अनुमंडल अधिकारी अपूर्व सक्सेना मीटिंग में थे जब उनका मोबाइल घनघनाया। कॉल किसी अनजान नंबर से था। कई बार रिंग होने एवं किसी जरूरी कॉल के अंदेशे से फोन रिसीव किया।
"हैलो, हू इज़ दिस?" – सक्सेना साहब ने पूछा।
"सक्सेना, मैं जिलाधिकारी मिहिर सिंह बोल रहा हूं।"– दूसरी तरफ से रौबदार आवाज आई और सक्सेना साहब मीटिंग छोड़ तेज कदमों से कक्ष से बाहर की तरफ लपके।
"गुड मॉर्निंग, सर!" – बड़े अदब से अनुमंडलाधिकारी ने फोन पर अभिवादन पूर्वक कहा।
"गुड मॉर्निंग, सक्सेना!"– जिलाधिकारी ने दूसरी तरफ से उत्तर दिया फिर पूछा –"मीटिंग में हो?
"यस सर, रेगुलर मीटिंग ले रहा हूं।"
"ठीक है, फ्री होना तब कॉल करना।"
"नहीं, नहीं....आप बताएं, सर? कैसे कॉल किया? – सक्सेना साहब से शिष्टाचारवश कहा।
"कोई बात नहीं सक्सेना। तुम मीटिंग खत्म करके कॉल करना। मैंने किसी निजी कारण से फोन किया है।"– जिलाधिकारी ने बताया।
निजी कार्य और वो भी जिलाधिकारी का! अनुमंडलाधिकारी सक्सेना साहब के लिए तो यह स्वर्णिम अवसर था। भला ऐसा मौका वह हाथ से कैसे जाने देते!
"सरकारी काम तो चलता ही रहेगा, सर। निवेदन है आपसे, आप बताएं...मेरे लिए क्या हुक्म है? कम से कम आपने मुझे इस लायक तो समझा!"
"कैसे कहूं सक्सेना....कुछ समझ नहीं आ रहा!" – दूसरी तरफ से जिलाधिकारी महोदय की झिझकती हुई आवाज आई।
"सर, आप बताएं तो सही! या फिर आदेश दें तो मैं आपके ऑफिस आ जाऊं?" – शब्दों में जरूरत से ज्यादा मिठास घोलते हुए अनुमंडलाधिकारी ने कहा।
"अरे...नहीं नहीं सक्सेना, इतनी जहमत उठाने की कोई जरूरत नहीं। वो, दरअसल, मैने इसलिए कॉल किया था कि मेरी मां गांव पर बहुत बीमार है और मैं अभी एक जरूरी मीटिंग में बैठा हूं। इसलिए उसे पैसे भी ट्रांसफर नहीं कर पा रहा। अगर संभव हो तो...यार एक लाख रुपए मां के खाते में जमा करा देना। शाम में घर लौटते ही पैसे तुम्हारे एकाउंट में ट्रांसफर कर दूंगा।" – जिलाधिकारी ने कृतज्ञ भाव से कहा।
"अरे ऐसा मौका फिर कहां मिलेगा" की तर्ज पर अनुमंडलाधिकारी ने तपाक से कहा –" सर, आप बिल्कुल चिंता न करें। आपकी मां, मतलब मेरी मां। आप बस माताजी के खाते का नंबर मैसेज करें। मैं अभी जमा करा देता हूं।"
"थैंक्स यार, तुमने तो मेरी परेशानी चुटकियों में हल कर डाली! थैंक यू सो मच, सक्सेना!!"
"सर, अब आप न...मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं। आप बस खाता संख्या भेजिए और माताजी को बेफिक्र होकर इलाज कराने बोलिए।"
"ओके, मैं खाता संख्या भेजता हूं।" बोलकर जिलाधिकारी ने फोन काट दिया और कुछ ही मिनटों बाद खाता संख्या की जानकारी अनुमंडलाधिकारी के मोबाइल पर आ गई।
मीटिंग अधूरा छोड़ सक्सेना साहब ने पहले मानवसेवा को तवज्जो दिया और अपने चैंबर में आकर एक लाख रुपए दिए गए खाते में ट्रांसफर कर दिए। फिर शान से मीटिंग कक्ष में आकर अधिकारियों के साथ बैठक में व्यस्त हो गए।
कुछ ही मिनटों बाद उसी नंबर से "धन्यवाद" का मैसेज आया, जिसे देख अनुमंडलाधिकारी महोदय का सीना गर्व से चौड़ा हो गया जैसे यह प्रोन्नति का प्रमाणपत्र हो।
इस घटना के कुछ ही दिन बीते थे और सक्सेना साहब अपने व्यस्त दिनचर्या में गुम हो चुके थे। हालांकि मदद की गई राशि अभी भी खाते में वापस नहीं लौटी थी। पर मदद जिलाधिकारी को की गई थी। इसलिए सक्सेना साहब तनिक भी चिंतित न थे।
तभी एकदिन फिर से एक अनजान नंबर से कॉल आया। पहली रिंग बजने पर सक्सेना साहब ने कॉल उठा लिया जैसे इसी का इंतजार कर रहे हों।
"सक्सेना, मैं जिलाधिकारी बोल रहा हूं। कहो, कैसे हो?"
