राज-सिंहासन--भाग(७) Saroj Verma द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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राज-सिंहासन--भाग(७)

प्रातःकाल हो चुकी थी परन्तु अभी तक सूर्य की किरणों ने अपनी छटा नहीं बिखेरी थी वो बस इस प्रतीक्षा में थी कि सूर्य उन्हें कब आदेश दे एवं वे अपने प्रकाश को इस संसार में प्रसारित कर दें,अभी आकाश पर चन्द्रमा का ही राज था,वृक्षों पर बैठे खगों का कलरव सुनाई दे रहा था,वन के वृक्षों के पत्रों पर अभी भी पारदर्शी ओस की बूँदें नृत्य कर रहीं थीं।।
सर्वप्रथम केतकी जागी एवं सोनमयी की कुटिया के निकट आकर बोली.....
सोनमयी....ओ सोनमयी...पुत्री! स्नान का समय हो गया है,नीलमणी को स्नान हेतु सरोवर के निकट ले जाओ अन्यथा भीड़ इकट्ठी हो जाएगी....
सोनमयी ने जैसे ही अपनी माँ केतकी का स्वर सुना तो शीघ्रता से जाग उठी एवं अपनी माँ को उत्तर दिया....
हाँ! माँ! मैं जाग चुकीं हूँ,तुम चिन्तित ना हो।।
सोनयमी का उत्तर सुनकर केतकी अपनी कुटिया में लौट आई....
केतकी के जाने के उपरान्त सोनमयी ने नीलमणी को जगाते हुए कहा....
नील.....सखी नीलमणी.....जागो...देखों भोर हो गई है,
सोनमयी की बात सुनकर नीलमणी अगड़ाई लेते हुए जाग उठी और बोली.....
भोर हो गई क्या सखी?
हाँ...प्रिऐ! जागो,सरोवर पर स्नान करने जाना होगा नहीं तो भीड़ इकट्ठी हो जाती है फिर सरोवर पर स्थान नही मिलता,सोनमयी बोली....
नीलमणी ने कुटिया के छोटे से वातायन से देखा तो बोली.....
परन्तु सखी! अभी अँधेरा है....
ना सखी! भोर हो चुकी है,तुम्हें खगों का कलरव सुनाई नहीं दे रहा ,सोनमयी बोली।।
हाँ! खग तो बोल रहे हैं तो इसका तात्पर्य है कि सच में भोर हो गई है,चलो मैं भी उठती हूँ,वैसे कितने दूर है सरोवर? नीलमणी ने पूछा।।
निकट ही है,बड़े से बरगद के समीप,सोनमयी बोली।।
दोनों सखियाँ अपने अपने वस्त्र लेकर स्नान हेतु सरोवर की ओर चल पड़ी,उन दोनों ने अभी कुछ ही दूरी तय की थी कि एकाएक घुड़सवार वायु के वेग से आया और चलते घोड़े पर से ही नीलमणी को उठाया, घोड़े पर बैठाया एवं ना जाने कहाँ भाग गया।।
सोनमयी केवल चिल्लाने के सिवाय और कुछ ना कर सकी,वो शीघ्रता से सूचना देने कुटिया की ओर भागी,उसने अपने अपने निवास स्थान पर चिल्लाकर कहा.....
राजकुमारी नीलमणी का कोई अपहरण करके ले गया,उसके प्राण संकट में हैं।।
उसकी आवाज़ सुनकर सहस्त्रबाहु अपनी कुटिया के बाहर आया,उसे सारी घटना के विषय में ज्ञात होते ही उसने शीघ्र ही वीरप्रताप को जगाकर कहा.....
वीर! जागों... राजकुमारी का कोई अपहरण करके ले गया है हमें शीघ्रता से उन्हें खोजने जाना होगा,
परन्तु,कैसे? कुटिया से कोई उन्हें अपहरण करके ले गया,किसमे इतना साहस आ गया?वीरप्रताप बोला।।
कुटिया से नहीं,वो एवं सोनमयी स्नान हेतु सरोवर पर जा रहीं थीं,तभी ये घटना घटित हुई,,सहस्त्रबाहु बोला।।
चलिए भ्राता ! शीघ्र ही राजकुमारी की खोज में चलते हैं,वीरप्रताप बोला।।
मैं सोच रहा था कि क्यों ना सर्वप्रथम गुरूदेव अनादिकल्पेश्वर की सहायता ले,हो सकता है कि वें अपनी शक्तियों द्वारा ये ज्ञात कर सकें कि राजकुमारी को वो अपहरणकर्ता किस दिशा में ले गया है, सहस्त्रबाहु बोला।।
आपका सुझाव तो अच्छा है, किन्तु क्या गुरूदेव हमारी सहायता करेंगे?वीरप्रताप ने पूछा।।
हां, क्यों नहीं करेंगें, अवश्य वो हमारी सहायता करेंगें, सहस्त्रबाहु बोला।।
तो बिलम्ब किस बात का , चलिए शीघ्र ही उनके पास चलते हैं,वीरप्रताप बोला।।
तभी सोनमयी भी उनकी कुटिया में आ पहुंची और बोली....
