प्रवेश परीक्षा Shwet Kumar Sinha द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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प्रवेश परीक्षा

प्राचीनतम नालंदा विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा विश्व की कठिनतम परीक्षाओ में से एक मानी जाती थी। मेरा निवास स्थान इससे कुछेक किलोमीटर दूरी पर ही स्थित है। आज भी आसपास के इलाकों से इस विश्वविद्यालय से जुड़ी कई किवदंतियाँ सुनने को मिल ही जाती हैं।

यह प्रवेश परीक्षा विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर ही लिया जाता। जो चुन लिया जाता, उसे प्रवेश मिल जाता। प्रवेश पाने के लिए आर्यदत्त कतार में खड़ा अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था। द्वारपाल सभी उम्मीदवारों को एक कार्य सौंपता। पर, उसे पूरा कर पाने में सभी असमर्थ थें और एक-एक कर सब वापसी की राह पकड़ रहे थें। प्रवेश परीक्षा के कठिन होने की बात तो उसने सुन ही रखी थी और आज उसका प्रत्यक्षदर्शी भी था। आर्यदत्त मन ही मन भी चिंतित हो उठा, पर कौतुहलवश यह जानने की कोशिश की कि आखिर ऐसा कौन-सा कार्य दिया जा रहा है जिसे पूर्ण कर पाने में सभी असमर्थ हैं।

पता चला कि द्वारपाल सभी अभ्यर्थियों को शास्तार्थ के बजाय बड़ा ही अजीब और बेढंगा-सा कार्य सौंप रहा है। प्रवेश के लोलुप अभ्यर्थी को अपने पूरे बदन पर गीली मिट्टी डालना था तथा एक छोटे से पात्र में रखे जल से पूरा बदन साफ करना था। एक-एक कर सभी उम्मीदवार गीली मिट्टीा से सने शरीर को थोडे़ से जल से धोने का असफल प्रयास करते और वापस लौट जाते।

अपनी कतार में खड़ा आर्यदत्त इस अबुझ पहेली को बडे़ ध्यान से देखने-समझने की कोशिश कर रहा था। कार्य पूरा करने की कोई समय-सीमा नहीं दी गई थी और अभ्यार्थी अपना पूरा समय ले सकता था।

आर्यदत्त की बारी आने तक दोपहर हो चुका था और वह पसीने से ओत-प्रोत हो गया। द्वारपाल के निर्देशानुसार आर्यदत्त ने भी अपने ऊपर गीली मिट्टी डाली और एक छोटे से पात्र में रखा जल लेकर खुद को साफ करने के बजाय एक किनारे जा बैठा। द्वारपाल ने उसे ऐसा करते देख कुछ न कहा और उसके पीछे खड़े अन्य उम्मीदवारों को आगे बढ़ते रहने का आदेश दिया। एक-एक कर सभी आतें और असफल हो गिली मिट्टीन से सना बदन लिए लौट जाते। दोपहर से अब शाम हो गई और आर्यदत्त मिट्टी से सना अपना गीला बदल लिए एक ही स्थान पर बैठा रहा। उसके पास एक प्रहरी लगा द्वारपाल भी चले गए।

अगले दिन, द्वारपाल आऐं तो आर्यदत्त को गीली मिट्टील से लिपटा हुआ उसी जगह पर पाया । सिर से लेकर पांव तक मिट्टी धीरे-धीरे सुखने लगी थी। पानी से भरा छोटा-सा पात्र वही पास रखा था, जिसे आर्यदत्त ने एक पत्ते से ढंक दिया था।

दिन चढ़ने लगा और सुरज भी अब माथे पर आ चुका था। गीली मिट्टी आर्यदत्त के बदन पे पूरी तरह से सुख चुकी थी। अब वह अपनी जगह से उठा। अपने पूरे बदन पर सुख चुकी मिट्टीआ को एक साफ कपड़े से मल-मल कर छुड़ाया। जो थोड़ी-बहुत मिट्टीर शरीर पे जमी थी, उसे पात्र में रखे जल से साफ कर डाला। अब आर्यदत्त का बदन गीली मिट्टीव से पूरी तरह आज़ाद हो चुका था और पात्र में अभी भी थोड़े से जल बचे हुए थें।

आर्यदत्त को देख द्वारपाल मुस्कुराया। नालंदा विश्वविद्यालय का द्वार आर्यदत्त लिए खुल चुका था। प्रश्न के हल होते ही द्वारपाल ने कतार में खड़े अन्य उम्मीदवारों के लिए अपना प्रश्न बदल दिया।

। । समाप्त । ।