ऊटी ( साउथ गुजरात से साउथ इंडिया तक्) Yayawargi (Divangi Joshi) द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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ऊटी ( साउथ गुजरात से साउथ इंडिया तक्)

ये कहानी है तीन साल पेहले की 2017 की... यायावर चला था एक नये सफ़र मे जिसकी दास्ता आपको बतानी है... गुजरात कि एक लडकी निकली थी अपने माता-पिता के साथ,
दो बस्ते लिए हाथ,
रैल थी यशवंन्त पुरम एक्स्प्रेस रंग था जिस्का गेहरा केसरिया... आओ इस कहानी का आगज़ करते है ,
कुछ मेरे अलगारी सफ़र कि बात करते है... आज से 3 साल पेहले मे मेरे माता-पिता के साथ दक्षिण भारत घूमने गई थी तेय थी तो सिर्फ़ आने ओर जाने कि टिकटे, कहा रुकना है कहा जाना है, कहा क्या खाना है, कुछ भि तेय नही... बस निकल पडे थे बस्ते लिये, चंद कपड़े, दो फ़ोन with internet ओर सफ़र का खुमार लिए... पेहला पडाव था याशवन्त पुरम अर्थात banglore...
बस ओर कार से ज़ादा रैल अच्छी लगती है मुझे, ट्रेन के डिब्बो मे रोज़ मुसाफ़िर कभी ना मिलने के वादे के साथ यादें बनाते.. मइ महिने मे महाराष्ट्र कि गरमि को बीच से चिरती ट्रेन आगे बढे जा रही थी, हमारे सामने एक देवरानी-जेठानी कि जोड़ी दोनो के मिलाके पांच बच्चे , एक बुजुर्ग जोडो मे दर्द वाला जोडा ओर एक अंकल थे, मेरी जगह फ़िक्स थी !

बेठ्ना हो तो खिडकी कि पास वालि शिट ओर सोना हो तो सब से उपर वाली बर्थ... थेपले के अदान-प्रदान के साथ पापा सह यात्री से किस्से बाट रहे थे, मम्मी भी बच्चों से दोस्ती बढा रही थी..!
ओर मैं? मैं थी मेरे फोन के साथ, दोस्तो के साथ, चार्जीग पोइन्ट के साथ!
,
ट्रेन कि खिडकी के साथ, कानो मे घुलते गानो के साथ, अपने साथ, सुबह से शाम ओर रात करते कुदरत के साथ...
घंटो कि मुसाफ़िरी के बाद मंजिल आने वाली थी ,मेरी आंखे एक नया आस्मा देखने वाली थी... .धीरे धीरे स्टेशन के नाम अजीब से होने लगे थे एक बार मे तो पढ़ भी ना पाओ वेसे, गुगल पे लगातार लोकेशन देखे जा रही थी के कही स्टेशन छुट ना जाए... रात के लगभग साडे तिन बजे के आसपास दो बस्ते, मे ओर मम्मी-पापा #banglore के आसमान के निचे चाइ पी रहे थे, ठंड काफ़ि थी मेने चादर लपेटि हुइ थी ,एक बुड्ढी अम्मा ने पेसे नही गरम चाइ मांगी थी !

तमिल मे रैल्वे कि सुचना आ रही थी वेसे हमे तो तमिल, तेलुगु , मलयालम, उड़ीया ओर कर्नाटका सारी भाषा एक समान हि लगती है यहां के आसमान का रंग अलग था गेहरा नीला सा ओर हमे इंतज़ार थी सुबह होने कि, गेस्ट रूम हाके सोने कि, एक किताव थी मेरे पास जिसमे गुजरातीओ के लिए सारे गेस्ट हाउस ओर धर्म शाला के पता था....
मे पन्ने पलट रहि थी लोकेशन देख रही थी साथ हि सुबह हो रही थी.... .
कि धुली-धुली हवा मेरे बाल सेहला रही थीं आंखों मे नींद ओर मन मे सफ़र का खुमार लिए हम सडको- इमारतो को @uber_india कि खिडकी से देख रहे थे, सुबह हुइ हि थि इसिलिए सडके खाली थी
तब @uber पे 1st 5 ride पे 50% off था up to 75 उसी का फ़ायदा उठा के ठाठ से जा रहे थे श्री गुजराती वैश्नव समाज गांधीनगर, .

एक औरत बहार गजरे बेच रही थी, कुत्ते खाने कि खोज मे थे, हमे साडे 9 बजे तक इंतजार करने को कहा गया था एक कमरा खाली होने हि वाला था , TV मे कुछ बज रहा थाचिगलिंग-पिंगलिग मेरे लिए लोरी का काम कर रही थी,
.

