राज-सिंहासन--भाग(८) Saroj Verma द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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राज-सिंहासन--भाग(८)

क्या हुआ भ्राता? आप किस सोच में पड़ गए,वीरप्रताप ने पूछा।।
तो इसका तात्पर्य है कि ज्ञानश्रुति निर्दोष है,सहस्त्रबाहु बोला।।
यदि ये निर्दोष है एवं ये सत्य बोल रहा है,तो इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण भी तो होना चाहिए तभी तो इसकी बात पर विश्वास किया जा सकता है,वीरप्रताप बोला।।
इसकी निष्पक्ष आँखें ही इसकी सत्यता का प्रमाण है,सहस्त्रबाहु बोला।।
तो आप इनकी सहायता का निर्णय ले चुके हैं,वीरप्रताप ने पूछा।।
निर्णय कैसा वीर? हमें राजकुमार ज्ञानश्रुति की सहायता करनी ही चाहिए,सहस्त्रबाहु बोला।।
किन्तु हमें तो ये भी ज्ञात नहीं कि इस समय इनकी बहन निपुणनिका किस स्थान पर बन्दी है,सोनमयी बोली।।
इस कार्य में हमें पुनः गुरू अनादिकल्पेश्वर की सहायता लेनी होगी,सहस्त्रबाहु बोला।।
तो क्या राजकुमार ज्ञानश्रुति भी हमारे निवासस्थान जाऐगें?सोनमयी ने पूछा।।
हाँ,क्यों नहीं? वो संग जाएंगे तभी तो हम इनकी समस्या का समाधान खोज पाऐगें,सहस्त्रबाहु बोला।।
तो बिलम्ब किस बात का?अतिशीघ्र निवासस्थान पर चलते हैं,वीरप्रताप बोला।।
बहुत बहुत आभार आपका भ्राता !जो आपने मेरी कही बात पर विश्वास करके मेरी सहायता हेतु तत्पर हो गए,मुझे अति प्रसन्नता होगी यदि आपलोंग अपना परिचय दे दे,ज्ञानश्रुति बोला।।
मैं वीरप्रताप,ये भ्राता सहस्त्रबाहु और ये हमारी बहन सोनमयी,वैसे हम तीनों का आपस में कोई रक्तसम्बन्ध नहीं है, हम सब अलग अलग माताओं की सन्तानें हैं किन्तु हम सगे भाई बहन की भाँति रहते है,वीरप्रताप बोला।।
जी,बहुत ही अच्छा,आपलोगों ने इस परिवार में मुझे भी सम्मिलित किया इसके लिए अत्यधिक आभार,ज्ञानश्रुति ने सबसे कहा।।
ये क्या क्षण-क्षण आभार प्रकट करते रहते हो?अपने हाथों को जोड़कर,पीड़ा नहीं होती,सोनमयी ने ज्ञानश्रुति से कहा।।
पीड़ा कैसी सोनमयी?भला आभार प्रकट करने में कैसी पीड़ा?ज्ञानश्रुति बोला।।
अच्छा...अच्छा...अब चलो भी ,अत्यधिक ज्ञान देने की आवश्यकता नहीं है,सोनमयी बोली।।
मैं ज्ञान कहाँ दे रहा था सोनमयी! मैं तो केवल बता रहा थ,ज्ञानश्रुति बोला।।
तुम पुनः मुझसे तर्क-वितर्क करने लगे ,सोनमयी बोली।।
अब छोड़ो भी सोनमयी! चलो आश्रम चलते हैं,नीलमणी बोली।।
मैं तो छोड़ ही रही हूँ,परन्तु ये अपना मुँख ही बन्द नहीं रख रहा,सोनमयी बोली।।
रहने भी दो ना! अब चलो,नीलमणी बोली।।
ऐसा प्रतीत होता है कि इसके मस्तिष्क पर अत्यधिक गहरा आघात हुआ इसलिए मस्तिष्क का संतुलन बिगड़ गया है,तभी ये ऐसी बातें कर रहा है,वाचाल कहीं का,सोनमयी क्रोधित होकर बोली।।
वो तो विनम्रतापूर्वक ही तुमसे वार्तालाप कर रहा था,परन्तु तुम ही उस पर खीझ रही हो,नीलमणी बोली।
ना जाने क्यों? सहस्त्र भ्राता उसकी सहायता हेतु तत्पर हो गए,हो सकता है कि उसकी बात सत्य ना हो,सोनमयी बोली।।
मुझे तो वो भला मानव लगता है,नीलमणी बोला।।
भला मानव! किस प्रकार भला है? तुम्हारा अपहरण किया इसलिए,तुम अत्यधिक भोली हो इसलिए तो सभी का विश्वास कर लेती हो,सोनमयी बोली।।
ऐसा नहीं है सखी!उसकी आँखों से प्रतीत होता है कि वो सत्य कह रहा नीलमणी बोली।।
हाँ...हाँ...सखी! तुम तो जैसे इस संसार की सबसे बड़ी परीक्षक हो इसलिए उसके विषय में तुम्हें सब ज्ञात है,सोनमयी बोली।।
तुम दोनों वहाँ खड़े होकर आपस में क्या वार्तालाप कर रही हो? आश्रम नहीं जाना क्या?सहस्त्रबाहु ने दोनों से पूछा।।
हाँ...भ्राता ! आश्रम जाना है,सोनमयी बोली।।
सोनमयी! तुम अपने अश्व पर नीलमणी को बैठा लो,सहस्त्रबाहु बोला।।
जी,भ्राता! ऐसा ही करती हूँ,सोनमयी बोली।।
और सब अपने अपने अश्व पर सवार होकर आश्रमकी ओर बढ़ चले...
