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अल्हड़ लड़की गीता (भाग-1)

अल्हड़ लड़की गीता


[ प्रस्तावना]


आप अकेले नहीं जो किसी खूबसूरत लड़की से प्यार करना चाहते हैं । कोई बिरला ही होगा जिसे ये चाहत न हो । पर ये वास्तव मे आधा सच है । आप किसी भी खूबसूरत लड़की से प्यार करने को तैयार हो जायेंगे । आपको कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो नीता है, रीता है या माधुरी जब तक कि वो खूबसूरत है । पूरा सच ये है कि आप चाहते हैं कि कोई खूबसूरत लड़की आप से प्यार करे । कोई खूबसूरत लड़की आपसे प्यार करे ये टेढ़ी खीर है । हां अगर आप पैसे वाले हैं, सम्पन्न परिवार से हैं या आप बहुत अच्छी जॉब मे हैं तो बहुत सी लड़कियां आपके आगे पीछे दौड़ेंगी; प्यार करने के लिये नहीं बल्कि अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिये । प्यार का ड्रामा भी कर लेंगीं । ये पैसे से प्यार होगा आपसे नहीं । बहुत सारी लड़कियां पैसे और स्टेटस होते हुए भी आप पर ध्यान नहीं देती । और अगर लड़की गीता जैसी पैसे वाली और खूबसूरत हो तो आप क्या करेंगे । फिर आपको धरम वाले रास्ते पर चलकर प्यार पाना पड़ेगा । मतलब कि अगर आप मे धरम जैसी पेशैंस है, ईमानदारी हैं, विश्वसनीयता हैं और केयर करने का जज्बा हैं तो आप खूबसूरत लड़की का प्यार हासिल कर सकते हैं । पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित छोटे से शहर के निर्धन परिवार मे जन्मे लड़के धरम की प्रेम कहानी को पेशैंस रखकर पढ़ेंगें तो निश्चित रूप से जान जायेंगे कि प्यार पाने का सही रास्ता क्या है ।


जहां तक लड़कियों की बात है तो कौन लड़की नहीं चाहेगी कि धरम जैसा लड़का उनसे प्यार करे ।


क्या थी धरम और गीता की प्रेम कहानी । जानने के लिये पांच दशक पीछे जाना होगा । उत्तर प्रदेश मे देव भूमि का द्वार कही जाने वाली पवित्र नगरी हरिद्वार है । यहीं से ये प्रेम कहानी शुरु होती है ।



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भाग-1


हरिसिंह बाबु जब ट्रांसफर होकर हरिद्वार मे तैनात हुए तो उन्होंने हरिद्वार के बाहरी इलाके ब्रिगेडियर कॉलोनी मे मकान किराये पर ले लिया था जिसमें ड्राइंग रूम और बैडरूम के अलावा किचन बाथरूम आदि थे । रिटायर्ड ब्रिगेडियर जामवाल ने सबसे पहले इस कॉलोनी मे एक बड़े प्लॉट पर बड़ा सा मकान बनाया था जिसके बाद यहां बसावट शुरु हुई थी इसलिये इस कॉलोनी का नाम ब्रिगेडियर कॉलोनी पड़ गया था । ये शहर की मुख्य सड़क से मनसा देवी के मंदिर को जाने वाली सड़क के किनारे बांयी ओर पहाड़ी पर बेतरतीब बसी थी । कॉलोनी ज्यादा पुरानी नहीं थी और मकानों के बीच बीच मे अब भी जगह खाली पड़ी थीं जहां मकान बन सकते थे । हरिसिंह बाबू ने जिस मकान को किराये पर लिया था वो डोभाल साहब का था जो सरकारी विभाग में इंस्पैक्टर के पद पर थे । डोभाल साहब के इस मकान तक पहुंचने के लिये सड़क से चालिस पचास स्टैप्स ऊपर चढ़ कर जाना पड़ता था । जगह-जगह पहाड़ी काट कर जमीन समतल की गयी थी । इन्हीं छोटे छोटे समतल जमीन के टुकड़ों पर मकान एक दूसरे से ऊंचाई पर बने हुए थे । सड़क से डोभाल साहब के मकान तक पहुंचने के दो रास्ते थे । दोनों एक जैसे ही थे । चढ़ते हुए जो दाहिनी तरफ का रास्ता था वही ज्यादा इस्तेमाल होता था क्योंकि ये डोभाल साहब के मकान के बराबर से होता हुआ आगे ऊपर दूसरे घरों की तरफ बढ़ जाता था । जब बस्ती खत्म हो जाती तो ये रास्ता आगे पहाड़ी पर उगी झाड़ियों के बीच छोटी छोटी पगडंडियों से रूप मे चोटी तक जाता था । दूसरा रास्ता भी सड़क से ही शुरू होता था जो पहले रास्ते के बायीं तरफ था । नीचे से शुरू होकर ये डोभाल साहब के मकान तक जाकर खत्म हो जाता था । जिन्हें आगे ओर ऊपर जाना होता था वो डोभाल साहब के मकान के दालान से होकर दाहिने रास्ते पर पहुंच जाते थे । ऊपर जाने वाले लोग कभी कभार ही इस रास्ते से आते और दालान के रास्ते दाये वाले रास्ते को पकड़ते थे । इस मकान के ऊपर कुछ ज्यादा मकान नहीं थे । उसके बाद झाड़ियां शुरू हो जाती थीं । नीचे मनसा देवी रोड के किनारे बहुत से बड़े पेड़ थे । बरगद का एक बड़ा फैला हुआ पुराना पेड़ था जिसके साथ से ऊपर चढ़ने का दायां रास्ता शुरू होता था ।


