जंगल चला शहर होने - 12 Prabodh Kumar Govil द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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जंगल चला शहर होने - 12

कारागार बेहद मज़बूत और विशाल बनाया गया था। जल्दी ही बन कर तैयार भी हो गया।
लेकिन फ़िर एक गड़बड़ हुई। खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली कहावत ही चरितार्थ हो गई।
जांच रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि राजा साहब के ख़ज़ाने को रखने के लिए जो मज़बूत तिजोरी बनाई गई थी उसके एक कौने में कारीगरों की लापरवाही से एक छोटा सा छेद रह गया था। संयोग से एक तितली ने वो छेद देख लिया। वही कभी कभी उस छेद से भीतर चली जाती थी और वापस आते समय वहां से कोई छोटा मोटा गहना मुंह में दबा लाती थी। उसी ने ये सब आभूषण इधर उधर गिराए थे। ये जिसे भी मिले उसने वापस इन्हें शाही ख़ज़ाने में जमा करा दिया था। अतः यह पाया गया कि कहीं कोई गड़बड़ नहीं हुई और मुद्दे से जुड़े सभी लोगों को सत्ता की ओर से क्लीन चिट दे दी गई।
अपराधियों को रखने के लिए जो नया कारागार बनाया गया था उसे एक शानदार जिम में बदल दिया गया। कंगारू को इस शासकीय जिम का प्रभारी बना दिया गया।
सेना में बड़े पैमाने पर युवाओं की भर्ती की ही जानी थी अतः उन युवाओं के कड़े प्रशिक्षण की व्यवस्था इस शानदार जिम में कर दी गई।
पिछले कई दिनों से जंगल की बड़ी नदी और तालाबों में भी उथल पुथल मची हुई थी। जबसे मगर को जल सेना प्रमुख बनाया गया था तब से मगर ने पानी के हर स्त्रोत की अच्छी तरह पड़ताल करके वहां सैनिकों की भर्ती करनी शुरू कर दी थी और वो जगह जगह तैनात किए जा रहे थे। इन सैनिकों में मछलियों, बतख, कछुए से लेकर सांप, शार्क और व्हेल मैडम तक शामिल थीं। अब किसी की मजाल नहीं थी जो पानी में कहीं कोई गुल खिला सके। जानवरों को केवल पानी पीने और नहाने के अलावा पानी का कोई और प्रयोग करने पर पाबंदी लगा दी गई थी।

जंगल में चौड़ी सड़कों का जाल बिछ जाने से वाहनों की खूब रेलमपेल हो गई।
एक कौने से दूसरे कौने तक रेलगाड़ियों का आवागमन भी होने लगा।
इस सबसे सुविधाएं तो बढ़ीं लेकिन जंगल के प्राणियों में बेचैनी भी बढ़ने लगी। राजा शेर के पास कई तरह की शिकायतें आने लगीं।
राजा साहब ने अपने विश्वासपात्र सेवकों की तत्काल एक मीटिंग बुलाई। एडवाइजर मिट्ठू पोपट, लोमड़ी और खरगोश के साथ साथ रानी साहिबा भी बैठक में आईं।
मिट्ठू पोपट ने बताया कि हमने मिलने वाली सभी शिकायतों की बारीकी से छानबीन की है। ज्यादातर शिकायतें इस बात को लेकर हैं कि जंगल में रहने वाले सभी प्राणियों के आकार या डीलडौल में भारी अंतर है। इसके कारण यहां जो कुछ भी सुविधाएं दी जाती हैं उनमें भारी भेदभाव हो जाता है।
रानी साहिबा ने कहा - मैं कुछ समझी नहीं। ज़रा विस्तार से बताइए। राजा साहब के चेहरे से भी ऐसा लग रहा था जैसे वो भी कुछ समझे न हों।
मिट्ठू पोपट ने कहना शुरू किया - देखिए, जैसे हमने रेल में दूरी के हिसाब से टिकिट लगाया। अब उतने ही रुपए का टिकिट ख़रीद कर चींटी ने तो रेल में एक मिलीमीटर की सीट ली, पर हाथी उतने ही पैसे में एक पूरा कंपार्टमेंट घेर कर बैठ गया।
- रेस्तरां में भरपेट लंच की थाली की रेट एक है। अब वहां चूहा चार दाने खाकर भी उतना ही बिल चुकाता है जितने में अजगर महाशय होटल का आधा किचन डकार जाते हैं। रोटी पकाते - पकाते भेड़ें बेचारी पसीना- पसीना हो जाती हैं पर उनका पेट नहीं भरता।
- ये बात तो ठीक है, राजा साहब बोले। ये तो न्यायोचित नहीं है।
लेकिन रानी साहिबा को ये बात बिल्कुल नहीं जमी। बोलीं - अरे, ये कोई हमारी गलती थोड़े ही है। जो सेहतमंद है वो ज्यादा खायेगा ही, हम इसमें क्या कर सकते हैं।
लोमड़ी ने भी रानी साहिबा के तेवर देख कर उन्हीं का पक्ष लेना उचित समझा। बोली - जी, फ़िर बेचारे बड़े पशुओं को पहनने- ओढ़ने पर भी तो ज़्यादा खर्च करना पड़ता है। चूहा एक रुमाल में चार ड्रेस बनवा लेता है जबकि हाथी की शर्ट के लिए थान के थान लग जाते हैं।
बातचीत रुक गई क्योंकि नाश्ता लग गया था।