सब आश्रम पहुँचे एवं सबने राजकुमारी नीलमणी को सुरक्षित देखा तो सब प्रसन्न हुए....
हीरा देवी एवं घगअनंग भी प्रसन्न थे कि उनका पुत्र सकुशल लौट आया है तभी हीरादेवी ने कहा....
पुत्र सहस्त्र! भानसिंह भ्राता वापस आ गए हैं और तुम्हें पूछ रहे थे?
तो अभी कहाँ हैं वें,सहस्त्रबाहु ने अपनी माता हीरादेवी से पूछा।।
वो अभी लौटते ही होगें,सरोवर पर स्नान हेतु गए हैं,हीरादेवी बोली।।
किन्तु वें ऐसे चले कहाँ जाते हैं?मैं ऐसा बचपन से देख रहा हूँ,सहस्त्रबाहु बोला।।
समय आने पर तुम्हें ज्ञात हो जाएगा पुत्र!घगअनंग बोले।।
वही तो मेरी चिन्ता का विषय है कि वे वर्षो से किसे खोज रहे हैं कुछ पूछता हूँ तो उत्तर भी नहीं देते,कहते ही कि अब तुझे क्या बताऊँ? सहस्त्रबाहु बोला।।
हाँ! पुत्र! उनके जाने के पीछे गहरा रहस्य छिपा है,घगअनंग बोले।।
किन्तु,कैसा रहस्य पिताश्री!वही तो मुझे ज्ञात करना है,सहस्त्रबाहु बोला।।
महामंत्री भानसिंह आते होगें उनसे ही पूछ लेना,घगअनंग बोले।।
वैसे पिताश्री आप मामाश्री भानसिंह को महामंत्री क्यों कहते हैं?वो किस राज्य के महामंत्री हैं ये आपने कभी बताया ही नहीं,सहस्त्रबाहु ने पूछा।।
वो आ जाएं तो स्वयं पूछ लेना,घगअनंग बोले।।
परन्तु,अभी जो समस्या है आप सभी उसका समाधान करें,सहस्त्रबाहु बोला।।
समस्या क्या है पुत्र! कहो तो,हीरादेवी बोली।।
समस्या ये है कि है ये हैं सिंघल राज्य के राजकुमार ज्ञानश्रुति ,इनकी बहन निपुणनिका को नीलमणी के पिताश्री सुकेतुबाली ने अपहरण करके ना जाने किस स्थान पर बन्दी बनाकर रखा है,उसी बात का प्रतिशोध लेने के लिए इन्होंने राजकुमारी नीलमणी का अपहरण किया था,सहस्त्रबाहु बोले।।
क्या कहा?सुकेतुबाली! ,पीछे से आ रहे भानसिंह ने कहा।।
अरे,मामाश्री! आप स्नान करके आ गए,सहस्त्रबाहु ने भानसिंह से कहा।।
सर्प्रथम तुम वो कहो जो कह रहे थे,क्योंकि तुम्हारे वार्तालाप में मैने सुकेतुबाली का नाम सुना,भानसिंह बोले।।
यही कि ये हैं राजकुमारी नीलमणी हैं जो कि सूरजगढ़ के राजा सुकेतुबाली की पुत्री हैं,सहस्त्रबाहु बोला।।
और ये नवयुवक कौन हैं? भानसिंह ने सहस्त्रबाहु से पूछा।।
और ये हैं सिंघल राज्य के राजकुमार ज्ञानश्रुति,इनकी बहन निपुणनिका को सुकेतुबाली ने ना जाने कहाँ बन्दी बनाकर रखा है,सहस्त्रबाहु बोला।।
तो ये सुकेतुबाली की पुत्री है,भानसिंह ने नीलमणी की ओर संकेत करते हुए कहा...
