जंगल चला शहर होने - 7 Prabodh Kumar Govil द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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जंगल चला शहर होने - 7

पुलिस सूत्रों और जेब्रा ने काफ़ी देर तक ढूंढने की कोशिश की। इलाके का चप्पा चप्पा छान मारा पर भेड़िए का कुछ पता न चला।
न जाने ज़मीन खा गई या आसमान निगल गया उस दुष्ट को, देखते हैं कब तक बचेगा हम से... कहते हुए बारहसिंघा ने गाड़ी से वापस लौटा ले चलने के लिए कहा। उसने जेब्रा को भी सख़्त ताकीद कर दी कि जब भेड़िया पकड़ में आ जायेगा तो तहकीकात के लिए ज़रूरी होने पर जेब्रा को भी पुलिस स्टेशन में तलब किया जायेगा। सूचना मिलते ही जेब्रा फ़ौरन हाज़िर हो वरना उस पर भी कड़ी कार्यवाही की जाएगी।
एक सैल्यूट मार कर जेब्रा जान बचा कर भागा। उसने सोचा, जान बची और लाखों पाए। उसकी जीप फिर हवा से बातें करने लगी।
बारह सिंघा थोड़ा मायूस हुआ क्योंकि रानी साहिबा के गहनों का डिब्बा चोर के दिख जाने के बावजूद भी मिल नहीं सका था। उसे राजा साहब का सामना करने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी।
उसने भेड़िया की खोज के लिए उस क्षेत्र में कुछ और सिपाहियों को भेजने का फ़ैसला किया। उसने लौटते समय वो खाल का लबादा भी अपने कब्जे में लेकर रख लिया था जिसे ओढ़ कर ऊंट के वेश में भेड़िया सबको चकमा देकर भाग लिया था।
बारह सिंघा ने पुलिस स्टेशन पहुंच कर कैप उतारी ही थी कि उसे सामने से खरगोश आता हुआ दिखाई दिया। शायद वह मांद महल से चोरी के मामले में हुई प्रगति की जानकारी प्राप्त करने ही आया था।
पूरी बात पता चलते ही खरगोश ने कहा कि कल सुबह दिन निकलते ही वो कंगारू से संपर्क करके उसे हेलीकॉप्टर के साथ बुलवा लेगा ताकि भेड़िया को धर पकड़ा जा सके।
बारह सिंघा की आंखों में ये सुन कर चमक आ गई।

जंगल की घनी बस्ती से कुछ दूरी पर तेज़ धूप में हाई वे बिल्कुल सुनसान पड़ा था। सड़क के किनारे की छोटी झाड़ियों में कुछ सुरसुराहट हो रही थी।
वहां से गर्मी और धूप में लथपथ एक मगरमच्छ, अजगर और बड़ा सा कछुआ बेहाल से होते हुए आगे बढ़ रहे थे।
दरअसल उन्हें किसी से ये खबर मिली थी कि बस्ती से बाहर सुनसान इलाके में किसी परदेसी व्यापारी ने कोई दुकान खोली है जिसमें सोना बड़ा सस्ता मिल रहा है। जबसे जंगल में बाज़ार की धूमधाम और सुविधाओं का आगमन हुआ था तब से हर प्राणी को अच्छी तरह जीने के लिए रुपए की ज़रूरत पड़ने लगी थी। जो जानवर मेहनती नहीं थे और केवल आलस्य में पड़े पड़े दिन बिताते थे उन्हें कोई काम तो मिलता नहीं था। उन्होंने सोचा थोड़ा सोना चांदी ही खरीद कर रख लें ताकि कुछ दिन बाद जब सोने चांदी की कीमतें बढ़ें तो चार पैसे हाथ में आएं। इसी से बेचारे भागे चले जा रहे थे।
लेकिन वो बेचारे ये कहां जानते थे कि आज इस रास्ते पर चोर को पकड़ने के लिए पुलिस ने कदम कदम पर जाल बिछा रखा है।
उन्हें फ़ौरन एक पुलिस अधिकारी ने शक के आधार पर ही रोक लिया। वो कुछ पूछताछ करता तब तक तीनों ने ही भांप लिया कि कुछ तो गड़बड़ है। ये लोग जरूर उसी सोने के व्यापारी की तलाश में होंगे।
मगर ने बीमार होने का बहाना किया। कछुआ उसे संभालने लगा। अजगर मौका देख कर सड़क किनारे की एक बांबी में घुस गया।
मगर और कछुए को पुलिस अधिकारी ने अपनी गाड़ी से तालाब तक छोड़ा।
लेकिन अजगर जिस बांबी में घुसा था वह असल में कोई बड़ी सी सुरंग थी जिसका दरवाज़ा बांबी की शक्ल में मिट्टी से ढका हुआ था। अजगर को उसी सुरंग में भेड़िया भी सोता हुआ मिला। पास ही दो मेंढक एक बड़े से डिब्बे पर लगे ताले पर बैठ कर पहरा दे रहे थे।
अजगर को सारा माजरा समझ पाने में देर न लगी।

इस घटना से राजा शेर ने भी सबक लिया। उन्होंने महारानी शेरनी से कहा कि हमें धन दौलत घर में नहीं रखना चाहिए था।

अब आगे के लिए राजा साहब ने मांद महल के पिछवाड़े ही एक पक्की बंकरनुमा सुरंग बनवा कर उसी में ख़ज़ाने के लिए एक विशालकाय तिजोरी बनवा डाली।

वहां पर कुछ प्रशिक्षित गार्ड गोरिल्ला भी तैनात कर दिए गए।

लेकिन पुराने जमाने के एक मशहूर कवि ने कहा है -

"रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिए डार

जहां काम आवै सुई, कहा करै तलवार"

इसका मतलब ये है कि बड़ी - बड़ी बातों के सामने छोटी बातों को नज़र- अंदाज़ नहीं करना चाहिए, कई बार जो काम तलवार से नहीं हो पाते वो सुई से हो जाते हैं।

तो ऐसा ही हुआ!

इस मज़बूत पुख्ता तिजोरी वाली सुरंग में कारीगरों की भूल से एक छोटा सा सूराख कहीं रह गया। नन्हे से इस छेद पर किसी का ध्यान नहीं गया।

काम ख़त्म हो गया। राजा साहब का सारा ख़ज़ाना इस नई तिजोरी में रखवा दिया गया। सारा काम गुपचुप तरीके से लोमड़ी और खरगोश ने एडवाइजर मिट्ठू पोपट की देखरेख में करवाया। बेहद भरोसे मंद गार्ड भी तैनात कर दिए गए।

रानी साहिबा को ये मलाल था कि उनकी चोरी गई दौलत अब तक नहीं मिली थी। लेकिन समय समय पर मिट्ठू पोपट उन्हें ये कह कर सांत्वना देता रहता था कि दौलत जैसे आती है वैसे ही जाती है।

रानी साहिबा इस मुहावरे का अर्थ तो नहीं जानती थीं लेकिन मन में यही सोच कर अपने को तसल्ली दे लेती थीं कि तब तो जैसे गई है वैसे ही वापस भी आयेगी। वो मन ही मन फ़िर से कोई ऐसी तरकीब सोचती रहती थीं जिससे सभी मित्रों को फिर से आमंत्रित करें और उनसे धन कमाने की चेष्टा करें।

दुनिया का दस्तूर है कि यहां सोचने से हर बात का हल मिल ही जाता है।