टेढी पगडंडियाँ - 46 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टेढी पगडंडियाँ - 46

 

टेढी पगडंडियाँ 

 

46


गुरनैब आज बहुत खुश था । इतना ज्यादा खुश कि उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि इस खुशी को व्यक्त करने के लिए क्या करे । नाचे या गाये । उसने किरण को गोद में उठा लिया । और उसे उठाये उठाये पूरी कोठी के दो तीन चक्कर लगा लिए । किरण चिल्ला रही थी – अरे, उतारो । उतारो नीचे । मैं गिर जाऊँगी । चोट लग जाएगी । छोङ दो प्लीस । छोङो न । छोङ भी दो ।
गुरनैब ने उसे पलंग पर गिरा दिया और बेतहाशा चूमने लगा । किरण ने अपनी आँखें बंद कर ली और बेल की तरह उससे लिपट गयी । भावनाएँ ज्वार की तरह उमङी और धीरे धीरे भाटे की तरह उतर गयी । देह की नदी शांत हो गयी । उफनती साँसें धीरे धीरे सम पर आने लगी । किरण ने उठ कर अपने अस्त व्यस्त कपङे ठीक किये । अलमारी से कपङे निकाले और तौलिया उठाकर नहाने चली गयी । उसने शावर खोल लिया और पूरे शरीर पर बाडीवाश लगाकर चलते फव्वारे के नीचे बैठ गयी । पानी की बौछारें उसका तन और मन भिगोती रही । काफी देर ठंडी बौछारों तले नहाने के बाद वह कपङे पहन बाहर निकली ।
गुरनैब अभी आँखें बंद किये लेटा हुआ था । सुन, तू भी नहा ले । मैने खाने की सारी तैयारी कर रखी है । बस तू नहा कर आ तो मिस्से परांठे बना दूँ ।
गुरनैब ने अपनी आँखें खोली । किरण धुले हुए कमल के फूल की तरह बिल्कुल फ्रैश दीख रही थी । उसने हाथ बढाया । किरण छिटक गयी – अभी नहीं , पहले नहा कर रोटी खा लें फिर ये सब ... । उठ ... ।
गुरनैब उठ गया । नहा कर निकला तो किरण ने उसके कपङे निकाले हुए थे । कपङे पहन कर जब वह चौंके में पहुँचा , किरण रोटियाँ बना रही थी । गुरजप भी उठ गया था और वहीं पटरी पर बैठा रोटी खा रहा था ।
वाह , आज तो पूरी दावत की तैयारी है ।- चौंके से उठती खुशबू सूंघते हुए गुरनैब बोला ।
किरण ने कटोरी में दाल मखनी डाली । दूसरी कटोरी में रायता डाला । प्लेट में बिरयानी परोसी । मलाई कोफ्ते परोसे । और थाली गुरनैब की और बढा दी ।
रोटियाँ तो बहुत बन गयी हैं । बंद कर तवा और तू भी आ जा ।
बस ये तवे और चकले वाली दो रोटी बना लूँ फिर अपनी भी डाल लेती हूँ । तब तक तू खा ।
उ हूँ ... पहले तू आ जा फिर इकट्ठे ही खाएंगे ।
गुरजप को मिरची लग रही थी । किरण ने फ्रिज से पानी की बोतल निकाली । गिलास भर कर उसे पकङाया । फिर दो गिलासों में पानी ढार कर गुरनैब की ओर बढा दिए ।
चूल्हे की लकङियाँ खींच कर आग बुझाई और अपनी रोटी डाल कर ले आई । गुरनैब और उसने रोटी मिलकर खाई । आज कितने दिनों के बाद दोनों ने एक साथ रोटी खाई थी । खाना वाकयी बहुत स्वाद बना था । दोनों रस ले लेकर खाते रहे । खाना खाकर किरण रसोई सम्भालने लग गयी । गुरनैब और गुरजप दोनों टी वी देखने लगे । शिंनचैन की बेवकूफियाँ देखकर गुरजप ठहाके लगाकर हँस रहा था । गुरनैब उसके साथ उसकी खुशियों में साथ दे रहा था । बरतन माँज कर किरण ने दूध में ठंडा सोडा मिलाया , थोङे बर्फ के टुकङे मिलाये और ट्रे में तीन गिलास सजा कर भीतर ले आई ।
