संस्कृतियो  का अनोखा मिलन - 4 Akshika Aggarwal द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

  • मंजिले - भाग 14

     ---------मनहूस " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ कहानी है।...

श्रेणी
शेयर करे

संस्कृतियो  का अनोखा मिलन - 4



रोनक और एमिली इस नई पैदा हुई समस्या से बेहद परेशान थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। एक दूसरे से मिलकर बात करने का मौका भी नहीं मिल पा रहा था। दोनों आँखों ही आंखो में एक दूसरे से बाते कर रहे थे। दोनों बड़ी मुश्किल से अपने आँसुओ को रोके हुए थे। ऐसा लग रहा था जैसे कि दोनो के दिल का दर्द दोनो की आंखों में उतर आया हो।दोनो उस रात सो नही पाए। बस यही सोचते रहे कि वह इस स्तिथि से बाहर कैसे निकले? क्या उनकी प्रेम कहानी अधूरी रह जाएगी? क्या वो कभी एक नही हो पायेंगे? ये ख्याल ही दोनों की रूह को तड़पा देता था।
दिन बीत रहे थे। दोनो को ना ही दिन का सुकून था ना ही रातो की नींद। ना ही ऐमिली को अब सजने सवरने का मन करता था। ना ही अच्छा दिखने का, रोनक का भी किसी काम मे मन नही लगता था, ना ही व्यायाम करने में बस वो सारा दिन गुमसुम औऱ उदास रहने लगा, उसका मन पसंद खाना भी उसे फीका सा लगने लगा। दोनों उदास और बुझे बुझे से रहते थे।
एमिली इधर चर्च भी नहीं गई थी। बस जब मौका मिलता ईश्वर से प्रार्थना करती कि सब ठीक हो जाए। दो दिनो से उसने अमेरिका अपने माता पिता को फ़ोन भी नही किया था।
वही दूसरी और रोनक के पिता सुलेखा (पिछले चैप्टर में कोई और नाम था। देखकर ठीक करो) और रोनक के रिश्ते से बेहद खुश थे। राज पुरोहित से पूछ कर उन्होने दोनो के सगाई की तैयारी शुरू कर दी थी। पर माँ तो माँ होती है सुभद्रा देवी ने रोनक और ऐमिली की उदासी भाँप ली थी उन्होंने लाख पूछा उनके उदास रहने की वजह पर दोनो कुछ ना बोले। दोनो बस जीने के नाम पर अपने आंसू पिये जा रहे थे।
राज पुरोहित ने बताया कि अगले महीने से पहले अगर शादी ना कि तो रोनक और सुलेखा की शादी कभी हो नही पाएगी। तो फिर क्या था राजा भूपेंद्र सिंह ने दोनो की झट मँगनी पट विवाह कराने का निर्णय लिया। दो दिन बाद उन दोनों की सगाई का दिन तय किया गया और उसके 15 दिन बाद शादी। सभी लोग सगाई की तैयारियों में जुट गए थे, ऐमिली और रोनक के दर्द से अनजान सभी लोग खुशियां बना रहे थे। राज्य में त्योहार जैसा माहौल था। गरीबो में सोने के सिक्के बाटे जा रहे थे आस पड़ोस के राज्यों को सगाई आने के न्योते दिए जा रहे थे। माँ भी खुश थी पर उन्हें रोनक की चिंता खाये जा रही थी। क्योंकि वह समझ गयी थी कि रोनक इस शादी से खुश नही है।समझती कैसे नही उनके जिगर का टुकड़ा उदास और बुझा बुझा सा जो रहने लगा था। उन्होंने रोनक के पिता से भी बात करनी चाही जब राजा अपने कमरे में गये तो सुभद्रा देवी बोली "आप अपने बेटे की शादी को लेकर बेहद उत्साहित हैं मैं भी हूँ। मेरा तो सपना था कि मैं अपने लाल का घर बसते देख सकूँ पर क्या आप को नही लगता आपको की एकबार आपको रोनक की मर्ज़ी पूछ लेनी चाहिए वो आजकल बहुत उदास उदास और बुझा बुझा रहने लगा है।"
भूपेंद्र सिंह बोले" यह कैसी बात कर रही है आप हमारा बेटा हमारी मर्जी से ही शादी करेगा हो सकता है उसको अपने काम की चिंता हो। हमारे कुल में किसी ने आजतक प्रेम विवाह नही किया है, हमारा बेटा भी नहीं करेगा। हमारी परम्परा जैसी चली आई है वैसे ही बरकरार रहेगी।"

