लॉकडाउन पंचर.. Lalit Rathod द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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लॉकडाउन पंचर..

गाड़ी के पंचर होने और पानी गिरने की वजह से दफ़्तर से रूम तक 20 की रफ़्तार से चला आ रहा था. सालों से गली के कुत्तो को मैराथन दौड़ कराने तेज हार्न देते हुई निकलता हूँ. स्वार्थी पन मेरे स्वाभाव में नहीं इसलिये गाड़ी की रफ़्तार उतनी रखता हूँ जितनी कुत्तो की रफ़्तार होती है. अगर वो दौड़ते हुई थक जाए तो आगे रूककर उन्हें फिर दौड़ लगाने उकसाता भी हूँ. एक कुत्ते की आवाज से गली के सभी आवारा चौकन्ना हो जाते. एक पीछा करने में असफल रहा तो दूसरा मुझ तक पहुंचने की भरपूर कोशिश करता है. रूम पहुंचने तक उनका लक्ष्य केवल मै ही होता हूँ. यह खेल समय को रोमांच में बदल देता है. अच्छे दोस्त होने के नाते उन्हें रोज बिस्किट भी खिलता हूँ. उनकी नजर में यह उदारता रात के अँधेरे में दौड़ाने वाले व्यक्ति की नहीं सुबह के अनजान व्यक्ति की तरह होती है. हमारी दोस्ती केवल रात तक है दिन में हम अपने-अपने प्रोटोकॉल में रहते हैं. कल रात यह खेल- खेलना नहीं चाहता था. गाड़ी पंचर थी ऊपर से पानी, जिससे गाड़ी तेज चलाने की कोई गुंजाईश नहीं थी. इसलिये रूम जाने के लिए दूसरा रास्ता चुना. तभी कुत्तो की आवाज सुनाई देने लगी इस वक्त मेरे और उसकी दूरी अधिक थी. मैंने अनदेखा कर धीमी रफ़्तार से आगे बढ़ने लगा. शायद वे मुझे रुकने को कह रहे हो की ओ हेलो कहां जा रहे? अगले कुछ सैकेंड में वे सारा अपना काम छोड़ दौड़ते, भोंकते मेरे पास आ पहुँचे. भारतीय नागरिक की तरह मैं भी एक जगह खड़ा हो गया. पर वो अपनी भाषा में भोंकते हुई लगातार थे. अब डर लगने लगा था कही ये मेरे और करीब ना आ जाए. धीमी गति से गाड़ी तेज रफ़्तार की ओर ले गया. अब सडक पर नजारा लॉकडाउन में दौड़ाती पुलिस के व्हाट्सअप विडिओ की तरह हो चुका था..तीन कुत्ते 10 से 50 की रफ़्तार तक साथ थे. इस वक्त मुझे तीनों पुलिस वाले नजर आने लगे थे, जो कह रहे हो घर से बाहर क्यों निकला तूं! मैं उन्हें कह देना चाहता था की मैं मिडिया से हूँ छोड़ दो ! लेकिन खूंखार उनके चहरे देखकर डर नजदीक लगा. मिनट भर तक वे दौड़ते रहे फिर उन्होंने हार मन लीं. जब दूर जाकर कोरोना मास्क उतारकर उन्हें बिस्किट देने बुलाया. सभी पूँछ हिलाते हुई तेजी से आए और पुरानी दोस्ती की तरह चारों ओर से घेर लिया. इस वक्त कोरोना मास्क मुझे कृष फ़िल्म के मास्क की तरह लगने लगा. आगे जाकर फिर मास्क लगाकर तेज आवाज लगाई. जैसे मैं कहां रहा हूँ. देखो मैं यहां हूँ कही तुम मुझे तो नहीं ढूंढ रहे ! मैं बताना चाह रहा था की गंगाघर ही शक्तिमान है. इस बात पर तीनों की पूंछ स्थिर जरूर हुए लेकिन अब उन्हें मुझे दौड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और तीनों वापस अपने रास्ते लौट गए. वर्तमान में पुलिस के डंडो से ज्यादा कुत्तो के भोकने का भय बना हुआ है. इस लॉकडाउन में पंचर गाड़ी का किस्सा आजीवन जहन में शामिल रहेगा. 😇🌸