(भाग-5)
दसवीं क्लास के एगज़ाम यूपी बोर्ड, इलाहाबाद के तत्वावधान मे होते थे । पूरे उत्तर प्रदेश से दसवीं की परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स की संख्या करीब चार साढ़े चार लाख होती थी जिसमें से सिर्फ 50% के लगभग ही पास होते थे । दो तीन प्रतिशत पूरक परीक्षा के काबिल फेल्यर्स होते थे जो एक सब्जेक्ट मे फेल होने पर दो महीने बाद पूरक परीक्षा पास कर दसवीं पास कर लेते थे । फेल्यर्स फिर भी 40-45 % रह जाते थे । काफी स्टुडेंट्स फेल हो जाने पर पढ़ना छोड़ देते थे । कुल मिलाकर 20-25% स्टूडेंट्स दसवीं क्लास मे दुबारा वापस दाखिला लेकर क्लास मे नज़र आते थे । धरम की क्लास मे भी ऐसे बहुत से स्टूडेंट्स थे । बड़े बड़े लम्बे जिनके दाढ़ी मूंछ भी आनी शुरु हो गयी थी फेल्यर्स मे शामिल थे । ये ज्यादातर बैक बैंचर्स थे और पीछे बैठे हल्ला मचाने मे सबसे आगे रहते थे । ये धरम को भी किसी ना किसी बात पर छेड़ते थे । धरम टीचर्स का फेवरिट स्टुडेंट था हालांकि धरम ने कभी इस बात को ज्यादा महत्व नहीं दिया था । फेल्यर्स हमेशा फर्स्ट टाइमर्स को डराते हुए कहते थे:
“पहली बार बोर्ड मे आया है जब पास हो जाये तो बताना । बोर्ड का एग्जाम शेर के मुंह मे हाथ डालकर सही सलामत वापस निकालना है । अच्छे अच्छे फेल हो जाते हैं ।”
धरम देखने में सुन्दर था और शक्ल से मासूम था तो इन लड़कों के सामने भेड़ियों मे मेमना जैसा था । धरम को कई बार डर भी लगता था कि पता नहीं बोर्ड का एग्जाम कितना मुश्किल होगा और पता नहीं वो पास भी हो पायेगा या नहीं । फेल होने वालों का प्रतिशत भी ज्यादा था इसलिये भी डर लगता था और पहली बार एग्जाम देना था जो डर लगने का सबसे बड़ा कारण था ।
धरम की क्लास मे गीता के अलावा तीन लड़कियां ओर थीं । धरम और गीता की डेस्क के बांये वाली डेस्क पर धरम के बराबर मे कुसुम बैठती थी जो कॉलेज के टीचर की बेटी थी । वो बड़ी मेहनती थी । उसका पढ़ने का तरीका बड़ा मैथोडिकल था । वो कोशिश करती थी कि जो भी क्लास मे पढ़ाया जाये उसे वहीं क्लास मे याद कर लिया जाये । धरम जो हमेशा रिलैक्स रहने का आदि था उसे बड़ा अजीब लगता था जब वो हाथ मे कॉपी लेकर मुंह के सामने रखकर पढ़ते हुए सिर हिला हिला कर रटती थी । धरम को अहसास नहीं था कि शिक्षा प्रणाली के एग्जाम सिस्टम मे चीज़ों को रट लेने का कितना महत्व है । एग्जाम टैलेंट टैस्ट करने की बजाय मैमोरी टैस्ट बनकर रह गये हैं ।
धरम और गीता के डेस्क के दाहिनी तरफ की डेस्क पर दो सगी बहनें वीना और वीरा बैठती थीं । वो क्रिश्चियन थीं । क्रिश्चियन लड़कियों को बाकि लड़कियों से ज्यादा लिबरल माना जाता था । वीना वीरा दोनों कद की छोटी और कुछ भरे बदन की थीं । लड़के लड़की को मिलने को लेकर समाज बड़ा दकियानूसी था और अगर बाहर कहीं कोई लड़का लड़की आपस मे बात करते भी दिख जायें तो लोग बोलने लगते थे “लड़की फंस गयी है”। क्रिश्चियन लड़कियां इन बातों की परवाह नहीं करती ऐसा विश्वास किया जाता था । वीना और वीरा दोनों जुड़वां बहनें थीं और दोनो की शक्ल इतना मिलती थी कि धरम को कभी पता ही नहीं चला कि जो सामने खड़ी है वो वीना है कि वीरा है । दोनों बड़ी हंसमुख थीं । जब धरम क्लास मे बीच की लाइन मे बैठता था तब एक बार क्लास मे धरम ने गाना सुनाया फिल्म जंगली का से “जा जा जा मेरे बचपन” । हालांकि गाना फीमेल वॉयस मे था पर धरम के दिलो दिमाग पर छाया हुआ था ।