सुभद्रा देवी बोली" पर बदलाव प्रकृति का नियम है और वक्त के साथ साथ इंसान के सिद्धांत और परम्परा भी बदलनी पडती है। "
भूपेंद्र सिंह गुस्से से बोले,
"रानी हमारी संस्कृति और परम्पराओ से बढ़कर और कुछ भी नही।"
सुभद्रा देवी भावुक होकर बोली "क्या आप का अपना बेटा भी नही?
भूपेंद्र सिंह बोले नही! अगर रोनक हमारे माहेश्वरी रियासत के खिलाफ जाता है तो हमे उसे रियासत से बेदखल करना होगा।"

सुभद्रा देवी भावुक होकर बोली"ईश्वर के लिए ऐसा मत कहिये वो हमारा एक मात्र वारिस है, हमारे घर का चिराग। उसके बिना हमारा वंश कौन आगे बढ़ाएगा?"
यह सब बातें ऐमिली दरवाजे के बाहर खड़ी सुन रही थी। वो सुभद्रा देवी को दवा देने आई थी। वह वह रोनक के साथ रह कर इतना हिंदी तो सीख ही गई थी कि वो यह समझ सके कि वह माहेश्वरी कुल की वधु नही बन सकती। वार्तालाप खत्म होते ही अपने आंसू पोछ कमरे मे गई बड़ी मुश्किल से अपने होंठों पर मुस्कान सजा कर सुभद्रा देवी को दवा दी राजा रानी से आशीष लिया और अपने कमरे की और बढ़ गई। कमरे में जाकर वह पूरी तरह टूट गयी। वह यह दर्द-ए जुदाई और सह नही पा रही थी ।वह किसे बताती यह दर्द रोनक भी तो उसके पास नहीं था। उसने अपने माता
पिता को अमेरिका फोन लगाया और पूरी बात बतादी। उन्हें तो अपनी लाड़ली से प्यार था बचपन ही उसके लिए जी रहे थे दोनो।दोनो खुले विचारों और अपनी बेटी की खुशी में खुश रहने वाले माता पिता थे जेम्स जोंस और अलास्का जोन्स। इसलिये उन्हें इस रिश्ते से कोई ऐतराज़ नही था फिलहाल के लिए दोनो ने ऐमिली की बात सुनी उसे सांत्वना दी। ऐमिली को समझाया बेशक वह उनसे दूर है पर वो अकेली नही है।
एमिली के माता पिता सब जानकर दुखी थे। उन्होंने अपनी बेटी के पास भारत आने का निर्णय लिया। उधर ऐमिली भी अपने माता पिता से बात करके हल्का महसूस कर रही थी। उसने अपने आपको सम्भाला और रोनक की जिंदगी से दूर जाने का निर्णय लिया। उसने फैसला कर लिया था कि वह अपने देश अमेरिका वापस चली जायेगी हमेशा हमेशा के लिए , उसने रोनक को खत लिखा खत में लिखा।
"My dear Ronak,I know you love me so much, I love you too much, I can't even think of living without you. But I also know that the parents have the highest right over the child. I also know that your father and mother will not accept our relationship and I do not want you to get away from your parents because of me, so I am going to America forever by keeping your love in my heart. May you be happy by marrying Sulekha.
Don't worry about me
Love
Emily

खत लिखकर ऐमिली रात में ही रोनक के तकिये के पास यह खत छोड़कर सुबह रोनक उठने से पहले ही घर छोड़कर चली गयी।