हाँ! मामाश्री! ये उनकी ही पुत्री है,सहस्त्रबाहु बोला।।
तो इसका तात्पर्य है कि ये सहस्त्रबाहु की बहन है,भानसिंह बोले।।
ये क्या कह रहे हैं? मामाश्री! नीलमणी और मेरी बहन,भला वो कैसे?सहस्त्रबाहु ने पूछा।।
हाँ! पुत्र! ये तुम्हारी बहन हैं,सुकेतुबाली तुम्हारे काकाश्री हैं किन्तु उन्होंने तुम्हारे पिताश्री सोनभद्र और माता विजयलक्ष्मी के संग छल-कपट किया था,भानसिंह बोले।।
छल-कपट! भला कैसे?तो क्या ये मेरे मूल माता-पिता नहीं हैं,सहस्त्रबाहु ने हीरादेवी और घगअनंग की ओर संकेत करते हुए पूछा।।
नहीं,मेरी बहन हीरादेवी तुम्हारी धाय माँ थी,उसकी कई वर्षों तक कोई सन्तान ना ही हुई,मात्रत्व का सुख देने हेतु,मै इसे तुम्हारी धाय माँ बनाकर महारानी विजयलक्ष्मी के पास ले गया था ,भानसिंह बोलें।।
परन्तु काकाश्री सुकेतुबाली की क्या कहानी है? वो तो विस्तार से बताएं,सहस्त्रबाहु बोला।।
तुम्हारे पिताश्री सोनभद्र को राज्य का राजा बना देने पर सुकेतुबाली तुम्हारे पिताश्री से प्रतिशोध लेना चाहता था,उसने पहले भी ऐसा प्रयास किया था किन्तु मैने समय पर पहुँचकर महाराज के प्राण बचा लिए,किन्तु तुम्हारे जन्मोत्सव समारोह पर मैं उन दोनों को बचाने में असफल रहा क्योंकि तुम्हारे प्राणों की रक्षा करना मेरे लिए अत्यधिक आवश्यक हो गया था और उस दिन सुकेतुबाली ने किसी वशीकरण द्वारा किसी वशीभूत करने वाले व्यक्ति से महारानी को मैना और महाराज को तोता में परिवर्तित करवा दिया,मुझे गुरू अनादिकल्पेश्वर ने संकेत दिया था कि उन्हें बन्दी बनाकर किसी समुद्र की तलहटी में स्थित जलमहल में बन्दी बनाया गया है,मैं तबसे उन दोनों को खोजने ही जाता रहता हूँ,किन्तु अब तक उनका कोई भी नामोल्लेख नहीं मिला,भानसिंह बोले।।
तो ये इतने वर्षों तक आप सब ने मुझे क्यों नहीं बताया? सहस्त्रबाहु ने पूछा।।
क्योंकि तुम इस योग्य नही थे कि तुम अपना प्रतिशोध ले सको,घगअनंग बोले।।
नीलमणी! तो तुम मेरी बहन हो,किन्तु अब तुम्हारा निर्णय क्या होगा? अब तुम हमारा संग दोगी या अपने पितामहाराज का,सहस्त्रबाहु बोला।।
सहस्त्र भ्राता! मुझे ज्ञात है कि मेरे पिता दोषीं है,तो उन्हें उसका दण्ड मिलना ही चाहिए इसलिए मैं आपका संग ही दूँगी,नीलमणी बोली।।
इन सबके मध्य वार्तालाप चल ही रहा था कि वहाँ कुछ सैनिक आ पहुँचे एवं उन सैनिकों ने सबको आ घेरा,उनमें से एक सैनिक आगें बढ़कर बोला......
राजकुमारी नीलमणी घबराइए मत,हम आ गए हैं,हमें महाराज सुकेतुबाली ने आपकी रक्षा हेतु नियुक्त किया है,इन सब अपराधियों को इसका दण्ड अवश्य मिलेगा।।
किन्तु,ये सब निर्दोष हैं,इन्होंने तो मेरे प्राणों की रक्षा की है,अपराधी तो कोई और था,जो कि भाग गया,राजकुमारी नीलमणी बोली।।
तो चलिए हमारे संग राज्य को लौट चलिए,सैनिकों में से एक बोला।।
मैं स्वयं एक दो दिनों पश्चात आ जाऊँगीं,यहाँ मेरा मन लग गया है,यहाँ के वातावरण ने मेरा मन मोह लिया है,मेरा संदेश पिता महाराज को दे देना कि मैं यहाँ सुरक्षित एवं प्रसन्न हूँ,अब तुम लोंग जा सकते हो,नीलमणी ने सैनिकों से कहा।।
किन्तु,ये तो एक आश्रम है,यहाँ आपको कष्ट होगा,सैनिकों में से एक बोला।।
कष्ट तो नाममात्र का होगा,परन्तु इतना स्नेह भी तो यहाँ होगा,इतनी माताओं का प्रेम भी तो होगा,नीलमणी बोली।।
जैसी आपकी इच्छा राजकुमारी,तो अब हम प्रस्थान करते हैं,सैनिकों में से एक बोला।।
और सब सैंनिक राजकुमारी नीलमणी को वही छोड़कर सूरजगढ़ चले गए.....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा......