जंगल चला शहर होने - 5 Prabodh Kumar Govil द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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जंगल चला शहर होने - 5

चींटी केस हार गई। न्यायमूर्ति शार्क ने अपने फ़ैसले में कहा कि चींटी के हिप्पो पर लगाए गए सभी आरोप झूठे हैं। हिप्पो ने अध्यापकों की भर्ती में कोई धांधली नहीं की है बल्कि वास्तव में तो कहानी कुछ और है।
सबसे पहले जंगल में स्कूल खोलने का प्रयास कभी ख़ुद चींटी ने ही किया था। परंतु न तो उसने शासन से इसकी कोई अनुमति ली और न ही भवन का नक्शा पास कराया। गुपचुप तरीके से चुपचाप उसने अपने कुछ मित्रों की मदद से विद्यालय भवन बना भी लिया। परंतु जब भवन तैयार हुआ और उसमें विद्यार्थियों का प्रवेश शुरू किया तो पता चला कि स्कूल के कक्ष बहुत ही छोटे हैं। अधिकांश विद्यार्थी तो स्कूल के गेट में से भीतर ही नहीं घुस सके। ऐसे में छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा और सबने उस स्कूल का बहिष्कार कर दिया।
जब चींटी ने हिप्पो जी का शानदार स्कूल देखा तो उसने ईर्ष्या के कारण उन पर मिथ्या आरोप मढ़कर उन्हें कोर्ट में घसीट लिया।
चींटी पर भारी जुर्माना भी लगाया गया और उसे माफ़ी भी मांगनी पड़ी।
केस जीतने पर हिप्पो जी ने स्कूल में ही एक शानदार पार्टी रखी जिसमें सभी को पिज़्ज़ा, बर्गर, फ्रेंच फ्राइज़, नान, पनीर ग्रेवी, जलेबी, गुलाब जामुन परोसे गए। सभी विद्यार्थियों को जाते समय एक- एक नाचोज़ का पैकेट भी दिया गया।
पार्टी के बाद रात को जब हिप्पो जी अपने घर पहुंचे तो उन्हें याद आया कि पार्टी में उनका ख़ास दोस्त जिराफ़ तो आया ही नहीं।
ओह, उनसे भारी भूल हो गई। न जाने उसे निमंत्रण मिला या नहीं मिल सका। उन्हें कम से कम पता तो करना चाहिए था। पर काम की व्यतता में उन्हें ये ख्याल ही नहीं रहा कि जिराफ़ के न आने का कारण तो जानें। ख़ैर! अब क्या हो सकता था। कल देखेंगे, ऐसा सोच कर उन्होंने सोने की कोशिश की। मगर उन्हें नींद नहीं आई।
उन्हें महसूस हुआ कि जीवन में मित्रों का बहुत महत्व है। लाखों करोड़ों की भीड़ में कोई मित्र मिल जाना एक नसीब की ही बात है। अच्छे और सच्चे मित्रों को हर हाल में सहेज कर रखना ही चाहिए।
सोचते- सोचते हिप्पो जी की न जाने कब आंख लगी।
अगले दिन स्कूल पहुंचते ही हिप्पो जी ने जिराफ़ को फ़ोन किया। पता चला कि दो- तीन दिन से तबीयत ठीक नहीं होने के कारण वह कल पार्टी में नहीं आ पाया।
हिप्पो जी ने जिराफ़ को अगले दिन स्कूल में आने का न्यौता दे डाला। उन्होंने कहा - हम तुम्हारे लिए कोई ख़ास व्यवस्था नहीं करेंगे, केवल हमारे विद्यार्थी जो अपना टिफिन लाते हैं उन्हीं में से थोड़ा- थोड़ा हम दोनों शेयर करके खायेंगे, आ जाओ।
जिराफ़ बहुत खुश हुआ। अगले दिन सुबह नहा कर उसने नया सूट पहना और टाई लगा कर स्कूल के लिए चल दिया। हिप्पो जी ने अपनी गाड़ी उसे लेने के लिए भेजी थी।
उधर कल जब हिप्पो जी फ़ोन पर जिराफ़ से बात कर रहे थे तो पास की दीवार पर रेंगती हुई छिपकली ने सारी बात सुन ली।
उसने अपनी सहेली मक्खी को बताया कि कल सब बच्चों के टिफिन में से थोड़ा थोड़ा खाना हिप्पो जी और जिराफ़ खाने वाले हैं।
बस, फिर क्या था, मक्खी ने उड़ान भरी और एक एक बच्चे को जाकर ये खबर दे दी। सभी बच्चे सोच में पड़ गए कि अब क्या करें।
अगर बच्चे खाना नहीं शेयर करने देते तो प्रिंसिपल हिप्पो सर नाराज़ होते मगर बच्चे स्कूल नहीं जाते तो घर वाले गुस्सा हो जाते।
ऐसे में तितली ने सबको मज़ेदार सलाह दी।
तितली रानी ने सब बच्चों को कह दिया कि आज तुम सब सुबह भरपेट नाश्ता करके ही स्कूल आना और अपने साथ कोई टिफिन लाना ही मत।
लो, कहते हैं कि एकता में बल है। आज कोई भी बच्चा भोजन लाया ही नहीं।
उधर आधी छुट्टी में जब हिप्पो जी शान से अपने मित्र जिराफ़ को लेकर बच्चों की क्लास में पहुंचे तो बच्चे अंत्याक्षरी खेल रहे थे। वहां खाने - पीने की न कोई बात थी और न व्यवस्था। बच्चों ने मेहमान को देख कर ज़ोर से समवेत स्वर में बोला - वेलकम सर!