ठंड थी इसी लिए AC कमरा रखने का कोइ वजह तो नही थी हालाकी मिला ए सी कमरा ही ,
फ़्रेश होके पास मे ही एक भोजनालय थी जहाँ पे स्वादिस्ट वेजेटेरिअन खाना मिलता था, खाया-पिया ओर सो गये, सोके निकले शाम को बेग्लोर कि बज़ार देखने जगह जगह पर मुवी के पोस्टरस देखे, सब्ज़ी मंडी घूमे, लुंगी दुकाने देखी लेकिन,
जिस बातने सब से ज़ादा आकर्षित किया वो थे गजरे ओर गेहने !

स्कुल जाती लड़कीओ ने दो चोटी मे, कचरा साफ़ करती महीलाने, ओफ़िस जाती ओरतो ने सब ने दक्षिण भारत का सिम्बोल समान गजारा डाल रखा था ओर हम शादी-ब्याह मे भी ना पेहने वेसे ज़ेवर पेहन के वेसे सज-सवर के रेहते है, हर घर के बहार रंगोली सजी थी मानो हर-रोज़ दिवाली हो, उटी मे कुछ समय के बाद बारिश शुरू हो जाने कि वजह से पेहले वहा जान हि हमने जरूरी समजा, दुसरी सुबहा #Mysore जाना था ओर क्या वहा जाके क्या होने वाला था अजी किसे पता था
निकल पडी तिन लोगो कि सवारी, करने #Mysore कि मुसाफ़री... सुबह तैयार होके #Banglore के बस स्टेंड पोहचे, हम अक्सर किसी भी जगह के लोकल ट्रान्स्पोट का हि उपयोग करते है जिससे हम जान सके बात कर सके वहा के लोकल लोगो से वहा कि संस्कृति को करिब से देख से, बडी बडी MNC मे काम करते अफ़सर लोग भी @ksrtc.official कि बस के ही मुसाफ़िर थे हमे @the_economic_times दिया गया, रास्ते पुरे नारियेल के पेडो से घना था अजिब तोह्ल हमे वहा पे ओरेन्ज रंग के नारियेल देख के हुआ !
हालाकी बस रुकि एक रेस्ट्रां पे जहा पापा ने #dosa ओर्डर किया
गुजरात से वहा का स्वाद काफ़ि अलग था इतना अलग के हम जिसे डिनर मे खाते है वहा के लोग उसे ब्रेक फ़ास्ट मे खाते है! ना तिखा ना ज़ादा मिर्च-मसाला एक दम सिम्पल फ़िर भी स्वादिस्ट , कुछ हि देर मे mysore पोहचने वाले थे प्लाब तो था के वहा पे भी पेहले एक गेस्ट हाउस हि रखेंगे पर...
:कभी बनती रानी थी कभी मे राजकुमारी थी, आलीशान मेहलो मैं बुनती अपनी एक कहानी थी, #mysore पोहचे लगभग 10 बजे के आसपास , अड्रेस निकाला तो शाह कुवरजी जेठाजी भवन था गेस्ट रूम का , जेसे इस खुबसुरत शेहेर मे आगे बढ़े मिले हम को Mr. नागराज,
टुरिस्ट हि जहा आमदनी का स्त्रोत हो वहा सभी गाइड ओर अजेन्ट बस के बहार कदम रखते हि जपटा ले लेते है, सर कहा जाना है? मेडम इतने प्लेस दिखायेगे ?इतना भाडा होगा, यहा पास मे ही गेस्ट रूम है अगर रुकना हो तो.... वगेरा वगेरा... एसे हि इन सब मे मिले हमे नागराज जी अब हमारी आपस कि बातो से हि जान लिया के या तो हम गुजराती है या मराठी तब पता चला के गुजराति ओर मराठी अजनबीओ को एक जेसी सुनाइ पड्ती है आपको क्या लगता है कम्मेट कर के जरूर बताइये, अंत नागराज जी बडे चाव से लेगे गये हमे अपनी ओफ़िस, 4 डे 3 नाइट का पेकेज दिखाया जिस्मे मैसुर, उटी, कुनुर मे प्लेस विसिट ओर स्टे आता था, अब बारी थी पापा के अप्रतिन हून्नर दिखा ने कि मेरे पापा जेसा बार्गेनिग किंग कोइ नही पुरा पेकेज पापा ने लगभग आधे भाव के अंदर मनवा लिया ओर कहा एक बार थोडा बहार आस-पास घूम ले बाद मे डिल फ़ाइनक करते है ओर हम निकल पडे अपने वो किताब वाले गेस्ट रूम कि तलाश मे लोकेशन देने पर भी जो खोज ना बोहित मुश्केल मालुम हुआ,
केबवाले बे आसपास के लोगो को पुछ-पुछ के पुरे इन्ड्स्टीयल एरिया के आगे एक सुमसान जगाह पे दिखा हमे किताब वाली जगाह,
अगर महेश भट्ट देखले तो कोइ भुतिया फ़िल्म बना दे वेसा, शान्त पर खोफ़नाक पुरानी हवेली जेसी... हमे नागराज भाइ की डिल याद आइ ओर लोटे वापस उनके पास... आज थोडा लेट थे ओर ज़ादा कुछ छूटा नही था कर दिया अब खुद को उन्के हवाले, गर्मी ओर भागदोडी कि वजह से थक तो गये थे ,

