अल्हड़ लड़की गीता (भाग-2) Shiv Shanker Gahlot द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अल्हड़ लड़की गीता (भाग-2)


अल्हड़ लड़की गीता


भाग-2


हरिद्वार नेशनल हाइवे नम्बर-58 पर स्थित है जो रुड़की ज्वालापुर की ओर से आकर हरिद्वार होते हुए ऋषिकेश की तरफ जाता है । हरिद्वार शहर इसी रोड के दोनों तरफ एक बड़े गलियारे नुमा डिजाइन मे बसा है जिसके एक तरफ गंगा नदी और दूसरी तरफ पहाड़ी से सट कर जाने वाली रेलवे लाइन है । नेशनल हाइवे पर सबसे पहले हरिद्वार का रेलवे स्टेशन पड़ता है और आगे यही रोड हरिद्वार के बाजार और हर की पड़ी के किनारे से से होते हुए ऋषिकेश को जाती है । ब्रिगेडियर कॉलोनी इस गलियारे से थोड़ा हटकर बसी थी जो रेलवे लाइन की सीमा के बाहर थी । मेन रोड़ और इस कॉलोनी के बीच हरिद्वार ऋषिकेश रेलवे लाइन पड़ती है । रेलवे लाइन के नीचे बने अन्डरपास से गुजर कर कॉलोनी पहुंचा जा सकता था ।


ब्रिगेडियर कॉलोनी से मनसा देवी रोड हरिद्वार की मेन रोड को क्रॉस करके गंगा घाट की तरफ चली जाती है । गंगा घाट के बराबर बने पुल के जरिये यही रोड गंगा पार तक जाती है । गंगा किनारे से कुछ पहले इस रोड से एक छोटी रोड बायें को मुड़ती थी । ये रोड कम चौड़ी है जिसके दोनों तरफ रिहायशी मकान, धर्मशालाएं, होटल और ढाबे आदि हैं । आगे जाकर प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक रामानंद सागर की हरि गंगा हवेली है जो होटल मे कन्वर्ट हो गयी है । परन्तु इस रोड की लगभग शुरुआत मे ही दाहिनी तरफ लड़कियों का इंटरमीडिएट कॉलेज है जिसमें विजी और मीनू पढ़ती थीं । जब गरमी की छुट्टियों के बाद कॉलेज खुल गये तब धरम एक बार उत्सुकता वश इस कॉलेज मे गया था विजी को देखने । ये सरकारी कॉलेज था । कॉलेज का गेट खुला था और अन्दर जाकर देखा कि तीन तरफ बच्चों के पढ़ने के कमरों की लाइनें थी । धरम की निगाहें विजी को ढूंढ रही थीं । धरम को मालूम नहीं था कि उसका क्लासरूम गेट मे घुसते ही सामने पड़ता था । विजी ने धरम को खड़े हुए देख लिया था और वो अपने क्लासरूम के दरवाजे पर आकर खड़ी हो गयी । धरम ने भी उसे देख लिया । वो धरम को देखकर खुश हो गयी थी और हमेशा की तरह मुस्कुरायी और उसकी छोटी आंखें मिच गयीं । धरम की भी विज्जो को उसके कॉलेज मे ड्रैस मे पढ़ते देखने की तमन्ना पूरी हो गयी । विजी क्लास छोड़ कर धरम के पास आ गयी और बोली :


“आज कैसे कॉलेज आ गये धरम ।” - वो आधा हंस रही थी और आधा मुस्कुरा रही थी । उसकी आंखें मिच गयीं थी । कॉलेज ड्रैस मे बहुत सुन्दर लग रही थी ।


“तुम्हें देखने ही तो आया हूँ । दिल था कि देखूं तुम्हारा कॉलेज कहां है ।” - धरम बोला । वो विजी, उसके स्कूल, उसकी मुस्कुराहट के आलम मे रोमांस मे डूबा जा रहा था । इतनी देर मे क्लास शुरू होने की घंटी बज गयी । विजी ये कहकर पीछे दौड़ पड़ी :