मगर हैरान से हिप्पो जी अपना सिर खुजाते हुए वापस अपने कमरे में लौट आए। पीछे - पीछे भूख से बेहाल हुए जिराफ़ बाबू भी मुंह लटकाए चले आ रहे थे।
हिप्पो जी को आश्चर्य था कि आज कोई भी बच्चा खाना क्यों नहीं लाया।
ख़ैर, अब जो भी हो, मेहमान को भोजन तो कराना ही था। हिप्पो सर ने स्कूल के पियोन शुतुरमुर्ग को बुलाया और उसे कुछ रुपए देते हुए बोले - बेटा देखो, बाहर बंदर का ठेला खड़ा है। जल्दी से वहां जाओ और गरम गरम समोसे कचौरी लेकर आ जाओ। चटनी भी लाना।
जिराफ़ के मुंह से पानी टपक पड़ा।
शुतुरमुर्ग ने डस्टर लाकर पहले ज़मीन पर गिरा पानी साफ़ किया फिर बंदर के ठेले पर जाने लगा।
ओह, ये क्या?
बंदर के ठेले पर तो बच्चों की भीड़ लगी थी। सब बच्चे पॉकेट मनी से कुछ न कुछ लेकर खा रहे थे। जब तक शुतुरमुर्ग वहां पहुंचा तब तक तो बंदर सारे बर्तन झाड़ पौंछ कर ठेला बंद करने की तैयारी में था।
शुतुरमुर्ग को ख़ाली हाथ आते देख हिप्पो जी बेचैन हो गए।
जिराफ़ की टाई कुछ ज्यादा ही टाइट होकर परेशान कर रही थी। जिराफ़ उसे ढीली करने लगा।
सब अचंभित थे। जंगल में ये हेलीकॉप्टर कहां से आया?
सब टकटकी लगाकर ऊपर देख रहे थे पर हेलीकॉप्टर कहीं उतरा नहीं, ऊपर से गुज़र गया। सब अपने अपने काम में लग गए।
ये हेलीकॉप्टर एक कंगारू चला रहा था। कंगारू ने ये हेलीकॉप्टर इसीलिए ख़रीदा था कि वह जंगल में सबको फ्लाइंग सिखाने की एकेडमी खोले।
अभी ख़ुद कंगारू भी अच्छा चलाना कहां जानता था। ऐसे में वो जंगल में सबके बीचोंबीच उतरना नहीं चाहता था। कहीं कोई गलती हो जाती तो लेने के देने पड़ जाते। इसलिए वह अभ्यास करता हुआ उसे दूर दूर उड़ा रहा था।
लो, कंगारू महाशय को पता ही नहीं चला कि इसमें ईंधन ख़त्म होने वाला है। उसके होश उड़ गए। झटपट उसे उतारने के लिए नीचे झांका तो देखा कि नीचे तो बर्फ़ से ढकी हुई पहाड़ की चोटी है।
कोई चारा नहीं था, वहीं उतारना पड़ा।
नीचे आकर कंगारू ने इधर उधर देखा तो उसे कोई दिखाई नहीं दिया। वह कुछ चिंतित हुआ। भूख भी लगी थी। उसने पहले तो टिफिन बॉक्स से निकाल कर एक सैंडविच खाया फिर बाइनैकुलर से इधर उधर देखने लगा।
कुछ ही दूरी पर उसे एक सफ़ेद झक्क भालू आता दिखाई दिया। शायद पोलर बियर था।
भालू उसे देख कर बहुत खुश हुआ। दोनों में झटपट दोस्ती हो गई। भालू उसे अपने घर ले गया। घर पर दोनों ने साथ में भोजन किया। भालू ने कंगारू को हेलीकॉप्टर का ईंधन भी दिलवाया।
कंगारू ने पोलर बियर और उसकी फ्रेंड पेंगुइन को हेलीकॉप्टर की सैर भी कराई।
अगले दिन जब कंगारू वापस लौटने लगा तो पेंगुइन ने उसे रास्ते के लिए नाश्ता भी दिया।
नाश्ते के डिब्बे में छः तरह के लड्डू थे। कंगारू सबसे गले मिलकर वापस लौटा।