हरिसिंह बाबु चिर कुंआरे थे और उन्होंने अपने भतीजे धर्मेश को अपने पास बुला लिया था । धर्मेश नवीं क्लास पास करके दसवीं मे पहुंचा था और सतरहवें साल मे प्रवेश कर चुका था । हरिसिंह बाबु के बड़े भाई मुज़़फ्फरनगर कलक्ट्रेट मे काम करते थे । धर्मेश उन्हीं का लड़का था । धर्मेश को घर मे धरम कहकर बुलाया जाता था । गर्मियों की दो ढाई महीने की छुट्टियां शुरु होते ही धरम हरिसिंह बाबू के पास हरिद्वार पहुंच गया था । अागे प्लानिंग यही थी कि धरम दसवीं मे यहीं किसी कॉलेज मे दाखिला लेगा और आगे की पढ़ाई करेगा ।


डोभाल साहब की पोस्टिंग दूर ऊंचाई पर बसे लैंसडाउन टाउन मे थी और वो कभी कभार महीने दो महीने मे ही हरिद्वार आ पाते थे । लैंसडाउन उत्तर प्रदेश का सबसे ऊंचाई पर स्थित ऑफिस हब था । इसकी दुर्गमता को देखते हुए इसे पनिशमैंट पोस्टिंग कहा जाता था । घर मे डोभाल साहब की तीन लड़कियां थीं जो उस मकान मे रहती थीं ।


सबसे बड़ी बहन संतोष थी । संतोष की उम्र निकल गयी थी पर उसने शादी नहीं की थी । उसका चेहरा निस्तेज था । वो सर झुका कर चलती थी । लगता था उसे संसार से विरक्ति हो गयी थी । उसने अध्यात्म का रास्ता अपना लिया था और अपने मकान से एक मंजिल नीचे सामने की तरफ स्वामी अच्युतानन्द के आश्रम से खुद को जोड़ लिया था । आश्रम मे प्रतिदिन सिवानी जी अध्यात्म पर प्रवचन देते थे । संतोष प्रवचन सुनने प्रतिदिन जाती थी । उससे छोटी बहन का नाम विजया लक्ष्मी था और उसे घर मे विजी कहकर बुलाते थे । विजी तीनो बहनों में सबसे खूबसूरत थी और जीवन से भरपूर थी । उसकी आंखें कुछ छोटी थीं और जब वो हंसती थी तो उसकी आंखे काफी कुछ मिच जाती थीं । वो शरीरिक सौष्ठव से सुडौल और सुन्दर थी और उसका रंग गोरा था हालांकि सुन्दरता की एक निशानी माने जाने वाले उसके बाल ज्यादा लम्बे नहीं थे । बस कंधो तक ही पहुंच पाते थे । वो धरम से उम्र में कुछ बड़ी थी यानि कि होगी कोई 17-18 साल की । धरम अभी 16 -17 साल का था । विजय लक्ष्मी से छोटी उसकी बहन मीनू कुछ पतली सी थी और उसकी नाक लम्बी, मुंह पतला था । वो सामान्य सी दिखने वाली लड़की थी। आदत से बिल्कुल सिम्पल और सीधी सादी । उसमे ऐसा कुछ नहीं था जो दूसरे को स्ट्राइक करे ।