“अच्छा धरम! शाम को मिलते हैं ।”


कुछ दिनों के बाद जब डोभाल साहब घर वापस आये तो किसी पड़ौसी ने उन्हें धरम के बार बार बाथरूम में घुसने की बात बताकर इसे स्कैंडल का रूप दे दिया । उस पड़ोसी का मकान नीचे की तरफ था वहां से डोभाल साहब का मकान दिखाई देता था । डोभाल साहब सुनकर परेशान हो गये । वैसे भी लड़कियां अकेली रहती थीं और वो उनको लेकर चिन्तित रहते थे । घबराहट के क्षणों मे डोभाल साहब ने विजी की शादी करने का निर्णय ले लिया हालांकि अभी उसकी पढ़ने लिखने की उम्र थी । कुछ ही दिनों की भाग दौड़ के बाद डोभाल साहब ने विजी की शादी देहरादून मे किसी दुकान करने वाले लड़के से तय कर दी । हरिसिंह बाबू से उन्होंने मकान खाली करा लिया । हरिसिंह बाबू ने आनन फानन मे दो मंजिल नीचे दूसरे मकान मे वन बेडरूम-कम-ड्राइंगरूम सैट किराये पर लेकर शिफ्ट कर लिया । धरम को दुख तो बहुत हुआ पर क्या किया जा सकता था । फिर भी उसे तसल्ली की कि वो अभी विजी के आस पास ही था ।


कभी कभी विजी नज़र आ जाती थी । कॉलेज आने जाने का रास्ता तो वहीं से होकर जाता था । धरम रास्ते पर नज़र रखता ताकि आते जाते विजी को देख सके । अक्सर वो नजर आ ही जाती थी और नजरे भी मिल जाती थीं । पर जो स्कैंडल बन गया था उसको देखते हुए मिलना मुश्किल था।


धरम ने गवर्नमैंट इंटर कॉलेज, हरिद्वार में दसवीं क्लास में एडमिशन ले लिया था । ये गवर्नमैंट इंटरमीडिएट कॉलेज था जो शहर के बीचो बीच था । हरिद्वार ऋषिकेश मुख्य मार्ग से एक छोटी सड़क ढलान से उतरती है और थोड़ा सा चलते ही दाहिनी ओर मुड़ जाती है । उस मोड़ से सड़क सीथी गंगा घाट चली जाती है जहां गंगा पार करने का बड़ा और सबसे पुराना पुल बना है । गंगा घाट आने से थोड़ा पहले दाहिनी तरफ एक सड़क मुड़ती है जिस पर थोड़ा चलकर दाहिनी तरफ गवर्नमेंट इंटर कॉलेज स्थित है । ये को-एड कॉलेज था जिसमे लड़को की संख्या ज्यादा थी और हर एक सैक्शन मे दो चार दस लड़कियां थीं । धरम की क्लास कॉलेज के गेट मे घुसते ही दाहिनी तरफ कमरे मे लगती थी । कालेज मे चारों तरफ क्लास रूम्स थे और सामने की कमरों की लाइन मे कोने पर प्राधानाचार्य साहब का ऑफिस था । उसी के बाहर एक तिकोने स्टैंड पर एक पीतल का चपटा घंटा लटका था जिसे प्रिंसिपल साहब के कमरे के बाहर बैठा चपरासी लकड़ी के हथौड़े से टन टन बजाकर पीरीयड शुरू होने और खत्म होने का ऐलान करता था ।


