शेष जीवन (कहानियां पार्ट 3) Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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शेष जीवन (कहानियां पार्ट 3)

2--बदला
"साहब है/"
"नही।गाज़ियाबाद गए है।रात तक लौट आएंगे।कोई काम है?"रचना ने राम दीन से पूछा था।
"नही।काम तो कुछ भी नही है।साहब के नाम एक लिफाफा आया था।साहब छुट्टी पर है।मैने सोचा शायद जरूर हो इसलिए देने चला आया।"
"लाओ मुझे दे जाओ।"राम दीन, रचना को लिफाफा देकर चला गया।
रचना ने लिफाफा उलट पलट कर देखा।भेजने वाली कोई सपना थी।लिफाफे पर भेजने वाले के नाम की जगह औरत का नाम देखकर रचना चोंक्की थी।राहुल की रिश्तेदारी या परिचित में सपना नाम की कोई औरत नही थी।फिर लिफाफा भेजने वाली यह सपना कौन है?
औरत स्वभाव से ही शक्की होती है।वैसे रचना पति के नाम से आये पत्रो को कभी नही पढ़ती थी। लेकिन लिफाफे पर एक अपरिचित औरत का नाम देखकर रचना अपने आप पर काबू नही रख सकी।वह पति के नाम से आये लिफाफे को खोलकर पढ़ने लगी।
मिस्टर राहुल,
नमस्ते।
शायद आप मुझे भूल गए होंगे।मै भी भूल जाती।आपको और उस रात हमारे बीच जो कुछ केबिन में हुआ था।लेकिन अब मैं भुलाना चाहूँ तो भी नही भूल सकती।सात साल का वैवाहिक जीवन लम्बा होता है।शादी होकर घर मे कदम रखते ही हर सास अपनी बहू से एक ही बात कहती है।अब जल्दी से पोते का मुंह भी दिखा देना।मेरी सास ने भी मुझ से यही बात कही थी।हर विवाहिता की साध होती है,मातृत्व।माँ बनकर ही औरत सम्पूर्ण कहलाती है।मै भी माँ बनना चाहती थी।पर धीरे धीरे मेरी यह आस टूटती गयी।और जब सात साल बाद भी मै माँ नही बनी तो सास ने मुझे बांझ की उपाधि दे दी।वह अपने बेटे की दूसरी शादी के बारे में सोचने लगी थी।मैं परेशान थी और मायके जा रही थी।ट्रेन के फर्स्ट क्लास के उस दो बर्थ के केबिन में मेरे साथ तुम थे।हम दोनों बातें करने लगे और बातो ही बातों में इतने करीब आ गए कि
तुमने मेरा हाथ पकड़ लिया।मैने विरोध किया लेकिन शायद मेरे विरोध में दम नही थी।और तुम मुझ पर छाते चले गए।पति के बाद तुम दूसरे मर्द थे जिसने मुझे भोगा था।जो कुछ हमारे बीच हुआ वह अनैतिक था।मैं पथभर्स्ट हो गयी थी।लेकिन तुम्हारी जबरदस्ती ने मुझे परित्यक्ता होने से बचा लिया था।
मेरा पति समझता है कि मेरे बच्चे का पिता वह है।लेकिन मैं जानती हूँ कि मेरे बच्चे का पिता मेरा पति नही बल्कि तुम हो।इस जीवन मे शायद हमारी मुलाकात फिर न ही।लेकिन मेरा बच्चा हमेशा मुझे तुम्हारी याद दिलाता रहेगा।
सपना
उस पत्र को पढ़ने के बाद रचना के तन बदन में आग लग गयी।जिस राहुल को वह अपना समझती थी।वह अब सिर्फ उसका नही रहा था।राहुल ने उसके साथ विश्वासघातK किया था।उसे धोखा दिया था।उस से बेवफाई की थी।कहाँ गयी राहुल की वो कसमे जो उसने सुहागरात को खाई थी।
रचना के अतीत के पन्ने उसकी आँखों के सामने खुलने लगे।
राहुल और रचना की मुलाकात एक पार्टी में हुई थी।पहली ही मुलाकात में दोनों के दिल मे कुछ कुछ हुआ था।राहुल को रचना की सुंदरता और शालीनता ने प्रभावित किया था।रचना को राहुल के आकर्षक व्यक्तित्व और सादगी ने प्रभावित किया था।दोनो का परिचय होने पर राहुल,रचना से बोला,"मेरी दोस्त बनोगी?"
"श्योर,"और रचना ने दोस्ती का राहुल का हाथ थाम लिया था।