Allhad Ladki Geeta - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

अल्हड़ लड़की गीता (भाग-3)

अल्हड़ लड़की गीता


[भाग-3]


धरम नहीं जानता था कि गीता का घर कहां है । एक दिन वो ब्रिगेडियर कॉलोनी से निकल कर अपने चाचा जी के ऑफिस गंगा पार लालजीवाला डैम परिसर की तरफ जा रहा था । कॉलोनी से निकल कर मेन रोड और मंडी के रास्ते गंगा के पुल तक जाना था । रास्ते मे शहर के बीचों-बीच सिविल लाइन्स का पॉश इलाका पड़ता था जहां बड़ी-बड़ी कोठियां थीं । ये साफ सुथरी कॉलोनी थी जहां सीमेंट कंक्रीट से बनी सड़कें चौड़ी थीं । धरम चला जा रहा था कि अचानक किसी ने पीछे से उसे पकड़ लिया और धरम के पीछे ऐसे छिप गया कि देखा ना जा सके । हंसते हुए उसने पूछा :


“बताओ कौन ।” आवाज़ लड़की की थी और लगता था गीता की है । फिर भी धरम ने कहा :


“गीता हो ?” । गीता की खिलखिलाने की आवाज़ आयी । पीछे मुड़कर देखा तो गीता हंसे जा रही थी । अचानक इस पकड़ने और गीता को यूँ खिलखिला कर हंसते देख धरम भौंचक्का रह गया । पर गीता के पकड़ने से वो रोमांस की तरंगें महसूस कर रहा था । उसके पूरे शरीर मे कंपन हो रहा था । उसके मुंह से आवाज़ नहीं निकल पा रही थी ।


“आज तो पकड़ लिया । कहा जा रहे हो ।” गीता की हंसी बंद नहीं हो रही थी । उसकी उन्मुक्त हंसी और छेड़छाड़ मे एक मासूमियत थी ।


“मै चाचा जी के पास जा रहा हूँ उनके ऑफिस में ।” - धरम ने जैसे तैसे होश संभालते हुए जनाब दिया ।


“तुम यहाँ कैसे? क्या यहीं रहती हो ?” धरम ने हिम्मत जुटाते हुए पूछा ।


“हां ! यही तो हमारा घर है ।” - उसने पीछे छूट गयी कोठी की तरफ इशारा करते हुए कहा । वो धरम का हाथ पकड़कर खींचते हुए वहां ले गयी । धरम ने देखा कि ये दूसरी कोठियों से बहुत बड़ी थी और इसका गेट लोहे का विशालकाय गेट था जिस पर सुरक्षा कर्मचारी तैनात था । गेट थोड़ा खुला था जहाँ से गीता धरम को अन्दर ले गयी । एक तरफ घास का लॉन था और दूसरी तरफ बनी क्यारियों में फूल खिले थे । बीच का पैसेज कोठी के पोर्च तक जाता था । गीता धरम को घास वाली साइड मे लेकर गयी जहां बैडमिंटन कोर्ट सजा था । नैट लगा हुआ था और साइड मे चेयर रखी थीं । दोनों जाकर चेयर पर बैठे और बातें करने लगे ।


“आपका घर तो बहुत बड़ा है और खूबसूरत भी” - धरम ने पहले कोठी की तरफ देखा और फिर गीता की तरफ मुस्कुराते हुए कहा ।


“हांं! बड़ा तो है । पर लक्ष्मणगढ़ का घर ना बहुत बड़ा है ।” - बहुत बड़ा कहते हुए उसने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर बताया ।


“वहां घोड़े भी हैं । पहले हाथी भी होते थे । मै ना जब छोटी थी तो रोज घोड़े की सवारी करती थी । पर यहां आकर घोड़े की सवारी छूट गयी“ - गीता ने आगे बताते हुए कहा । धरम से बात करते हुए वो बड़ी उत्साहित लग रही थी ।


