कुछ ख़त और एक रिश्ता Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कुछ ख़त और एक रिश्ता

जी,आप घर का कौन सा हिस्सा बेचना चाहतीं हैं,एजेंट ने सुजाता से पूछा।।
जी पीछे वाला,मैं वैसें भी एक ही कमरें का ज्यादातर इस्तेमाल करती हूँ,आगें के हिस्से में रसोई,दो कमरें ,एक बाथरूम और आगे का लाँन हैं,जो पिछला हिस्सा खरीदेगा उसके हिस्सें में तीन कमरें ,एक बाथरूम,वहाँ किचन नहीं है और बैकयार्ड आएगा,सुजाता बोली।।
ठीक है,घर के फोटोग्राफ्स लिए लेता हूँ,जैसे ही कोई खरीदार मिलता है तो आपको बताता हूँ,एजेंट बोला।।
ठीक है जल्द ही बताइएगा,मुझे पैसे की बहुत जरूरत है,सुजाता बोली।।
जी,आण्टी जी,जैसे ही कोई मिलता है तो मैं आपको आकर बताता हूँ.....और इतना कहकर एजेंट चला गया।।

ये सुजाता है,बेचारी शादी के कुछ महीनों बाद ही विधवा हो गई थी,फिर उसने दूसरी शादी नहीं की,पति की अमानत के तौर पर यही एक घर बचा है,जिसे वो पूरा नहीं बेचना चाहती,बुढ़ापे में अब नौकरी भी नहीं होती ,पहले कत्थक सिखाकर जीविका चला लेती थी लेकिन अब शरीर पर जोर नहीं चलता,खर्चा चलाना मुश्किल है इसलिए मजबूरी में आधा घर बेचना चाहती है,रिश्तेदार हैं तो कई लेकिन गरीबों के रिश्तेदार हमेशा उनसे दूरी बना लेतें हैं ये सोचकर कि ऐसा ना हो कि कहीं कुछ माँग बैठे.....

ऐसे ही कुछ दिन गुजरें,एजेंट सुजाता से मिलने घर आया बोला....
बधाई हो आण्टी ! एक खरीदार मिल गया है,मैं उसे लेकर शाम को आता हूँ,
बहुत अच्छा बेटा! तुमने मेरी मुश्किल आसान कर दी,सुजाता बोली।।
ठीक है तो मै अभी चलता हूँ,कुछ काम है शाम को आता हूँ उसे लेकर,एजेंट बोला।।
ठीक है,ये कहकर सुजाता शाम होने का इन्तजार करने लगी।।

