छल - Story of love and betrayal - 33 Sarvesh Saxena द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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छल - Story of love and betrayal - 33



प्रेरणा ने फिर बीते दिन याद करके गुस्से में कहा - " व्हील चेयर पर बैठे बैठे भी उन्हें चैन नहीं था, वह मुझ पर ही नज़र लगाए रहतीं फिर एक दिन हम दोनों बैठे टीवी सीरियल देख रहे थे तुम ऐसा हमेशा करते, छोटी-छोटी बातों पर इतना गुस्सा हो जाते कि तुम्हारे सर पर खून सवार हो जाता और ऐसा ही तुमने उस सीरियल में झूठ और फरेब को देखकर किया, तुमने रिमोट फेंक दिया और पचासों गालियां दी ।

मैं रात भर सोचती रही इस बारे में और अगले दिन नितेश से मिली और तब हमने तुम्हारे इस गुस्सैल स्वभाव का फायदा उठाने की सोची और एक मास्टर प्लान बनाया पर इसके लिए हमें एक और शख्स चाहिए था तो हमने कुशल को अपॉइंट किया |

मैंने माँ जी को धमकाना शुरू किया, उनको अपना असली रूप दिखाया और फिर उन्हें चाय में वही दवाएं मिलाकर देने लगी जो सीमा को दी जाती थी, सीमा जवान और हरामखोर थी दवाई कभी खाती कभी नहीं खाती इसलिए उस पर असर धीरे धीरे होता" |

प्रेरित को याद आया कि अपनी आखिरी सालगिरह, (कहानी की शुरुआत में जब प्रेरणा नितेश से बात कर रही होती है और सीमा के ना आने का कारण पूछती है, वो दोनों ये बातें सिर्फ प्रेरित को सुनाने के लिए करते हैं) क्योंकि प्रेरित पास में खड़ा बातें कर रहा था और नितेश बताता है कि उसकी पत्नी की तबीयत खराब थी वरना वह भी आती " |

प्रेरित को यह सब सुनकर यकीन हो नहीं हो रहा था कि जिसे वो प्यार समझ रहा था वो बहुत बड़ा छल था जिसकी जड़ें बहुत दूर दूर तक फैली थीं |

मैंने और नीतेश ने माँ जी को धमकी दी कि वह तुमसे कहे कि, तुम अपने चाचा के बेटे हो तुम्हारा असली बाप वही है, इससे तुम गुस्से में आकर अपने चाचा और मां दोनों को मार दोगे और आगे का काम हम खुद ही कर लेंगे |

माँ जी बहुत मौके तलाशती तुम्हें यह सब बताने के पर मैं तुम्हारे और मां के साथ काले साए की तरह हमेशा रहती और उन्हें मौका ही नहीं देती कि तुम्हें कुछ बता सकें |

फिर फाइनली वो दिन आ ही गया जब उस दिन अस्पताल में मैंने माँजी को आखरी बार बोल दिया कि अगर उन्होंने आज तुम्हें ये झूठा राज नहीं बताया तो मैं उन्हें तो मारूंगी साथ में तुम्हारा मर्डर भी करा दूंगी |

माँ जी ने फिर वही किया जो हम चाहते थे पर बढ़िया बहुत ही चालाक थी, यह सब बताते वक्त वह बार-बार इशारों में तुम्हें बताना चाहती कि सच क्या है, पर अफसोस… मैं दरवाजे के बाहर शीशे से यह सब देख रही थी और वह भी यह जान गई थी कि मैं उसे देख रही हूं "|

अब प्रेरित को याद आया मरते वक्त मां कैसे छटपटा रही थी और उसका हाथ पकड़ रही थी, बार-बार कुछ इशारा कर रही थी लेकिन वह समझ ही नहीं पाया |

प्रेरित को बड़ा पछतावा हो रहा था कि उसकी मां ने उसे इतना बड़ा झूठ कितनी मजबूरी में बोला होगा और वह गुस्से में अपनी मां को कितना कोस रहा था, कितने दुख सहे, उन्होंने अपने पैर खो दिए और न जाने क्या-क्या |

प्रेरित का खून खौलने लगा, वह बौखला गया | उसके सिर पर खून सवार हो गया उसने झट से प्रेरणा की एक उंगली मेज पर रखी और काट दी, प्रेरणा पागलों की तरह दर्द से चिल्ला उठी और बेहोश हो गई |