पूरी क्लास ने धरम का गाना सुना और ताली बजाई थी । गाना सुनकर तुरन्त ही वीना वीरा मे से एक ने पीछे मुड़कर धरम से फरमाइश कर दी:
“वो गाना सुनाओ सौ बार जनम लेंगे ।” धरम फरमाइश सुनकर खुश हुआ हालांकि गाने की लाइनें उसे याद नहीं थी । जो भी एक दो लाइन उसे याद थी वही गाकर सुना दीं । आखिर वो उनकी फरमाइश को कैसे टाल सकता था । ताली फिर बजी । वीना और वीरा खासी चहक रहीं थीं । धरम को उनको चहकता देख बहुत रोमांच हुआ ।
क्योंकि वीना वीरा ज्यादा सुन्दर नहीं थी इसलिये उनसे बात करने मे झिझक नहीं होती थी । धरम कभी कभी उन्हें कॉलेज के बरामदे मे रोक कर उनके बातें कर लेता था । वो हमेशा बातों का आनन्द लेने वाली लड़कियां थीं । पर गीता इतनी खूबसूरत थी कि बात करने की हिम्मत ही नहीं होती थी ।
एक दिन एक खूबसूरत सा लड़का कॉलेज मे आया और वीना वीरा से बरामदे मे खड़े होकर बाते करते हुए दिखायी दिया । स्लिम, स्मार्ट शर्ट पैंट पहने हुए और जैकेट जिसे जरकिन कहते थे जो कूल्हों पर टाइट होती थी पहने हुए था । एक हाथ उसने बरामदे के गोल पिलर पर टिका रखा था और एक पांव को कैंची बनाकर दूसरे पांव की तरफ मोड़ कर टिका रखा था । वीना वीरा दोनों उसके सामने खड़ी होकर नज़रे ऊँचा करके बात कर रहीं थीं । जितना इन्टीमेट होकर नजदीक से वो बात कर रहा था उतना तो धरम ने कभी नहीं की थी । उसके मन मे इर्ष्या का भाव आ गया । ब्रिजपाल का भी कुछ ऐसा ही हाल था ।
एक दिन ब्रिजपाल धरम से बोला:
“वीना वीरा के घर चलते हैं । मैने पता लगा लिया है कि ये कहां रहती हैं ।” धरम तुरन्त तैयार हो गया ।
ब्रिजपाल कॉलेज से कई किलोमीटर दूर एक गांव से आता था । रोजाना पांच छै किलोमीटर साईकिल से आना जाना उसका डेली का रुटीन था । वीना वीरा ब्रिजपाल के गांव के रास्ते में पड़ने वाली नयी बसी गाँधी कॉलोनी मे रहती थीं । कॉलेज तो तीन बजे खत्म हो जाता था तो तय हुआ कि यहीं से चलेंगें । तय किये दिन वीना वीरा कॉलेज नहीं आयी थी तो दोनों दोस्तों ने सोचा कि तुरन्त चलें तो घर पर ही मिल जायेंगी । दोनों साईकिल पर चल पड़े । ब्रिजपाल चला रहा था और धरम कैरियर पर बैठा था । करीब आधे घंटे मे गाँधी कॉलोनी जा पहुंचे । ये पाकिस्तान से आये रिफ्जीज़ के मिले प्लाट्स पर प्लानिंग से बसी थी । यहां ज्यादातर मकान एक मंजिल के थे । ये मेन शहर से साफ सुथरी कॉलोनी थी । कॉलोनी की सड़कें भी चौड़ी रखी गयी थीं हालांकि ये खड़जें नुमा स्टाइल में इंटों से बनी थी जिनमें दोनों तरफ पानी की निकासी की नालियां बनी थीं । ज्यादातर लोगों ने सड़क से दरवाजे की चौखट तक नालियों के ऊपर ब्रिजनुमा पैड़ियां बनाई हुई थीं ताकि नाली को नीचे बहने मे कोई रुकावट न हो । पैड़ियों के बीच मे एक रैम्प भी बना था जो साईकिल या स्कूटर को घर के अन्दर लाने ले जाने मे सुभीता करता था ।
