जंगल चला शहर होने - 10 Prabodh Kumar Govil द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

श्रेणी
शेयर करे

जंगल चला शहर होने - 10

नौ भालू थे।
लाइन से एक के पीछे एक ट्रैक्टर लिए चले जा रहे थे। जो भी देखता, सोचता - ज़रूर कुछ बड़ा होने वाला है जंगल में। बात थी भी सच। भालुओं की इस टीम ने तत्काल सड़क किनारे के एक ऊबड़ खाबड़ से मैदान को समतल करना शुरू कर दिया। उस पर न जाने कब से बंजर ज़मीन पर पनपने वाले झाड़ और खर पतवार इकट्ठे हो गए थे।
अब इतना बड़ा काम शुरू हो जाए और सबके दिमाग में खलबली न मचे, ऐसा कैसे हो सकता था। पिल्ले, बिल्लियां, तीतर, मोर, कछुआ, सारस, नेवला... सब एक एक करके तमाशा देखने आ गए और सड़क किनारे खड़े होकर देखने लगे।
तभी एक झंडा लगी जीप में घोड़ा शान से चला आ रहा था। जीप के पीछे लगी विशाल ट्रॉली में घोड़े के दल के बाकी लोग सवार थे। घोड़े ने जीप से उतरते ही सबको बताया कि यहां पर जंगल की छावनी बनाई जा रही है। राजा साहब ने हाथी, घोड़े और मगर को सेनापति नियुक्त किया है और अब बड़ी संख्या में सैनिकों की भर्ती होगी।
ऊदबिलाव को ये सुन कर बहुत मज़ा आया कि पानी की सेना का सेनापति मगरमच्छ को बनाया गया है जो उसका पुराना दोस्त और पड़ोसी है। अब तो ऊदबिलाव को भी पूरी उम्मीद हो चली थी कि उसे भी फ़ौज में कोई न कोई बड़ा ओहदा मिल ही जायेगा। वह कौतूहल से भालुओं को तेज़ी से भूमि समतल करते देखने लगा।
मोर को ये बात नागवार गुजरी।
भला घोड़े को वायु सेना की कमान देने की क्या तुक थी? माना कि घोड़ा दौड़ते समय हवा से बातें करता था पर ये तो सिर्फ़ एक मुहावरा ही है न, "हवा से बातें करना", भला घोड़ा हकीकत में वायु सेना की कमान कैसे संभाल सकता था?
मोर के लिए ये बात अपमानित करने वाली ही तो थी। आसमान में उड़ने वाले पंछियों का राजा होने पर भी उसे वायु सेना प्रमुख नहीं बनाया गया।
मोर ने अगली सुबह ही सब परिंदों को लेकर मांद महल का घेराव करने का ऐलान कर दिया।
खलबली मच गई।

मोर हतप्रभ रह गया।

उसका दाव उल्टा कैसे पड़ गया। वह हैरान था।

उसने तो उसे वायुसेना प्रमुख न बनाए जाने पर नाराज़गी जताने के लिए मांद महल का घेराव करने की घोषणा की थी। कल शाम से ही सारी रात जाग कर जबरदस्त अभियान चलाया था। उसने एक एक पक्षी को न्यौता भेजा था और उन्हें समझाया था कि संगठन में ही बल है। यदि परिंदों की इस तरह अनदेखी की गई और हम सब लोग चुप रहे तो ज़मीन के प्राणियों इन पशुओं की ज्यादतियां बढ़ती जाएंगी। फिर हमारी कहीं कोई सुनवाई नहीं होगी। इसलिए जरूरी है कि कल हम सब राजा शेर के मांद महल का घेराव करके अपना विरोध प्रदर्शन करें और उन्हें घोड़े को वायुसेना की कमान सौंपने के फ़ैसले को वापस लेने के लिए मजबूर करें।

ये बात लगभग सभी को ठीक लगी थी और वो सब इस मामले में मोर का साथ देने के लिए तैयार हो गए थे। हाथी थल सेना संभालता है और मगरमच्छ जल सेना, तो आकाश की निगरानी का जिम्मा किसी नभचर को ही दिया जाना चाहिए। कम से कम सेना प्रमुख आकाश में जा तो सके। एक से बढ़कर एक मज़बूत पंछियों - चील, गिद्ध, कौवा, बाज, आदि के होते हुए भी सभी पक्षियों की अनदेखी की गई थी। मोर खुद अपने लिए ये ओहदा नहीं मांग रहा था क्योंकि वह तो पहले ही पक्षियों का सुल्तान था ही। इसीलिए सब उसकी बात मान कर यहां इकट्ठे हुए थे।

लेकिन यहां आकर तो बाजी पलट ही गई थी। कोई नहीं जानता था कि यह चमत्कार कैसे हुआ?

लेकिन सारे पक्षी घोड़े का विरोध या मोर का समर्थन करना भूल कर यहां महाराजा शेर सिंह की जय जयकार कर रहे थे।

सोचो, अब शेर की जय बोलने से भला वो किसी की बात मानेगा? अरे, इन्हें तो राजा शेर "हाय हाय", "राजा शेर होश में आओ" या "मनमानी नहीं चलेगी" जैसे नारे लगाने थे।

पर ये सब न जाने किसके कहने पर हुआ। मोर की समझ में कुछ नहीं आया।