शाम हुई एजेंट अपने साथ एक व्यक्ति को लेकर आया,उसने आकर फौरन सुजाता के पैर छुए और बोला....
पहचाना!
सुजाता ने अपना चश्मा साफ करके लगाया फिर बोली....
नहीं,पहचाना बेटा! कौन हो?
उस व्यक्ति ने अपनी जेब से कुछ ख़त निकाले और सुजाता को देते हुए बोला....
मैं वही हूँ,जो तुम्हें पोस्टमैन मौसी कहा करता था,
अरे,आगमन! तू!इतना बड़ा हो गया,सुजाता बोलीं।।
हाँ!मेरी पोस्टमैन मौसी,आगमन बोला।।
उन दोनों की बातें सुनकर एजेंट बोला....
ये क्या माजरा है? जरा मुझे भी बताइए,क्या आप दोनों एकदूसरे को पहले से जानते हैं....
आगमन बोला....
हाँ,भाई ! ये मेरी पोस्टमैन मौसी है।।
वो कैसे? जरा मैं भी सुनु आपकी कहानी..एजेंट बोला।।
तो सुनो मैं तुम्हें सारी बात बताता हूँ और आगमन ने बोलना शुरु किया.....
एक छोटा बच्चा था जिसकी माँ किसी हादसे में उसे चार साल की उम्र में छोड़कर चल बसी,वो जब भी किसी से पूछता कि उसकी माँ कहाँ है ?तो सब कहते कि वो भगवान के पास गई है,इसलिए वो बच्चा हर रोज बिना किसी को बताएं पास के मंदिर में चला जाता और भगवान से कहता कि उसकी माँ वापस कर दो लेकिन भगवान उसे कोई जवाब ना देते और वो निराश होकर वापस आ जाता।।
उसे इस तरह करते बहुत दिन हो चुके थे तो उसने ये बात अपने से तीन साल बड़ी बड़ी बहन से बताई जो कि उसके ताऊ जी की लड़की थी,वो बोली तुम ऐसा करो भगवान को खत लिखकर पूछो कि मेरी माँ कब आएगी....
वो बोला लेकिन अभी मुझे ख़त लिखना नहीं आता,
मुझे आता है मैं लिख दूँगी ,उसकी बड़ी बहन बोली।।
और दोनों बच्चे बैठकर ख़त लिखते,वो बच्चा अपनी बड़ी बहन को बताता कि क्या लिखना है ? और वो वैसा ही लिख देती...
इस तरह खत लिखते हुए कुछ दिन और हो गए लेकिन कोई जवाब नही आया....
एक दिन उस बच्चे को मंदिर में ख़त रखते हुए एक औरत ने देख लिया और वो ख़त उठाकर पढ़ने लगी,ख़त पढ़कर उसका मन भर आया और उस बच्चे के लिए उसके मन में ममता जाग पड़ी....
और दूसरे दिन अपने हाथ से उसने एक ममता भरा ख़त लिखकर उस बच्चे को मंदिर में आते हुए देखकर भगवान के पास छोड़ दिया..
वो बच्चा आया तब उस औरत ने उस बच्चे से कहा कि देखो उस ख़त को शायद तुम्हारे लिए है।।
ख़त...मेरे लिए...शायद माँ ने भेजा होगा,वो बच्चा खुश होकर घर चला गया और अपनी बड़ी बहन से उस ख़त को पढ़वाया,सच में वो खत उसकी माँ का था।।
अब वो रोज ख़त लिखवाकर आता है और दूसरे दिन ख़त का जवाब पाकर खुश हो जाता,अब वो उस औरत को भी रोज वहीं पर देखता तो उसने एक दिन पूछ ही लिया कि तुम कौन हो?
वो औरत बोली,मैं तुम्हारी मौसी हूँ और ये खत तुम्हारी माँ ही तो मेरे हाथों भिजवाती है।।
वो बच्चा बोला,तो मैं आज से तुम्हें पोस्टमैन मौसी कहकर पुकारूँगा।।
उस औरत ने पूछा,तुम्हारा नाम क्या है?
मेरा नाम आगमन है और में पास में ही उस बड़े से घर में रहता हूँ वो मेरे ताऊ जी का घर है और तुम्हारा नाम क्या है? तुम कहाँ रहती हो,आगमन ने पूछा....
मेरा नाम सुजाता है और मन्दिर के पीछे वाली गली में मेरा घर है,सुजाता बोली।।
और इस तरह से बेटे को माँ मिल गई और माँ को बेटा,दोनों मन्दिर में मिलते बातें करतें और चले जाते,लेकिन एक दिन आगमन के पिता उसे लेने के लिए आ गए.....
बोले अब ये मेरे साथ रहेगा और मैं वहीं पर किसी स्कूल में इसका नाम लिखा दूँगा,इस तरह आगमन अपने पापा के साथ चला गया और अब लौटा है,आते ही आ गया अपनी पोस्टमैन मौसी से मिलने...
अच्छा तो ये कहानी थी,एजेंट बोला।।
हाँ,उन ख़तों के जरिए अन्जाने माँ बेटे,अपने कब बन गए पता ही नहीं चला,आगमन बोला।।
उन ख़तो ने एक रिश्ता कायम कर दिया,एजेंट बोला....
हाँ,माँ बेटे का,सुजाता बोली।।
और मैं आज से अपनी माँ के साथ ही इस घर में रहूँगा और अपनी माँ को किसी चीज़ की कमी नहीं होने दूँगा,आगमन बोला।।
और सुजाता ने ये सुनकर आगमन को अपने सीने से लगा लिया।।

समाप्त....
सरोज वर्मा.....