छुट्टियों के दिन थे तो दिन मे विजी और मीनू के साथ धरम तीनों ही घर पर होते थे । धरम विजी की ओर आकर्षित हो गयी था । विजी जब बाथरूम में कपड़े धोती थी तो धरम उसके नजदीक रहने की चाह मे अक्सर बाथरूम मे घुस जाता था । तरह तरह के बहाने बनाता था । कई बार उससे रिक्वेस्ट करता अपना रुमाल धुलवाने की जो महज एक बहाना ही था । विजी इसे खूब समझती थी और मुस्कुरा देती । जो भी धोने को देता धो देती थी । विजी खाना बना रही होती तो धरम किचन के दरवाजे पर खड़ा होकर बातें करता । वो खाना बनाते हुए भी मुस्कुराती रहती और धरम से बात भी करती रहती थी । विजी को भी धरम अच्छा लगता था । वो कद मे विजी के बराबर था । उसका रंग गोरा चिट्टा था और उसका चेहरा मासूमियत से भरा हुआ था । उसकी आंखें चमकदार और उसके गाल भरे हुए सुन्दर थे । उसके बाल रिच घुंघराले थे और माथे पर पड़े हुए बहुत आकर्षक थे । सब कुछ मिलाकर वो बहुत आकर्षित करने वाला था । यही कारण था कि विजी धरम के नजदीक रहने से अपमे आप को रोक नहीं पाती थी । चढ़ती जवानी की उमंगें समुद्र की लहरों की तरह उद्वेलित होकर विजी के दिल, दिमाग और शरीर मे हिलोरे मारती रहती थी और वो आनन्द के अतिरेक मे हरदम खिली खिली सी रहती । दोनों के बीच हल्की फुल्की इसी तरह की छेड़ छाड़ चलती रहती और विजी हंसती मुस्कुराती रहती ।


एक दिन एक खूबसूरत दिखने वाला एक पहाड़ी लड़का नीचे से बायें रास्ते से आकर दायें रास्ते पर जाने के लिये दालान क्रॉस कर रहा था । विजी रास्ते में खड़ी थी तो रुक कर विजी से बातें करने लगा । विजी की तो आदत ही थी मुस्करा कर बात करने की और वो उस लड़के से वैसे ही मुस्कुराकर बातें कर रही थी । वो दोनों एक दूसरे को जानते थे और वो लड़का ऊपर के किसी मकान में रहता था । पर कभी पहले या बाद मे दिखाई नहीं पड़ा । शायद कहीं बाहर रहकर पढ़ रहा था । दोनों के बीच मुस्कराते हुए बातचीत से धरम को बहुत बेचैनी हुई । उसके अन्दर ये भाव पता नहीं कहां से आ गया था कि विजी उससे बात क्यों कर रही है । जब वो ऊपर चला गया तब धरम विजी की तरफ मुखातिब हुआ ।


“कौन था वो? “ - धरम ने विजी से पूछा । प्रयास करके भी वो मुस्करा नहीं पा रहा था ।


“वो सतीश था । ऊपर रहने वाले ढोंढियाल अंकल का लड़का है । देहरादून मे पढ़ता है । क्यों पूछा? औऱ तुम्हारी मुस्कराहट कहां गायब हो गयी?” - विजी धरम की बेचैन को समझ उसे टीज़ करके मजा ले रही थी । बात सुनकर धरम को बड़ी शर्मिंदगी हुई । विजी धरम की पतली हालत देखकर मुस्कुराती हुई मजा ले रही थी ।


खैर सतीश फिर कभी नहीं आया और बात आयी गयी हो गयी । विजी, मीनू और धरम तीनो शाम के झुटपुटे मे अंताक्षरी खेलते थे । आंगन जो कि खुले आसमान के नीचे था उसमें छत पर जाने के लिये बांस की सीढ़ी खड़ी रहती थी । उस सीढ़ी के डंडे पर मीनू बैठ जाती और उसके इर्द गिर्द धरम और विज्जो खड़े होकर अंताक्षरी खेलते । ऊपर से हल्की चांदमी छिटकी रहती । या कभी अंधेरी रातों में कमरे की लाइट से आंगन मे रोशनी रहती थी । तीनों घंटों अंताक्षरी खेलते । विज्जो और धरम के लिये ये बड़ा रोमांटिक था । वो सीढ़ी के दोनों ओर इस तरह खड़े होते थे कि आंखों - आंखों मे बात होती रहती और बदन मे रह रह कर सिहरन दौड़ती रहती । मीनू शायद अभी रोमांस की बातों से अनजान थी । और अगर कुछ जानती या समझती थी तो उसने कभी महसूस नहीं हुआ । उसके होने के बावजूद ये रोमांटिक शामों का आनन्द लेने का सिलसिला चलता रहा ।