धरम की क्लास में गीता नाम की एक लड़की पढ़ती थी जिसका चेहरा गोल और रंग गोरा था । उसका शारीरिक सौष्ठव पुष्ट और सुन्दर था । उसके दांत चांदी के चमकते तार से बंधे थे मतलब दांतों मे चांदी का ब्रेसिस लगा था । वो बड़ी स्वीट थी और मुस्कराते हुए बड़ी सुन्दर लगती थी । थोड़ी चुलबुली और शरारती थी और स्टूडैंट्स को छेड़ती रहती थी । धरम का भी एक बार हंसकर पैन छीन कर ले गयी थी । ये उसकी मीठी शरारतें थी जो मन को लुभाने वाली थीं । वो किसी उच्च परिवार की थी । परन्तु सहपाठियों के साथ शरारतें करने मे उच्च परिवार से सम्बन्ध होने की वजह से श्रेष्ठता का भाव नहीं था । उसकी शरारतें साफ मन से की जाती थीं । वो किसी राज परिवार से सम्बन्ध रखती थी ऐसा धरम ने कॉलेज मे दूसरों से सुना था ।


धरम की क्लास मे उसका एक दोस्त ब्रिज पाल था जो उसके साथ उस डेस्क पर बैठता था । दोनों दोस्त जिस डेस्क पर बैठते थे वो बीच की लाइन मे थी । ब्रिजपाल के चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रहती हालांकि उसका चेहरा चेचक के दागों से भरा हुआ था और उसकी आंखे कुछ छोटी थी पर उसका रंग चमकदार गेहुंआ था । उसके सर के बाल छोटे थे जो हमेशा बेतरतीब दिखते थे । परन्तु उसकी मुस्कुराहट चेहरे की सभी नेगेटिव चीजों को ढक देती थी । नेचर से वो भी धरम की तरह रोमांटिक था । पर सब स्टूडेंट्स के लिये तो वो महज़ चेचक के दागों से भरे चेहरे वाला लड़का था । रोमांस की अकाक्षाओं को पूरा करने को वो धरम के साथ रहता और उसका हमराज बना हुआ था । लड़कियों के बारे में बातें वो धरम से शेयर करता रहता था । कौन लड़की अच्छी लगती है कौन क्या करती है पढ़ने मे कैसी है आदि ।


इसके अलावा धरम का एक और दोस्त सुशील था जो बनिये व्यापारी का लड़का था । जिस चौक मे शहर की रामलीला होती थी वहीं पर उनकी अनाज की दुकान थी । दुकान पर ज्यादातर उसका बड़ा भाई बैठता था । सुशील हल्के फुल्के शरीर वाला छोटे कद का सांवला लड़का था । उसकी स्माइल भी स्वीट थी और वो दिल का अच्छा था हालांकि देखने मे उतना आकर्षक नहीं था जो देखने वाले पर एक नज़र मे प्रभाव डाल सके । धरम और उसके दोनों दोस्त गीता को अपनी ओर आकर्षित करना चाहते थे ।


ब्रिजपाल और सुशील दोनों की लड़कियों के मामले मे अपनी सीमाएं थी क्योंकि लड़की को आकर्षित करने के लिये जो चेहरा मोहरा आदर्श माना जाता है वो उनके पास नहीं था । आदतें और व्यवहार से भी लड़कियां आकर्षित होती हैं पर उनका एहसास किसी लड़की को देर से होता है । इसलिये दोनों ने धरम का सहारा ले रखा था । ये कुछ कारगर भी हुआ था । जहां तक गीता की बात थी तो उनमे से किसी ने कभी भी गीता से बात नहीं की और ना ही उन्हें समझ आता का कि उसे आकर्षित करने के लिये क्या करना चाहिये । कम से कम पहले गीता से बात करने की पहल की जानी चाहिये थी । दूसरे धरम को नहीं लगता कि उनके अन्दर इतनी हिम्मत थी कि कोई बात कर सकें । पर आकर्षण तो था । कहीं से पता लगा कि किसी लड़की को आकर्षित करने के लिये यदि सुहागरात के खून से सने कपड़े और कव्वे की जीभ को जलाकर जो राख बने उसे लड़की के ऊपर फेंकने से लड़की आकर्षित हो जाती है । बस तो वो तीनों इस प्रयास मे लग गये । खून से सने कपड़े तो कूड़े के ढेर मे जगह जगह पड़े होते थे । वो समझते थे कि ये सुहागरात के ही होंगें । उनको ये पता ही नहीं था कि ये कपड़े रुटीन महीनावार रक्तस्राव के भी हो सकते हैं । पर उन्होने कूड़े मे मिले उन कपड़ों को सुहागरात वाले ही मान लिया था । सवाल था कि कव्वे की जीभ कैसे हासिल हो । काफी दिनों की दौड़ धूप के बाद भी कव्वा या उसकी जीभ किसी तरह भी हासिल नहीं हुई । क्योंकि जिन्दा कव्वा पकड़ना तो असंभव था और मरा कव्वा कहीं नज़र नहीं आया । जब कुछ नहीं हुआ तब आखिरकार उन्हे अपना ये प्रयास बन्द करना पड़ा ।


