१७.जासूस
जन्माष्टमी के बाद से ऑफिस फिर से चालू हो गया। जैसा कि रुद्र ने कहा था। ऑफिस में ही अपर्णा का वंदिता जी से सामना हो गया। लेकिन अपर्णा भी अपनी मम्मी जैसी ही थी। काम और रिश्तों के बीच में एक दीवार खड़ी रखती थी। जिससे उसे काम और रिश्ते दोनों ही अच्छे से संभालना आता था।
वंदिता जी भी आखिर में तो एक माँ ही थी। अपनी बेटी को इतनी बड़ी कंपनी में इतनी शिद्दत से काम करता देख उन्हें भी बहुत अच्छा लगा। वो अपर्णा से बात करने के बहाने ढूंढती रहती। लेकिन रूद्र बीच में आ जाता। क्यूंकि वह अपर्णा को दुःखी देखना नहीं चाहता था। लेकिन कहीं ना कहीं रूद्र माँ बेटी के बीच आ रहा था। ये समझ आते ही उसने सीधा-सीधा वंदिता जी से बात करने के बारे में सोचा।
वंदिता जी ऑफिस से जाने को हुई तब रुद्र ने आकर उनसे कहा, "मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है। आप मेरी केबिन में आएंगी?"
वंदिता जी ने रूद्र को कोई जवाब नहीं दिया। बस हाथ दिखाकर उसे आगे चलने का इशारा किया। दोनों ही रूद्र की केबिन में आ गए। जब अपर्णा ने अपनी मम्मी को रूद्र की केबिन में जाते देखा तो उसे कुछ अजीब लगा। उसे अपने लिए नहीं बल्की रूद्र और उसकी कंपनी को लेकर फ़िक्र होने लगी।
रूद्र अपने केबिन में आकर अपनी कुर्सी पर बैठा और वंदिता जी को भी बैठने का इशारा किया। वंदिता जी ने बैठते ही पूछा, "कहो, क्या बात करनी है?"
"मुझे बातें घुमा फिराकर करने की आदत नहीं है। इसलिए मैं सीधा मुद्दे पर आता हूं। उस दिन तो मैंने कुछ नहीं कहा। लेकिन आज़ मुझे जानना है कि आप इतने सालों बाद फिर से हमारे परिवार के पास वापस क्यूं आई है?" रूद्र ने एक एक बात को अच्छे से जोड़ते हुए पूछा।
"मैं तुम्हारे परिवार में वापस नहीं आई। मैं सिर्फ बिजनेस के इरादे से आई हूं।" वंदिता जी ने बिना किसी भाव के कहा।
"आप हमारे परिवार के बारे में सब जानती थी। सालों पहले ही आपके और हमारे बीच सब खत्म हो गया था। मैं तो आपको या आपके परिवार किसी को जानता तक नहीं हूं। फिर भी एक बात यकीन से कह सकता हूं कि आपने बिजनेस के जरिए हमारे परिवार में एंट्री मारी है। जिसके पीछे आपका कोई तो मकसद जरूर है।" रूद्र ने इतने यकीन के साथ कहा कि वंदिता जी कुछ बोल ही नहीं पाई।
"तुम्हें सच जानना है ना?" आखिर में वंदिता जी ने भी मुद्दे पर आते हुए कहा।
"हां।" रूद्र ने कहा।
"तो मुझे अखिल भारद्वाज तक पहुंचा दो। क्यूंकि सच्चाई तुम्हें वहीं बता सकते है। मैं अगर कुछ भी बताऊंगी तो तुम्हें या अपर्णा किसी को यकीन नहीं होगा। इससे अच्छा तुम अखिल को ढूंढ़ो और सच जान लो।" वंदिता जी ने कहा। ये कहते हुए उनकी आंखों में रुद्र ने एक दर्द देखा। वह इतना कहकर ही चलीं गईं। लेकिन रुद्र के लिए बहुत सारी उलझने छोड़ती गई। रुद्र ने कुछ देर सोचकर किसी को फोन किया।
"हेल्लो! मुझे अखिल मोहनदास भारद्वाज के बारे में इन्फॉर्मेशन चाहिए।" रुद्र ने कहा।
"आप मुझे दो दिन दिजिए और उनकी एक फॉटो भेज दिजिए।" सामने से एक रौबदार आवाज़ सुनाई दी।
"ओके, लेकिन इन्फॉर्मेशन पक्की होनी चाहिए। कुछ छूटना नहीं चाहिए।" रुद्र ने कहा और कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया।
कुछ देर सोचने के बाद रूद्र घर आ गया। घर आकर वह सीधा दादाजी के कमरें में चला आया। उसने देखा दादाजी बिस्तर पर बैठे कोई किताब पढ़ रहे थे। रुद्र ने दरवाज़ा बंद किया और उनके पास आकर बैठ गया। दादाजी ने उसे अचानक ऐसे ऑफिस के वक्त पर यहां देखा तो पूछने लगे, "क्या हुआ? तुम इस वक्त यहां क्या कर रहे हों?"
