रैना कैसें बीतेगी? Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रैना कैसें बीतेगी?

कुलभूषण की रात दो बजे की ट्रेन थी इसलिए वो लगभग रात बारह बजे रेलवें स्टेशन पहुँच गया,उसने सोचा अकेले बैठकर क्या करूँ? इसलिए प्लेटफार्म से थोड़ा दूर जाकर वो एक बेंच ढ़ूढ़कर उसमें बैठ गया फिर उसने अपने बैग से एक हाँरर कहानियों की किताब निकाली और पढ़ने लगा ,कुछ देर तक किताब पढ़ने के बाद उसे सिगरेट पीने की तलब लगी तो उसने सिगरेट का पैकेट निकाला उसमें से एक सिगरेट निकालकर उसे लाइटर से जलाया और पीने लगा।।
तभी उसकी बेंच में ना जाने कहाँ से कम्बल लपेटे हुए एक बूढ़ा आकर बैठ गया और उससे बोला.....
बाबूजी! क्या एक सिगरेट मुझे भी मिल सकती है।।
पहले तो कुलभूषण थोड़ा हिचकिचाया फिर उसने सिगरेट के पैकेट में से एक सिगरेट निकाल कर बूढ़े की ओर बढ़ा दी,तब बूढ़ा बोला.....
माचिस भी तो चाहिए होगी इसे जलाने के लिए।।
इतना सुनते ही कुलभूषण ने उस बूढ़े की सिगरेट को लाइटर से जला दिया और फिर बूढ़ा सिगरेट पीने में मगन हो गया,थोड़ी ही देर में बूढ़े ने अपनी सिगरेट खतम कर दी और फिर कुलभूषण से पूछा....
बाबूजी!आप यहाँ सुनसान बेंच पर क्यों बैठें हैं?भीड़ अच्छी नहीं लगती क्या आपको?
मुझे ये किताब पढ़नी थी और यहाँ इस बेंच के पीछे लैम्पपोस्ट की अच्छी रोशनी थी इसलिए बैठ गया,कुलभूषण बोला।।
कौन सी किताब पढ़ रहे हैं? बूढ़े ने पूछा।।
हैं ऐसी ही भूतिया कहानियों वाली,कुलभूषण बोला।।
क्या आप भूतों को मानते हैं?बूढ़े ने पूछा।।
नहीं! मैं बिलकुल नहीं मानता कि भूत होते हैं,कुलभूषण बोला।।
अच्छा!लेकिन मैं तो मानता हूँ कि भूत होते हैं,बूढ़ा बोला।।
वो कैसे भला? कुलभूषण ने पूछा।।
पहले में जल्लाद हुआ करता था,वहाँ मैनें ऐसी कई शक्तियों को महसूस किया,जो कभी कभी मुझ पर हावी होने की कोशिश भी किया करतीं थीं,मैं रात में अचानक डर जाता था,फिर मैनें वो काम छोड़ दिया,बूढ़ा बोला।।
डर के कारण जल्लाद का काम छोड़ दिया,कुलभूषण ने पूछा।।
नहीं! उसका तो कोई और ही कारण था,बूढ़ा बोला।।
वो क्या कारण था?कुलभूषण ने पूछा।।
मैं जल्लाद था इसलिए कोई भी अपनी लड़की की शादी मुझसे नहीं करना चाहता था,जब भी मेरे पिता किसी के घर मेरे रिश्ते के लिए जाते तो लड़की वाले पूछते कि लड़का क्या करता है?जब मेरे पिता कहते कि जल्लाद है तो रिश्ता होने से पहले ही टूट जाता,बूढ़ा बोला।।
ये सुनकर कुलभूषण जोर जोर से हँसने लगा जब उसकी हँसी खतम हुई तो फिर उसने बूढ़े से पूछा....
फिर इसके बाद कौन सा काम किया?
फिर मैं श्मशानघाट में लाशें जलाने लगा,इस काम को भी लोंग पसंद नहीं करते और फिर तब भी मेरा रिश्ता नहीं हुआ,इसलिए मैनें वो काम भी छोड़ दिया,बूढ़ा बोला।।
उसके बाद आपने कौन सा काम शुरु किया?कुलभूषण ने पूछा।।
कुलभूषण की बात सुनकर बूढ़ा बोला....