ब्रिजपाल ने नम्बर से घर को पहचान लिया । धरम ने बाहर के दरवाजे पर संकल को खड़काया । थोड़ी देर बाद एक दस ग्यारह साल के लड़के ने दरवाजा खोला और पूछा कि किससे मिलना है । धरम ने पूछा वीना वीरा यहीं रहती हैं ना । जब उसने हां कहा तो धरम ने कहा:
“उनको बुला दे ! बोलना कॉलेज से धरम आया है ।” लड़का सुनकर चला गया ।
थोड़ी ही देर बाद वीना और वीरा दोनों आयीं और दरवाजे पर खड़े होकर ही बात करने लगीं । अपनी नेचर के अनुसार दोनों मुस्कुरा रही थीं ।
“देखो हमने आपका घर ढूंढ ही लिया । बहुत दिन से सोच रहे थे तुम्हारे घर आकर तुमसे बात करने की ।” धरम ने वीना वीरा की तरफ देखकर कहा । ब्रिजपाल अपनी साईकिल दीवार के सहारे लगाकर धरम के बराबर आकर खड़ा हो गया था ।
“कौन कौन है घर मे?” - धरम ने पूछा । मकसद तो महज़ बात को आगे बढ़ाना था ।
“मम्मी पापा हैं और हम दो बहने हैं । भाई बम्बई मे मौसी के पास रहकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है ।” कुछ देर चुप रहकर वो पिर बोलीं - “यहां हमारे पास एक कमरे का सैट का छोटा सा मकान है और मकान मालिक भी यहां रहते हैं । एक दूसरे एक कमरे के सैट मे एक और किरायेदार हैं । हर समय बच्चों की धमा चौकड़ी मची रहती है ।” - वीना वीरा ने बताया ।
बाहर खड़े रहकर बात करने की बात समझ आ गयी थी । ऐसे ही ब्रिजपाल और धरम इधर उधर की कॉलेज और पढ़ाई की बातें करते रहे । पन्द्रह बीस मिनट गुजरे थे कि धरम ने देखा कि दो गुंडे टाइप लड़के गली मे चलकर उनकी तरफ आ रहे थे और उनके पास से गुजरते हुए उन्होंने धरम की तरफ इशारे से दोनों दोस्तों को बुलाते हुए बोले:
“ए लौंडे! ऐ लोंडे! इधर आ ।” कहकर धीरे धीरे आगे चलते रहे । उन्होंने वीना वीरा की तरफ देखा तक नहीं ।
दोनों बहने तुरन्त घर मे घुस गयीं और दरवाजा बन्द कर लिया । धरम और ब्रिजपाल दोनों उन गुंडों के पास गये तो उन दोनों ने आव देखा न ताव दोनों धरम और ब्रिजपाल पर पिल पड़े ।
“मौहल्ले मे आकर आश्की करता है । फिर कभी यहां दिखायी दिया तो हड्डी पसली तोड़ दूंगा।” दोनों गुंडों मे से एक मारते मारते बोलता जाता ।
धरम और उसका दोस्त ब्रिजपाल बचाव की मुद्रा मे थे और उनकी मार से बचने मे सफल भी हुए । चांटा तो कम से कम दोनों मे से किसी ने नहीं पड़ने दिया । पर गुंडों ने तीन चार हाथ सर के पीछे और गरदन पर जरूर जड़ दिये थे ।
धरम और ब्रिजपाल दोनों तो ठहरे विशुद्ध रोमांटिक टाइप लड़के लड़ाई झगड़े के नाम से भी डरने वाले । दोनों भाग कर जान बचाने लगे गुंडों से । ब्रिजपाल वापस गया और उसने तुरन्त साईकिल उठायी और दौड़कर गद्दी पर सवार हो गया । धरम भी पीछे भाग रहा था और दौड़कर कैरियर पर पीछे बैठ गया । पर दोनों गुंडों ने उनको डराकर अपना काम कर दिया था इसलिये वो पीछा करने नहीं आये । दोनों दोस्त जानते थे कि उन गली के गुंडों की और कोई चिन्ता नहीं थी सिवाय इसके कि मुहल्ले की लड़की से कोई बाहर का लड़का बात ना करे या उन्हें ना पटाये । हर गली मुहल्ले मे ऐसे गुंडे होते हैं । गली मुहल्ले को ये लोग अपनी टैरीटरी समझते थे और बाहरी लड़के आकर गली मुहल्ले की लड़कियों से बात करें या उन्हें पटाये ये उन्हें मंजूर नहीं होता है । हिन्दुस्तान मे तो कम से कम ऐसे ही होता है ।
