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आत्महत्या

काश अपने अतीत में लाैटकर उस समय को फिर देख और छु सकते, जिसे हम अकेले में बैठकर याद करते है! अगर तुम्हे अतीत में जाने का मौका मिले तो किस छुटे हुए संबध को वर्तमान में लाना चाहोंगे? वह कुछ संबंधों के नाम बुदबुदाने लगता है। तभी उसके भीतर से एक नाम की आवाज उठने लगती है। मानों वह उसका प्रिय नाम हो वह उसे ही कहेंगा। उसने कहां, मैं किसी संबध को वर्तमान में शामिल करना नहीं चाहूंगा। इस जवाब से मन में उबाल मारता हुआ वह नाम ठंडा पानी मिलने की तरह शांत हो जाता है। वह आगे कहता है, मैं अतीत में जाकर वह गलती और अच्छी तरह से दोहराना चाहता हूॅ। ताकि उस संबध के वर्तमान में पहुंचने के सभी रास्ते बंद हो जाए। अतीत में स्वयं को जाकर कहूंगा तुम अद्भुत व्यक्ति हो। उसे भविष्य के सभी भय से मुक्त कर दुंगा। वह आगे कहता है, मुझे एकांत बड़ा प्रिय है।

दुसरा व्यक्ति सवाल करता है, तुम्हारे लिए एंकात क्या है? वह नहर के पुल में बैठकर रूके हुए पानी को देखने लगता है, जिसे सालों से देखने के बाद उसने नहीं देखा था। मानो वह बिलकुल नया पानी हो, जिसमें अचानक आए नए सवाल का जवाब वहीं कही छुपा हो। झट से उसने कहां, छुटे हुए संबधों के शक्ल का व्यक्ति मेरे लिए एकांत है। जवाब सुनकर दुसरे व्यक्ति को ऐसा लगा मानों उसके सवाल का जवाब उसके भीतर ही छुपा था। पानी में देखना उसका महज एक अभिनय। जब पानी और उसके बीच का तार होगा, तब अचानक उसने अपने भीतर में झाकर कर वह जवाब निकलकर मेरा सामने रख दिया होगा।

उसने फिर सवाल किया, जो संबध जीवन से मुक्त हो चुके है, तुम यहां पुल में बैठकर एकांत में याद करते हो ना? हां.. कह कर आगे कहता है, वह सबंध जीवन से मुक्त होकर एकांत में शामिल हो चुके है। इंसान का दुख उसे बड़ा बना देता है। मैं उस दुख से बड़ा हो चुका व्यक्ति हूं। सवाल करते हुए कहता है, जिस नहर के पुल को तुम एकांत कहते हो। अगर यहां वह सभी संबध आ जाए तो क्या इस एकांत में उन्हे याद करना सफल हो जाएगा?

मुस्कुराते हुए जवाब देता है, ऐसा कभी नहीं होगा। मेरे लिए एकांत अकेला व्यक्ति है। वह जीवन का हिस्सा बन चुका है। वह उसी जगह में है जहां छुटे हुए संबध रहते थे। एकांत की जगह में वह संबध फिर लौट आए तो वह एकांत कहां जाएगा? मुझे पता है वह आत्महत्या कर लेगा। क्योकि उसके पास विकल्प नहीं होगा, जैसे एक समय मेरे पास नहीं था। किसी निजी का स्थान छिन लेना उसे अनाथ बना देता है। फिर वह एकांत को अपने भीतर में शामिल कर उस जीवन को काल्पनिक रूप से जीता है।

यह कहते हुए उसे निर्मल वर्मा की कही बात याद आ गई की यह बात कितनी अजीब लगती है, जब हम किसी व्यक्ति को बहुत चाहने लगते है, तो ना केवल वर्तमान में उनके साथ रहना चाहते है, बल्कि उसके अतीत को भी निगलना चाहते है, जब वह हमारे साथ नहीं था। हम इतने लालची और ईष्यालु हो जाते है कि हमे यह सोचना भी असहनीय लगता है कि कभी ऐसा समय रहा होगा, जब वह हमारे बगैर जीता था, प्यार करता था, सोता-जागता था। फिर अगर कुछ साल उसी एक आदमी के साथ गुजार दे तो वह कहना भी असम्भव हो जाता है, कि कौन- सी आदत। पत्तो की तरह वे इस तरह आपस में घुल-मिल जाती हैं कि आप किसी एक पत्ते को उठाकर नहीं कह सकते कि यह पत्ता आपका है और दूसरा किसी दूसरे का...।


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