लेकिन गुजराती मे काका कालेलकर का एक प्रख्यात वाक्य है, " प्रवास मतलब अगवड भोगववा नि बादशाही सगवड "
बस फ़िर
होटेल गए फ़्रेश हो कर घूमने लगे #mysoremehel
उसकि रोचक कहानी सुनाइ जो आप गुगल पे पढ़ सकते है, मेरी तो अपनी अलग ही फ़ेन्टसी चल रही थी ठिक है ! मेरा #बोलीवूड निकल रहा था, सलिम कि अनारकली से लेके बाजिराउ कि मस्तानी तक का

फ़िर टिपु सुलतान, चर्च, मंदिर, मस्जिद ओर दो - तिन ओर फ़ेमस जगाह घूमे ओर अब बारी थी दिन के सबसे शानदार नजारे की वृन्दावन गार्डन की, कही दूर क्षितीज पे दिखते सूरज कि, मेसुर कि हसिन शाम कि...
दिन ओर रात के बिच एक शाम भी होती है जिसे हम रोज़मरा ज़िंदगी कि मे कहिं भुलाए बेठे है
दिन का वो समय जब कुदरत अपनी चित्रकारी दिखाती है, अलग अलग रंग आसमान के केनवास पे उधेल के हमारे सामने एक मास्टर पिस रखती है ओर हमे वो आँखो मे संजोने का भी समय नही मिलता, बस एक एसा हि कुछ वृन्दवादन गार्डन मे कही शाम ढल रही थी, ये जगह अपने नृत्य करते फ़व्वारो के लिए प्रख्यात थी, वेसे ये डेम के निचे बने गार्डन कि कहानी भी काफ़ि रोचक है समय मिले तो एक बार ज़रूर गूगल किजियेगा ,

दिन भर कि थकान ये मंत्रमुग्ध करने वाली सांज ने हर लिया था, पानी कि वजह से चारो ओर ठंडक थी, लोग नौका विहार कर रहे थे बच्चे खेल रहे थे, कपल आनेवाले जीवन के सपने बुन रहे थे ओर मे एक घास के टिले पे बेठीे दिन से शाम ओर शाम से रात होती देख रही थी, आनेवाले कुछ दिनो मे मेरी आखे मेरी ज़िंदगी के कुछ सबसे हसीन नज़ारे देखने वाली थी,
रात को हमे गेस्ट रूम छोडा गया ओर दूसरे दिन सुबह पांच बजे हमे बंडीपुर नेशनल जंगल ओर मधुमलै होते हुए उटी जाना था, कोइ नये शहर आए हो ओर वहा हमारी अलगारी रखड्पट्टी ना हो ये तो असंभव है थके थे फ़िर भी फ़्रेश हो के सोचा गेस्ट रूम के आसपास के एरिया मे एक चक्कर लगा के आते है कुछ मिल जाए तो खा भी लेंगे वेसे हम घर से तो पुरी एक बेग भर के थेपला, पुरी, मोनथाल, मगज, चेवडा, बन, आम काफ़ि कुछ लेके गए थे क्योंकि सुना था के यहा वेजेटेरिअन खाना मिलने मे थोडी दिक्कत होती है फ़िर भी आज मन #mysore मे मैसुर ढोसा खाने का था वो तो बाद मे पता चला के ढोसा सिर्फ़ सुबह के नास्ते मे मिलता है !

वहा कि नाइट लाइफ़ देखी कुछ नया नही था किसी भी बड़े शहरों कि तरह हि लोग ओफ़िस से घर जा रहे थे रास्तों पे चाट वगेरा मिल रही थी वही किसी छोटु से रेस्ट्रां मे अलग अलग तरह कि तिन इडली का ओर्डर दिया ओर मजे से चट कि, मुझे जो लोग स्ट्रीट फ़ूड पसंद नही करते उन्से बडी चिड है इस बात को लेके, अरे असल मे खाने ये ही तो है किसी भी कल्चर को पास से जानने का सबसे बेस्ट तरिका! हम तिनो थके तो थे ही तो बस पेट भरते ही आंख लग गयी ओर कब सुबह हो गयी, पता हि नहीं चला !

