खुशी का ठिकाना.... Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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खुशी का ठिकाना....

आज हीरामनी बहुत खुश थी क्योकिं आज उसका बेटा सुधीर उसे ऋषिकेश लेकर जा रहा था,कितने सालों से उसकी इच्छा ऋषिकेश और हरिद्वार घूमने की थी,जो कि आज पूरी होने जा रही थी।।
हीरामनी पहले ऋषिकेश पहुंची, वहां उसने गंगा मैया में डुबकी लगाई, लेकिन घूमते समय रह रहकर उसे अपने पोते सजल की याद आ रही थी,वो सोच रही थी कि काश वो भी मेरे साथ होता, वैसे भी बहु सुनीता उसका ध्यान नहीं रखती, हीरामनी की गोद में ही तो पलकर वो इतना बड़ा हुआ है, कब बारह साल का हो गया और उसे पता ही नहीं चला,बहु को तो अपनी सहेलियों और घूमने से ही फुर्सत नहीं मिलती और वैसे भी सजल को मेरे सिवाय और किसी के हाथ का खाना पसंद नहीं है,पता नहीं बेचारा क्या खा रहा होगा?
इसी तरह ऋषिकेश में एक दिन बिताकर वो हरिद्वार की बस में हरिद्वार जाने के लिए सुबह की बस पकड़कर अपने बेटे सुधीर के साथ बैठ गई,बस चल पड़ी,एक जगह बीच में रूकी तो सुधीर ने उसे चाय पिलाई,फिर बस चल पड़ी,बस चलने के बाद उसकी आंख लग गई,उसकी आंख तब खुली जब कंडक्टर ने उससे कहा....
मां जी! नीचे उतरिए, हरिद्वार आ गया।।
हीरामनी की आंख खुली तो उसने अपनी बगल की सीट पर देखा तो वहां उसका बेटा सुधीर नहीं था,तब हीरामनी ने कंडक्टर से पूछा...
मेरा बेटा सुधीर कहां गया?
मां जी! यहां तो आपके साथ कोई नहीं था, कंडक्टर बोला।।
लेकिन वो तो मेरे बगल में ही बैठा था, फिर मेरी आंख लग लग गई,जब तुमने जगाया तब आंख खुली,हीरामनी बोली।।
मां जी! ये बस अब सफाई के लिए जाएगी,अब आप अपने बेटे का इन्तजार बस स्टॉप पर बैठकर कर सकतीं हैं, कंडक्टर बोला।।
ठीक है बेटा! और फिर हीरामनी बस से उतरकर अपने बेटे सुधीर को इधर-उधर ढूंढ़ने लगी लेकिन वो उसे कहीं भी नज़र ना आया,तब उसने सोचा क्यों ना मैं उसके मोबाइल पर फोन कर लूं,तब उसने एक महिला से कहा....
बेटी! मेरा बेटा मिल नहीं रहा क्या तुम ये नम्बर अपने फोन से लगा दोगी, मैं पढ़ी लिखी नही हूं,इस पर्ची में उसका नंबर है,जरा मिला दो।।
उस महिला को हीरामनी पर दया आ गई और उसने नंबर मिलाया तो बहुत बार ट्राई करने पर नंबर लगा ही नहीं।।
तब उस महिला ने कहा...
मां जी! नंबर लग नहीं रहा है।।
हीरामनी तब थक कर एक बेंच पर बैठकर राहगीरों को देखने लगी, दोपहर हो आई थी और उसे अब भूख भी लग रही थी उसने अपनी धोती के पल्लू के कोने की गांठ में कुछ पैसे बांध रखें थे उसने खोलकर देखा तो तीन सौ बीस रुपए थें अब इतने पैसों से वो क्या करेगीं उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था , उसने सोचा ऐसे काम ना चलेगा कुछ तो करना ही पड़ेगा,शायद सुधीर मुझे यहां छोड़कर चला गया है,उस दिन बहु कह तो रही थी कि अब तुम्हारी मां को मैं और नहीं सह सकती,इसे या तो वृद्धाश्रम में छोड़ आओ या फिर और कहीं,मुझे लगा था कि मेरा बेटा इतना पत्थर दिल नहीं हो सकता कि मुझे छोड़ दे, लेकिन अब मुझे भी लगता है कि वो मुझे हरिद्वार इसीलिए लाया था।।
अब मैं अपना आत्मसम्मान दांव पर लगाकर उस घर में नहीं लौटूंगी,कुछ तो कर ही लूंगी,अब हरि के द्वार पर खड़ी हूं तो वो ही मेरी सहायता करेंगें।।
हीरामनी बस स्टॉप के बाहर निकली और पैदल ही चलती चली जा रही थी,चलते चलते वो एक कांलेज के सामने जाकर रूकी जहां एक एक खाने का ठेला खड़ा था, उसने उससे पूछा...
