उजाले की ओर --संस्मरण Pranava Bharti द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर --संस्मरण

स्नेही मित्रों 

नमस्कार 

    'मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया ' बड़ा खूबसूरत गीत है , साथ निभाना तो पड़ेगा ही | 

जाएँगे कहाँ ? सुबह की निकलती लालिमा से लेकर शाम की डूबती किरणों तक ,ज़िंदगी का साथ निबाहना ही होता है | 

कितनी-कितनी चिंताएँ ,कठिनाइयाँ ,परेशानियाँ आती हैं लेकिन चल,चलाचल ---

बेशकीमती लम्हों का खजाना है ये ज़िंदगी ,आना और जाना है ये ज़िंदगी | 

सब जानते हैं ,मैं कुछ खास तो बता नहीं रही हूँ |लेकिन बात करने का मन होता है ऐसी बातों पर जो हमें एक अनुभव देकर जाती हैं |   

ज़िंदगी की सदा एक ही चाल रही है ,एक ही ढाल रही है ,एक ही ताल नहीं रही बस---

कभी एकताल,कभी झपताल ,कभी त्रिताल ---ये अपनी अपनी मस्ती में झूमती है और  साथ ही हमें भी अपने साथ झूमने के लिए बाध्य करती रहती है | 

दरअसल ये ज़िंदगी फूलों सी मुस्कुराती  हुई कभी जब आँखों में आँसू ले आती है ,हम झट से उदास हो जाते हैं ,रो भी पड़ते हैं | 

वैसे मनुष्य के भीतर हर प्रकार के संवेग होते हैं तो समयानुसार उनका प्रस्तुत हो जाना कोई गलत भी नहीं है | 

हम बने ही हैं सब इन संवेगों से ,भावनाओं से ,स्ंवेदनाओं  से और इंका प्रभाव हम पर पड़ता ही है | 

बात केवल यह है कि किसी भी बात का अथवा प्रभाव का जब अतिक्रमण हो जाता है तब इंसान दुखी हो जाता है किन्तु वही समय होता है संभलने का ! 

किसी भी दुख अथवा सुख से उबरने का | 

मित्रों ! आप सोचेंगे कि मैं उल्टी बात कह रही हूँ | लेकिन यदि अधिक दुख हमें अधिक रोने पर ,दुखी होने पर मजबूर करता है तो 

अधिक सुख में भी तो हम बेकार ही ऊँची उड़ान भरने लगते हैं | सीमा से बाहर कोई भी बात ,घटना  अथवा विचार भी परेशानी का कारण  बना सकता है | 

सबको अपनी-अपनी सीमाएँ समझनी होती हैं ,बनानी होती हैं | 

हो सकता है जो सीमाएँ आपकी हैं उनमें मेरा वातावरण फ़िट न बैठे और जो मेरी हैं उनमें आप कम्फ़र्टेबल न हों | 

ज़िंदगी का यही तो फलसफ़ा है जिसको ज़रा सा समझ  भर लें तो शांति से निकल जाती है ज़िंदगी ! 

" सच्चे साथ देने वालों की एक सबसे बड़ी निशानी  है कि वे दिखाते नहीं हैं ,हाँ कर जाते हैं और हमको पता भी नहीं चलता --" उस दिन अम्मा ने बड़ी अच्छी बात कही | 

      सोचने के लिए बाध्य होना पड़ा ,हुआ कुछ ऐसा था कि पड़ौसी  कर्नल राम वर्मा अचानक बाथरुम में गिरकर बेहोश हो गए | 

उनकी पत्नी सीमा के पास उस समय कोई भी नहीं था | आज के अधिकांश  परिवारों  के बच्चों की तरह उनके भी दोनों बच्चे विदेश में रहते | 

इनके पास कोई कमी न थी ,पूरा स्टाफ़ था घर का काम करने के लिए कई हाथ थे लेकिन समय की बात है कि उस समय कैश नहीं था | 