“अच्छा! फिर तो तुम्हारे राजकुमारी वाले ठाठ थे” - धरम ने मुस्कुराते हुए कुछ छेड़ने के अन्दाज़ मे कहा ।


“ठाठ तो थे पर बाहर के बच्चों से मिलना नहीं होता था । यहां कॉलेज मे और आस पास शहर मे सबसे मिलना होता है तो बहुत अच्छा लगता है । वहां तो अन्दर ही रहते थे । ट्यूटर भी घर आकर ही पढ़ाती थी।” - गीता ने जवाब दिया ।


“डैडी ने ऋषिकेश से ऊपर पहाड़ी पर नरेन्द्र नगर के पास पाइनवुड्स लग्ज़री रेज़ॉर्ट बनवाया है उसकी देखरेख के लिये यहां ये घर बनाया था । डैडी यहां आये तो मम्मी और मुझे तो साथ आना ही था । तो आ गये ।”


गीता की ये कोठी सफेद पत्थरों से बनी बड़ी भव्य थी जिसके पोर्च मे लग्ज़री शेवरले कार खड़ी थी । तरतीब से कटी हरे रंग की घास के मैदान, बाउंड्री वॉल के साथ अशोक के पेड़ और फूलों की सघन बगिया के खिले फूलों ने यहां की सुन्दरता को एक नया आयाम दे रखा था ।


“बदरी ! जरा अन्दर से रैकिट लाना ।” - गीता ने नौकर बदरी को आवाज़ लगाकर कहा । बदरी अन्दर गया और दो बैडमिंटन रैकिट लाकर टेबल पर रख गया ।


“आओ धरम बैडमिंटन खेलते हैं ।“ - गीता ने कहा और बिना जवाब का इंतजार किये रैकिट धरम के हाथ मे पकड़ा दिया ।


“मुझे कहां खेलना आता है ।” - धरम बोला ।


“कोई बात नहीं । खेलो ! गेम नहीं वैसे ही खेलेंगे।” - हंसते हुए उसने धरम को पीछे से धकेलते हुए कोर्ट मे भेज दिया । खुद सामने पहुंच गयी खेलने । धर्म को ना खेलने का पता था और ना ही प्रैक्टिस थी । थोड़ी देर इधर-उधर शॉट जरूर लगाये । पर कई बार शटल-कॉक रैकेट के बराबर से निकल जाती । दस पन्द्रह मिनट ही खेले कि गीता धरम का हाथ पकड़ कर कोठी के अन्दर ले गयी । ड्राइंगरूम मे जैसे ही घुसे धरम देखकर चौंक गया । कमरे मे मंहगे कालीन बिछे थे और दो अपहोल्स्टर्ड सोफा सैट सजे थे जो शायद इटैलियन रहे होंगे । ये बेहतरीन नक्काशी की गयी रोज़ वुड के बने थे । इसी के सैट की दो सेंटर टेबल और कई साइड टेबल्स थीं । ऊपर बीच मे एक बड़ा फानूस लगा था और साइड मे दो छोटे फानूस थे । गीता ने नौकर को बोलकर फानूस की लाइट जलवा दी । कमरे मे सूर्य की रोशनी जैसा उजाला हो गया । गीता धरम के आने से खुश थी इसलिये उसके स्वागत में जोरदार रोशनी की थी ।


