१६.नजदिकीया
अग्निहोत्री परिवार के सभी लोग वंदिता जी की खातिरदारी में लगे हुए थे। रणजीत जी और दादाजी के सिवाय किसी को ये नहीं पता था कि वंदिता जी अपर्णा की मॉम है। लेकिन वंदिता जी को दादाजी के परिवार के बारे में सब पता था। ये बात दादाजी भी जानते थे। इसलिए आखिर में उन्होंने ही वंदिता जी से पूछा, "अब आप यहां क्यूं आई है? आपने तो हमारे परिवार से सारे रिश्ते तोड़ दिए थे।"
"जो किया था, वो अखिल भारद्वाज ने किया था और मैं वंदिता शुक्ला हूं। आपको जो भी शिकायतें करनी हो अखिल भारद्वाज से करिए मुझसे नहीं।" वंदिता जी ने कड़क शब्दों में कहा।
"हमें किसी से कोई शिकायत नहीं करनी है और आपके साथ काम भी नहीं करना है। आप इन्वेस्टमेंट के लिए कोई दूसरी कंपनी ढूंढ़ लिजिए।" दादाजी ने हाथ जोड़कर कहा। जो वंदिता जी को सीधा-सीधा दरवाज़ा दिखाने का इशारा कर रहा था। जिससे उनके चेहरे पर गुस्से की लकीरें उभर आई।
"सारी फॉर्मालिटिज पूरी हो चुकी है। अब आप मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते। फिर आपके बेटे को तो सब पता था कि मैं कौन हूं? तो अब ये तमाशा कैसा?" वंदिता जी ने गुस्से से कहा।
"मेरा बेटा जब ऑफिस में होता है। तब एक बिजनेसमैन बनकर सोचता है। रिश्ते इसकी समझ में नहीं आते। लेकिन मेरी समझ में सब आता है। इसलिए मैं नहीं चाहता कि हमारी कंपनी में आपका किसी भी तरह का योगदान हो।" दादाजी ने अपना आखरी निर्णय सुनाते हुए कहा।
"आपकी ये गलति आपको बहुत भारी पड़ सकती है। मैं चाहु तो चुटकी बजाते आपकी कंपनी बंद करवा सकती हूं। अभी आप मुझे जानते नहीं।" वंदिता जी ने गुस्से से तिलमिलाते हुए कहा।
"मेरा मुंह मत खुलवाओ बेटी! क्यूंकि जितना अच्छे से मैं तुम्हें जानता हूं। उतना अच्छे से कोई नहीं जान सकता।" दादाजी ने सहजता से कहा।
"तो फिर देखते है। अब मैं आपको दिखाऊंगी कि वंदिता शुक्ला क्या चीज़ है?" वंदिता जी ने दांत पीसकर कहा।
वंदिता जी बस गुस्सा करके जा ही रही थी। उसी वक्त अपर्णा ने कहा, "मैंने सोचा था अब तक तो आप काफ़ी बदल चुकी होगी। लेकिन मैं ग़लत थी। उम्र के सिवाय आप में कोई बदलाव नहीं आया है।" अपर्णा कब से रूद्र के साथ सीढ़ियों पर खड़ी दादाजी और वंदिता जी की बातें सुन रही थी। जिसका किसी को ध्यान नहीं था। उसकी आंखों और आवाज में एक दर्द साफ़ नज़र आ रहा था। वंदिता जी उसकी आवाज सुनकर तुरंत उसकी ओर पलटी। उन्होंने अपर्णा को यहां देखा तो वह खुद भी चौंक गई।
"तुम यहां?" वंदिता जी ने हैरानी से कहा।
"हां, मैं आर.आर. एंटरप्राइज में काम करती हूं। जिसे अभी-अभी आपने बंद करवाने की धमकी दी है।" अपर्णा ने सीढ़ियां उतरकर नीचे आते हुए कहा।
"तो तुमने सब सुन लिया? वैसे अच्छा ही है।" वंदिता जी ने नॉर्मल होकर कहा।
"हां, मैंने सब सुन लिया और हमें आपके साथ काम करने में कोई एतराज़ नहीं है। आप अभी भी आर.आर. एंटरप्राइज की इन्वेस्टर है।" अपर्णा ने सहजता से कहा।
"ये तुम क्या कह रही हो? हमें इनके साथ काम नहीं करना है।" दादाजी ने कहा।
"आप ये सब मेरे लिए कर रहे है, ये मुझे पता है। लेकिन मैं इनकी वजह से इस परिवार को परेशान नहीं होने दूंगी।" अपर्णा ने कहा। उसी वक्त रुद्र उसका हाथ पकड़कर उसे खींचकर कोने में ले गया और उस पर चिल्लाने लगा, "ये तुम क्या कर रही हो? तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया ना? अगर तुम्हारी मम्मी हमारी कंपनी की इन्वेस्टर बन गई। तो तुम्हारा आएं दिन उनके साथ सामना होगा। तुम ये सब बर्दाश्त कर पाओगी?"