फिर मैं मुर्दाघर में काम करने लगा,काम का पहला दिन था, मुर्दे तो मैनें पहले भी उठाएं थे लेकिन पहली दफे ही किसी ऐसे मुर्दे को को हाथ लगाया था जो कई दिन पहले मर चुका था, जहरखुरानी का केस था, नीला पड़ा शरीर अकड़ा हुआ था,सारा दिन मेरे हाथ पैर कांँपते रहे,ऐसा लगा कि किसी भी पल या तो वो जिंदा हो उठेगा या मैं मुर्दा हो जाऊँगा,उबकाई आती थी, खाना नहीं खा पाता था, चाहे जितना हाथ धोऊं या नहाऊं, शरीर किसी लाश की तरह गंँधाता हुआ लगता था, फिर यूँ ही पच्चीस साल बीते, परिवार से ज्यादा वक्त शवों के साथ बीतता है और घर से ज्यादा मुर्दाघर में,बाइस बरस का था जब जरूरतों ने वहांँ भेजा,कितने ऐसे दिन बीते, जब रात केवल लाशों के बारे में सोचते बीतती, बॉडी को वार्ड से लाना, साफ करना, लेबल लगाना, पैक करना और फिर परिजनों का इंतजार करना और इन सबके बीच हर लाश की कहानी जानने को दिल करता, कैसा इंसान रहा होगा?कैसी जिंदगी जी होगी? कभी नन्ही लाश देखता, कभी जवान, जीते-जी मैं जिनकी मदद न कर सका, मौत के बाद उन्हें सहेजने का काम निहायत नरमी से करता था,हर तरह से उन्हें ‘आराम’ देने की कोशिश करता था, धक्का न लगे तो संभालकर स्ट्रेचर पर रखता था,शायद इससे ही उन्हें थोड़ी तसल्ली मिल जाए,शरीर की चीर-फाड़ चिकन-मछली-मीट से अलग होती है, रोज करते हैं लेकिन रोज वही तकलीफ होती है,पोस्टमार्टम के बाद कटे हुए शरीर को करीने से सिला जाता है,कोशिश रहती थी कि वो 'जिंदा-जैसा' मुर्दा लगे,
‘बॉडी’बहत्तर घंटों तक रखी जाती थी, फिर अड़तालीस घंटों की अवधि और मिलती थी, खींच-खांँचकर एक हफ्ते तक लाश रखी जा सकती थी, लावारिस लाशों को पुलिसवाले अंतिम संस्कार के लिए ले जाते थे कई बार ऐसे मामले भी आते थे, जब अटेंडेंट के पास बॉडी ले जाने तक के पैसे नहीं होते थे,तब हम सारे लोग मिलकर जितना हो सकता था पैसा जोड़ते थे और उसे शव दे देते थे,कई बार तो लावारिस शरीर पड़े रहते थे,तब हम अस्पताल के सोशल वर्कर की मदद लेते थे ताकि कम से कम उन सबका अंतिम संस्कार तो हो सके,
ऐसा ही एक लावारिस शरीर वहाँ आगें अँधेरें में पड़ा है,मैं अभी देखकर आया हूँ,बाबूजी! अगर आप स्टेशन मास्टर को खबर कर देगें तो बहुत कृपा होगी,क्योंकि मैं जाऊँगा तो कोई भी मेरी बात नहीं मानेगा,
क्यों ?आपकी बात क्यों नहीं मानेगें? कुलभूषण ने बूढ़े से पूछा।।
क्योंकि मैं हरदम शराब के नशे में धुत्त रहता हूँ,बेटा बहु ने घर से निकाल दिया है इसलिए स्टेशन में पड़ा रहता हूँ,इसलिए कोई भी मेरी बात पर भरोसा नहीं करेगा,सब कहेगें कि मैं नशे में कह रहा हूँ,बूढ़ा बोला।।
अच्छा! बाबा! नाम क्या है तुम्हारा?कुलभूषण ने पूछा।।
मेरा नाम रामआसरे है,अच्छा तो मैं चलता हूँ आप जल्दी से स्टेशन मास्टर को खबर कर दो और इतना कहकर रामासरे चला गया।।
रामआसरे के जाने के बाद कुलभूषण खबर कहने चला गया,स्टेशन मास्टर ने किसी खलासी को कुलभूषण के साथ भेज दिया,खलासी ने उस जगह पर जाकर मुआयना किया तो सच में वहाँ कोई शरीर पड़ा था,खलासी ने उसकी नब्स देखी तो वो सच में बंद थी,फिर टाँर्च जलाकर उस शव का चेहरा देखा तो खलासी बोल पड़ा.....
ये तो रामआसरे है,लगता है बेचारा इस दुनिया से अलविदा हो गया,
कुलभूषण ने इतना सुना तो फौरन खलासी के हाथ से टाँर्च छीनकर उस शव का चेहरा देखा,वो सच में रामआसरे ही था और बगल में उसका कम्बल भी पड़ा था,अब कुलभूषण बहुत डर गया था,उसने सोचा कि वो इतनी देर से एक आत्मा से बात कर रहा था,अब डर के मारे बाकी रैना कैसे बीतेगी?

समाप्त.......
सरोज वर्मा......