डियर डायरी ,
तुजे पता है न तेरी बातुनी याशु ऊटी जाने वाली थी कॉलेज कैंप के लिए! आज तक मैंने तुजे हर राज़ बताए है ओर बताती भी किसे तेरे अलावा, मैंरी बात सुनता ही कोन है या ये कहु के किसी और को कहा कुछ केह पाती हु, हा यार एसी ही तेरी याशु! जिसे लोग इंतरोवर्ड कहते है जो अपने मैं ही रहती है ! तुही तो है मैंरी राज़दार तूही ने तो मैंरे हर राज़ को अपने पन्नो मैं केद रखा है याद है वोह दस्वी के कम्प्युटर के सर अरे जिन पे मुझे क्रश था ओर वो रोल नंबर 47 केसे छुप-छुप मुझे देखा करता था… मैंरे ख्वाब-ख्वाहिशे सब तो तू जानती है पर एक बात थी जो मैंने खुद को भी एक सपना समज भुलवा दी थी ! ये बात थी मैंरी पहली किस् की हा माइ फ़र्स्ट किस्स
ऊटी बोहोत अदभूत जगह है ऊटी लेक, स्लीपिंग लेडी, विंड मिल , डोडबेटा , प्याकारा , कमराज डैम, डॉल्फ़िन पॉइंट ओर कुन्नूर... यह खुदा भी न एक चित्रकार है जब खुदा भारत बनाने का सोचा होगा न तो उसने नीचे से बना सुरू किया होगा इसीलिए तो देखो ये केरला, आंध्र, तमिलनाडू मानो खुदने सारे रंग यहा के फूलो मे , प्रकृति मे भरे ही है फिर जेसे जेसे आगे भारत का चित्र बनता गया वेसे वेसे रंग न खतम होने लगे बचा सिर्फ हल्का पीला ओर सफ़ेद तो राजस्थान मे रेत भरदी ओर कश्मीर मे बरफ हा माना मेरी जान के उसकी अपनी खूबसूरती है पर जिसका मनपसंद त्योहार ही होली हो उसे तो रंगीन दुनिया ही आकर्षित करेगी!
प्याकारा के पास ही हमारा टेंट था अरे हा भाई हमारा तम्बू था! सच्ची यार सब घूम के थक गयी थी मैं सोना था मुझे लेकिन टूर का एक नियम है मेडम ना खुद सोओ न दूसरे को सोने दो! मिशांक का डायलोग
हा वही अड़ियल चलती-फिरती बकबक मशीन! बताया तो था तुजे उसके बारे मे वही!
सारे लड़के जाके लकड़िया लेके आए ओर आग जलाई! तब लग-भग पंदरा डिग्री तापमान था ओर रात ओर सर्द होने वाली थी। मैं एक कोने चुप-चाप बेठे हुये मैंरे खीचे हुये कुन्नूर के सुंदर फोटो देख रही थी ओर वो लोग डंब सराट्स खेल रहे थे मुजे किसी ने बुलाया नहीं ओर मैं गयी नहीं ओर अपनी दुनिया मैं खो गयी वेसे
“मैंरे लिए दुनिया दो हिस्सो मैं बटी हुई है एक जिसमे मे रहती हु ओर दूसरी जो मुझमे रहती है”
सुन! तेरी दोस्त को बोल अपने बॉयफ्रेंड से बाते वोह घर जाके भी कर सकती है अभी यहा सब के साथ खेल ले ट्रुथ ओर डेर खेलने वाले है अब हम!
मिशांक की आवाज़ से मैं अपनी बनाई दुनिया से इस दुनिया मैं आ गयी मैंरी क्लास मेट ने मुझे आधे मन से आने का इशारा किया! मैं फोन जेब मे रखके फिक्की सी मुस्कान लेके वह सब के साथ बेठ गयी !
खाली बोतल घूमने लगी निजी से निजी सवाल ओर उससे निजी सवाल का जवाब ओर जवाब न देने पर ऊटपटाँग डेर! बोतल का मुह इसबार मिशांक की ओर रुका ओर उसे बताया गया के उसे किसी भी लड़की को देडिकेट करके कोई भी गाना गाना है! होठो पे नासमजमे आने वाली मुस्कान लिए मैंरी ओर देखा ओर बेबाकी से बोला “दिस इस फॉर यू !” मैं खुछ भी कहु उससे पहले तालियो के बीच गाने लगा !