अब उचे निचे रास्तो से जाना था मंजिल कि बात फ़िलहाल नही करते! 😊
बचपन से हि मे लेट कमर, नहा -धोके रेडी होने मे हम लेट हि गये ओर सज़ा के तौर पे हमे आखिरी सिट पे बेठाया गया सुबह हमे नास्ता कराने एक वेज रेस्ट्रां मे लेके गये हमने भी पेट भर के ढोसा, इडली, वडा खाया
वहा पे एक चाचा साइकल पे दस रुपे मे गजरे बेच रहे थे, सभी को गजरा डाले देख मन तो हमारा भी था तो बस लगा लिए गजरे आखो मे कजरे.. हमे मिनी बस मे बंडीपुर से मधुमलै के रास्ते से उटी ले जाने वाले थे जिस्मे हमारा होस्ट कम गाइड था श्रीनिवास !

हम नब्बे के बच्चों ने मदारी लाइव तो नही देखा होगा लेकिन फ़िल्मो वगेरा मे देखा हो तो उन्की बात करने का एक खास तरीका हि होता है
गुलाटी मारेगा ,
मारेगा !
सलाम ठोकेगा,
ठोकेगा !

बस वेसा हि कुछ बात करने का तरीका था श्रीनिवास का
हम जंगल से होते हुए जायेन्गे, गाडि बिच मे कही नहि रुकेगा, आपका नसिब अचा हुआ तो कोइ जानवर दिकेगा, पोतु किचनेके वास्ते बि गाडी नै रुकेगा , अगर आप बोलेगे गाडि स्लो कर देगा पर रुकेगा नही ,कचरा बहार नै फ़ेकना, कोइ जानवर को देखके चिलाने का बि नै, ओर पुरे रास्ते मे कोइ जानवर ना दिके तो हमार जिमेदारी बि नै... झू से ज़ादा अभयारन अछे लगते है मुजे हम उन्के इलाके मे जाते है उन्हे देखने लिए वो आज़ाद होते है,पिंजरे मे नही, अभी कोरोना के चलते हम सब केद है हमारी जरूरत कि सारी चिजे उपलब्ध है फ़िर भी हम केद है शायद इसे हि कर्मा केहते है जेसा करो वेसा भरो है इस जहा का नियम!

वैसे नसिब थोडे अच्छे हि थे हमे हिरन, शेर, हाथी, बेल, अजगर ओर भी काफ़ी कुछ दिखा जिसमे से हिरन कि विडिओ मेने शेर कि है बाकी कि विडिओ मे स्टोरी मे रख रहि हूं, जो हमेशा मेरी हाइलाइट्स मे सेव रहेगा... हाथी मेरे साथी का शूटिग कहा हुआ था, चंदन कि तस्करी करता विरपन्न कहा से पकडा गया था, उसकी क्या कहानी थी सब कुछ हमे श्रीनिवास ने अपने अंदाज़ मे बताया, बिच मे पुरा बडा सा चंदन का जगल भी देखा, अब दुपहर हो चली थी ओर लगातार हेरपीन बेन्ड कि वजह से चक्कर भी आने लगे थे, धिरे धिरे वातावरन मे निलगिरी कि खुशबू घूल रही थी मानो किसी नवेली दुल्हन ने मेहेन्दी लगाइ हो हम उटी पोहोच ने वाले थे