"बढ़िया हूं, सर! आप बताएं, आप कैसे हैं? ...और माताजी कैसी हैं? बताएं सर, कैसे फोन किया? मेरे लायक कोई सेवा हो तो हुक्म करें? " – एक ही सांस में अनुमंडलाधिकारी ने सारी बातें कह डाली।
"तुम्हारी मदद से मां की सेहत पहले से काफी बेहतर हैं, सक्सेना। मैं उधर राउंड पर आता हूं तो तुम्हारे पैसे लौटा दूंगा। माफी चाहूंगा मित्र, व्यस्तता की वजह से तुम्हारे पैसे नहीं भेज पाया!"– जिलाधिकारी महोदय ने शर्मिंदगी जाहिर की।
"सर, आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं! मुझे अपना छोटा भाई समझें! माताजी भली चंगी हो जाएं, ये ही मेरे लिए सबसे बड़ी बात है।"– जिलाधिकारी को शांत करते हुए अनुमंडलाधिकारी ने कहा।
"यार सक्सेना, इतनी मदद की तो मेरा एक काम और करना। पचास हजार रुपए उसी खाते में जमा कर देना, जिसमें पहले जमा किया था। मैं कल ही उधर राउंड पर आता हूं तो खुद अपने हाथो से चेक से पे कर दूंगा।"– जिलाधिकारी ने कहा।
"ठीक है, सर। आप चिंता न करें। पचास हजार क्या चीज है, आप कहें तो एक लाख भेज दूं?" – मौके पे चौका लगाते हुए अनुमंडलाधिकारी ने पूछा।
"थैंक यू, यार! थैंक यू सो मच! तुम अगर मेरी मदद नहीं करते तो पता नहीं मैं कितनी मुसीबत में पड़ जाता!"
"तकल्लुफ की कोई आवश्यकता नहीं, सर! आपने कह दिया, समझिए हो गया। आप माताजी को फोन करके कहें कि खाते की जांच कर लें। मैं अभी अकाउंट ट्रांसफर किए देता हूं।"–अनुमंडलाधिकारी सक्सेना साहब ने पूरे आत्मविश्वास से कहा।
अपने अधीनस्थ इतने नरमदिल, सहृदय और आत्मीयता से लबरेज अधिकारी के साथ काम करने को खुद का सौभाग्य बताकर जिलाधिकारी ने कॉल काट दिया।
सक्सेना साहब की छाती आज फिर से फूली हुई थी। आखिर कुछ बात तो देखी होगी जिलाधिकारी ने, जो हर बार मदद के लिए अपने आसपास के अधिकारियों को छोड़ उसे ही चुना था। मन में तरह–तरह के ख़्वाब बुनते अनुमंडलाधिकारी ने पैसे ट्रांसफर कर दिए।
पिछली बार की भांति सक्सेना साहब से आशा लगा रखी थी कि जिलाधिकारी की तरफ से मैसेज के रूप में कोई धन्यवाद ज्ञापन प्राप्त होगा। पर अबकी ऐसा कुछ न हुआ।
शायद डी एम साहब किसी मीटिंग में व्यस्त हो गए होंगे– ऐसा सोच अनुमंडलाधिकारी अपने काम में व्यस्त हो गए। कहे अनुसार अगले दिन जिलाधिकारी भ्रमण पर अनुमंडल कार्यालय पहुंचे। अनुमंडलाधिकारी ने भी पूरे जोश और खरोश से उन्हे हर रिपोर्ट की जानकारी दी। सक्सेना साहब की कार्यप्रणाली से जिलाधिकारी काफी खुश लगे।
मौका देखकर सक्सेना साहब ने जिलाधिकारी से पूछ ही लिया –"सर, आपकी माताजी की तबीयत अब कैसी है?"
"माताजी की तबीयत? अच्छी है! पर आप क्यूं पूछ रहे हैं??"– जिलाधिकारी ने आश्चर्य से पूछा।
"सर, आगे भी किसी तरह की मदद की जरूरत हो तो बेझिझक बताएं!"– अपना सीना चौड़ा कर चेहरे पर गर्व के भाव लाकर अनुमंडलाधिकारी ने कहा। लेकिन ऐसी बातें सुन जिलाधिकारी की भौवें तन गई और घूरते हुए वह बोले –"सक्सेना जी, एक बात आप अच्छे से समझ लें। किसी भी निजी हित के लिए अधिकारियों की मदद लेना मुझे पसंद नहीं।"
जिलाधिकारी की ऐसी बात सुन अनुमंडलाधिकारी सक्सेना साहब का चेहरा उतर गया और लटके हुए मुंह से वह बोले –"वो सर, आपने कहा था न...आपकी माताजी के खाते में पैसे ट्रांसफर करने के लिए। इसीलिए मुझे लगा कहीं फिर से कोई जरूरत तो नहीं आन पड़ी और मैंने पूछ लिया!"
"पर मेरी माताजी तो बिल्कुल स्वस्थ हैं!! और मैने तो आपको कभी कोई पैसे ट्रांसफर करने के लिए भी नहीं कहा!"– सक्सेना साहब की बातों से अनभिज्ञता जाहिर करते हुए जिलाधिकारी ने बताया। अनुमंडलाधिकारी ने फिर सारी बातें जिलाधिकारी महोदय को विस्तार से बताई। यही नहीं जिस नंबर से कॉल आया था उसपर कॉल भी लगाया तो वह बंद आ रहा था।
जिलाधिकारी को समझते देर न लगी कि मामला धोखाधड़ी का है। किसी ने उनके नाम पर अनुमंडलाधिकारी से पैसे ठग लिए थे।
"बिना देर किए आप थाने में रपट लिखाएं, सक्सेना साहब। आप ठगे जा चुके हैं।" – जिलाधिकारी ने सक्सेना साहब से कहा और खुद भी साइबर सिक्योरिटी सेल फोन लगा सारे मामलों की पड़ताल करने का आदेश दिया।
बेचारे अनुमंडलाधिकारी अपना ठगा सा मुंह लिए थाने की तरफ लपक पड़ें।
अंजान फोन कॉल से सदैव सतर्क रहें। धन्यवाद
© श्वेत कुमार सिन्हा