डोभाल जी के मकान मे बस वन बैडरूम और ड्राइंगरूम के दो सैट थे । ये सैट बराबर बराबर बने हुए थे और उनके साथ ही किचन बाथरूम टॉयलेट आदि थे । दाहिनी ओर वाले रास्ते से जाने पर धरम का का सैट पहले पड़ता था और उससे अगला सैट डोभाल परिवार का था । उसके साथ ही स्टोर रूम, किचन और थोड़ा आगे निकला बाथरूम था । नीचे से आने वाला बायां रास्ता बाथरूम के बराबर से दालान मे आता था । डोभाल साहब के कमरे के बाहर सीढ़ी लगी हुई थी । विजय लक्ष्मी, मीनू और धरम तीनों एक शाम सीढ़ी के इर्द-गिर्द अंताक्षरी का आनन्द ले रहे थे । चांद नहीं निकला था और रोशनी डोभाल साहब के कमरे से आ रही थी । अचानक लाइट चली गयी । कुछ देर तक तो अंधेरे मे ही अन्ताक्षरी जारी रही पर जब देर तक लाइट नहीं आयी तो धरम रोशनी करने के लिये मोम बत्ती और माचिस लेने अपने कमरे मे आया और अंधेरे मे टटोलने लगा । माचिस और मोमबत्ती रखनी पड़ती थी क्योंकि लाइट का कुछ भरोसा नहीं होता था कब चली जाये । घुप अंधेरा छाया हुआ था और अंधेरे मे कुछ पता ही नहीं चल रहा था कि माचिस और मोमबत्ती कहां रखी है । तभी विजी कमरे मे आकर धरम के पीछे खड़ी हो गयी । वो कुछ बोली नहीं पर धरम के पीछे खड़ी रही । वो इस आस मे थी कि धरम जरूर कुछ पहल करेगा । धरम के लिये ये पहला मौका था कि एक लड़की उसके इतना नजदीक आ गयी थी और वो भी घुप अंधेरे मे । उत्तेजना तो धरम पर हावी थी पर उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे । इसी उलझन मे वो मोमबत्ती माचिस ढूंढने मे ही लगा रहा । तब ही लाइट आ गयी । विजय लक्ष्मी ने धरम की की कमर मे एक धौल जमाई और कहा:


“बुद्धू कहीं का!”


और कहकर कमरे से निकल गयी । धरम भी बाहर आ गया । उसका मुंह लाल हो गया था । जो कुछ हो सकता था नहीं हुआ। विजय लक्ष्मी जिस उम्मीद से धरम के पीछे पीछे गयी थी वो अधूरी रह गयी । वो धरम के कितना पास थी पर उसे छू भी नहीं सकी । वो उसके नजदीक होने की वजह से उत्तेजना मे थी । उसके दिल मे रोमांस की जो लहरें हिलोरें मार रहीं थी अचानक लाइट आ जाने से निराशा और कुंठा मे बदल गयीं थी । अपनी क्षुब्द्धता को उसने धरम की पीठ पर धौल जमा कर जाहिर तो कर दिया था । एकबारगी तो उसने सोचा था कि धरम को पीछे से दबोच ले । पर समय कम मिला था और विचार कार्यान्वित होता इससे पहले लाइट आ गयी थी। विज्जो का अंधेरे कमरे मे आना धरम के लिये एक सीधा सपाट आमन्त्रण था । धरम के लिये ये अप्रत्याशित था । वो नासमझी में कुछ नहीं कर पाया था । विजय लक्ष्मी का समय धरम की नासमझी की वजह से निकल गया । इसी पश्चाताप की स्थिति मे खुद धरम भी था । ऐसे मौके ज़िन्दगी कम ही आते हैं पर अब क्या हो सकता था ।


क्रमशः

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