किसी मांगी हुए इच्छा के पूरा होने पर उन सिक्कों को याद करता हूँ, जिसे बहुत पहली किसी कुए में डाला कर भूल गया था. उस जल्दबाजी में की यह मुझे जीवन के किसी व्यस्तता वाले दिनों में मिल जाए. जैसे कही रखा हुआ पैसा भूल जाने दे बाद हमें अचानक मिल जाता है. ऐसा करना कभी-कभी वर्तमान में इच्छाओं से बचाना भी लगता है. शायद बहुत दिनों के बाद मेरा सिक्का किसी को कुए में मिला होगा. सालों से पानी में रहने से उसका रंग भी बदल चूका होगा. यह पहचान करना भी मुश्किल होगा की इस सिक्का में मैंने क्या माँगा होगा? जैसे मेरी पूरी हुए इच्छा अब वैसे नहीं जैसे पहले थी. पानी के भीतर लंबे समय तक रहने पर इच्छाओं के चेहरे बदल चुके है. वह बड़ी भी हो चुकी है. जब पहली बार कुए में सिक्का डालने वाला था, तभी एक आवाज भीतर से निकलकर बाहर आ गई थी. और मैं कुछ समय के लिए आसमान में शून्य की ओर देखने लगा था. उस वक्त इच्छाओं की शक्ल को बेहद करीब से देखा था. इच्छाएं रिसाए हुए छोटे बच्चों की तरह भीतर छुपी होती है, जिसे मनाने के लिए आवाज लगाऊ वह कभी सामने नहीं आती. जब हम उम्मीद छोड़कर वहां से बाहर लौट आते है. तभी वह हमारे साथ आने के लिए झट से बहार आ जाता है. इस आश में की वह अभी भी जीवित है. उस इच्छा की तरह जिसे बहुत पहले मैं मनाने की उम्मीद भूल चूका था. जब सिक्का हाथ से छुटे वाला था तभी वह बाहर आ गया और मैंने जल्दी से उसका होना अपनी इच्छाओं में शामिल कर दिया. उस वक्त वह इच्छा बहुत महत्वपूर्ण लगा रही थी.जबकि सिक्के डालने से पहले भीतर छुपी उस आवाज का होना भूल चूका था. सिक्का पानी में लहराते हुए फिर भीतर में शामिल हो रहा था. मुझे अब उसमें केवल पूरी होने वाली इच्छा ही नजर आ रही थी, जो अचानक से बाहर आने के बाद फिर भीतर अपनी जगह पर जा रही थी.
-किसी को यह कहना की इस रूम में अकेले रहता हूॅ। रूम के साथ हिंसा होेगी। जब कोई कहता है, तुम अकेले रहते हो? मुझे जवाब में दूर भाग जाने की इच्छा होने लगती है। उस जगह चला जाऊ जहां यह सवाल मुझ तक ना पहुंचे। अकेले रहने के बावजूद मैं कभी नहीं कह सकता की अकेले रहता हूं। एक दिन इस सवाल से तेजी से भाग रहा थाअचानक गिर पड़ा और कह डाला मैं अकेले रहा हूँ। मुझे लगा मैंने किसी संबंध को छिपाने की कोशिश की है, जो लंबे समय से मेरे साथ है। अंदर एक पीड़ा बढ़ने लगी थी। क्योकि यह झुट रूम के भीतर कहां था, जिसके साथ मैं रहता हूॅ
। शाम के वक्त लाइट चालु करने से डरता हूॅ। शायद लाइट जलने पर धूप की रोशनी को लगेगा मैंने उसे जाने को कह रहा हूॅ। शाम की रोशनी को कभी खत्म करना नहीं चाहता जो मेरे साथ सुबह से साथ रहती है। दफ्तर जाने से पहले कमरे की तस्वीर लेना नहीं भुलता। यह एक तरह का प्यार है।रूम की चौखट से उन्हें अलविदा कहता हूं। फिर थोडी सी जगह से रूम के भीतर को देखता हूॅ। धूप की रोशनी किसी के ना होने की वियोग में धीरे-धीरे कम होने लगती है। जब कभी शाम को रूम से निकलने के बाद फिर थोड़ी देर बाद रूम पहुंच जाउ तो लगता है शायद शाम मुझसे यही चाहती थी और रूम में एक तरह का उत्सव मनने लगता है, जिसमें मैं कतई अकेला नहीं होता।