अगले दिन कॉलेज मे गये तो बस कुछ नॉर्मल था । वीना वीरा वैसे ही मुस्कुरा के मिलीं । जैसे कुछ असामान्य हुआ ही नहीं था । धरम जान बूझकर दोनों के पास होकर निकला था क्योंकि कल हुई घटना से थोड़ा आशंकित था कि पता नहीं दोनों बहनों के व्यवहार मे क्या बदलाव मिले । पर उनके मुस्कुरा कर मिलने और घटना का जिक्र तक ना करने से धरम आश्वस्त हो गया । ब्रिजपाल कुछ शर्मिन्दा जरूर था धरम से क्योंकि पूर्ण रुप से वीना वीरा के घर जाने का आइडिया उसी का था । धरम ने उसे सहज करने की कोशिश करते हुए समझाकर कहा:
“यार! देख ऐसा है कि कल जब तक हम उन गुंडों के पास पहुंचे वीना वीरा घर मे घुसकर दरवाजा बन्द कर चुकी थीं और लगता है उन्होंने हमे पिटते नहीं देखा । वैसे भी प्यार मोहब्बत में पिटाई छिताई तो हो जाती है । इसमें काहे की शरम ।” - ब्रिजपाल को धरम की बात समझ में आ गयी । जब वो सहज हो होकर मुस्कुरा रहा था ।
“हां! ये बात तो ठीक है । हमे पिटते नहीं देखा दोनों ने वरना आज कुछ तो बदली हुई दिखायी देती । शुक्र है बेइज्जती होते होते रह गयी ।” - ब्रिजपाल हंसते हुए बोला ।
“हां! बिल्कुल । बेइज्जती होती तो मुंह दिखाने लायक ना बचते ।” धरम ने कहा ।
विजी की शादी के बाद उसकी छोटी बहन मीनू अक्सर मिलने धरम के पास आ जाती थी । क्योंकि दो क्लास पीछे थी तो पढ़ाई मे कुछ प्रॉब्लम हो तो पूछ लेती थी । वैसे भी अकेली पड़ गयी थी क्योंकि सबसे बड़ी बहन संतोष का तो आमतौर पर सारा दिन स्वामी जी के आश्रम मे ही निकल जाता था । स्वामी जी के आश्रम मे रोजाना तीस चालीस आदमियों का खाना बनता था । अक्सर संतोष तो वहींं खाना खा लेती थी और मीनू के लिये भी ले आती थी । नहीं लाती तो संतोष को घर आकर बनाना पड़ता था । जब तक विजी थी तो कोई समस्या नहीं थी क्योंकि खाना बनाना, साफ-सफाई करना या कपड़े धोना सब वो ही करती थी । धरम भी आश्रम मे चला जाता था जबसे विजी और मीनू के साथ उनके मकान मे रहना शुरु किया था । डोभाल जी का मकान छोड़ने के बाद भी आश्रम मे आता जाता रहता था । ऐसे मे संतोष से भी मुलाकात हो जाती थी । पर उससे मुलाकात होने का कोई मतलब नहीं होता था क्योंकि वो हमेशा खामोश रहती थी । स्वामी जी के आश्रम का खाना देशी घी मे बना बेहद स्वादिष्ट होता था । किसी चीज की कमी तो थी नहीं आश्रम को । साल मे लाखों रुपया दान मे आता था । खुलकर खर्च भी उसी हिसाब से होता था । धरम भी जब यदा कदा आश्रम मे जाता तो खाना खा ही लेता था । घर मे चाचा जी खाना बनाते थे वो स्वादिष्ट होता था पर आश्रम के खाने की बात ओर ही थी ।
क्रमशः