Ek bund Ishq - 26 books and stories free download online pdf in Hindi

एक बूंद इश्क - 26

२६.सगाई



रुद्र के फैसले से रणजीत जी बहुत खुश हुए थे। रूद्र ने आज़ तक जिंदगी को कभी सिरियस नहीं लिया था। जब की उसने आज़ अपर्णा की बिमारी के बारे में जानकर भी उससे शादी करने का फैसला लिया। इस बात से रणजीत जी को रुद्र पर गर्व महसूस हो रहा था। क्यूंकि प्यार वो नहीं जो मुश्किल घड़ी में आपका साथ छोड़ दें। प्यार तो वो है, जो मुश्किल वक्त में आपका हाथ थामकर आपके साथ चले।
रणजीत जी ने खुश होकर रूद्र और अपर्णा को आशीर्वाद दिया। उन्होंने तुरंत दोनों की शादी की तैयारियां शुरू कर दी। जो कि रूद्र कल ही शादी करना चाहता था। लेकिन रणजीत जी की इच्छा थी कि वह अपने बेटे की शादी धामधूम से ना सही, लेकिन पूरे विधि-विधान के साथ करें। इसलिए उन्होंने अभी से पंडित जी को फोन करके तैयारी शुरू कर दी। रुद्र और अपर्णा ने पूरे परिवार के आशीर्वाद लिए।
सावित्री जी ने अपर्णा के पास आकर कहा, "बेटा! अब तुम कुछ देर के लिए आराम करो। आज़ शाम को तुम दोनों की सगाई है, तो मैं तुम्हारे कपड़े और गहने तुम्हारे कमरे में भिजवा देती हूं।"
"अगर किसी को कोई एतराज़ ना हो तो मैं अपर्णा को अपने परिवार के साथ अपने घर ले जाऊं? मेरी इच्छा है कि अपर्णा की शादी मेरे मुंबई वाले घर से हो।" वंदिता जी ने कहा।
वंदिता जी की बात सुनकर सब रुद्र की ओर देखने लगे। लेकिन रुद्र अपर्णा की ओर देख रहा था। उसे उसका चेहरा देखकर ही समझ आ गया की अपर्णा की अपनी मम्मी के घर जानें की इच्छा है। लेकिन रुद्र अपर्णा को एक पल के लिए भी खुद से दूर जाने देना नहीं चाहता था। फिर भी जब सावित्री जी ने पलकें झपकाकर रूद्र को हां कहने के लिए कहा तो रुद्र ने बेमन से कह दिया, "ठीक है, लेकिन अगर उसे कोई भी तकलीफ़ हो, तो आप पहला फोन मुझे करेंगी।"
"जरुर।" वंदिता जी ने कहा। अपर्णा कुछ ही देर में अपना सामान लेकर आ गई। तब तक वंदिता जी ने गाड़ी मंगवा ली। उन्होंने अपर्णा, चाचा-चाची और अखिल जी सब को उस गाड़ी में अपने घर भेज दिया और खुद अपनी गाड़ी में कहीं और चलीं गईं। इतने सालों में उन्होंने नाम के साथ बहुत सारा पैसा कमाया था। बहुत सारे शहरों में उनके बिजनेस की शाखाएं थी। एक ऐसी ही शाखा मुंबई में भी थी। इसलिए उन्होंने यहां भी एक घर लिया था। कुछ देर बाद गाड़ी वंदिता जी के घर के सामने रुकी। घर काफी बड़ा था। एक नौकर आकर सब के बैग्स ले गया। फिर सब उनके पीछे अंदर चले आएं।
अपर्णा ने अंदर आकर घर का मुआयना लेना शुरू कर दिया। उसकी नज़र घर के मंदिर की ओर गई। तो वह उस ओर चली गई। उसने महादेव और पार्वती जी की मूर्ति के सामने अपने हाथ जोड़ लिए और मन ही मन कहने लगी, "आपका बहुत-बहुत धन्यवाद! जो आपने मुझे एक साथ इतनी सारी खुशियां दी। मुझे पहले भी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी। मैंने अकेले जीना और आगे बढ़ना सीख लिया था। लेकिन आपने मुझे आज़ जो दिया। उसके लिए मेरे पास आपका शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं है। फिर भी जिंदगी के आखरी वक्त में मुझे मेरे एक बूंद इश्क का हक देने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!"
अपर्णा भगवान का शुक्रिया अदा करके आई। तब तक नौकर सब के लिए चाय-नाश्ता ले आया। कुछ देर बाद वंदिता जी बहुत सारी शोपिंग बैग्स के साथ घर लौटी। वह सब के लिए कपड़े और गहने लेकर आई थी। इतने सालों में वह जितना खुश नहीं हुई। उतनी खुश आज़ लग रही थी। उन्होंने अपर्णा को उसके कपड़े देते हुए कहा, "ये सगाई में पहनने के कपड़े और गहने है और कल शादी की रस्मों में पहनने के कपड़े और गहने कल सुबह आ जाएंगे।"
"माँ! इतना सब कुछ करने की क्या जरूरत थी? वैसे भी वहां घर के ही लोग होंगे।" अपर्णा ने कहा।
"इतने सालों में मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाई। अब मौका मिला है, तो करने दो और मुझे तुम्हारे रिपोर्ट्स दे देना। मैं मेरे पहचान के डॉक्टर से बात कर लूंगी। अगर कोई इलाज़ हुआ तो..." वंदिता जी ने बात आधी ही छोड़ दी।
"मैं रक्षाबंधन के बाद मुंबई लौटी तभी मुझे मेरी बिमारी के बारे में पता चला। मैं सड़क पर बेहोश हो गई थी। तो एक लड़की मुझे हॉस्पिटल ले गई थी। डॉक्टर ने बताया है कि इसका कोई इलाज़ नहीं है।" अपर्णा ने कहा।
अपर्णा की बात सुनकर वंदिता जी ने उसे गले लगा लिया। उनकी आंखें भर आईं। जिस बेटी का उन्होंने आज़ तक कोई मोल नहीं समझा। वहीं बेटी को मौत के करीब जाता देखकर आज़ सालों बाद उन्हें अपने आप पर गुस्सा आ रहा था। लेकिन अब वक्त हाथ से निकल चुका था। वंदिता जी ने जितना वक्त बचा था। उसी में अपर्णा को सभी तरह की खुशियां देने का सोच लिया। अपर्णा ने उनको अपने रिपोर्ट्स दिए। वंदिता जी उन्हें लेकर चलीं गईं। अपर्णा अपने कमरे में आकर शाम में होनेवाली अपनी सगाई की तैयारी करने लगी। सारी तैयारी के बाद उसने कुछ देर आराम किया।
शाम सात बजे वंदिता जी डॉक्टर से मिलकर घर आई। बाकी सब तैयार हो चुके थे। लेकिन अपर्णा कहीं दिख नहीं रही थी। वंदिता जी तुरंत उसके कमरे में चली आई। जहां अर्पणा तैयार हो रही थी। वंदिता जी ने उसे अपने हाथों से तैयार किया। अपर्णा लहंगे में काफ़ी सुंदर लग रही थी। अपर्णा को तैयार करनें के बाद वंदिता जी भी तैयार हो गई। फिर सब अग्निहोत्री हाऊस जाने के लिए निकल गए।