सीमा घबरा गईं और उन्होंने अपने मित्रों को फोन किया | एक मित्र को फ़ोन करते ही सब मित्रों के पास चुटकियों में खबर पहुँच गई | 

कर्नल वर्मा को हॉस्पिटल लेकर जाना ज़रूरी था | अभी अपने सेवकों की सहायता से अपने पति को बैड रूम में व्यवस्थित ही कर रही थीं कि जो मित्र पास में रहते थे वे पहुँच गए | 

फटाफट आर्मी हॉस्पिटल में फ़ोन किए गए | वहाँ से कहा गया कि तुरंत आ जाएँ लेकिन वह दूर बहुत था | 

अत: निर्णय लिया गया कि पास के ही हॉस्पिटल में फिलहाल एडमिट करवाना ठीक रहेगा | 

जितनी देर में हॉस्पिटल पहुँचे ,और मित्र भी एक-एक करके घर न पहुँचकर हॉस्पिटल पहुँच गए | 

 सीमा के चेहरे पर चिंता की रेखाएं पसरी हुई थीं | एक तो पति की चिंता ,हर रोज़ बैडमिंटन खेलने वाले ,सैर को जाने वाले कर्नल वर्मा को अचानक ही ऐसे देखना ,

स्वाभाविक था कि सीमा चिंतित हो जाती लेकिन एक और बड़ी चिंता यह थी कि उस दिन सीमा के पास घर में मुश्किल से 10/15 हज़ार रुपए  थे | 

यह प्राइवेट हॉस्पिटल था इसमें पहले लाख रुपए जमा करवाने को कहा गया  था | 

कर्नल वर्मा के दोस्तों ने सीमा को अपने पति के पास ही रहने के लिए कहा | 

वैसे आई.सी. यू में पास तो नहीं बैठ सकती थी  बाहर ही बैठी थी लेकिन उसके साथ दूसरे मित्र की पत्नी लगातार बैठी रही | 

सभी मित्रों ने अपने पास से इंतज़ाम करके सीमा को बिना पता चले ही काउंटर पर एडवांस जमा करवा दिया था | 

डाइग्नोसिस के बाद पता चला कि उनकी लंबी बीमारी है | उस हॉस्पिटल का खर्चा  बहुत था | आर्मी हॉस्पिटल में जाना ही पड़ता | 

3/4 दिन कर्नल वर्मा को उसी हॉस्पिटल में रखा गया बाद में आर्मी हॉस्पिटल में शिफ़्ट किया गया | 

किसीने सीमा को खबर तक नहीं लगने दिया कि पैसों का इंतज़ाम कहाँ से ?कैसे हुआ था ? 

लगभग दो महीने वर्मा जी का इलाज़ चला ,वे ठीक होकर वापिस घर आ गए तब भी किसी ने उनसे हिसाब-किताब के बारे में पूछा तक नहीं | 

बच्चे भी आ चुके थे ,सब ठीक हो गया था लेकिन सीमा आज भी कई बार यह सोचती है कि जिन दोस्तों के साथ में कर्नल वर्मा ही अधिक मिक्स हो पाते थे ,वह दूरी ही बनाए रखती | 

उन्होंने उसकी सहायता बिना किसी स्वार्थ के ,बिना किसी अपेक्षा के ऐसे की कि सीमा सदा के लिए उनके ऋण से भर चुकी थी | 

यह ऐसा ऋण था जो प्रेम से सराबोर था ,जो उसे बता गया था कि ये मित्र ऐसे सूरजमुखी के फूल नहीं हैं जो सूरज की किरणों को देखकर उधर की ओर मुड़ जाएँ | 

ये अंधेरे में भी खिले-खुले रहते हैं और सदा अपनी बहार  से चमन को गुलज़ार रखते हैं | 

 

आप सबकी मित्र 

डॉ . प्रणव भारती  

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