यासमीन - भाग 8 गायत्री शर्मा गुँजन द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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यासमीन - भाग 8

उधर घर की बेबसी का आलम था तो स्कूल में यासमीन का जिक्र चलता रहा ।
सरताज़ - (कैलाश से बात करते हुए) ओए भाई हमारी क्लास की वो दबंग लड़की नहीं दिख रही क्या बात हो गई ?
कहीं इसलिए तो स्कूल नहीं आ रही कि हर रोज लेट लतीफ पहुँचेगी ?
कैलाश- सरताज़ को आंख मारते हुए यासमीन की दोस्त को पिन करता है कहता है...." हाँ भाई बिल्कुल ठीक कहा तूने और लेट आएगी तो डांट भी तो खानी पड़ेगी हा...... हा....... हा......
और इतना कहकर दोनों हंसने लगे ।
अभी मास्टर जी क्लास में नहीं थे यही समय है उसकी दोस्त को चिढ़ाने का ।
सरताज़ - सही बोल रहा यार ये आज भीगी बिल्ली बनी बैठी है क्योंकि इसकी दोस्त जो नहीं आ रही।
सभी बच्चे आपस मे गपशप कर रहे थे तो कोई तल्लीन होकर चैप्टर पढ़ रहा था कैलाश और सरताज़ यासमीन के दोस्त नूरी को नीचा दिखाने का मौका नहीं गंवाना चाहते।
इसी बीच क्लास टीचर के जूतों की धमक आती है पट....पट....पट

कुछ दूर से मास्टर जी के जूतों की आवाज आई और सभी बच्चे अलर्ट होने की अवस्था मे अपनी अपनी बातें जल्दी एक दूसरे को बोलकर खत्म करने वाले थे कि मास्टर जी के कानों में आवाज गूंजी
यासमीन के भाई समर की डेथ हो गई है ।
किसने बोला ये .....? मास्टर जी चौकन्ने होकर इधर उधर देखने लगे तभी एक लड़का पीछे से खड़ा होता है और मास्टर जी को देखते हुए बोला....सर् मैने किसी से सुना था कि यासमीन का भाई अचानक ही अल्लाह को प्यारा हो गया और इतना कहते ही बच्चे ने सिर झुका लिया।
मास्टर जी ने सभी बच्चो को खड़ा किया और अपने अपने धर्म आस्था के अनुसार 2 मिनट का शांति प्रार्थना किया।
क्लास में आज कीसी का पढ़ने का मूड नहीं था आज सिर्फ पुराने पाठ की पुनरावृत्ति की गई और क्लास खत्म हुई।
सभी बच्चे घर जाने को तैयार हुए कॉपी, किताब , जमेट्री बॉक्स समेटते हुए नूरी ने उस बच्चे को रोक कर कहा....." यार सैनी तू मुझे यासमीन के घर ले चलेगा।
सैनी- नहीं बे , तू खुद चली जा मैं घर लेट पहुंचा तो मम्मी का गुस्सा सातवें आसमान पर मिलेगा।
नूरी-( रिक्वेस्ट करते हुए) प्लीज़ ले चल ना काफी दिन हो गए उससे बात किये। मेंने उसका घर देखा होता तो तुझे इतना नहीं बोलती यह कहकर नूरी के आंखों में आंसू आ गए।
सैनी को उसका दर्द देखा नहीं गया और नूरी तो वैसे ही इतनी मासूम सी चुलबुली सी लड़की आज इतनी सीरियस देखी नहीं जा रही थी अब सैनी ने बोला एक शर्त पर ....!
नूरी के चेहरे पर स्माईल आ गया बोली......हाँ बोल !
सैनी- मैं दूर से घर दिखा कर भाग जाऊंगा बस तू पूछते हुए चली जाना।
नूरी बोली ठीक है चल इतना तो तरस खाया!
और पूरी क्लास खाली हो चुकी थी चौकीदार ताला लगाने आया तब तक नूरी और सैनी भी निकल गए थे।
यासमीन की गली में एंटर करते वक्त नूरी ने आसपास लोगो से पूछा तो 2 घर छोड़कर सामने यासमीन का घर था ।
यासमीन कुछ घुन लगे हुए अनाज साफ कर रही थी उसकी नजर नूरी पर पड़ी ।
यासमीन - (खुश होकर दौड़ते हुए) नूरी को गले लगा लिया ।और इस दोस्ती के एहसास में अपने दर्द को समेटने में जुट गई ।
उसकी आंखें तरस रही थी छोटी छोटी खुशियों से रूबरू होने को और दोस्त की एक झप्पी ने उसे वह खुशी दे दी।
आगे क्या होगा कौन जाने ऊपरवाले के खेल का यह भी तो एक हिस्सा है यह कहकर शबाना बेगम की आंखे भी तर हो गई।