धरम पढ़ने मे बहुत तेज था । खासकर मैथ्स मे । निर्मेय और प्रमेय वो एक बार मे ही क्लास मे टीचर के पढ़ाने से समझ जाता है । मैथ्स के टीचर ने उसकी क्षमता को जानकर सराहना की और जब भी क्लास मे एक बार पढ़ाते तो दोहराने के लिये धरम को ही ब्लैक बोर्ड पर करने को कहते । और धरम कभी कर न पाया हो ऐसा हुआ नहीं था । रामचन्दर शर्मा मैथ्स के टीचर थे और साथ ही साथ क्लास टीचर भी । धरम क्लास मे बीच वाली लाइन मे बैठता था । रामचन्दर शर्मा जी ने उसकी सीट बदल कर सबसे आगे की डेस्क पर करा दी । इसी डेस्क पर गीता भी बैठती थी । धरम की तो खुशी का ठिकाना नहीं था । गीता की सुन्दरता से वो प्रभावित था ही और इतना करीब बैठने का मौका मिलने के कारण रोमांच से भर उठा था । एक तो वो सुन्दर बहुत थी दूसरे किसी उच्च कुलीन रॉयल परिवार से थी तो बात करने मे होठ कांपने का डर था इसलिये अपनी तरफ से कभी बात नहीं की । परन्तु गीता का मैथ्स इतना अच्छा नहीं था तो कुछ न कुछ बीच बीच मे पूछना शुरु कर देती थी । धरम को उसके पूछने पर मन ही मन बड़ी खुशी होती हालांकि टीचर जब पढ़ा रहे होते तो ध्यान भंग हो जाता था । अब अगर टीचर कहे कि दुबारा ब्लैक बोर्ड पर कर दो तो बेइज्जती हो सकती थी । खैर बड़ी मुश्किल से धरम ने विपरीत परिस्थिति मे तारतम्य बनाया हुआ था । धरम खुश था कि गीता से अब रोजाना बात हो जाती थी । धरम के दोनों दोस्त भी खुश थे कि धरम ने एक मंजिल पार कर ली थी । जब भी मौका मिलता वो धरम को रोक कर उससे गीता के विषय मे बात पूछते । कुछ खास बात बताने को तो थी नहीं सिवाय पढ़ाई लिखाई के विशेष रूप से मैथ्स के । धरम जो भी बात होती बता देता था । स्कूल खत्म होने के बाद एक दिन धरम ने अपने दोनों दोस्तों का परिचय गीता से करवाया ।


“हां मै आप दोनों को जानती हूँ । नाम आज धरम ने बताया तो पता चला । ग्रेट मीटिंग यू ।” - कहकर गीता ने दोनों से हाथ मिलाया । दोनों बड़े खुश हुए ।


“अच्छा चलती हूँ ।” - कहकर गीता धरम से हाथ मिला कर चल पड़ी ।


क्रमशः