त्रिकाली अम्मा! आपसे कोई मिलने आया है,हरिराम बोला।।
उन्हें बैठक में बिठाओं और बोलों कि हम अभी आ रहे हैं,त्रिकाली अम्मा ने अपने नौकर से कहा।।
जी! अम्मा! और इतना कहकर हरिराम चला गया....
त्रिकाली अम्मा यूँ तो साधारण सीं महिला हैं उनका अपना परिवार भी है ,सबकी तरह वें भी साधारण सा जीवन जीती हैं,लेकिन बचपन में जब वें दस वर्ष की थीं तो छत से गिर पड़ी थीं उनके सिर पर काफी चोट आई और डाक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था,लेकिन जब उन्हें दफनाने के लिए ले जाया जा रहा था ,तब उन्हें मृत अवस्था में जोर की खाँसीं आई और उन्होंने अपनी आँखें खोलकर कहा कि.....
वो लौट आई हैं और उन्हें वापस धरती पर भेज दिया गया है दूसरों की मदद के लिए।
तबसे उन्हें आत्माएं दिखने लगीं,शुरू शुरू में तो वें बहुत डर जातीं थीं लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि वें आत्माएं उनसे मदद माँगने आतीं थीं,जिनका कोई कार्य अधूरा रह जाता था या किसी की बेवक्त मौत होने पर उसकी आत्मा को शान्ती नहीं मिलती थी तो वो उन्हें अपनी मुक्ति का मार्ग बताने आतीं थीं,साथ में किसी ने या तो किसी हत्या की हो तो वो उन्हें अपने कातिल के बारें में जानकारी देने आती थी इस तरह से उनका नाम वसुधा से त्रिकाली पड़ गया।।
यही काम करते करते उनकी उम्र बीत चुकी है अब वें अस्सी साल की हो चुकीं हैं और लोंग अब भी उनसे मदद माँगने आते हैं,एक बेटा और एक बेटी हैं,बेटा अपने परिवार के साथ विदेश में रहता है और बेटी अपने ससुराल में खुश है,त्रिकाली अम्मा यहाँ गाँव में अकेली रहतीं हैं,नौकरानी सुखिया घर का काम करती है साथ में उनके लिए खाना भी बनाती है और हरिराम घर का माली होने के साथ साथ और भी छोटे मोटे काम करता रहता है।।
कुछ देर बाद त्रिकाली अम्मा बैठक में पहुँचीं उस व्यक्ति से मिलने,त्रिकाली अम्मा को देखते ही उस व्यक्ति ने त्रिकाली अम्मा के पैर छूकर राम राम कहा तब त्रिकाली अम्मा उसके पास जाकर बोलीं....
बोलो बेटा! कैसे आना हुआ?
अम्मा ! मैं सुखदेव !एक मुसीबत आ गई हैं,उसी से छुटकारा पाना चाहता हूँ।।
ऐसा क्या हुआ बेटा! तुम्हारे साथ,त्रिकाली अम्मा ने पूछा।।
तब सुखदेव बोला....
जी! मेरी अभी दो महीने पहले ही शादी हुई थी,शहर में ससुर जी का एक पुराना मकान था,उसे उन्होंने तुड़वाकर नये मकान में परिवर्तित करा के अपनी बेटी को उपहारस्वरूप भेंट किया,शादी के एक महीने तक तो मेरी पत्नी एकदम ठीक थी लेकिन जब हम एक महीने पहले उस मकान में रहने गए तो मेरी पत्नी का व्यवहार कुछ अजीब सा हो गया उसे अजीब तरह के दौरें पड़ने लगें एक दिन तो वो एक जिन्दा चूहा ही मेरी आँखों के सामने निगल गई,मैनें वो बरदाश्त कर लिया लेकिन परसों रात को जब मैं सो रहा था तो वो उल्टी होकर घर की छत पर मकड़ी की तरह रेंग रही थी,मेरी आँख खुली और मैं जैसे ही खड़ा हुआ तो वो मेरी गरदन पर बैठ गई,बोली कि मैं उसे नहीं छोड़ूगी,मैं डर कर बाहर भागा और सारी रात बाहर ही बिताई।।
फिर मैनें लोगों से पता किया तो उन्होंने आपका नाम सुझाया कि आप ही मुझे इस मुसीबत से छुटकारा दिला सकतीं हैं इसलिए मैं आपके पास आया हूँ।।
ओह...तो ये बात है,मुझे तुम्हारे साथ तुम्हारे घर चलना होगा,तभी पता चलेगा कि क्या बात है?त्रिकाली अम्मा बोली।।
जी! तो अभी चलिए,मैं कार लेकर आया हूँ,सुखदेव बोला।।
आज नहीं बेटा! परसो रविवार है,ये काम उसी दिन हो सकता है,तब तक तुम अपने घर मत जाओ,किसी और के पास रह लो,त्रिकाली अम्मा बोली।।
ठीक है अम्मा ! प्रणाम!तो फिर मैं आपके पास परसों आऊँगा और इतना कहकर सुखदेव चला गया।।
फिर सुखदेव रविवार को त्रिकाली अम्मा को लेने आया,त्रिकाली अम्मा सुखदेव के घर पहुँची और तब तक सुखदेव की पत्नी का व्यवहार सामान्य था लेकिन जैसे ही अम्मा ने ये कहा.....
