टेढी पगडंडियाँ - 45 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टेढी पगडंडियाँ - 45

 

45

गुरजप दीन दुनिया से बेखबर पलंग पर उल्टा हुआ सोया पङा था , बिल्कुल निरंजन की तरह । वह भी इसी तरह सोया करता था । गुरजप के गुलाबी होंठ गुलाब की पंखुङियों की तरह बार बार सांस लेने के लिए खुल जाते । अगले ही पल बंद हो जाते । वह एकटक उसे देखती रही । तभी वह डर गयी । कहीं गुरजप को नजर लग गयी तो ... ।
यह ख्याल आते ही वह रसोई में गयी । डिब्बे से सात साबुत लाल मिरचें निकाली । फिर दूसरे डिब्बे से साबुत नमक निकाला । बंद मुट्ठी में लाकर सात बार सोते हुए गुरजप के ऊपर से वार कर चूल्हे में फेंका । लाल मिरचें जली तो उसे धसका उठ गया – उफ कितनी भयंकर नजर लगी थी बच्चे को । माँ कहा करती थी लाल मिरच जलाने पर नजर लगाने वाले का आकार राख में बन जाता है । उसने राख में उस नजर चढाने वाली का आकार देखने की कोशिश की । हर तरफ हर कोण से देखने पर भी उसे कोई चेहरा नजर नहीं आया तो वह वहीं चौंकी पर टेढी होकर फूंकनी में फूक मारकर आग सुलगाने लगी । दो चार प्रयासों से आग की लपटें उठ गयी तो उसने पतीली धोकर चाय चढा दी । चाय खौलने लगी तो वह फिर से उन्हीं सवालों के भँवर में डूबने उतराने लगी ।
क्या है उसकी पहचान । मात्र भापे की चाची । पूरा गाँव उसे इसी पहचान से जानता है । इसके अलावा क्या उसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व भी है । यहाँ तककि वह अपना नाम तक भूलने लगी है ।
बाहर गुरनैब आवाजें मार रहा था । वह उठी और दरवाजा खोल कर उसे भीतर ले आई ।
क्या कर रही थी तू आवाजें मार मार कर मैं वापस जाने वाला था ।
किरण रसोई से कटोरे में खीर डाल लाई । ऊपर से बादाम और काजू की कतरने काटकर सजाई गयी थी । खीर देख कर गुरनैब की बाछें खिल गयी – वाह , तुझे कैसे पता चला कि मैं खीर बनाने के लिए कहने वाला हूँ ।
किरण फीका सा मुस्कुरायी ।
हुम्म .. खीर बहुत स्वादिष्ट बनी है । मजा आ गया खाकर ।
पक्का ..
हूँ
तो निकाल इनाम
तेरे से इनाम अच्छा है बोल क्या चाहिए
मेरी बी ए तब बीच में ही छूट गयी थी । अगर तू मुझे फार्म लाकर दे दे तो मैं प्राइवेट बी ए करना चाहती हूँ । पढाई मेरा शौक भी था और जुनून भी पर ..।
ठीक है , अब जब भी शहर गया , तेरे लिए फार्म पक्का ले आऊँगा । तू कर लेना पढाई ।
और बोल ।
और तेरे चाचे के नाम पर एक स्कूल बनाना चाहती हूँ जहाँ दिन में बच्चे पढें और शाम को वे लोग जो किसी वजह से पढ नहीं पाये , कुछ पढना लिखना सीख लें ताकि उनकी जिंदगी भी आसान हो जाए । मैं गाँव में हर आदमी , हर औरत को पढा लिखा देखना चाहती हूँ ।
इसके लिए तो पापा जी और बी जी से बात करनी पङेगी । मैं कर लूँगा । मुझे नहीं लगता कि उन्हें कोई ऐतराज होगा । आराम से मान जाएंगे । आज शाम को ही बात करके देखते हैं फिर तुझे आकर बताता हूँ ।
गुरनैब ने खीर का कटोरा नीचे रखा और चाबी घुमाता हुआ बाहर चल दिया ।
सुन चाय बन गयी है । चाय तो पीता जा ।
चाय शाम को पीते हैं । तूने पाँच सालों में पहली बार मुँह खोलकर कुछ माँगा है । वह पूरा तो करना पङेगा न ।
गुरनैब ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और चला गया ।
किरण सुनहरे सपनों में खो गयी । अगर गुरनैब फार्म ले आया तो वह जी जान लगाकर पढाई करेगी । विषय क्या क्या लेगी – पंजाबी तो जरुरी विषय होगी । एक अंग्रेजी , समाजशास्त्र , और एक पबलिक एडम या फिर इतिहास । अच्छे नम्बर आ जायं । एक बार पास हो जाय तो आगे के लिए सोचेगी ।
और गाँव में डिग्री कालेज खोलने का सपना भी वह जरुर पूरा करेगी ।गांव की किसी लङकी को तब पढने के लिए बीस पच्चीस किलोमीटर दूर जाने की जरूरत नहीं होगी । तब किसी लङकी के साथ जोर जबरदस्ती नहीं होगी , न किसी का अपहरण होगा ।
शाम ढलने लगी थी । वह सपनों की दुनिया से बाहर आई । रात के खाने की तैयारी में जुट गयी । आज उसने स्पैशल बिरयानी बनाई । कोफ्ते बनाए । दाल मखनी बनाई । मिस्सी रोटी का आटा गूंधा । सारी तैयारी करके वह नहाने चली ।
उधर गुरनैब ने अवतार सिंह को देखा तो उसे किरण की बात याद आई ।
पापा जी , क्यों न हम यहाँ गाँव में चाचे के नाम का स्कूल या कालेज बनायें ।
आइडिया तो अच्छा है पर तेरा तो नहीं हो सकता । किसने सलाह दी । बता तो सही ।
गुरनैब असमंजस में पङ गया । किरण का नाम बताए या नहीं ।
अवतार सिंह ने बेटे का मुंह देखा तो हो हो हो करके हँस पङा – ओए सीधे सीधे कह न कि किरण ने कहा है तो इसमें इतना सोचने की क्या बात है ।
जी – गुरनैब ने सिर नीचे किए किए कहा ।
ठीक है । निरंजन के नाम के खेत पङे ही हैं । एक खेत में स्कूल और कालेज दोनों बन सकते हैं । तू शहर जाकर सारी कार्यवाही और कागज पता कर । इस पहली बरसी पर नींव पत्थर रख देते हैं ।
जिऊंदा रह पुतर । परमात्मा तुझे बरकतें दे । - बी जी भी पता नहीं कब आकर पीछे खङे हो गये थे ।
गुरनैब ने पापा और बी जी के पैर छू लिए । और चल पङा ।
औये अब कहाँ चल पङा ।- अवतार सिंह ने आवाज दी ।
किरण को खुशखबरी देने – ये बी जी थे ।
दोनों के ठहाके दूर तक गुरनैब का पीछा करते रहे । पर गुरनैब के पैरों में बिजली आ गयी थी । वह जल्दी से जल्दी किरण को यह खबर सुनाना चाहता था । वह मोटरसाइकिल भगाता हुआ कोठी पहुँचा । किरण तभी नहाकर आई थी । इस समय शबनम में भीगे गुलाब जैसी मासूम और खूबसूरत लग रही थी । गुरनैब ने जाते ही किरण को अपनी बाहों में बर कर घुमा दिया ।
किरण कसमसाई – नाचे उतारों मुझे । मैं गिर जाऊंगी ।
पर गुरनैब को होश कहाँ था । वह नशे में चूर हो जाने को बेकरार था ।

 

बाकी कहानी अगली कङी में ...