निलगिरी कि मेहेक वेसे हि तन-मन को तरो ताज़ा कर देती है केहते है शादी ब्याह मे मेहेन्दी मे निलगीरी इसी वजह से डालते है क्योंकि शादी कि भागादोडी मे भी थकान ना हो तो हमे तो उटी थका सकता था नही! .
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निलगीरी के घने पेडो के बिच बसा उटी मेरे मेरे दिल मे भी बस रहा था मेरे आँखो के सामने खुबसुरती की एक नइ परिभाषा दिखा रहा था, एक मन-मोहक दृश्य मुजे अपने बारे मे ओर जानने के लिए व्याकुल कर रहे थे
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ये विडिओ उटी लेक का मुझे वेसे तो पेड,पोधो ओर फ़ुलो के बारे मे ज़ादा समज है नहीं पर यहा तो तरज तरह के फ़ुल थे एक देखो तो एक भुलो वेसे फ़ुलो का शेहेर था पुरा ओर जो लेक था वो बना था उटि के ड्रेनेज माने गटर के पानी से जि सही पढ़ा गटर के पानी का तालाब वो भी अत्यंत मनमोहक ! वही पे एक छोटी सि नर्सरी थी ,जो रंग मागो उस रंग कए फ़ुल,पोधे, पत्ते, छोड़ सब थे इतनी वराइटी कभी नही देखी थी, हमने वहा से कुछ फ़ुलो के बिज खरिदे ओर कुछ प्लाट भी खरिदे ,
.उटी पोहोचते हि मेरे अंदर का फोटोग्राफर जाग गया था भइ
उटी पोहोचते ही हमारा सामन एक होटेल मे रखवा दिया गया पापा ने श्रीनिवास से दोस्ती कर लि थि तो तिन-चार होटेल मे से हमे जो सबसे बढिया लगा वो हमने रख लिया ए बात जरुर अजीब लगी के होटेल मे कही एसी तो छोडो पंखे तक नहीं थे वो तो रात को जब पारा 15 डिग्री पोहचा तब पता चला के एसा क्यों है,
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हमे एक छोटे से खुबसुरत से रेस्ट्रां मे हमे ले के गए हम ने देखा तो साथ मे नोन वेज था हम बिना कुछ कहे वहा से निकल गए

ये जो दुसरा विडिओ है ना वो वही के बहार का है .
वहा से उटी के रंगबेरंगी घर कसाटा आइस्क्रीम जेसे लग रहे थे बस चम्मच लो ओर मज़े से खाने लगो आपने शायद आपने कुछ कुछ होता है देखी हो तो उसमे रानी मुखर्जी केसे चुनर से खेलती है तब केसा लोकेशन होता है जि हा! बिलकुल कुछ वेसा हि था मे भि चुन्नर से खेल ने लगी मेरे मा-पापा को मेरी दिदि कि याद आ गइ आखे नम हो गयी, उसे भी तो पहाड जरने सागर बेहद पसंद थे लेकिन किसी कारणवश वो हमारे साथ नही थी, .
हमारा मन केसा अजीब हे ना खुशी के समय मे भी दुखी हो ने कि वजह ढूँढ लेता है, जो पास है उसके साथ खुश रेहने के बजाए जो पास नही उसके लिए दुखी ओर मायुस रेहते है !
पापा ने दिदि से फोन पे ढेरो बाते की, तभी श्रीनिवास हमारे पास आया ओर हमसे खाने ना खाने के बारे मे पुछने लगा हमने सादगी से कहा के हम नोन वेज नही खाते तो फ़टाक से उसने कहा आप पन्डित हो? हम ने हा मे सर हिला दिया !
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जो पेहला फोटो है वो है उटी लेक का मुझे वेसे तो पेड,पोधो ओर फ़ुलो के बारे मे ज़ादा समज है नहीं पर यहा तो तरज तरह के फ़ुल थे एक देखो तो एक भुलो वेसे फ़ुलो का शेहेर था पुरा ओर जो लेक था वो बना था उटि के ड्रेनेज माने गटर के पानी से जि सही पढ़ा गटर के पानी का तालाब वो भी अत्यंत मनमोहक ! .
शाम होने मे अभी समय था हमारी सवारी बोटनिकल गार्डन जाने वाली थी ओर अचम्भा पोहचाने वाला था
आज केहेने से ज़ादा दिखाने के लिए कुछ है हम उटी के बोटनिकल गार्डन मे थे, कुदरत कि कलाकारी को अचंबित हो के निहार रहे थे
1)ये तस्वीर है वहा के लोकल बज़ार कि जहा पे बेहद खुबसुरती घड़ीया ओर होम देकोर करनी कि चिज़े मिल रही है
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2)ये तस्वीर है मेरा सबसे पसंदीदा musical instrument कि
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3)टोडा हट कि कर्नाटक कि आदिवासी जनजाति कि हट आपको शायद याद हो तो @bahubali_2_movie मे एक सिन है जिसमे कटप्पा बाहुबली का पैर उठाके अपने सर पे रखते है वो सिन टोडा आदिवासी कि संस्कृति से हि प्रभावित है जेसे हिंदू संस्कृति के अनुसार हम बडे बुज़ुर्गो के पेर छुते है सन्मान देते है वेसे हि टोडा कि संस्कृति मे उनका पैर उठाके सर पे रखना एक सन्मान देना होता है
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4) ये तसवीर मैंने बोटनिकल गार्डन के अंदर से लि है कोनसे राज्य मे किस कि फ़सल जादा होती है वो दर्शाया गया है
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5)दुर्लभ पेड़ ओर पोधे देखें ओर उसके बारे मे माहिती भी निचे लिखी हुइ है कोइ बोटनिकल का विद्यार्थी के लिए तो ये जगह काफ़ी रोचक रेहती हालाकी मुजे उतनी जानकारी नही थी
.
6)गार्डन इतना बडा था के चल चल के पैर दर्द करने लगे थे फ़िर भी कलाकृति हमे ओर देखने के लिए मोहित कर रही थी
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अंत मे एक अजीब किस्सा मे आप के साथ जरुर बाट्ना चाहुगी