रणजीत जी ने अपने बेटे की सगाई में दिल खोलकर खर्चा किया था। शाम तक तो उन्होंने पूरे घर को फूलों और लाईटों से सजा दिया था। सगाई में घर के और खास रिश्तेदार ही शामिल हुए थे। वंदिता जी भी अपने परिवार के साथ अंदर आ गई। अग्निहोत्री परिवार ने उनका खुशी-खुशी स्वागत किया।
रुद्र ने अपर्णा को देखा तो बस देखता ही रह गया। अपर्णा इतनी खुबसूरत लग रही थी कि रूद्र का मुंह खुला का खुला रह गया। विक्रम ने देखा तो उसके पास आकर कहने लगा, "बेटा! मुंह तो बंद कर लें। मक्खी अंदर घुस जाएंगी।"
रुद्र ने सुना तो झेंप गया और इधर उधर देखने लगा। ये देखकर विक्रम और स्नेहा हंसने लगे। सावित्री जी अपर्णा को लेकर रुद्र के पास आई। सगाई के लिए एक स्टेज तैयार किया हुआ था। उस पर दो कुर्सियां लगाई थी। रुद्र और अपर्णा को उन पर बिठाया गया। फिर पंडित जी के आते ही सगाई की विधि शुरु हुई। रुद्र और अपर्णा ने एक-दूसरे को अंगूठी पहनाई। रुद्र के दोस्त तो बहुत खुश थे। कबीर भी सगाई में आया हुआ था। अपर्णा की बिमारी के बारे में सुनकर वह थोड़ा दुःखी भी था और साथ ही अपर्णा को उसके मम्मी-पापा वापस मिल गए और उसे रुद्र जैसा हमसफ़र मिला इसके लिए खुश भी था।
सगाई के बाद रुद्र और अपर्णा ने सभी बड़ों के आशीर्वाद लिए। दादाजी भी अब तो ठीक हो गए थे। इस सगाई से सब से ज़्यादा खुश वहीं थे। आज़ उन्होंने अपनें दोस्त से किया वादा पूरा जो हुआ था। कल अपर्णा अग्निहोत्री परिवार की बहू बन जानेवाली थी। सभी लोग इस खुशी के मौके का दिल खोलकर स्वागत कर रहे थे।


(क्रमशः)

_सुजल पटेल


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