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स्वीकृति - 12

 


" दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है..

मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है..

बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने

किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है "


टैक्सी के अंदर निदा फ़ाज़ली के इस गजल की मीठी बौछार और बाहर बारिश की हल्की फुहार ने श्रीकांत को थोड़ी देर के लिए नींद के हवाले कर दिया था .   ना जाने पिछले कितनी ही रातों से जो नींद आंख मिचौली का खेल खेल रही थी आज अचानक से उस पर मेहरबान हो गई थी.


टैक्सी के अंदर सुष्मिता की उस तस्वीर को देखते हुए और उसी के खयालों में डूबा हुआ श्रीकांत की आंख कब लग गई .. कब नींद आ गई .. उसे खुद भी इस बात का ख़बर नहीं हुआ.. अचानक तेज ब्रेक लगने की आवाज और उसी अनुपात में लगे झटके से उसकी नींद टूट जाती है सामने का दृश्य देख उसकी आंखें फटी की फटी रह जाती है... टैक्सी ड्राइवर ने इतनी जोर की ब्रेक लगाई कि गाड़ी आनियंत्रित होते हुए सड़क की दूसरी ओर एक पेड़ से जा टकराई लेकिन सड़क के राइट साइड के नजारे ने उसके रोंगटे खड़े कर दिए खून से लथपथ दो मानव शरीर पड़े  हुए थे ..


टैक्सी ड्राइवर को भी हल्की चोटें आई थी. .. 


" क्या..आंखें बंद करके गाड़ी चला रहा था ! "  श्रीकांत ने टैक्सी ड्राइवर पर गरजते हुए कहा.


"स..सर ..सर.. मेरी कोई गलती नहीं .. वो.. वो.. तो सामने से काले रंग की कार ने ... मैं तो बस बचने की कोशिश में ... टैक्सी ड्राइवर बहुत घबराया हुआ था..


श्रीकांत फौरन टैक्सी से उतर कर सड़क की दूसरी ओर भागता है , खून से लथपथ  उन दोनों महिलाओं में एक की सांसे शायद  अभी भी चल रही थी ..उन दोनों महिलाओं में से  एक की पहचान शायद उसे नहीं थी परंतु दूसरी..


"सुष्मिता...!! श्रीकांत के मुख से चीख निकली ..करुणा में डूबे उसके यह स्वर पत्थर से पत्थर ह्रदय को भी पिघला सकता था घुटनों के बल बैठा हुआ श्रीकांत अपने दोनों हाथों से सुस्मिता के सिर को अपने गोद में रखकर पागलो की तरह फूट फूट कर रोने लगा और बार बार मदद के लिए आवाज़ लगाने लगा उसे इस प्रकार रोता बिलखता देख कर टैक्सी ड्राइवर भी उसके पास आ पहुँचा था . सुस्मिता की साँसे अभी भी चल रही थी परंतु उसके साथ की वह दूसरी महिला ने शायद मौक़े पर ही दम तोड़ दिया था . धीरे धीरे सड़क के किनारे लोगों की भीड़ भी एकत्रित होने लगी थी . श्रीकांत ने वहाँ उपस्थित लोगों तथा टैक्सी ड्राइवर की मदद से सुष्मिता को लेकर तुरंत वहाँ के नज़दीकी अस्पताल में पहुँचता है परंतु वह दूसरी महिला मृत पाई गई और उसकी पहचान मीनल के नाम से हुआ .