रात के लगभग 8-9 बजे हम अपने गेस्ट रूम से बहार घूमने निकले थे वहा के लोकल मार्केट से काफ़ी शोपिग कि गुगल मेप से 10 मिनिट के अंतर् पे एक सब्ज़ी मन्डी देखी सोचा वहा तक चलके जाते है काफ़ि चले पर मेप हमारी उलजन बढा रहा था रात भी गेहराने लगी थी, तभी एक बडा सा काफ़िला हमारी ओर बढ रहा था मेने रोका उसे ओर हिन्दी मे पुछा के वेजेटेबल मार्केट कितना दूर है? हमे थोडे फ़्रुट्स वेगेरा लेने है? सब ने एक दुसरे के सामने देखा ओर कहा! *तामील*
मेने अग्रेज़ी मे वात करने कि कोशिश कि तो काफ़िले के अंत मे खडे एक लड़के को खिचके लाये ओर बोले
English
मेने पुछा we want to go to the vegetable market ?
उसे कुछ ज़ादा समज ना आने पे इशारा करके पुछा ओर शब्द तोड़ मरोड के समजाया
Vegetable market...how far... For Fruit...
उसने कहा very faar... 30 min way to go.. रात बढ्ने के कारण हमने जाना केन्सल किया...
तब मेने
भारत देश जहा भले हि अनेक भाषा है फ़िर भी लोग केसे मिल-जुल के अनेकता मे एकता का सर्व श्रेष्ठ उदाहरन देखा !😊

कुनुर की कहानी थोडी लंबी है ओर अनुभूति अविस्मरणीय , place visit near ooty गुगल करेगे तो आपको जगह के बारे मे विस्तार से सब पता चल जायेगा, मुजे तो मेरा अनुभव बताना है !
चलिए थोडा इन्त्ज़ार किजीए, बाकी बाते कल...फ़िलहाल लुफ़्ट उठाए नज़ारो का... हुस्न पहाडो का...

हम लोग सब्ज़ी नहि उगा सकते अगर ज़ोर से बारिस आइ तो निचेका गाव रहेगा #coimbatore वहा बेह के चला जाएगा बाद मे हमे दुन्दना पदेगा कहा गया हमारा गाजर मुली - "गंगाभैया"
.
आज कि हमारी कहानी के मुख्य पात्र है 'गंगाभैया',आखिर के वीडियोै मे आप उनके बात करने का लेहजा भी जान सकते हो ,
वो जो दुसरी तस्वीर मे आसमानी रंग का कमीज़ पेहने खडे है वो हि तो है गंगा...भैया!
#ooty के टेढे मेढे रास्तो के कारण वहा मिनी बस ज़ादा चलती है ओर सिट अकसर कपल हि बिकती है हमको छोड के सारे कपल हि थे बस मे अब क्या करे? कोइ तिन सिट खाली हि नहीं थी ड्राइवर सर के पास वाली सिट के अलावा बस हमने अपना आसन वहा जमा दिया ओर सर जी जो मज़ा आया है उफ़ अफ़लातून क्या बताउ मे! अगर मे दाइ ओर बेठी होती तो बाये के नज़ारे नहीं देख पाती लेकिन यहा तो आइ एम इन लव विथ नज़ारे
.
गंगाभैया हमारे आज के गाइड थे, एकदम खुशमिजाजी ओर हसमुखे अम्मा, अम्मा करके सब के सामने से फोटो खिचते,
"आप को लगेगा के इतना बडा आदमी मुजे अम्मा क्यु केहता लेकिन अम्मा हमारे मे सभी ओरतो को देवी मा का स्वरूप मानते छोटी बच्ची को भी अम्मा केहके ही बुलाते" - गंगाभैया
अलग पोइन्ट घूम रहे थे हम ओर वहा से जुडी हर एक छोटी बडी बात हमे गंगाभैया अपने अलग हि ढंग से बताते, हमने चाइ के मशहुर बाग देखे, .
वो सारे बगीचे बिते ज़माने कि मशहुर अदाकारा के पतीदेव मयुर माधवानी जि के है मयुर टी भी वहा ड्युटी फ़्रि मिलती है हमे चाइ चखाइ ओर हम चाइ खरिद ने पे विवश हो गए,
वहा के खुबसुरती कि तसवीरे तो पेहले से हि मेने शेर कर रखी है, जरना भी कितना मासुम लगता है ना जब इश्वर पहाड़ो को नहलाते है तो हरे भरे रास्तो से किसी बच्चे कि तरह उछलता-कुदता रेहता है !
पुरा साल हम जितना किताबो से पढ़ के नही सिख पाते उतन एक सफ़र हमे सिखा जाता है अपने से अलग तरह के लोगो से केसे घुलना मिलना है केसे अपनी बात रखनी है मुश्किल मे भी केसे सयम बनाए रखना है किसपे कितना भरोसा करना है! .
गंगाभैया को बोला के कोइ वेज होटेल पे ही बस रोके क्योकी जोरो की भुख लगी थी ओर हम खाखरा चकरी चिवडा नही खाना चाहते थे
वहा किसी दूर पहाडि पे अपना एक घर होगा एसी फ़िल्मी बात को सच साबित करे वेसी एक होटेल ओ बस रुकी सुध्ध शाकाहारी..
गरमा गरम रोटी, आलु-कोबिज कि सब्ज़ी, अचार, सिर्फ़ आलु की सब्ज़ी वगेरा हमारे लिए किसी छ्प्पन भोग से कम नही थी !
"अम्मा तुम को कितना ढुंढा.. कहा चले गए थे..."😅

