मैनपाट Lalit Rathod द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • दरिंदा - भाग - 13

    अल्पा अपने भाई मौलिक को बुलाने का सुनकर डर रही थी। तब विनोद...

  • आखेट महल - 8

    आठ घण्टा भर बीतते-बीतते फिर गौरांबर की जेब में पच्चीस रुपये...

  • द्वारावती - 75

    75                                    “मैं मेरी पुस्तकें अभी...

  • Devil I Hate You - 8

    अंश जानवी को देखने के लिए,,,,, अपने बिस्तर से उठ जानवी की तर...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 55

    अब आगे छिपकली सुन कर उस लड़की ने अपने हाथों की मुट्ठी गुस्से...

श्रेणी
शेयर करे

मैनपाट

22-02-22

जितनी खूबसूरत तारीख थी, उतना ही शानदार दिन भी बिता। बीते कुछ वर्षों से अपने जन्मदिन पर खुद काे समय देना शुरू किया है। इस दिन किसी एकांत यात्रा पर होता हूं। असल में मुझे लोगों का एक दिन के लिए बदलना कभी देखा नहीं गया। मेरे लिए वह जैसे है, वैसे ही बने रहे। अपनी हर उम्र से मुझे अलग तरह का लगाव रहा हैं। साल भर एक नई उम्र के साथ समय बिताने के बाद जन्मदिन पर उस उम्र का बदल जाना मुझे टीस दे जाता हैं। अब जब कोई मुझसे उम्र पूछेगा तो मुझे पुरानी उम्र याद पहले आएंगी। हर चीजों को शिद्दत से जीने की आदत है। मुझे मौसम का बदलना भी सामान्य घटना नहीं लगती। यात्रा की शुरूआत में लगा था ठंड अब जा चुकी है, लेकिन ठंड शहर से विदा लेकर मैनपाट में जाकर ठहर गई है। कड़ाके की ठंड को महसूस करना फिर एक बार बीते चुके मौसम से मिलने जैसा रहा। रात और सुबह के वक्त असहनीय ठंड से बचने का प्रयास नहीं किया। खुश था कि यात्रा में ठंड को थोड़े समय के लिए पा लिया।

बीते दो दिन मैनपाट के पहाड़ों के आसपास बीता। अकेले यात्रा करने के मेरे अलग मायने हैं। कभी उन जगहों पर नहीं जाता है, जहां हर कोई जाता है। अपनी यात्राओं में अकेलापन तलाश करता हूं। यह मुझे बीच मैदान में बने पेड़ में दिखाई दे जाता हैं तो कभी नदी के अंतिम छोर में या फिर पहाड़ के दूसरे ओर जहां किसी की नजर नहीं जाती। मुझे अकेलेपन की खुशबू आती है। इसे महसूस कर सकता हूं। मेरे रूम में यह वर्षों से है। यात्रा के दौरान जब भी मुझे वह खुशबू मिली उस जगह पर घंटो समय बिताया हैं। सुनसान जगह पर अकेले होने का भय कभी नहीं हुआ। अकेले यात्रा का सुख मेरे लिए अकेलापन हैं। मैने हर उन जगहों पर गहरी सांस लेते हुए अतीत को उस अकेलेपन में पाया हैं।

गांव से शहर आने के बाद ज्यादातर समय मैंने खुद को दिया है। अनजान जगहों पर अकेले यात्रा करना मैंने लेखकों से सीखा हैं। अब ना मुझे जंगलों के रास्तों से डर लगाता और ना यात्रा में ठगे जाने का भय। हर यात्रा के शुरूआत यह मानकर चलता हूं की इस यात्रा में भटकने और ठगे जाने की अपार संभावना है। दोनों ही चीजे यात्रा का हिस्सा है। अपने जन्मदिन पर अपनी सारी इच्छाओं को पूरा करना चाहता था और मैंने खुद को निराश भी नहीं किया। जो सड़के मुझे अच्छी लगी उस तरफ अपनी बाइक चलाना शुरू कर दिया। पूरी यात्रा में किसी से नहीं पूछा यह रास्ता जाता कहां है। रात होने के बाद जब लौटने की बारी आई तब मैंने खुद को अनजान जगह में भटका हुआ महसूस किया है। लेकिन इस बात पर मुझे बेहद हंसी आ रही थी के मैं भटक चुका हूं। अंधेरे में रास्ता तलाशने से ज्यादा मुझे उस समय को जीने में मजा आ रहा था। इस बार भी मैंने किसी से मदद नहीं लिया और जो रास्ता मुझे अच्छा लगा उस बढ़ता गया। कुछ दूरी के बाद दूर गांव में लाइट जलती हूं नजर आई और मुझे खुद का भटका जाना बेहद याद आने लगा।

मुझे खुद से ज्यादा उम्मीदें नहीं रही। बस खुद को लिखते और पढ़ते हुए देखना चाहता हूं। यात्रा के दौरान जब-जब मैंने लिखा और पढ़ा हैं.. उस दृश्य को मैंने बाहर से दिखा हैं। मेरी आंखों में टीस थी। यह यात्राओं का असर हैं खुद को करीब से जानता हूं। एक शरीर में भीतर और बाहर के व्यक्ति का स्वभाव मैंने महसूस किया है। मुझे खुद से बेहद प्यार है। जीवन का एक सच यह भी है मुझे खुद का साथ बेहद प्रिय है, इसलिए दूर अकेले यात्रा करना मुझे कभी उदासी के दरिये में जाने जैसा नहीं लगा।

अपनी यात्रा में सुख तलाशना त्याग कर बस उसे जीते हुए चलना चाहिए। आपको सुख किसी चौहारे में अप्रत्याशित बैठा हुआ मिलेगा। जीवन की पहली खूबसूरत तस्वीर कैमरे में कैद किया है। पूरी यात्रा का यह पहला सुंदर क्षण था, जो मुझे जिंदगी भर याद रहेगा। तस्वीर मैनपाट के तिब्बती रेस्त्रा की हैं। महिला यहां घरेलू कार्य करती है। उस एवज में दो वक्त का खाना और कुछ पैसे मिल जाते है, जिससे जीवन चल जाता हैं। नाश्ते के रूप में चार रोटी मिलती है। रोजाना वह अपनी चबूतरे के बाहर बैठकर खाती है। रेस्त्रा में पालतू बिल्ली और कुत्ता उनके अच्छे मित्र है। महिला बचपन से बोलने में असमर्थ है, लेकिन दोनों पालतू उसका इशारा बहुत अच्छे से समझते हैं। महिला एक रोटी का तीन हिस्सा करती है और पहले दाेनों पालतू को खिलाती हैं फिर खुद खाती हैं। इस बीच उन्होंने मेरी ओर भी रोटी खाने को इशारा किया था। यह तस्वीर उसी वक्त की है, जब एक रोटी खत्म होने के बाद पालतू दूसरे हिस्से के इंतजार में महिला की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे है। मैंने पहले बार दोनाें पालतू को बड़े प्यार रहते हुए देखा हैं। महिला का जनवरों के प्रति प्रेम देखकर गदगद हो गया। इस तस्वीर के बाद मुझे अपनी यात्रा सार्थक लगी। जाते हुए मैंने कहां,आप बहुत सुंदर हैं। यहां घूमने से ज्यादा मुझे आपसे मिलकर खुशी हुई। दूसरी बार आपसे मिलने आऊंगा साथ में बैठक रोटी खाएंगे। जवाब में मुस्कुराता चेहरा मेरे जहन में बसा हैं।