जीवन से भरी तेरी आंखे मजबूर करे जीने के लिए
सागर भी तरसते रहते है तेरे रूप का रस पीने के लिए.... पीने के लिये…
यह गाना तो मैंने कभी नहीं सोचा था के मिशांक गाएगा वो एसा थोडीना था मैंरी नझरो मे... लड़कियो को देखके असपे फिदा होने वाला, बेबाक हसने वाला खुद को हैंडसम हंक मानने वाला, पापा के पेसो पर एष करने वाला बेहद ही बदतमीज़ लड़का लगता था मुजे पर इस गाने के शबदों ने उसके बारे मैं मुझे दुबारा सोचने पर मजबूर कर दिया था... गाना खतम हो गया उसने मुजे पूछा केसा लगा मैंने सिर्फ मुसकुराके सिर हिला दिया! अब बोतल फिर से घूमने लगी इस्स बार मुजपे आके रुकी मैंरे चेहरे की हवाए उद गयी सब मैंरी ओर देखने लगे मुझसे न ऊपर देखा गया न कुछ बोला गया
अरे यार अब यह डेर ना लेपाएगी कुछ सवाल ही पूछ लो गेम तो आगे बढ़े! अब इससे सवाल भी क्या पुछे?
तेरे फ़र्स्ट किस के बारे मे बता ?तूने कभी किसी लड़के को किस की है ! मिशांक था!
जो आंखे अभी तक नीचे थी वोह अब उसे घूरे जा रही थी एसा सवाल पूछने की उसकी हिम्मत केसे हुयी! मैंने सही सोचा था इस के बारेमे ! इतनी जुररत केसे हुयी उसकी! मैंने ज़रा सा ना मैं सर हिला दिया! ट्रुथ की जगह जूठ बोल दिया
मिष... इसे देखके ही लगता है क आजतक इसका कोई बॉय फ्रेंड भी नहीं रहा होगा तू भी क्या पूछ बेठा
सब ठहाके मार हसने लगे मैं वहा से उठके चली गयी, अपनी दुनिया मे!
मिशांक ने सालो पहलेका वो दरवाजा जिसके खुलने पर सिर्फ पीड़ा ओर तकलीफ मिलती है आज ऊटी की हसीन वादियो के बीच फिरसे खोल दिया था...
सुभे के पाँच बजे थे सब थक के सो गए थे! मैंरी आंखे न सोनेके ओर आँसू को रोके रखने के वजहसे सूजसी गयी थी ! तम्बू मे बेचेनी-मिशांक की भाषा मे हेश टेग सफ़ोकेशन होने लगी थी, न चाहते हुए भी इस बात पे हल्की सी मुशकुराहट आ ही गयी॥
सूरज का नामो निशान न था पूरा नीला आसमा तारो से भरा हुआ था ओर हल्के भूरे बादलो की निशा कुछ ओर ही राज़ बयां कर रही थी
बिना पलक जपकाए इस अवर्णविय रात को मैं देखती रही हल्की हवाओ से गालो पे लाली आ गयी थी मैंने बालो को खुला छोड़ दिया जेकेट निकालके दोनों हाथो को खोल के आंखे मूँद दी खुद को ओर प्रकृति को एक होने दिया ओर ये सुकुन महसूस करने लगी !
“कहते है पहाड़ो की रात भले न देखो पर सुबह कभी मिस नहीं करनी चाहिए! पंछियो की आवाज़ आ रही है थोड़े समय मैं सूरज निकलगा अभयोदय की शोभा ही कुछ ओर होगी ”
मिशांक की हरबार बेतुकी लगनेवाली बातों से मैं इस दुनिया मे वापस लौटी उसकी ओर देखने का टालके मे जामुनी रंग के होते आसमान को देखने लगी
वेसे तुम गलत दिशा मे देख रही हो सूरज उस तरफ से निकलेगा थोड़े आगे चलके सन राइज़ पॉइंट है मैं जा रहा हु तुम भी चलो तुम्हारे फोटो कलेक्शन के लिए थोड़े ओर फोटो मिल जाएगे!
सवाली आंखो से जब मैंने उसे देखा तो कहा जब कल तुम खाना खाके हाथ धोने गयी तो तुम्हारा फोन देखा मैंने तुम्हारे फोटोस ओर चित्रकारी विचार पढे मैंने!
बिना कोई सिकायत किए उस के साथ चलने लगी मैं
उसने बातों का सिलसिला आगे बढ़ाया कल जब मैंने सवाल पूछा तो तुम्हारे गालो पे सर्जिकल स्ट्राइक करने उतावले होते आंशु को देखा मैंने क्यू रोका खुद को!