“चलो धरम! मम्मी से मिलवा दूँ ।” बांह पकड़ कर धरम को सोफे से उठाया और बायें साइड के दरवाजे से अन्दर ले गयी । इस कमरे की साज सज्जा भी राजमहल के कमरों जैसी ही थी । कमरे मे एक ओवर साइज़ रॉयल बैड था और एक तरफ लग्ज़री सोफा सैट था । बैड के दोनों सिराहने की तरफ साइड लैम्प्स रखे थे जो सुनहरे रंग के शेड्स सुनहरे रंग की ही झालर के साथ शोभायमान थे । दूसरी तरफ कोने मे स्टडी टेबल भी थी जिस पर तरतीब से किताबों का ढेर लगा था जो पढ़ने के शौकीन लोगों की पहचान है । गीता की मम्मी सोफे पर बैठी हुईं थीं । वो एक छरहरे बदन की लम्बे कद की महिला थीं । उनका रंग बिल्कुल गीता जैसा गोरा और चेहरा कुछ गोल सा था । उनकी आंखें बड़ी, चमकदार और काली थीं । नाक बड़ी सुंदर और सुडौल थी । रॉयल्टी के साथ-साथ विद्वता उनके चेहरे से टपक रही थी । किताब, जो वो पढ़ रहीं थीं, उन्होंने बिना बंद किये उलट कर सामने टेबल पर रख दी और गीता को देखकर मुस्करायी । गीता सीधे जाकर मम्मी के गले मे झूल गयी और बोली - “देखो मम्मी ! कौन आया है ।”


“कौन बेटा ?“


“मम्मी ये धरम है । मैंने बताया था ना वही।”


“धरम क्लास मे मेरे साथ बैठता है । मम्मी! धरम मैथ्स मे बहुत तेज है । चुटकियों मे हल कर देता है । मुझे भी ये ही समझाता रहता है ।”


“धरम! ये मम्मी है “ - गीता ने धरम की तरफ देखते हुए कहा । सुनकर धरम ने गीता की मम्मी को दोनों हाथ जोड़ कर नमस्ते कहा ।


“आओ बेटा!” - उन्होंने धरम को अपने पास सोफे पर बैठने को कहा ।


“बेटा ! तुम कहां रहते हो?“ - गीता की मम्मी ने पूछा ।


“रेलवे लाइन के उस पार ब्रिगेडियर कॉलोनी मे ।”- धरम सकुचाते हुए बोला । भला इस महल जैसी कोठी के मुकाबले उनके मकान की क्या हैसियत थी ।


ब्रिगेडियर कॉलोनी मेन हरिद्वार शहर के बाहरी इलाके मे थी । ये शहर की मुख्य सड़क एनएच-58 से मनसा देवी के मन्दिर जाने वाले रास्ते में बायीं तरफ पड़ने वाली पहाड़ी पर बसी थी । निम्न मध्यवर्ग के लोगों ने यहां पहाड़ी पर ऊपर नीचे स्टेप्स मे बने मकानों रहते थे ।


“और कौन कौन हैं घर मे ?”- उन्होंने पूछा ।


“मां, पिता जी और भाई-भाभी सब मुज़फ़्फरनगर मे रहते हैं । बहनें अपने परिवारों में वहीं गांवों में रहतीं हैं । यहां चाचा जी के पास रहता हूँ । मेरे चाचा जी हरिसिंह बाबु सिंचाई विभाग मे नौकरी करते हैं ।” - धरम ने जवाब दिया ।


“गीता बेटा ! धरम को आइसक्रीम खिलायी? या सिर्फ बातें ही कर रही हो इतनी देर से” - रानी मां, गीता की मम्मी को यही कहकर बुलाया जाता था, ने गीता की तरफ देखकर कहा ।


“मम्मी! मै धरम से मैथ्स पढ़ूंगी । क्यों धरम ! पढ़ाओगे ना?“ - गीता ने धरम की तरफ देख कर कहा ।


“हां! हां! क्यों नहीं । जरूर ।” - धरम ने कहा । वो तो हतप्रभ था गीता के पढ़ाने की बात से । मतलब था अकेले मे गीता का साथ ।


“धरम बेटा! तुम आते रहा करो । गीता तुम्हारी बहुत तारीफ कर रही थी । साथ साथ पढ़ भी लेना । गीता तुमसे पढ़ने मे खुश रहती है ।” - रानी मां ने कहा । धरम को मैथ्स से कुछ दिक्कत नहीं थी । हालांकि वो कोठी के रॉयल वातावरण मे कुछ असहज था । पर इसे काफी कुछ तो गीता के व्यवहार ने और रहा सहा रानी मां के आत्मीय व्यवहार ने सहज कर दिया था ।