"वो मुझे अपर्णा के पापा की तस्वीर चाहिए थी। आपके पास होगी क्या?" रुद्र ने बात को घुमाने की बजाय सीधा सवाल किया।
"लेकिन तुम्हें अचानक उसकी तस्वीर की क्या जरूरत पड़ गई?" दादाजी ने किताब साईड में रखते हुए पूछा।
रुद्र ने ऑफिस में वंदिता जी से हुई बातें दादाजी को बताई और आगे कहा, "मैंने एक प्राइवेट जासूस हायर किया है। मुझे अखिल भारद्वाज के बारे में सारी जानकारी चाहिए। अगर वंदिता आन्टी ने कहा, वो सच हुआ। तो अपर्णा को उसके सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे। इससे शायद उसे अपनी मम्मी भी मिल जाएं। क्यूंकि मैंने कहीं ना कहीं आन्टी की आंखों में अपर्णा को लेकर प्यार और अपने फैसले को लेकर पछतावा देखा है।" रुद्र ने जो भी महसूस किया। वो सब दादाजी को बता दिया।
"एक पुरानी फोटो मेरे पास पड़ी है। शायद उससे तुम्हारा काम हो जाए। लेकिन जो भी करों। जब तुम्हें पुख्ता सबूत मिल जाएं। तब ही अपर्णा को कुछ बताना। उसे कोई झूठी उम्मीद मत दिखाना।" दादाजी ने रूद्र के कंधे पर हाथ रखकर कहा और अपनी अलमारी की तरफ आगे बढ़ गए। उन्होंने उसमें से एक पुराना बक्सा निकाला और सारे सामान के नीचे से एक पुरानी फोटो निकालकर रुद्र के हाथों में रखी और कहा, "ये जो सूट पहने हुए है। वहीं अखिल भारद्वाज है। ये शेरवानी पहने हुए उसका छोटा भाई है।"
रूद्र ने वो तस्वीर ली और तुरंत दादाजी के कमरें का दरवाज़ा चिरते हुए बाहर निकल गया। दादाजी उसके जाते ही कुछ सोचने लगे। रुद्र घर से सीधा एक कैफे में आ गया। वहां आकर वो किसी का इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद एक काले रंग का सूट पहने लड़का आया और रूद्र को देखते ही उसकी ओर चला आया।
रुद्र ने उसे अखिल जी की तस्वीर देते हुए कहा, "इसमें जिसने सूट पहन रखा है। वहीं अखिल भारद्वाज है। तुम्हारे पास सिर्फ दो दिन है। मुझे दो दिन के अंदर इनसे जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी चाहिए।"
"हो जाएगा सर! आप निश्चित रहिए।" लड़के ने कहा और तस्वीर अपने पेंट की जेब में रखते हुए निकल गया।
लड़के के जानें के बाद रुद्र अपनी ऑफिस आ गया। जब अपर्णा ने उसे परेशान देखा तो उसे कुछ गरबड़ लगी। पहले तो रुद्र वंदिता जी से मिला। फिर हड़बड़ी में कहीं चला गया और आया तब परेशान था। ये सब कोई संयोग नहीं था। रूद्र के दिमाग में कुछ तो चल रहा था। इतना तो अपर्णा समझ चुकी थी। जब कॉफ़ी का वक्त हुआ और एक लड़का सब के लिए कॉफ़ी लेकर आया। उसने सब को कॉफ़ी दी। फिर जैसे ही रुद्र के केबिन में जानें लगा तो अपर्णा ने एक फ़ाइल उठाई और उस लड़के के पास आकर कहा, "ये मुझे दे दो। मैं रुद्र सर को दे दुंगी।"
लड़के ने कॉफ़ी का मग अपर्णा के हाथ में रखा और चला गया। अपर्णा फाइल और कॉफी का मग हाथ में थामे रुद्र की केबिन की ओर बढ़ गई। रुद्र ने अपर्णा के हाथों में कॉफ़ी का मग देखा तो पूछने लगा, "तुम क्यूं कॉफ़ी लाई?"
"आपसे कुछ पूछना था। कोई बहाना नहीं मिला तो कॉफी लेकर आ गई।" अपर्णा ने सहजता से कहा।
"क्या पूछना था?" रुद्र ने पूछा।
"आपने कुछ देर पहले मम्मी से क्या बात की और अभी-अभी आप कहां से आएं? देखिए सच सच बताना। मेरी वजह से आप किसी मुसीबत में पड़े। ऐसा मैं नहीं चाहती।" अपर्णा ने सीधा-सीधा ही पूछा।
"मैं तो बस ऑफिस के काम के बारे में ही बात कर रहा था। और कुछ नहीं है।" रुद्र सफेद झूठ बोल गया।
"उम्मीद करती हूं, आपने सच ही कहा होगा।" रुद्र झूठ बोलने में माहिर था। झूठ बोलते वक्त उसके चेहरे पर एक सिकन तक नहीं आता था। इसलिए अपर्णा आगे कुछ नहीं पूछ पाई। उसने कॉफ़ी मग टेबल पर रखा और जाने लगी तो रुद्र ने उसे रोकते हुए पूछा, "वैसे तुम्हारी वज़ह से मैं मुसीबत में पड़ूं ऐसा तुम क्यूं नहीं चाहती?"
"पता नहीं, बस आपके या आपके परिवार को कोई कुछ भी ग़लत कहे तो दिल को चुभता है।" अपर्णा ने कहा और चलीं गईं। लेकिन जाते जाते रूद्र के चेहरे पर मुस्कान छोड़ती गई। क्यूंकि उसे ऐसी ही तो लड़की चाहिए थी। जो सिर्फ रुद्र को नहीं उसके परिवार को भी प्यार करे और समझें!
(क्रमशः)
_सुजल पटेल