आप लोगों के संग मैं भी जाऊंगी,
परन्तु क्यों सोनमयी? तुम्हारे ऊपर भी तो कोई संकट आ सकता है,वीरप्रताप बोला।।
मुझे किसी संकट की चिंता नहीं, क्योंकि वो मेरी भी तो सखी है,सोनमयी बोली।।
ठीक है तुम भी चल सकती हो , सहस्त्रबाहु बोला।।
किन्तु,भ्राता! इसे कहां सम्भालते रहेंगे,वीरप्रताप बोला।।
मैं स्वयं को सम्भाल सकती हूं एवं आवश्यकता पड़ने पर आपको भी,सोनमयी बोली।‌
अच्छा,समय नष्ट करने से कोई लाभ नहीं, शीघ्र ही गुरूदेव के पास चलते हैं, सहस्त्रबाहु बोला।।
और सब गुरूदेव के पास पहुंचे और उन्हें अपनी समस्या बताई,गुरू जी ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करके ज्ञात किया कि नीलमणी कहाँ हैं? गुरू अनादिकल्पेश्वर बोले.....
वो सदाबहार वन की ओर की गई है एवं जो उसका अपहरण करके ल गया है वो नीलमणी का शत्रु नहीं है,वो उसे कोई हानि नहीं पहुँचाएगा,कदाचित उसकी कोई समस्या है जिसके कारण उसने नीलमणी का अपहरण किया है,तुम लोंग सदाबहार वन की ओर शीघ्रता से प्रस्थान करो एवं उस व्यक्ति की समस्या ज्ञात करने का प्रयास करो.....
जी गुरूदेव! आपका अत्यधिक आभार सहायता हेतु,सहस्त्रबाहु बोला।।
मेरा आशीर्वाद तुम लोंगों के संग है,अब शीघ्र ही तुम लोंग जाओ,गुरू अनादिकल्पेश्वर बोले....
और शीघ्र ही सबने गुरूदेव का आशीर्वाद लेकर सदाबहार वन के लिए प्रस्थान किया....
तीनों अपने अपने घोड़ो पर सवार सदाबहार वन की ओर चले जा रहें थे,उन्हें शीघ्र ही शीघ्र नीलमणी के पास पहुँचना था,कुछ ही समय पश्चात वो सदाबहार वन पहुँच भी गए,किन्तु नीलमणी कहाँ है ये किसी को भी ज्ञात नहीं था,तीनों ने संग संग नीलमणी को खोजना प्रारम्भ किया,कुछ समय खोजने के उपरांत भी नीलमणी कहीं ना मिली.....
तब वीरप्रताप बोला.....
नीलमणी को खोजते खोजते तो मुझे प्यास लग आई है,चलो कहीं जल खोजते हैं....
भ्राता! वीर ! आपका तो ऐसा ही है जब कोई आवश्यक कार्य होता है तो आपको कहीं भूख लग जाती है या आपको प्यास लग जाती है,सोनमयी बोली।।
सोनमयी! अपने शब्द वापस लों,इस समय भी तुम्हें परिहास की सूझ रही है,वीरप्रताप बोला।।
तो क्या करूँ? आप बात ही ऐसी कर रहे हैं,सोनमयी बोली।।
नील की जितनी चिन्ता तुम्हें है,उतनी मुझे भी है समझी प्रिय बहना,वीरप्रताप बोला।।
ओहो....राजकुमारी से नील,भ्राता क्या हो रहा है? कहीं ये प्रेम-व्रेम जैसा तो कुछ नहीं है,सोनमयी बोली।।
क्यों तुझे क्यों बताऊँ?वीरप्रताप बोला।।
अच्छा..! अपने हृदय की पीड़ा सीधे राजकुमारी नीलमणी को सुनाई जाऐगीं,सोनमयी बोली।।
तू कुछ अधिक ही अनुमान लगा रही है,वीरप्रताप बोला।।
मैं एकदम सही अनुमान लगा रही हूँ,रात को भोजन करते समय मैने सब देखा था ,आपकी दृष्टि भोजन में कम राजकुमारी के सुन्दर मुखड़े पर अधिक थी,सोनमयी बोली।।
हाँ..थी मेरी दृष्टि राजकुमारी के मुखड़े पर बोल क्या करेंगी? वीरप्रताप बोला।।
आ गई ना हृदय की बात जिह्वा पर,मैं जानती थी कि ऐसा ही कुछ है,सोनमयी बोली।।।
सहस्त्र भ्राता! देखिए ना ये कैसी बातें करती है? वीरप्रताप ने सहस्त्र से उलाहना देते हुए कहा।।
क्यों ? सही तो कह रही है,सहस्त्रबाहु बोला।।
भ्राता! अब आप भी,वीरप्रताप बोला।।
क्यों ?ये सत्य नहीं है कि राजकुमारी तुम्हें भा गई हैं,सहस्त्रबाहु बोला।।
तीनों का वार्तालाप चल ही रहा था कि उन्हें कुछ स्वर सुनाई दिया.....