ये हे मेने देखा हुआ दक्षिण भारत का सबसे खूबसूरत नज़ारा...
कुननुर पे घने बादलो के छेद से हल्की सी फ़िसलती सुरज की रोशनी.. जेसे कोइम्बतुर कि बरफ़ीपे सोने का वर्ख... अब ज़ाहिर सि बात है अगर यहा तक पढे है तो आप. मेरे सभी ब्लोग पढते हि होगे, ओर इतना लंबा-लंबा पढते हो तो पसंद भी होगा तो बस आज मुझे तारिफ़ सुननी है...
अम्मा आप कहा चली गइ थी आप कितना ढूँढा आपको... कुनुर कि वादिया कितनी क्यों ना देखो मन बार बार बस एक फोटो ओर केहता है... जेसे पिछले ब्लोग मे बताया हम ने पेहले ही भरपेट खाना खा लिआ था बाकी के यात्रीगन खाए तब तक हमारे पास समय था बेफ़िज़ुल कि घूमी-घुमी करने का...
वहा कि एक अजिब बात बताउ वहा ना लोग घर की छत पे कार पार्क करते है तो घर तो बंद था तो नज़ारे देख ने के लिए हम चड गए छत पे ओर हाय.. मेरी क्या रुहानी नजारा था निला आसमान कभी ना देखे को एसे निराले पंछी पेध पोधे निलगिरी ओर तरह तरह के फ़ुलो कि मेहेक...
याद है हमारी स्कुल के कम्युटर पे केसी तसवीरे होती थी बस मानो मे उसी के आर-पार थी कोइ काच कि दिवाल नही बस मे ओर मैं...
अम्मा आप कहा चली गइ थी आप कितना ढूँढा आपको... गंगाभैया थे मेने कहा नजारे देख रही थी...अरे अम्मा वहा डेढ़ घंटे तो देखा नजारा... अब मन नही भरता ना देख देख के क्या करे !
अब ये किससा तो अगले दिन का प्याकारा लेक का पर अभी बताने का मन कर रहा है...
प्याकारा मीठा पानी का सरोवर है बोटिग करनी थी नही पापा के पेर दर्द कर रहे थे, कोइ था वहा जो हमारे हरकदम पे निगरानी रखे हुआ था कोइ था जो दूर से घुर-घुर के खिच के नजर मार रहा था... कोइ था जो किसी फ़िरात मे था... जो हमसे कुछ छिन लेना चाहता था... वेसे तसवीर मे इतनी सुन्दर जगाह इतनी रोचक जानकारी ओर प्यार देने के लिए पापा गंगाभैया का गला दबा रहे है, पता है अब कुछ मुसाफ़िर को हम फ़िर कभी नही मिलते फ़िर भी वो हमारे जिवन कि किताब का एक किससा अपने नाम कर जाते है..
वेसे अंत ने क्या लिखा है कोइ समजाएगा

