अध्याय 18
धनराज गोडाउन के अंदर घुसे। सुबह 8:00 बजे।
हाथ पैर बंधे हुए, कुर्सी पर सो रहे थे हेमंत और सुरभि, आवाज सुनकर दोनों ने आंखें खोली।
धनराज हंसा।
"सॉरी ! आज का दिन ठीक नहीं है।" हाथ में पिस्तौल लेकर मेज के ऊपर चढ़कर बैठ गया । नागु फ्लास्क और चार कांच के गिलास के साथ हंसते हुए अंदर आया; ।
"इनको बात बता दीजिए... भैया।"
"पहले उनके रस्सी को खोल कर ‘टी’ इन्हें दे दो... सदमा देने वाली बात को बोलना हैं.... सहन करने के लिए धैर्य चाहिए ना...?"
नागु थरमस और कांच के गिलासो को मेज पर रख कर, हेमंत और सुरभि के बंधे हुए रस्सी को खोला। चाय को गिलास में डाल कर उन्हें दिया।
लेकर दोनों ने पिया।
चाय से हल्की सी मिट्टी के तेल की बदबू आ रही थी | दोनों मुश्किल से चाय पी रहे थे उसी समय ही धनराज एक बीडी को सुलगा कर बात करना शुरू किया।
"सुरभि....! तुम्हारे अप्पा ने जैसे बोला था दस लाख रुपए लेकर आए। जहां बोला था वहां रखा। मैंने भी उसे ले लिया। उसके बाद मैंने एक छोटी गलती कर दी।"
सुरभि चाय को पिए बिना घबराकर उसी को देखने लगी, धनराज बीडी का कश लेकर नाक के द्वार से जोर से छोड़ा। "उन्हें मैंने पिस्तौल से मार डाला।"
सुरभि के हाथ से चाय का गिलास छूट गया और आवाज के साथ टूट कर चाय बिखर गई जैसे उसने आत्महत्या कर लिया हो।
"अरे अरे...! गिलास बिखर गया...."
"यू... यू... रास्कल।"
हेमंत आवेश के साथ उसकी तरफ झपटा तो धनराज ने रिवाल्वर आगे किया। "तुम्हें कितनी बार बोला है इस तरह झपटना नहीं चाहिए । दोनों जनों को छोड़ दे ऐसा सोचा, तो... तुम उसे खराब कर दोगे लगता है?"
सुरभि बर्फ जैसे जमकर बैठ गई, हेमंत का गुस्सा एकदम शांत होकर रोने की आवाज में पूछा।
"तु... तुमको जो चाहिए... वह रुपए ही थे ना? फिर तुमने उनको क्यों मार डाला...?
"रुपयों को रख कर जाने वाला.... कहीं रात में चुप कर खड़े होकर..... मुझ पर नजर रख, पीछा तो नहीं करेगा इस डर से... मैंने उन्हें भून डाला..... उनको मारने के बाद मुझे लगा गलत काम कर दिया सुरभि अपने अम्मा को विधवा के हालत में कैसे देखेगी उसका मन दुखी होगा ऐसा सोचकर...."
"....."
बीड़ी बुझ गई, दोबारा उसे जलाकर शुरू हुआ। "सोच कर ट्रक को वैसे ही.... सुरभि के घर की ओर ले गया। घर के पीछे की तरफ गाड़ी को खड़ी कर दीवार फांद कर सुरभि की मां को भी खत्म कर सुहागिन ही ऊपर पहुंचा दिया.... अभी दोनों की बॉडी पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी में रखा है....."
"आ.... अम्मा... हा....आ...."
सुरभि दोहरी होकर रोने लगी।
धनराज हंसा। "रोकर नाटक किया तो.... तुम्हारे होने वाले पति हेमंत भी जिंदा नहीं रहेगा।"
सुरभि ने मुंह बंद कर लिया। उसका शरीर रोने से हिलने लगा।
हेमंत के शरीर में फिर से आवेग आया।
"अरे पापी"
कांच का ग्लास जो उसके हाथ में था उस पर फेंक कर, झपटा।