वो तीनों उस दिशा में अपने घोड़े पर सवार होकर भागें और उस स्थान पर पहुँचकर उन्होंने देखा कि वहाँ राजकुमारी नीलमणी एक वृक्ष से बँधी थी और एक व्यक्ति से कह रही थी कि मुझे छोड़ दो....
तीनों को वहाँ देखकर उस व्यक्ति ने वहाँ से भागने का प्रयास किया किन्तु सहस्त्रबाहु ने उसे शीघ्रता से पकड़ लिया एवं वीरप्रताप ने नीलमणी की रस्सी खोली और उस व्यक्ति को वृक्ष से बाँधकर पूछा.....
कौन हो तुम? और तुमने ऐसा दुस्साहस कैसे किया? कदाचित कल भी तुम ही राजकुमारी का अपहरण करके लिए जा रहे थे।।
वो व्यक्ति कुछ नहीं बोला,तब सहस्त्रबाहु ने क्रोधित होकर पूछा.....
उत्तर दो,कौन हो तुम?
सहस्त्रबाहु के क्रोधित होने के पश्चात वो व्यक्ति कुछ भयभीत हुआ और उसने उत्तर दिया....
जी! मैं सिंघल राज्य का राजकुमार ज्ञानश्रुति हूँ,मैं राजकुमारी नीलमणी का अपहरण इसलिए किया क्योंकि इनके पिता ने मेरे पिता की हत्या की है और मेरी बहन निपुणनिका का अपहरण करके इन्होंने उसे ना जाने कहाँ बन्दी बना रखा है.....
विस्तार से बताओ कि क्या हुआ था? सहस्त्रबाहु बोला।।
जी! उस रात्रि मेरी बहन निपुणनिका का जन्मोत्सव था,सभी प्रसन्न मन से उत्सव का आनन्द उठा रहे थें,तभी सूरजगढ़ के राजा सुकेतुबाली पधारे,पिता महाराज ने उन्हें निमंत्रण देकर बुलाया था,परन्तु सुकेतुबाली का उद्देश्य कुछ और ही था वो मेरे पिता को बंदी बनाना चाहते थे क्योंकि उनकी कुदृष्टि मेरी बहन निपुणनिका पर थी।।
सुकेतुबाली अपनी सेना सहित पधारे थे ,वो हमारे राज्य पर चढ़ाई करके राज्य और निपुणनिका दोनों को प्राप्त करना चाहते थे,वे ऐसा प्रयास पहले भी कर चुके थे,किन्तु वे ऐसा पहले नहीं कर पाए थे क्योंकि हमारे राज्य की सेना अत्यंत शक्तिशाली थी,उनका पहला प्रयास विफल रहा ,इसलिए वो प्रतिशोध लेना चाहते थे और जन्मोत्सव की रात्रि उन्होंने विश्वासघात करके मेरे पिता और माता की हत्या कर दी,मुझे अपने बाण द्वारा अचेत किया और निपुणनिका का अपहरण करके ले गए एवं ना जाने कहां उसे बन्दी बनाकर रखा है,मैने निपुणनिका को बहुत खोजा किन्तु वो नहीं मिली,इसलिए मैने प्रतिशोध लेने हेतु राजकुमारी का अपहरण कर लिया।।
तभी नीलमणी बोली....
राजकुमार ज्ञानश्रुति सत्य कह रहे हैं,मेरे पिता ऐसे ही है,अत्यधिक क्रूर एवं निर्दयी।।
तो क्या हम इनकी बात का विश्वास कर लें,वीरप्रताप ने नीलमणी से पूछा।।
जी! एवं हमें इनकी सहायता भी करनी चाहिए,नीलमणी बोली।।
और सहस्त्रबाहु सोच में पड़ गया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....