स्वप्नशास्त्र - अंगूठी की चमक गायत्री शर्मा गुँजन द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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स्वप्नशास्त्र - अंगूठी की चमक

गर्मियों का मौसम है और धरती अंगारों की तरह तप रही है , पवन की गति भी आड़ी तिरछी यानी एक तरफ ना बहकर हवाएँ भी रुख बदल रही है ना जाने किस ओर से लू के थपेड़े पड़ जाए नहीं मालूम !
अब शरद ठहरा आलसी लड़का आज घर पर बहुत काम था शरद की मम्मी देविका ने आवाज लगाया........' शरद....! बेटा गेंहू पिसवा ला...!!
शरद- माँ मेरा मूड नहीं है आई काँट गो एनीह्वेयर !!
देविका- हाँ हाँ झाड़ इंग्लिश झाड़ खूब झाड़ ...तू रुक अभी आ रही हूं!
और देविका कपड़े सूखने को डालकर बाल्टी हाथ मे पकड़े आई ।
शरद ने देखा मम्मी यहीं पर हैं ..... उसके मुंह से सहसा ही निकला ओह..! शिट ....! आज तो गया ...!
और माँ ने जोर से कान खींचकर उठक- बैठक कराया !
यह देखकर शरद की बड़ी बहन शारदा को तरस आ गया । शारदा ने अपनी किताब बंद की और बोली ......माँ ....! मत मारो भाई को जाने दो उसे , मैं गेंहू पिसवा लाती हूँ ।
माँ ने बोला...." ठीक है बेटी देर आये दुरुस्त आये । इतना ही बचाव करना था अपने छोटे भाई का तो पहले ही बोल देती ।
शारदा- ओह हो माँ क्या बात का बतंगड़ बना देती हो । और शारदा निकल पड़ी गेंहू लेकर अपने स्कूल जाने वाले साइकिल पर बैठे पीछे गेंहू का कट्टा रखकर मजबूत टायर से बांधे हुए गेंहू की बोरी जिसका वजन वह स्वयम उठा सकती थी।
जितना सक्षम होती उतना ही वजन ले जाया करती, मजाल है किसी बाहरी इंसान की वह मदद भी ले ले । कत्तई नहीं !
रास्ते मे जाते हुए रोड जाम का सामना करना पड़ा कुछ दूर वह गुनगुनाते हुए अपनी स्कूल साइकिल चलाते हुए ऐसे जा रही थी मानो पीछे गेंहू की जगह किताबो से भरा बस्ता ही है । चौराहे पर एक ट्राली ने हद मच दिया रोड के बीचों बीच आ धंसा अब आवाजाही 2 घण्टे से दूभर है ।
उफ्फ्फ अब क्या करूँ .... शारदा ने खुद में ही बड़बड़ाते हुए एक आदमी पर गुस्सा उतार दिया । अंकल अपनी फटफटिया स्कूटर और आगे ले जाओ या पीछे मुड़ जाओ। देखो एक तो रोड जाम और ऊपर से आपके फटफटिया का धुआँ ....! आई एम टेलिंग यु आई एम सो फ्रस्ट्रेटेड फ्रॉम योर स्कूटर !!
अब वह बन्दा नाक सिकोड़ता हुआ ...." हाँ हाँ बड़ी आई फ्रस्ट्रेट होने । जा जा आगे निकल ।
शारदा ने बोला देख नही रहे हो आगे जाम है तो कैसे जाउँ ।
आदमी बोला- और मैं कैसे निकलता जब तुम मुझे बोली !
शारदा बिल्कुल चुप ...!
और एक किनारे साइकल से उतरकर खड़ी हो गई ।
जैसे तैसे जगह बनाते हुए कुछ दूर और निकली अब वह पिसाई के लिए दुकानदार को देकर वहाँ से वापस निकली ।
रास्ते मे देखती है कि कूड़े का एक बहुत बड़ा टीला है जैसे 3 या 4 पहाड़ आपस मे सटे हों एक भयानक पहाड़ जिसपर से कूड़े और सड़े हुए मलबे राहगीरों पर गिरता जा रहा था । शारदा भी बाल बाल बची। अब उसे उस ढेर के आगे खड़े होने के अलावा कोई चारा नहीं था ।
वह डरी हुई सी वहाँ खड़ी है और जाम को चारों तरफ से देखकर उसने कूड़े के टीले पर नजर घुमाया तो एक सूअर मरी पड़ी है जिसे कौआ नोचकर खा रहा है और उसी सुअर को एक दूसरा सुअर चारों तरफ से काटकर खा रहा है ।
वह जिंदा सुअर मरे हुए सुअर को ऐसे नोच रहा है मानो अब मांस और खून तेज धार के साथ बह जाएगा परन्तु......
हर बार यह दॄश्य होते होते रुक जाता । सहसा शारदा की आंख खुली और खुद को अपने कमरे में पाकर शांत हुई और दुबारा सो गई ।
शारदा ने देखा आज मंदिर दर्शन करने जा रही है बहुत खुशी का दिन है । क्योंकि बीती रात वह ठीक से सो नही पाई थी आज मंदिर जाने को वह तैयार हुई जब पुजारी जी से मिली माथा टेका और पुजारी जी को खुशी जाहिर करते हुए एक अंगूठी भेंट की ।
पुजारी जी उनके घर के पुराने पुरोहित भी थे और कोई भी काम उनकी रजामंदी से ही होता था ।
उन्होंने अंगूठी लिया जिसपर सोने की चमक थी सोना तो नहीं पर आर्टिफिशियल अंगूठी हूबहू सोने की शक्ल में थी ।
यह देखकर पुजारी जी हंसे और बोले बिटिया मैं ये नहीं पहनता।
शारदा बोली ... मुझे लगा आप पहनते हैं तो यह भी पहन लेंगे मुझे अच्छा लगेगा।
पुजारी जी बोले कोई बात नहीं दूसरा ले आना इसे मैं रख लेता हूँ और दाहिने तरफ एक पात्र में उस अंगूठी को रख दिया । शारदा का मान रखते हुए उसे आशीर्वाद दिया। और उसकी नींद उचट गई
जब यह वाकया माँ को बताने गई तो बीच आंगन में ही रुक गई उसने सपने को बार बार याद करके यह निष्कर्ष निकाला कि ....

सुअर का मांस, कूड़े का ढेर,अंगूठी देना ,और पुरोहित जी का आशीर्वाद यह सब सपने धन, ऐश्वर्य, और जीवन मे आने वाली नई खुशियों की सौगात तो नहीं !

उस अंगूठी की चमक शारदा की आंखों में बस गया था और देखते ही देखते अगले दो दिन बाद एक राजा के घर उनके छोटे बेटे और बहू को पुत्र रत्न प्राप्त हुआ । पण्डित् जी ने दैवीय बालक कहकर संबोधित किया जो आने वाले समय मे प्रजा का दुखहर्ता कहलायेगा।