दुर्घटना से कुछ समय पहले


सुष्मिता दुकान से निकल कर सामने से आ रही एक टैक्सी को रोकती हैं वह टैक्सी सुष्मिता के पास आकर ही रुकती है और सुष्मिता टैक्सी में बैठ जाती है परंतु अंदर की सीट पर मीनल बैठी होती है जिसे देखकर वह चौंक  जाती है . और वह टैक्सी को रोकने के लिये कहती है परंतु मीनल उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहती है कि वह सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी मदद के लिए यहाँ आयी है परंतु सुष्मिता को उसकी बातों पर यक़ीन नहीं आता है उसे लगता है कि वह भी उसके पिता द्वारा रचे गए साज़िश का ही हिस्सा है . और फिर यक़ीन आता भी तो कैसे उसकी नज़र में तो मीनल उसके पिता की बेहद ख़ास और क़रीबी थी .. और ऐसे में मीनल द्वारा उसकी मदद करना यानी मीनल का उसके पिता के ख़िलाफ़ जाना हुआ ..और अभी तक का उसका अनुभव भी यही था कि मीनल कभी भी उसके पिता के ख़िलाफ़ नहीं जा सकतीं थीं और न ही ऐसा कोई काम कर सकती थी .मीनल जब उसके पिता की इतनी ख़ास और करीबी है तो वह भला क्यों कर के उसकी मदद करेगी ,.. अतः मीनल के बार बार समझाने पर भी सुस्मिता उसकी किसी बात पर भी यक़ीन नहीं करती और वह टैक्सी रोकने की ज़िद पर अड़ी रहती है मीनल ने जब देखा कि सुस्मिता उसकीकिसी भी बात पर यक़ीन नहीं कर रही है तो उसने हेमंत को कॉल करके उससे सुष्मिता की बात करवानी चाहीं परंतु सिगनल नहीं मिलने के कारण फ़ोन काल नहीं जा पा रहा था और इधर सुस्मिता टैक्सी को रोकने की लगातार रट लगायी हुई थी तब थोड़ी देर कुछ सोचने के बाद मीनल टैक्सी ड्राइवर को थोड़ी देर के लिए टैक्सी रोकने के लिए कहती हैं .

टैक्सी के रुकते ही सुस्मिता टैक्सी से बाहर निकल जाती है और पैदल ही आगे बढ़ने लगती हैं उसे ऐसा करते देख मीनल भी टैक्सी से नीचे उतर आती है और उसे रुकने के लिए आवाज़ लगाती हुई उसके पीछे पीछे चल पड़ती है सुस्मिता तेज चलती हुई आगे की ओर बढ़ती जा रही थी और मीनल लगातार उसे अपने ऊपर भरोसा करने और उसके साथ चलने के लिए उसे समझाती हुई उसके पीछे पीछे भागी आ रही थी कि तभी एक बेहद तेज गति से आती हुई कार उन्हें टक्कर मारती हुई आगे निकल जाती है ..


इधर संदीप को लेकर निरंजन जब उस आउट हाउस में पहुँचता है तो वहाँ पुलिस का एक दस्ता पहले से पहुँचा हुआ था छापेमारी चल रही थी जिसे देखकर निरंजन के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और वह संदीप को वहीं छोड़कर अकेला भाग निकलता हैं , निरंजन को वहाँ से भागता देख संदीप भी उसके पीछे भागता है परंतु निरंजन तो किसी तरह वहाँ से बच निकलता है और संदीप पकड़ा जाता है .पुलिस संदीप को पकड़ कर थाने ले जाने लगती है तो संदीप बेहद डर जाता है और वह बार बार अपने को बेगुनाह बताता है परंतु पुलिस उसकी बातों पर यक़ीन नहीं करती और अपने साथ थाने चलने को कहती है , परंतु घबराया हुआ संदीप पुलिस की जीप से कूद जाता है और बेतहाशा गिरता पड़ता हुआ भागने लगता है पुलिस भी उसे रोकने के लिए उसके पीछे दौड़ती है संदीप आगे भागता हुआ जा रहा था कि तभी अचानक उसका पैर किसी पत्थर से टकराता है और वह छपाक यमुना नदी में गिर जाता हैं उस वक़्त कुछ घंटे की बारिश से ही यमुना नदी उफान पर थी …

                                                                                                                                                                                                               क्रमशः 

                                                                                                                                                                   

गायत्री ठाकुर.

   

                                 

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