"हां, मेरा उनसे सामना हो। इसीलिए तो ये सब कर रही हूं। कम से कम इसी बहाने मैं उन्हें देख तो पाऊंगी।" अपर्णा ने सधी हुई आवाज में कहा। उसकी ऐसी बात सुनकर रुद्र ने उसका हाथ छोड़ दिया। अपर्णा की आवाज़ में बरसों पुराना एक दर्द था। जो आज़ फिर से ताजा हो गया था। जिसे रुद्र बर्दाश्त नहीं कर पाया। वह अपने कमरे में चला गया। अपर्णा सब के बीच आ गई।
"तो अब मैं चलती हूं। परसो ऑफिस में मिलते है।" वंदिता जी ने कहा और अपर्णा की ओर देखकर चली गई।
वंदिता जी के जाने के बाद सभी लोग उनके बारे में बातें करने लगे। दादाजी अपर्णा के पास चले आएं। उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखकर पूछा, "सोच-समझकर फैसला किया है न? बाद में पछताओगी तो नहीं ना?"
"नहीं दादाजी! रिश्तों में मम्मी भले ही कच्ची रही हो। लेकिन बिजनेस में बहुत पक्की है। जब तक वो हमारे साथ है। आपके बिजनेस को कभी कोई नुक़सान नहीं होगा। फिर मैंने सुना है, पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को अलग ही रखना चाहिए। इसलिए मैंने आज़ वहीं किया।" अपर्णा ने एकदम शांति से कहा। जब की उसका मन कुछ शांत नहीं था।
रणजीत जी ने अपर्णा की बात सुनी तो उसके पास आकर कहने लगें, "तुम बहुत समझदार हो। उम्मीद रखूंगा कि तुम्हारा फैसला तुम्हें और तुम्हारी मम्मी को नजदीक ला पाएं।"
"बस आपका और दादाजी का आशीर्वाद मिल गया। अब सब ठीक हो ही जाएगा।" अपर्णा ने खोए हुए स्वर में कहा।
रणजीत जी उसके सिर पर हाथ रखकर चले गए। अभी तक किसी ने खाना नहीं खाया था। तो घर के नौकर और औरतें मिलकर खाने की तैयारी करने लगी। सभी लोग खानें के लिए आ गए। लेकिन रूद्र नीचे नहीं आया। अपर्णा की निगाहें उसे ही ढूंढ रही थी। उसी वक्त विक्रम ने उसके पास आकर कहा, "तुम्हारे और रूद्र के बीच क्या बातें हुई? ये मैं नहीं जानता। लेकिन शायद वो तुम्हारे फैसले से बहुत गुस्सा है। इसलिए वो ऐसे नीचे नहीं आएंगा।"
"तो फिर मैं क्या करूं?" अपर्णा ने परेशान होकर पूछा।
"तुम उसके लिए खाना लेकर उसके कमरें में चलीं जाओ। शायद वो मान जाएं।" अचानक ही रणजीत जी ने कहा तो सब उन्हें हैरानी से देखने लगे। जैसे ही रणजीत जी ने सब को देखा तो सब उनसे नज़रें चुराकर अपना काम करनें लगे। सावित्री जी ने खाने की थाली तैयार करके अपर्णा को दी। वह थाली लेकर ऊपर चली आई। ऊपर आकर उसने देखा तो रुद्र के कमरें का दरवाज़ा खुला ही था और वह बॉक्सिंग ग्लव्ज पहनकर अपने पंचिंग बैग पर पंच मारे जा रहा था। उसके बदन पर पसीने की बूंदें चमक रही थी और आंखों में गुस्सा भरा हुआ था। अपर्णा ने खाने की थाली टेबल पर रखी और रुद्र के सामने नजरें झुकाए खड़ी हो गई।
"यहां क्यूं आई हो?" रुद्र ने पंच मारते हुए ही पूछा।
"आपके लिए खाना लाई हूं।" अपर्णा ने नजरें झुकाए ही कहा।
"मुझे नहीं खाना।" रुद्र ने गुस्से से कहा।