“चलो आइसक्रीम खाते हैं ।” गीता ने रानी मां के सामने धरम का हाथ पकड़ा और खींचकर ड्राइंगरूम की तरफ ले चली । दानवती नाम की नौकरानी को आइसक्रीम लाने को कहकर सोफे पर धरम के पास आकर बैठ गयी । दानवती ट्रे मे दो फ्रैंच कट-ग्लास डैज़र्ट बॉउल मे आइसक्रीम ले आयी । ये बड़े करीने से बॉउल मे रखी थी और ऊपर चेरी सजी थी । छोटे साइज़ के सुनहरे चम्मच बॉउल मे रखे हुए थे । ट्रे से एक बॉउल उठाकर गीता ने धरम की ओर बढ़ा दिया । दूसरा गीता ने उठा लिया । दोनो आइसक्रीम का आनंद लेने लगे ।


आइसक्रीम खाकर धरम चलने के लिये उठा । चाचा जी के पास जाना था और देर हो रही थी । हालांकि धरम के लिए गीता के साथ नज़दीकी से ज्यादा मूल्यवान कुछ नहीं था । और आज तो भगवान ने छप्पर फाड़ कर गीता का साथ दे दिया था । जिस तरह से गीता ने नजदीकी और बेबाकी दिखाई वो अचंभित करने वाली थी । वो तो धरम के लिये मन मांगी मुराद थी । असली अचंभा तो था दोनों की नजदीकी देखकर रानी मां बिल्कुल भी विचलित नहीं हुई । बल्कि रानी मां ने तो धरम के साथ अपनों जैसा व्यवहार कर धरम को और भी विस्मय मे डाल दिया था ।


गीता ने धरम को कहा कि ड्राइवर तुम्हें छोड़ देगा जहां जाना है । धरम ने मना कर दिया । धरम बोला:


“यहां से ज्यादा दूर नहीं है लालजीवाला डैम । दूसरे बीच मे गंगा का पुल है जिस पर गाड़ी नहीं जा सकती । गाड़ी को कई किलोमीटर का चक्कर लगाकर पहुंचना पड़ेगा । इतनी देर मे मै पैदल ही पहुंच जाऊँगा ।”


“ठीक है ।” - कहकर वो धरम को छोड़ने बाहर आयी । गेट के बाहर निकल कर दोनों अलग हुए ।


“अच्छा! ओ के बॉय।” कहकर धरम चल दिया ।


“ओ के! कल मिलते हैं कॉलेज मे ।” - गीता ने धरम की ओर मुस्कुरा कर देखते हुए उसे विदा किया । वो दूर तक धरम को जाते हुए देखती रही जब तक कि धरम ने पीछे मुड़कर हाथ के इशारे से बॉय नहीं किया । गीता भी बॉय कर वापस अन्दर आ गयी ।


सुबह कॉलेज मे दोनों मिले रोज़ की तरह और अपनी डैस्क पर बैठे पीरियड्स अटैंड किये । गीता बीच-बीच में मुस्कुराकर कुछ पूछ लेती और धरम बता भी रहा था । कॉलेज खत्म हुआ तो गीता ने धरम से पूछा:


“कब आओगे घर । होमवर्क इकट्ठा बैठकर कर लेंगें ।”


धरम की जान मे जान आ गयी वरना तो पिछले दिन के प्यार भरे व्यवहार के बाद कॉलेज का रुटीन व्यवहार धरम के मन मे कुछ आशंकाएं पैदा कर रहा था । पर अब दोबारा से मन मे लड्डू फूटने लगे थे ।


“छै बजे तक आऊँगा । अभी साढ़े तीन बजे हैं ।” - धरम ने मुस्कुराते हुए गीता को कहा ।


“ठीक है । मै इंतजार करूँगी ।” - गीता मुस्कुरायी ।


दोनों ने हाथ मिलाकर बॉय कहा और कॉलेज से निकल अपने अपने घरों की तरफ चल पड़े ।

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