अपना हाथ दिखाओ,मुझे तुम्हारी नब्ज देखनी है।।
और अम्मा ने जैसे ही उसका हाथ थामा तो इतने में ही सुखदेव की पत्नी श्यामली ने विकराल रूप ले लिया ,उसकी आँखें एकाएक लाल हो गईं,बाल बिखर गए और शरीर की सभी नसें खिचकर दिखाई देने लगी,उसकी आवाज़ भी भयानक हो गई तभी उसने अपनी भयानक आवाज़ में अम्मा से कहा....
तू यहाँ क्यों आई है? मैं इस घर को छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगीं,मैं श्यामली को जिन्दा नहीं छोड़ूगी।।
लेकिन क्यों? श्यामली ने तेरा क्या बिगाड़ा है? त्रिकाली अम्मा ने पूछा।।
इससे नहीं इसके पिता से मुझे बदला चाहिए,श्यामली के भीतर की आत्मा बोली।।
किस बात का बदला? त्रिकाली अम्मा ने पूछा।।
तब श्यामली के शरीर में मौजूद आत्मा बोली....
सालों पहले मैं इस कच्चे घर में रहती थी,मेरा नाम धन्नो था,मैं बहुत गरीब थी और मजदूरी करती थी, श्यामली का बाप सियाराम सोनी इस गाँव में कोई सड़क बनवा रहा था जिसका वो ठेकेदार था,मैं उस सड़क में मजदूरी का काम करती थी,सियाराम बहुत ही दबंग और अमीर ठेकेदार था,आस पास के ठेके वो किसी भी हाल में हासिल कर लेता था,उसकी गंदी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझसे एक दिन छेडख़ानी करनी चाही तो मैं उस दिन उसका गाल लाल करके चली गई और उसे चेतावनी दी कि आइन्दा ऐसा हुआ तो वो सबको उसके बारें में बता देगी ।।
और इस बात से सियाराम भड़क उठा और उस रात उसने अपने कुछ आदमियों से मेरे पति और बेटी को उठवाकर उन्हें मरवा दिया,दोनों की लाशें खेतों में डली हुई मिली और उसने उस रात मेरे साथ कुकृत्य करके और फिर मारकर मुझे मेरे ही कच्चे घर के आँगन दफना दिया और मेरे घर पर उसने ये कहकर कब्जा कर लिया कि मेरे पति ने उसे ये मकान बेंच दिया है और वो अपने परिवार के साथ किसी और गाँव में बस गया है,मेरे परिवार का गाँववालों की मदद से अन्तिम संस्कार हो गया लेकिन मेरा नहीं हुआ,तभी से मेरी आत्मा इस घर में भटक रही है और फिर सियाराम ने इस घर को नये घर में परिवर्तित करने का ठेका किसी और को दे दिया,फिर जब एक दिन सियाराम अपनी बेटी से मिलने इस घर में आया तब मुझे पता चला कि श्यामली तो उसकी ही बेटी है तबसे मैनें सोचा कि मैं इसे नहीं छोड़ूगी.....
उस आत्मा की बात सुनकर सुखदेव को बहुत शर्मिंदगी हुई और फिर उसने अपने ससुर की पुलिस कम्पलेन करने की बात कही और धन्नो को न्याय दिलवाने का सोचा और वो काफी हद तक कामयाब भी हुआ,अब श्यामली का भी अपने पिता के ऊपर दबाव बना जिसके रहते उसके पिता सियाराम को अपना जुर्म कुबूल करना पड़ा,उसने अदालत में धन्नो को मारने की बात भी कुबूली और फिर पुलिस ने उस जगह को भी खुदवाया जहाँ धन्नो का कंकाल दफन था, फिर सुखदेव ने धन्नो का अन्तिम संस्कार किया और त्रिकाली अम्मा को धन्यवाद दिया,तब त्रिकाली अम्मा बोली....
ये धन्नो की कल की परछाईं थी जो तुम दोनों को परेशान कर रही थी, चिन्ता मत करो वो दोबारा अब कभी नहीं लौटेगी।।
उसके बाद सुखदेव की पत्नी को फिर कभी धन्नो की आत्मा ने परेशान नहीं किया।।
समाप्त.....
सरोज वर्मा.....