच्चे का नाम गनेश रखा......
दिन बीते,महीने बीते और साल बीत गए,महुआ की आँखें हर सावन में अपने प्रियतम के लिए बरसती रहीं और ऐसे ही पन्द्रह साल बीत गए,महुआ के बालों पर सफेदी छा गई थी और फूल से चेहरें पर झुर्रियों ने अपना डेरा डाल लिया था,वो इतनी जल्दी बूढ़ी ना होती लेकिन प्रेम की अगन में वो पल पल जल रही थी,जिसमें उसका यौवन झुलस गया था,गनेश भी अब पन्द्रह साल हो चुका था,अब गनेश भी थोड़ा बहुत काम करने लगा था,जिससे दोनों माँ बेटे का गुजारा हो जाता था,फिर एक दिन गनेश पड़ोसी काका के साथ किसी शादी में गया था,महुआ ना गई थी उसका मन ना था शादी में जाने को,पड़ोसी बहुत भरोसेमंद थे इसलिए उसने उनके संग गनेश को भेज दिया था,बाहर बारिश होने लगी थी,महुआ को भूख लगी तो सोचा अपने लिए कुछ पका लूँ महुआ ढ़िबरीं की रोशनी में चूल्हे पर कुछ पका रही थी,उसे किसी ने पुकारा....
महुआ.....मेरी प्यारी महुआ देख मैं आ गया.....
जानी पहचानी आवाज़ सुनकर महुआ चौकीं और ढ़िबरी ले कर दरवाजे के पास गई,उसने देखा वो शंकर ही था,बारिश और पसीने से नहाया, पकी दाढ़ी, सफेद बालों वाला झुर्रियों भरा चेहरा ढ़िबरी की मद्धम रोशनी में चमकता हुआ, ,शकल देखते ही उसकी आँखों से अश्रु धारा बह चली और बोली.....
तुम!अब जाकर आओं हो,राह देखते देखते तो मेरी आँखें पथरा गईं......
अटक गया था कहीं!’शंकर बोला।।
सवाल भी आधे थे और जवाब भी आधे, लेकिन दोनों मिलकर पूरे हो गए, जैसे एक लंबी डुबकी के बाद अभी-अभी समुद्र से निकलकर आया हो शंकर,
तब महुआ बोली...
लोग जितना भी कहते रहें, लेकिन मुझे यकीन था, तुम आओगे, जरूर आओगे एक-न-एक दिन!’
अब बांँहों में पिघल रहे थे तन और मन, आंसू थमते नही थे दोनों के ,दोनों एक दूसरे की खुशबू में समा जाना चाहते थे,सालों की दूरियों को पल भर में मिटा लेना चाहते थे दोनों,
फिर महुआ बोली...
‘तुम कहाँ रह गए थे शंकर? इतने दिन कहाँ लगा दिए ?, …देखो.....देखो.....मुझे देखो....खुद को देखो… क्या बाकी बचा है केवल बुढ़ापा....
कोई बात नहीं पगली,अब साथ रहेगें हमेशा,जीवनभर,शंकर बोला...
सच! शंकर!महुआ बोली।।
हाँ!मेरी प्यारी महुआ,तुझे देखने को मेरी आँखें तरस गईं थीं,तेरे बदन की खुशबू अब भी भी मेरी साँसों में समाई है,शंकर बोला।।
मुझसे दूर अब कभी ना जाना....कभी नहीं....और इतना कहते कहते महुआ शंकर की बाँहों में समा गई....
दूसरे दिन सुबह गनेश जब शादी से लौटा तो महुआ ने बाप बेटे को मिलवाया,कुछ दिन ऐसे ही पूरे परिवार ने साथ साथ बिताएं,लेकिन फिर एक रोज़ शंकर बोला.....
महुआ!मैं तुझे और गनेश को लेने आया हूँ....
कहाँ ले जाओगें? क्या कोई हवेली बना रखी है मेरे लिए,महुआ हँसते हुए बोली....
हाँ!शंकर बोला...
शंकर के इस उत्तर से महुआ ने उसे हैरान होकर देखा और बोली.....
कहना क्या चाहते हो तुम?
यही कि जब मैं उस दिन तूफान में समुद्र की लहरों में खो गया था तो समुद्र के किनारे बेहोश पड़ा था,वहाँ से गुजर रही नाँव जो किसी अरबपति की थी उसके लोगों ने मुझे देखा और मुझे बचाकर ले गए,जब होश आया तो मैनें देखा कि मैं एक महल जैसे घर का अतिथि हूँ,उस घर और वहाँ की दौलत देखकर मेरे मन में लालच समा गया और मैनें उन लोगों से कह दिया कि मेरा कोई नहीं है,इसलिए उन्होंने मुझे अपने घर में शरण दे दीं फिर मैनें उस अरबपति की बेटी से प्रेम का नाटक करके उससे विवाह कर लिया,क्योंकि वो अपने अरबपति पिता की इकलौती सन्तान थी और वहीं रहने लगा,लेकिन इतने सालों बाद उसके कोई सन्तान नहीं हुई ,इसलिए मुझे अब उस सम्पत्ति का वारिस चाहिए,मैनें पहलें ही पता लगवा लिया था कि तुम्हें बेटा हुआ है,इसलिए मैं अब गनेश को लेने आया हूँ और तुम भी मेरे साथ चलों.....
तुम्हें पता चल गया था कि हमारी सन्तान हो चुकी है ,तुम तब भी ना लौटें,धन के लालच में तुम हम दोनों को भूल गए और अगर तुम्हारी दूसरी पत्नी को सन्तान हो जाती तो तुम कभी भी यहाँ ना लौटते...है ना!महुआ गुस्से से बोली।।
लेकिन अब मैं अमीर हूँ और तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी कर सकता हूँ,शंकर बोला।।
क्या फायदा ऐसी दौलत का जिसने मेरे सुखी संसार में आग लगा दी,तुम्हें मुझसे अलग कर दिया,मैं तुम्हारे साथ कहीं नहीं जाऊँगीं और ना मेरा बेटा गनेश जाएगा,मैं अपने इस संसार में बहुत सुखी हूँ जहाँ जीने के लिए तुम्हारी यादें और मेरा बेटा है और तुम भी अपने सुखी संसार में वापस लौट जाओं और फिर महुआ और गनेश शंकर के साथ नहीं गए,शंकर अकेले ही महुआ के सुखी संसार से चला गया......

समाप्त.....
सरोज वर्मा....

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