"आप नाराज़ मुझसे है, तो जो भी कहना हो मुझसे कहिए। ऐसे खुद को क्यूं तकलीफ़ दे रहे है?" अपर्णा ने कहा।
"क्यूंकि तुम्हें तकलीफ़ में नहीं देख सकता।" रुद्र ने गुस्से से चिल्लाकर कहा। अपर्णा ने डरते हुए नजरें उठाकर रुद्र की ओर देखा। उसकी आंखें गुस्से से लाल हो चुकी थी। ये देखकर तो अपर्णा भी कुछ पल के लिए डर गई। वह आगे कुछ कह भी नहीं पाई।
"तुमने खाना खा लिया?" अपर्णा को डरी हुई देखकर आखिर में रुद्र ने ही पूछा।
अपर्णा ने ना में सिर हिला दिया तो रुद्र को और गुस्सा आया। उसने पंचिंग बैग पर जोर से एक पंच मारा। पंचिंग बैग सीधा अपर्णा जिस ओर खड़ी थी, उस ओर आया। पंचिंग बैग बस अपर्णा की नाक पर लगने ही वाला था कि रुद्र ने उसे पकड़ लिया। अपर्णा की आंखें डर के मारे बंद हो गई थी। रुद्र तो बस उसका मासूम चेहरा ही देखता रह गया। उसने प्यार से उसका हाथ पकड़ा तो अपर्णा की आंखें अपने आप ही खुल गई। उसने अपर्णा को सोफे पर बिठाया और खाने के लिए इशारा किया। अपर्णा ने कांपते हाथों से एक निवाला तोड़ा और खुद ना खाकर रुद्र की ओर बढ़ा दिया। रुद्र कभी निवाले को तो कभी अपर्णा के चेहरे को देखता।
"मेरी वजह से आपको गुस्सा आया। तो इतना तो मुझे करना चाहिए न।" अपर्णा ने मासूमियत से भरकर कहा। रुद्र ने सुना तो उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई। उसने अपर्णा के हाथों से निवाला खाया। फिर खुद निवाला तोड़ा और अपर्णा की ओर बढ़ा दिया। अपर्णा हैरानी से उसे देखती रही।
"मेरी वजह से तुम्हें भी तकलीफ़ हुई। तो मेरा भी कुछ फर्ज बनता है न!" रूद्र ने प्यार से कहा तो अपर्णा ने भी उसके हाथ से निवाला खा लिया। दोनों एक ही थाली से एक-दूसरे को खिला रहे थे। जब सावित्री जी ने रूद्र के कमरें के दरवाज़े पर खड़े होकर ये नज़ारा देखा तो उनके चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गई। फिर वह वहां से चली गई।
अपर्णा खाली थाली लेकर जाने लगी तो रुद्र ने उसे रोकते हुए पूछा, "वैसे मेरे घर में किसी को अपने कमरें में खाना खाने की इजाजत नहीं है। तो फिर तुम्हें कैसे यहां खाना लेकर आने की इजाजत मिल गई? किसी को कमरें में खाना लेकर आना भी हो तो पापा से छिपकर आना पड़ता है। जब की वो तो इस वक्त नीचे ही होंगे। तो फिर तुम कैसे आ गई?"
"मुझे इजाज़त मांगनी ही नहीं पड़ी। आपके पापा ने खुद मुझे कहा कि मैं आपके कमरें में खाना लेकर आऊं और आपको मना लू। फिर मम्मी ने मुझे थाली तैयार करके दी और मैं यहां आ गई।" अपर्णा ने थोड़ी-सी स्माइल के साथ कहा और चलीं गईं। रुद्र ने सुना तो हैरान रह गया कि जब रणजीत जी ने खुद किसी को कमरें में खाना खाने दिया नहीं जायेगा, ऐसा नियम बनाया था। तो फिर आज़ उन्होंने ये नियम तोड़ कैसे दिया? यहीं बात रुद्र की समझ में नहीं आई।
(क्रमशः)
_सुजल पटेल