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स्कूल के दिन

चलो एक अपनी बात बताती हूं
कत में अपनी वो ही पुरानी स्कूल गई थी
बोहोत से कहानियों के बिच एक किस्सा याद आ गया नौवीं कक्षा का।

में लिखती हूँ । आज २०२२ में आप सब को पता है पर में २०१२ में भी थी ये कोई नहीं तब में गाने लिखती थि
इंटरनेट का दौर था नहीं तो में तब रेडियो सुना करती थी और गानों के सब्द कॉपी में उतार दिया करती थी तब लिरिक्स के साथ वीडियो नहीं बनते थे में रेडियो में गाने की तेजी के साथ कलम चलाके गाने किताब में लिख देती और फिर कुछ छूट जाता तो फिर गाने आने का इंतजार करती।
स्कूल में एक ऐसा ही समय था जिसे प्रॉक्सी पीरियड कहते है तो में याद करके ऐसे ही गाने पेज पे लिख रही थी और वो सर के हाथ में आ गया
लड़की ये सब तू क्या लिख रही है?
मुझे तब तगा मेने कुछ गलत किआ फिर भी मेने कहा
सर सिर्फ गाने के बोल है ।

ठीक है में ये कागज तुम्हारी क्लास टीचर को दे दूंगा अब वो ही करेंगे इसके साथ जो करना है
मतलव इज्जत का कचरा फिक्स था।

दिवांगी क्या है सब ?
सुबह के पहले क्लास में मेरी क्लास पूरी क्लास के आगे लगाई गई ।

कल आपके वाली को बुला के आना , हम कह देंगे के आपकी बेटी को पढ़ाई लिखाई में कोई रस है नहीं
उसे बस पे ही सब करना है आप उसकी स्कूल छुड़वा दीजिए और पैसे मत बिगाड़े इसकी पढ़ाई में
वैसे में बता दू में पढ़ाई में भी अच्छी थी तब ओर ये कहने वाले मेरे हिंदी भाषा के ही शिक्षक थे ।

वेसे वो बात वही पे दफन जरूर हो गई और ये बात मेरे जहन में बस गई के लिखना है तो छुपाना है

वैसे वो गाने की किताब आज भी मेरे कमरे में है छुपाइ हुई है

इंटरनेट मिलने पे लिखना भी मेने पायावरगी के नाम से शुरु किया था बिना
किसी को बताए बाद में जब अनजनो ने सराहा तो अपनो को बताने की भी हिम्मत भी आ गई आज में बकायदा कंटेंट राइटर के तौर पे कार्यरत हूँ

और ऐसा कोई काम भी होता है वो कईओ को नहीं पता।

मुझे पसंद है लिखना और उसके लिए सही राह दिखने की जरूरत थी आगे, पढ़ाई करने की जरूरत है पढ़ाई रोक देने की नहीं और उसके लिए भी पढ़ाई आती है वो शायद आपको पता नहीं होगा

दस साल लग गए मुझे इस सवाल का जवाब लिखने में कोई नहीं अब मार्क पूरे दे देना।

कॉपी के आखरी पन्नो पे लिखे नाम
अब फेसबुक पे ढूंढे नहीं जाते
हमारे स्कुल के दिन वापिस नहीं आते

रिसेस में खाये चाट और बात के मज़े
मेक डी के ज़ायकों में छुपाये नहीं जाते
हमारे स्कुल के दिन वापिस नहीं आते

एक बेंच पे दोस्तों के बिच खींची पेन्सिल की सरहदे
अब दूरियों की लकीर हाथो से मिटा नहीं पाते
हमारे स्कुल के दिन वापिस नहीं आते

सर मेम के निक नेम एक अलग ही नफरत और प्रेम
भला सोशल मिडिया पे ट्रॉल्लिंग किए नहीं जाते
हमारे स्कुल के दिन वापिस नहीं आते

किसी की एक जलक का लुफ्त और उसके ना आने गम
गुड़ मॉर्निंग से गुड नाइट के मेसेजस में पाए नहीं जाते
हमारे स्कुल के दिन क्योँ वापिस नहीं आते !

-यायावरगी

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