भाई! कुछ खाने को मिलेगा?
खाने को तो मिल जाएगा, मां जी! लेकिन बनाने वाला अभी तक फरार है आया ही नहीं,ये देखो कितने कांलेज के बच्चे भी पेड़ की छांव में भूखें खड़े हैं।।
तब हीरामनी बोली...
अगर तुम्हें एतराज ना हो तो मैं इनके लिए खाना बना दूं।।
मैं पैसे नहीं दूंगा,ठेले वाला बोला।।
मुझे पैसे नहीं चाहिए, बच्चे भूखें खड़े हैं , मुझसे देखा नहीं जाता, हीरामनी बोली।।
ठीक है! लेकिन इतना खाना बना लोगी,ठेले वाले ने पूछा।।
क्यों नहीं! एक यही काम तो सालों से करती आई हूं, हीरामनी बोली।।
तो ठीक है कर लो,ठेले वाला बोला....
फिर हीरामनी ने परांठे बनाने शुरू किए, उसने उबले आलुओं में अपने हिसाब से मसाला तैयार किया,ठेले वाले ने आटा गूंथ दिया और फिर हीरामनी ने परांठे बनाने शुरू किए तो कांलेज के बच्चों ने दो की जगह चार परांठे खाएं,उस दिन मनसुख की कमाई दुगुनी हुई।।
मनसुख बड़ा खुश था,बाद में सब बच्चों के खाने के बाद हीरामनी ने मनसुख और अपने लिए भी परांठे सेकें, मनसुख को भी परांठे बहुत पसंद आएं और फिर वो बोला....
अम्मा ! मेरे साथ काम करोगी,
हीरामनी के पास तो वैसे भी कोई ठिकाना नहीं था इसलिए उसने हां कर दी, मनसुख शाम को हीरामनी को अपने कमरे में ले गया और बोला....
अम्मा! यही है मेरे रहने की जगह,चलों तुम आराम से बैंठो, मैं तब तक रात का खाना बना लेता हूं।।
मेरे रहते तुम क्यों बनाओगे खाना? हीरामनी बोली।।
फिर हीरामनी ने रात का खाना बनाया,खाना खाकर मनसुख बोला...
अम्मा ! तुम्हारे हाथ में बहुत स्वाद है,हम और भी चीजें बना सकते हैं बेचने के लिए,रोज रोज कुछ नया नया।।
और फिर मनसुख की दुकान तो चल पड़ी कांलेज के बच्चों की जुबान पर अम्मा के हाथों के बनें खाने का स्वाद चढ़ गया,वे सब भी अम्मा ही कहने लगें हीरामनी को, मनसुख और हीरामनी ने पांच सालों में बहुत कमाई की और फिर कांलेज के बच्चों ने अम्मा के खाने के विडियो बना बनाकर उन्हें यूट्यूब, फेसबुक और इन्टाग्राम पर डाल डालकर उन्हें फेमस कर दिया।।
पांच साल के बाद वीडियो का पता पाकर उनका पोता सजल उनसे मिलने आया,अपनी दादी को देखकर उसकी आंखें भर आईं और अपने मां बाप की करनी पर वो बहुत पछताया,अपनी दादी से मांफी मांगी,
और बोला कि...
आपने अपनी मेहनत के बल पर अपना आत्मसम्मान पाया है इसे अब यूं ही बनें रहने देना, मैं आपसे मिलने आता रहूंगा।।
दादी के हाथ के परांठे नहीं खाएगा, ये कहते हुए हीरामनी की आंखें भर आईं...
और क्या? परांठे खाने तो आया था,इतने सालों तक अपनी दादी के हाथों के परांठों को मैंने बहुत मिस किया।।
ये बात सुनकर हीरामनी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और वो सजल के लिए गर्मागर्म परांठे सेंकने लगी।।

समाप्त.....
सरोज वर्मा.....