मिशांक मेरी जवाब का इंतज़ार किए बिना आगे बोलता रहा तू यह नहीं है जो तू सबके सामने बनती है तेरी आंखो मे ज़िंदगी देखि है मैंने तुजे ज़िंदगीके असली मायने पता है एक भोली सी रूहानी मासूम सी बच्ची छुपी है इन चश्मोवाली सबसे खिची रहने वाली चिड़ती याशु मैं क्यू उस नज़रिये को मार रही है ! बताना क्या राज़ है तेरी फ़र्स्ट कीस के पीछे... बोल न
“क्या जानना है ओर क्यू जानना हैं तुजे जो भी था मैंरा बिता कल था सालो बित चुके है उस बात को, फिर जिस बात को याद करके मुझे सिर्फ ओर सिर्फ दर्द मिलेगा आखिरकार क्यू कहु तुजे मैं कुछ भी होता कोन है तू मुजसे यह सब पूछने वाला , हाँ नहीं थी मैं बचपन से एसी! बेबाकीयत से जीनेवाली लड़की थी मैं पर तुज़्को क्यू बताऊ कुछ भी”
चारो और हल्की-हल्की रोशनी हो गयी थी पंछी गाने लगे थे ऊटी के लोकल लोग उठ के अपनी लूँगी लेके रोज़ म्ररा के कामो मे लग गए थे हम दोनों घास के टीले पे बेठे पहाड़ से उदित होनेवाले सूर्य रवि के इंतज़ार मे बेठे थे ! मैंरे गालो पे आसुओसे हुयी सर्जिकल स्ट्राइक के नीशान थे मिशांक चुप था उसने मैंरे हाथो को हम हाथ मे लिया ओर मैंने बोलना शुरू किया,
“हमारा एक पेढ़िगत मंदिर है हर साल गर्मी की छुट्टीओ मे हमारा पूरा परिवार भगवान के आशीष लेने वहा जाते थे मन को वहा एक अदभूत शांति मिलती थी एक सुकून था वह पे मुजे भी वाहा जाना बेहद पसंद था मंदिर ओर उसका आँगन बोहोत बड़ा था यात्रियो के लिए वह ठहरने की अलगसे सुविधा थी तब हम छोटे से घर मे रहते थे वोह मंदिर विशाल था ओर भी बोहोत लोग होते थे वह सबके साथ मैं खेलती थी वाहा गाने जाने वाले भजनो पह नाचती हस्ती बोलती थी मैं सबकी लाड़ली थी वहा पे एक दिन कोई पुजजी आए थे वहा पे जदातार साधुओ को पुजयजी ही कहा जाता था नाम से तो बोहोत कम लोग जानते थे, उन पुजया जी को पापाने नमस्ते किया पेर छूए मम्मीने छूए ओर मैंने भी छूए फिर पापा ओर पुजयजी बाते कर रहे थे मैं वही खेल रही थी अपने दोस्तो के साथ ! पूज्य जीने मुझे बुलाया ओर कहा मैंरे साथ चलो मैंरे पास तुम्हारे लिए बोहोत कुछ है, पापा को पूछा पापा ने भी हामी भरदी तो बस मैं तो बेफिकरी से कही भी चल देती! भोजनालयसे मिठाई ली हमने मैं बड़े चावसे खा ने लगी फिर वहा से गए हम पुजयजी के रूम मैं वह उनका फोन देखा तभी फोन नया नया आया था याद है वोह स्नेक सापवाली गेम मैं तो मज़े से खेलने लगी ओर उसी की गेम के बारे मे हम लोग बात करने लगे उन्होने मुझे गोद मे बैठा लिया मुजे कुछ अजीब नहीं लगा जादतर लोग एसा ही करते है बाद मे उनको कुछ याद आया उन्होने अपना केमेरा निकाला ओर कहा मैं बोहोत खुबसूरत लग रही हु मैंरी तस्वीर लेनी है तब तो फोटो खिचवाना मुझे बोहोत पसंद था मैं तो उन्होने मुझे कुर्सी बिठाया याद है आज भी मीने आसामनी रंग की लंबी स्कर्ट ओर टॉप पहना था पेर पर पेर रखके उन्होने मैंरी तस्वीर खिची मैं तो बोहोत खुस हो गयी उन्होने कहा के उनके फोन मे ओर एक गेम है वोह प्लेनवाली चिउ-चिउ-चिउ एसी आवाज़ आती रहती है जब खेलते है तो याद है वो ही वाली अपन तो बोहोत खुश उस नयी गेम मे डूब गयी मैं तभी उन्होने मैंरे गालो पे हल्की सी पप्पी की मैंने कुछ नही किया सब करतेना उसमे कोन