जंगल चला शहर होने - 9 Prabodh Kumar Govil द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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जंगल चला शहर होने - 9

जैसे ही जिराफ़ को पता चला कि मॉल में बुल फाइट के लिए मैदान बनवा लेने पर हर साल बहुत सारा रुपया किराए के रूप में मिलेगा तो उसके मुंह में पानी आ गया। उसने काम की गति और तेज करके मैदान बनाने की ठान ली।
उसने तत्काल दो सौ बंदरों को और बुला कर काम पर रख लिया।
उधर जब बकरी को मालूम हुआ कि अब सभी मजदूर रात को देर तक काम करेंगे तो उसका दिल भी बल्लियों उछलने लगा। वो जानती थी कि इतने मजदूर काम करेंगे तो वो दोनों समय का खाना साथ में तो लायेंगे नहीं। ज़रूर अधिकतर लोग उसके कैफे पर ही खाना खाने या नाश्ता करने के लिए आयेंगे। तो उस पर भी चांदी की बरसात होगी। खूब कमाई होगी।
बकरी ने अपनी कैंटीन में वर्कर्स की संख्या और बढ़ा ली। अब वहां गिलहरी से लेकर चील तक बर्तन साफ करते और प्लेटें धोते हुए दिखाई देने लगे।
सफ़ेद सुअरों की पूरी की पूरी कतार फर्श पर झाड़ू पौंछा करती।
बकरी के गल्ले में खूब माल आने लगा।
जिराफ़ ने मॉल की एक पूरी की पूरी मंज़िल इन्हीं मैदानों के लिए आरक्षित कर दी। इस तल पर एक बड़ा बुलफाइट ग्राउंड, दो मुर्गों की लड़ाई के छोटे मैदान और बकरों के मल्लयुद्ध का अखाड़ा बनने लगा। इन मैदानों के चारों ओर बैठने की सुंदर व्यवस्था थी। सबसे आगे वीआईपी दर्शकों के लिए सोफे लगवाए गए। उनके पीछे फर्स्ट क्लास और सेकंड क्लास कुर्सियों की कई पंक्तियां बनीं। सबसे पीछे लकड़ी की ऊंची बैंचें लगाई गईं।
यद्यपि वीआईपी सीटों पर कुछ विशिष्ट दर्शक फ़्री पास लेकर आते थे लेकिन इनकी कीमत बहुत ज्यादा थी। सामान्य गरीब लोगों के लिए सबसे आगे ज़मीन पर बैठने की सस्ती व्यवस्था भी की गई।
एक रात को जब मजदूरों ने वहां एक बघेरे को घूमते देखा तो सबने उसे घेर लिया। उसी से जानकारी मिली कि चीता, तेंदुआ और बघेरा मिलकर ही इन प्रतियोगिताओं का संचालन करने वाले हैं।

सारे जंगल में तहलका मच गया। जिसे देखो, यही बात कर रहा था। लोग जगह जगह अपना काम छोड़ कर खड़े हो जाते और ये ही चर्चा करने लगते कि आख़िर ऐसा हुआ कैसे? किसी की समझ में कुछ नहीं आता।
पुलिस भी अपने स्तर पर तहकीकात में जुटी थी। पर किसी को कोई कामयाबी नहीं मिल रही थी कि ये सब कैसे हो रहा है?
राजा साहब तो राजा साहब, साथ में उनके एडवाइजर मिट्ठू पोपट जी, लोमड़ी और खरगोश तक कुछ नहीं समझ पा रहे थे।
दरअसल जंगल में पिछले कुछ दिनों से जगह जगह कहीं भी किसी को भी सोना चांदी मिल रहा था। हैरानी की बात ही थी।
अब देखो ना, भैंस ने सुबह सुबह टिफिन बॉक्स में ले जाने के लिए खीर बनाकर ठंडी होने रखी थी। जैसे ही उसे डिब्बे में पलटने लगी कि खीर में कुछ चमकती हुई चीज़ दिखी। देखा, तो सोने की गिन्नी निकली। भैंस की आंखों में तो खुशी के आंसू छलछला आए।
उधर गेंडे बाबू सुबह पार्क में जॉगिंग कर रहे थे। जॉगिंग के बाद जब योगा के लिए बैठे तो उन्हें याद आया कि व्हेल मैडम ने योगा सिखाते समय कहा था कि शरीर को लोभ लालच माया ममता से दूर रखना। पर कैसे रखें? सामने घास पर तो एक चमकता हुआ शुद्ध सोने का कंगन पड़ा था। हुआ योगा दरकिनार।
तालाब पर बतख बच्चों को स्विमिंग सिखा रही थी कि तभी एक नन्हे टर्टल ने लाकर हीरे की अंगूठी दी, बोला - मैम, ये पानी में पड़ी थी।
कमाल है न! कहां से बरस रही थी इतनी दौलत?