प्यारे प्याकारा सरोवर के किनारे लोग भुट्टे, मुग़फ़लि, गुब्बारे, गाजर, ककडी ओर भी काफ़ी खानी पिने कि चिज़े बिक रही थी वहा एक बुढि अम्मा लसी के छोटे पेकेट भी बेच रही थी अब लसी तो हम एनीटाइम पी सकते है तो हमने रोज़,गुलकंद ओर मेन्गो फ़्लेवर कि लसी खरीदी तभी जो दूर से नजरो के निशाने मार रहा था वो करिब आया ओर घूरने लगा हम वहा से किसी बेंच पे बेठे तो वहा भी सामने आके घुरने लगा हमारा लसी का घुट हलक से निचे उतरना मुश्किल हो गया, कहि वो हमारा कोइ सामान छिन ना ले तभी सडक के उस पार एक के साथ छिना-जपटी हुइ, एक बंदर उसका भुट्टा लेके भाग गया था हम ने भी आधी पिके लसी फ़ेक दि ओर जो वो बंदर लपका पेकेट पे हमारी सास हि अटक गइ वहा से फ़टाक से निकले के सिधा बस मे हि जाके आराम से बेठे! ये उटी मे हमारा आखिरी दिन था जिसे ये लोग फ़िल्मी चक्कर केहते है बोहोत सारे फ़िल्म कि शुटिग यही पे हुइ है, रोज़ा, हम आपके है कोन, कुछ कुछ होता है, हाउसफ़ुल फ़ोर,राज़ ओर पता नही कोन कोन से अब जब कोइ फ़िल्म मे कभी कोइ लोकेशन देखते है तब पता चलता हे के अछा ये तो उटी है , कुछ कुछ होता है मे मनाली केम्प कि शुटिग हुइ है असल मे वो उटी है रोज़ा मे जो कश्मीर है वो उटी है अजी मुविज़ के फ़िल्म रोल भी यही से तो जाते है , कितना प्यारा तुजे रबने बनाया गाने मे रबने उसे उटि मे हि बनाया था, काफ़ि युध्द के सिन भी यहा के लंबे पेडो के जंगल जेसे दिखते बाग मे हि फ़िल्माये गये है, राज मे भि वो संजना - संजना कर के यही पे भाग्ता है ओर हाय मेरे अंदर का नब्बे के दसक का बच्चा रानी मुखर्जी कि तरह यहा पे चुनर से खेल खेल के तस्वीर खिचवा रहा था... उटी...
.उटी का आखरी दिन ओर उसकी आखरी जगह जहा पे सारे मसाले मिलते थे जिसे लोन्ग, इलाइची, दालचिनी, मरी ओर निलगिरी कि भी काफ़ी वस्तु ए जेसे निलगिरी ओइल, सेन्डल वुड ओइल सब बिना प्रोसेस का प्योर मिलता है ड्युटी फ़्री उन्हो ने लोन्ग मे से निचोड के तेल निकाल के दिखाया आज तिन साल के बाद भी जब हमारी दाल मे तडका लगता है पुरे मोहोल्ले मे खुश्बु आती है अगर आप कभी भी उटी जाओ तो वहा से स्पाइसीस लिए बिना नही लोट ना
उटी कि यादे मन मे समेटे हमे मदुराइ जाना था, हमारी ट्रिप मेसुर वापस लोट रही थी हम वहा के छोटू से बस अड्डे पे उतर गए हमे मदुराइ कि बस जो पकड नि थी.... अलविदा केहना हमेशा मुश्केल होता है खास कर उसे जिसने चंद समय मे हमे अपना बना लिया हो कुछ शेहेर एसे होते है जिन्से एक अलग लगाव होता है होमटाउन से खास नही पर दिल के पास होता है क्योंकि वहा वो किससे होते है जिसकी एक मात्र याद भी मुस्कान दिला जाती है तो
प्यारे उटी,
तेरा रंग गुलाबी, थका के निकाल दे सारी नवाबी,
चेन की निन्द दिलाए ये खुबी
हर जगह खज़ाने मानो अंगूठी मे रुबी... शुक्रिया इस यायावर को यादो का बसेरा देने के लिए...
आखरी तस्वीर मदुराइ कि पेहली तस्वीर है
मदुराइ कि कहानी फ़िर कभी फ़िलहाल ये कहानी यही तक...
कल से मेरे लिखे कुछ क़्वोट, कविता शेर करुन्गी..


नमस्ते dear sir or ma'am
खुशी हुइ ये जानेके के आपने मेरा ब्लोग एन्ड तक पढा... यहा पे तस्वीर तो मे शेर नही कर सकती लेकिन सारे विडिओ ओर फोटो मेने इन्सटाग्राम पे डाल रखे है आप जायेगे तोह आपको यायावरगी के नाम से मिल जायेगा... ओर अगर आप इन्स्टा का इस्तेमाल ना करते हो तो गुगल पे सिधा #yayawargi सर्च करने से भी आप्को मेरे ब्लोग मिल जायेगे

ब्लोग को लेकर कोइ सवाल या बवाल हो तो कमेन्ट करके बताएगा...

यायावरगी कि बातें...