सी बड़ी बात है फिर तब भी उनके गोद मे बेठी थी उन्होने मैंरा मुह घूमया ओर होठो पे.... गंदा लगा मुझे मैंने कहा एसा नहि करते यह गलत है मुझे कहा क्या गलत है मुझे कहा क्यू तूने यह टीवी मे नही देखा मीने कहा के नहिह ये तो सिर्फ बड़े लोग ही ही करते है कितनी मासूम थी मैं उन्होने कहा देख तू लेतजा मैं तो लेट गयी उन्होने मुजे फिरसे चूमा उनके होठ उनके लंबीसी दाढ़ी उनके धोती ओर वोह गंदी सी फीलिंग आजतक याद है मुजे! तुझे पता तब मैं कितने साल की थी सिर्फ सात साल की इस दुनिया मैं आए सिर्फ सात साल हुये थे मुझे बच्ची थी मैं! हाँ लंबाई की वजह से मैं हमेशा बड़ी दिखती हु पर नहीं हु मैं! मैं खड़ी हो गयी मैंने कहा मुझे पापा के पास जाना है उन्होने कहा थोड़े टाइम रुक के जा पर मैं ना रुकी चली गयी... रास्ते मे मेरे दोस्तोने आवाज़ दी मैं नहीं रुकी सीधा पापा के पास गयी साफ सबदों मैं मम्मी-पापा को बताया के पूज्यजी होठो पे चूमा मुजे ! पापा ने भी पूछा के उन्होने कही काटा तो नहीं मुझे मैं इस्स सवाल का अर्थ नहीं समज पायी पर मैंने मना कर दिया फिर कुछ याद नहीं है मुजे पापा ने क्या किया? क्या नहीं ? उस आदमी, हेवान की सकल तक याद नहीं है मुजे ना आगे का कुछ याद है पर वोह एहसास वो छुअन नहीं भूल पायी हु मैं! जानना है मुझे क्या हुआ आगे! पर किसे पुछू सबको लगता है मैं सब भूल चुकी हु ! ये है मैंरे फ़र्स्ट कीस का राज़
पहाड़ो के पीछे से सूरज निकल चुका था लेकिन अभी तक गरमाहट नहीं पोहचि थी!
मिशांक ओर मैं याशु एक दूसरे को देखे जा रहे थे मैंरे सीने मे केड दरिया छुट गया था तुजे एक बात बोलू? मैंने आँख से हामी भरी “तूने लॉं ऑफ कर्मा के बारे मे सुना है ?” वोह अपना काम तब तक नहीं करपता जब तक हम उसस इंसान को दिल से माफ नहीं कर देते!
मैंने उसकी बात को काटके कहा उस हरामी को माफ! ईम्पोसीबल
सुनतो सही पहले तू चाहती है के उस दरिंदे को उस के किए की सज़ा न मिले नहीं ना तो तुजे उसे दिलसे निकालना पड़ेगा माफ करना पड़ेगा तभी उसके कर्म सज़ा दे पाएगे उस हेवान को! प्रोमिस कर मुझे तू कोशिश करेगी
ठीक है वादा....
उसने खुश होके अपने दोनों हथोसे मैंरे गाल को पकड़के मैंरे माथे को चूम लिया मैंरे चहरे पे एक मुस्कान डॉद गयी
फ़र्स्ट किस होठो पे हो एसा ज़रूरी नहीं अबसे जब कोई तुझे पूछे तो मिशांक का नाम लेना!
मैं खिलखिलाके हसदी.... हमारी दोस्ती का सूरज उदय हो चुका था एक नयी याशु का जनम हुआ था ऊटी मैं!
जो बेबाक थी बेजीजक थी ऊटी की हवाओ की तरह बेखोफ थी बेकिकर थी!
डियर डायरी! शायद मिशांकसे दोस्ती रहे न रहे पर मुजे मुजसे मिलने के लिए पूरी उम्र उसकी कर्जदार ओर सुक्रगुजार रहूँगी मैं! आज की बात उस दोस्त के नाम !
ओर आप जो ये पढ़ रहे है आप से गुजारिश है प्लीज बच्चो को गुड टच ओर बेड टच के विसय मे जानकारी दे एसे समय पे क्या करना चाहिए वो समजाए ओर एसे दरिंदों के बारे मे अगर आपको पता चले तो इस बात को दबाने के बजाए इसे सबके सामने असलियत लाये जिससे कोई और याशु ना बने! सिर्फ सोचिए अगर याशु वह से ना भागी होती तो क्या होता ? ओर यह कहानी केसी लगी यह ज़रूर कमेंट बॉक्स मे कहे ओर रेटिंग अवश्य दे
-दिवांगी जोशी की बाते
(यायावरगी)