लो पकङो दूध ।
गुरनैब दूध के लिए मना करने वाला था पर जैसे ही उसकी निगाह दूध के गिलास पर गयी , वह किलक गया ।
किरण ने गिलास दोनों को पकङाये और अपना गिलास लेकर वहीं कुर्सी खींच कर बैठ गयी ।
अब बता , आज क्या कारूँ का खजाना हाथ लग गया जो इतना खुश नजर आ रहा है ।
मैंने पापा से कालेज की बात की थी , वे मान गये हैं । बी जी भी इस बात से खुश हैं । खेत के दो क्यारे पापा जी कालेज के लिए दे रहे है । अब कल बठिंडा शहर जाना है । डी पी आई . कालेज के दफ्तर में जा कर अफ्सरों से मिलना है । थोङी कागजी कार्यवाही करनी पङेगी । जल्दी ही कालेज बन जाएगा ।
सच ?
बिल्कुल सच । किरण यह सब तेरी वजह से हो पाएगा । तेरा आइडिया था ये । हम में से किसी ने कभी सोचा ही नही इस दिशा में । अगर ये बात सिरे चढ जाती है तो गाँव के लङके लङकियों को हर रोज शहर नहीं जाना पङेगा । सब बच्चे यहीं गाँव में पढ सकेंगे ।
इसके अलावा गाँव में रोजगार के नये साधन बनेंगे ।
वो कैसे ?
ऐसे कि जब तक कालेज बनेगा , मिस्त्री ,राज और मजदूरों को काम मिलेगा । और जब यह
कालेज बन गया तो कितने अध्यापक , क्लर्क , चपरासी , माली , गार्ड काम पाएंगे । इसके अलावा गाँव में किताबों की दुकाने खुलेंगीं । वर्दी की दुकानों के लिए दबाव बनेगा । कालेज में खाने पीने की कैंटीन खुलेगी । कालेज के बाहर स्टेशनरी और खाने पीने की दुकानें खुलेंगी । बाहर के गाँवों से पढने आने वाले लङकों और लङकियों के लिए पी जी खुलेंगे । गर्ल्स होस्टल खुलेंगे । सोचो कितने लोगों को रोजगार मिलेगा ।
इतना तो मैंने सोचा ही नहीं था । सच में अगर ऐसा होता है तो यह गाँव बहुत तरक्की कर लेगा । कितने ही बेरोजगारों को गाँव में रोजगार करने के अवसर मिलेगा ।
मान गया न । अब फटाफट काम पर लग जा । जनवरी तक अगर कालेज खोलने की परमिशन मिल गयी तो अगले सैशन में दाखिला शुरु हो जाएंगे ।
ठीक है । अब सुबह शहर जाऊँगा । अभी तो हवेली जा रहा हूँ । पापा जी और बी जी मेरा इंतजार कर रहे होंगे ।
गुरनैब ने चाबी उठाई । गुरजप को गले से लगाकर गाल पर चिकोटी काटी । किरण को माथे पर चूमा और बाहर निकल गया ।
किरण ने बाहर का दरवाजा बंद किया और गुनगुनाती हुई पलंग पर लेट गयी । आज उसकी आँखों से नींद गायब हो गयी थी । उसके जागती आँखों से देखे गये सपनों ने अपने पंख फङफङाने शुरु कर दिये थे । कुछ दिनों में ये सपने आसमान छूने लगेंगे और बादलों से पार हो जाएंगे । पूरी दुनिया को इन सपनों की छांव में जीने का सुख मिलेगा ।
मम्मी मम्मी आज मुझे सिंड्रैला की कहानी सुनाओ न ।
आ बेटे । लेटो यहाँ , सुनाती हूँ .।
मम्मी पहले यह बताओ , क्या सचमुच सिंड्रैला होती है ?
हाँ होती है न । कोई राजा का बेटा आता है । उसका हाथ पकङता है और वह किसी गरीब की झुग्गी में जन्म लेकर किसी महल जैसी कोठी की मालकिन बन जाती है ।
क्या मम्मी ?
कुछ नहीं बेटा । तू कहानी सुन । और किरण गुरजप को सिंड्रैला की कहानी सुनाने लग गयी ।

 

बाकी कहानी अगली कङी में ...।